नई दिल्लीः वो प्रोफेशनल फायरमैन नहीं एक आम आदमी हैं। पेट पालने के लिए इलेक्ट्रिशन का काम करते हैं। मगर कलकत्ता के किसी कोने में आग लगने की खबर मिलते ही सारा काम-धाम छोड़कर दमकलकर्मियों से पहले पहुंचते हैं। पेशेवर फायरमैन धूं-धूंकर जलते भवनों में घुसने की जब तक रणनीति बनाते हैं तब तक यह शख्स जान हथेली पर लेकर भवनों में घुस जाता है और शुरू हो जाता है आग से लड़ने का खेल । इस खतरनाक खेल में खतरों के इस खिलाड़ी की कई बार जान जाते-जाते बची, मगर गैरों की जिंदगी बचाने के इनके जोश से लड़कर राह में आई हर मुसीबत टूटकर चकनाचूर हो गई। पिछले 40 साल से यह फायर फाइटर आग में झुलसती जिंदगियों को बचाने का मिशन छेड़ रखा है। कलकत्ता के लोग दमकल वालों से ज्यादा इन पर भरोसा करते हैं। और प्यार से विपिन दा नाम से पुकारते हैं। उनके इस निःस्वार्थ सेवा पर फिदा होकर प. बंगाल के अग्निशमन विभाग ने 2009 में फायरफाइटिंग के लिए न केवल सम्मान दिया, बल्कि पहचान पत्र भी जारी किया। आइए हम इनके नेक मिशन से आपको रूबरू कराते हैं।
भाई की मौत के बाद बन गए फायर फाइटर
दिवाली की रात थी। परिवार जश्न में डूबा हुआ था। आज के 59 साल के विपिन दा की तब उम्र महज 12 साल थी। अचानक पटाखों से घर में आग लग गई। अंदर उनका भाई फंस गया। वह बचाने के लिए चीखता रहा। मगर लाख कोशिश के बाद भी कोई नरेंद्न को आग के घेरे से बाहर नहीं निकाल सका। आग में जलकर बड़े भाई नरेंद्र की मौत हो गई। इस घटना ने विपिन दा को अंदर से हिला दिया। उन्होंने तब बचपन में ही संकल्प लिया कि अब वह अपने सामने किसी को आग में जलकर मरने नहीं देंगे। तब से विपिन दा फायर फायटर बन गए। खास बात है कि फायर फाइटिंग की कोई पेशेवर ट्रेनिंग उन्होंने नहीं ली है, मगर इस काम में अपने अनुभव से किसी पेशेवर फायर फाइटर से कहीं ज्यादा जानकारियां रखते हैं। विपिन दा कहते हैं कि वे दुकान में हमेशा रेडियो व टेलीविजन खोलकर रखते हैं। ताकि कलकत्ता शहर में
कहीं आग की सूचना हो तो तुरंत बचाव कार्य के लिए पहुंच सकें।
सौ बड़े रेस्क्यू आपरेशन को अंजाम दिया, कलकत्ता के हास्पिटल में बुझाई आग
पिछले 40 साल में अब तक विपिन दा ने कलकत्ता में लगी सौ बड़ी आग की घटनाओं में सैकड़ों जिंदगियां खुद के दम पर बचाईं। 1978 में कलकत्ता के बैंक में लगी आग में उन्होंने पहली बार रेस्क्यू आपरेशन किया। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बस यहीं से उनके स्वैच्छिक अग्निशमनकर्मी बनकर सेवा का जुनून शुरू हो गया। 2011 मं कलकत्ता के प्राइवेट हॉस्पिटल में लगी भीषण आग में उन्होंने सीढ़ियों से चढ़कर हास्पिटल के आईसीयू में फंसे मरीजों को बाहर निकाल लाए थे। इस घटना में 89 मरीजों की मौत हुई थी। इससे पहले 1993 में कलकत्ता के बो बाजार बम ब्लास्ट, 2008 में नंदराम मार्केट में लगी आग में उन्होंने रेस्क्यू आपरेशन किया।
हर साल सबसे ज्यादा आग की घटनाएं कलकत्ता में
देश में कलकत्ता शहर आग के लिहाज से बहुत असुरक्षित शहर है। संकरी गलियां-मुहल्लों में आग लगने पर भारी तबाही की आशंका रहती है। अग्निश्मन विभाग के आंकड़े बोलते हैं कि 2014 में अगलगी की कुल दो हजार घटनाएं हुईं। जिसमें 347 लोगों की मौत और 1749 लोग घायल हुए। वहीं 2015 में कुल 16 सौ घटनाओं में 143 लोगों की मौत और 974 व्यक्ति घायल हुए।