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अहोई अष्टमी

17 अक्टूबर 2022

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अहोई अष्टमी

  अहोई अष्टमी का त्यौहार कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष २०२२ में आज दिनांक १७ अक्टूबर २०२२ को अहोई अष्टमी का त्यौहार मनाया जा रहा है। अहोई अष्टमी उत्तर भारत का एक चर्चित पर्व है। इस  पर्व पर महिलाएं अपने संतान की दीर्घ आयु की कामना से उपवास रखती हैं। तथा शाम को अघोई माता की पूजा कर और तारे को अर्घ देकर अपना व्रत तोड़ती हैं। अहोई अष्टमी के व्रत का महत्व करवा चतुर्थी के व्रत से कम नहीं माना जाता है। वास्तव में तो माना जाता है कि करवा चतुर्थी का व्रत भारतीय सिनेमा और दूरदर्शन के धारावाहिकों के कारण अधिक प्रसिद्ध हुआ जबकि अहोई अष्टमी का व्रत वे स्त्रियां भी रखती थीं जो कि करवा चतुर्थी का व्रत नहीं रखा करतीं थीं।

  समय के साथ मान्यताओं में पर्याप्त बदलाव होता है। कुछ दशक पूर्व तक पुत्रवती महिलाएं ही अहोई अष्टमी का व्रत रखा करतीं थीं। संभवतः उस समय तक पुत्रों की लालसा पुत्रियों की तुलना में बहुत अधिक होती थी। माता पिता के स्नेह का अधिकांश हिस्सा भी पुत्रों के हिस्से में ही आता होगा।

  समय के साथ कुछ अच्छे और सकरात्मक बदलाव समाज में हुए हैं। आज कल वे महिलाएं भी अहोई अष्टमी का व्रत रख रहीं हैं जिनके मात्र पुत्रियाँ ही हों। यह एक अच्छा कदम है। कानूनन रूप से बेटियां भी बेटों के समान हैं। बेटियां भी उस स्नेह की अधिकारिणी होती हैं जो कि बेटों का एकछत्र अधिकार समझा जाता है।

  अहोई व्रत के विषय में लोकगाथा इस प्रकार है। एक गांव में एक धनी साहूकार रहता था। एक बार दीपावली की लिपाई पुताई के लिये साहूकार की पत्नी अपनी बेटी को लेकर एक टीले से मिट्टी खोद रहीं थीं। तभी गलती से साहूकार की बेटी की कुदाल से स्याहू (साही) के बच्चे मर गये। स्याहू ने गुस्से में साहूकार की बेटी की गोद बांध दी।

  साहूकार की बेटी ने अपनी सातो भाभियों से प्रार्थना की कि वे उसके बदले में अपनी गोद बंधवा दें। फिर सबसे छोटी भाभी ने अपनी ननद के बदले अपनी गोद बंधवा ली।

  साहूकार के बड़ी छह बहुओं की संतान हुईं। पर सबसे छोटी बहू जिसने अपनी ननद के बदले अपनी गोद बंधाई थी, उसके बेटे जन्म लेकर सात दिनों में मर जाते थे। इस तरह उसके सात बेटे हुए जो जन्म के सात दिनों बाद मर गये।

  फिर वह बहू सुरभी गौ की कृपा से सात समंदर दूर स्याहू माॅ को ढूंढने निकली। बड़ी कठिनाइयों से उसने स्याहू माता को ढूंढा। स्याहू माता को सेवा से प्रसन्न किया तथा स्याहू माता की कृपा से उसके सातों बेटे जिंदा हो गये। वापस आकर उस बहू ने अहोई अष्टमी का व्रत रखा।

  भारतीय लोक गाथाओं में पशुओं और पक्षियों का उल्लेख बड़े सम्मान के साथ होता रहा है। विभिन्न लोक गाथाओं तथा इस लोक गाथा की सबसे पहली शिक्षा यही है कि पशुओं और पक्षियों का भी सम्मान करना चाहिये। जैसे मनुष्यों को अपने बच्चे प्रिय हैं, पशु पक्षिओं को भी अपने बच्चे उतने ही प्रिय हैं। जैसे मनुष्यों को अपनी संतान की पीड़ा से कष्ट होता है, पशु पक्षी भी अपने संतान की पीड़ा में उसी तरह दुखी होते हैं।

  इस कहानी का मुख्य भाग है कि साहूकार की सबसे छोटी बहू ने सब जानते हुए भी अपनी ननद के बदले अपनी कोख बंधवा ली। कहानी का यह भाग विशेष संदेश देता है। अपना कल्याण चाहने बाली स्त्रियों को हमेशा अपने पति के परिवारजनों के कष्टों को दूर करने का उपाय सोचना चाहिये। ऐसा करने में यदि खुद को कोई दिक्कत आये तो भी पीछे नहीं हटना चाहिये। परिवार केंद्रित होना किसी भी स्त्री का वह गुण है जो कि उसे महान बनाता है। महिलाओं को कभी भी आत्मकेंद्रित नहीं होना चाहिये। सास, ननद जैसे कुछ रिश्ते ईश्वर ने ऐसे बनाये हैं, जिनका हमेशा सम्मान करना चाहिये। पति की माता और बहन का सम्मान करने बाली स्त्री का ही अंत में सम्मान होता है। केवल पति प्रेम का दंभ भरकर पति को उसके परिवार खासकर माता एवं बहन से दूर करना किसी भी पतिव्रता स्त्री का लक्षण नहीं है।

  आज मेरी मम्मी ने अहोई व्रत का उपवास रखा है। अधिक आयु के कारण अब वह पूरी तरह निराहार व्रत नहीं रख पाती हैं। पर थोड़ा सा फलाहार कर व्रत रखना भी एक बड़ी बात है। मुख्य बात है कि वह मेरे और मेरी बहनों की मंगल कामना के लिये अहोई अष्टमी का व्रत रखीं हैं। माॅ का बच्चों के प्रति को चाहकर भी व्यक्त करना असंभव है।

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