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गीता 2

7 सितम्बर 2021

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तत: शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा: .

सहसेवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोभवत्. 13.


  इसके बाद शंख, नगाड़े, ढोल, नरसिंगे, मृदंग आदि बाजे एक साथ भयानक शोर करते हुए गरज उठे. इन सब का यह सम्मिलित स्वर बहुत ही भयंकर था.


   प्राचीन समय में युद्ध के समय भयंकर - भयंकर रणवाद्य बजते थे. जिससे शत्रु सेना में खलबली मच जाती थी. भारत के पराक्रमी वीर दुश्मनों पर टूट पड़ते थे और अपनी तलवारों और अस्त्र - शस्त्रों से उनके हाथ - पैर काट के रणभूमि में खून की नदियां बहा देते थे.


  जिससे भविष्य में भी शत्रुओं को हमारे भारत भूमि पर आक्रमण करने का साहस न हो. शत्रुओं की लगभग पूरी सेना का विध्वंस कर दिया जाता था. ताकि कई पीढ़ियों तक उनकी बची हुई सेना निर्बल बनी रहे.










तत: श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ.

माधव: पांडवश्चैव दिव्यौ शंखो प्रदध्मतु:. 14.


  इसके बाद सफेद घोड़ों से सजे हुए उत्तम रथ में बैठे हुए भगवान कृष्ण ने और अर्जुन ने अपने - अपने दिव्य शंख बजाएं.







पांचजन्यं ऋषिकेशो देवदत्तं धनंजय:.
पौंड्रं दध्मौ महाशंख भीमकर्मा वृकोदर:..15..


  श्री कृष्ण भगवान ने पांचजन्य, अर्जुन ने देवदत्त नाम का शंख और भयंकर भीम ने पौंड्रक नाम का बहुत बड़ा शंख बजाया.










अनंतविजयं राजा कुंतीपुत्रो युधिष्ठिर:.

नकुल: सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ..16..


  कुंती के पुत्र महाराज युधिष्ठिर ने अनंत विजय और नकुल व सहदेव ने सुघोष व मणिपुष्पक नाम के महाशंख बजाए.









काश्यश्च परमेश्वास:  शिखंडी च महारथ:.

धृष्टद्युम्नो  विराटश्च सात्यकिश्चापराजित:.17


   महान धनुष वाले काशिराज, महारथी शिखंडी, धृष्टध्युम्न, महाराज विराट और वीर सात्यकी इन सब ने अपने अलग-अलग शंख बजाए.








द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश: पृथ्वीपते.

सौभद्रश्च महाबाहु: शंखान्दध्मु: प्रथक् प्रथक्.18


   द्रुपद, द्रोपदी के पांचों पुत्र, अभिमन्यु इन सभी ने अपने अपने महाशंख बजाए.








स घोषो धार्तराष्टाणां हृदयानि व्यदारयत्.

नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्.19


  उस भयंकर शब्द ने आसमान और धरा को गुंजाते हुए कौरवों के हृदय को भय से विदीर्ण कर दिया.

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