गुजरी होली री आप बीती बात है,
एक बार फिर आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ •---||||
मेरा अनुभव है, ऐसी परिस्थिति हजारों लोगों के साथ हर होली को बनती हैं •---
जिससे होली मे रंगों से खेलने की इच्छा लोगों मे मरती हैं,,
ऐसे लोगों की पैदाइश बढ़ जाएगी,
तो एक दिन भारतीय संस्कृति मिट जायेगी •---||
अब आपको सोचना है,,
संस्कृति को बढ़ाना है
या उसे मिटाना हैं,,
•------प्रस्तुत हैं,,-------•
होली री माथाफोड़ी
राम -राम भाया
होली आईं जद भी थे मैंने याद आया
होली गईं तो भी थे मैंने याद आवौ
मे तो थाने आ बात बताऊँ
में होली कियां मनाऊँ
रंगों री भर पिचकारी दोस्तों ने भिगाऊ
होली हैं बोल ने हेंगा ने रंगाऊ
पण म्हारो एक दोस्त नाराज होग्यौं
और मैंने कईयौ
What is this
म्हारे मन मे विचार आयो
अंग्रेज तो चला गया पण लागे
औलाद ने अठे ही छोड़गा
में कईयौ होली हैं यार
मथानियां री मिर्ची ज्यौं जवाब दियो
यह कैसा है त्योहार
मेरे महेंगे कपड़ो को कर दिया खराब
तुम्हारा ये त्योहार मुझे दाय नहीं आया
में भी राजस्थान रो देवासी आखिर काठो काळजो राख ने जवाब दे दियो
सुणो थे जनाब
थाणा माँ बाप अठारा कोनी जाया जन्मिया
के थारों बाप परायो बिज लायो
ओ सुण साब रे आँख्याँ सुं पाणी निकलग्यौं
काठी छाती राख अर म्हारे गुलाल लगाईयौं
और केवण लागो भाई देवासी
मैंने थु पहली क्युं नी समझायौं
मंशीराम देवासी कहे
जिते रंग नहीं लगायौं
होली रो मजो कोनी आयो
अपणाईत रो फुल खिलायौ
मन रा भेद- भाव मिटायौ
ऐड़ो होली रो त्योहार आयौ
ऐड़ो होली रो त्योहार आयौ
म्हारे मन रा विचारों रो समर्थन दईज्यौं
कोई गलती रेवै तो मैंने शिकायत करज्यौं
नेनो कार नहीं नेनो टाबर हूँ
म्हारो हौसलों बढाईज्यौं
अपणो छोटो राजस्थानी
-----लेखक ------
भाई मंशीराम देवासी
बोरुन्दा जोधपुर
------राजस्थान -------
९७३०७८८१६७