राम राम सा •--
में मंशीराम देवासी ( बोरुन्दा )
एक बार फिर में आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ मेरे मन की बहुत
गहरी पिड़ा जो ने जाने कितने परिवारों को पिड़ीत कर चुकी हैं,
जिण री जिम्मेदार आज री युवा पीढ़ी हैं •---
जितनी बड़ी यह समस्या है उतनी बड़ी पिड़ा हैं,,हर समाज मे बहुत तेजी से बढ़ रही इस समस्या का असली जिम्मेदार कौन हैं,,
तो आप सब समझ गये होंगे कि
में क्या कहना चाहता हूँ,
•----नहीं तो सुनो-----•
क्या नारी का यह कोमल हृदय अब कोमलता खो रहा है,या सदियों से चल रही परम्पराओं मे परिवर्तन ला रहा है,मेरे तो कुछ समझ मे नहीं आ रहा है,क्योंकि इनके द्वारा उठाए हुए गलत कदमों ने मेरी समझ को तो किया समस्त शरीर को लकवा ग्रस्त कर दिया है,और फिर मन मे जहरीले शब्दों की लहर उठती हैं,की ऐसी बच्चियां बचपन मे ही क्यूं नहीं मर जाती क्यूं माँ -बाप और समस्त समाज पर कलंक लगाने के लिए बड़ी हो जाती •---
हा यह सत्य हैं कि बेटी दो घरों की शान बढ़ाती हैं ,लेकिन आज कल की बेटियों की करतूत से तो सारे कुल व समाज की शान मिट्ठी मे मिल जाती हैं,वो क्यों नहीं सोचती की
माँ बाप का प्यार भुलाकर मे
कौनसा प्यार निभाउँगी•--
क्या बीतेगी उस दिन जब
यह पिड़ा मुझ पर दोहराऊंगी•--
में तमाम बेटियों से कहना चाहता हूँ,
की हैं बेटी तु तो तेरे प्यार की
जिद्द मे जीतेगी •---
क्या तुने जरा सोचा है तुझे जन्म देने वालों पर क्या बीतेगी •--
समझ जा बेटी समझा रहा हूँ
नहीं तो एक दिन
तुम बहुत पछताओगी •---
आज माँ बाप रो रहे हैं लेकिन एक दिन तु स्वयं रोएगी •---
समझा रही तुम्हारी माँ
परिवार छोड़कर ने जा
समझा रही तुम्हारी काकी
जिन्दगी बहुत पड़ी बाकी
समझा रहा तेरा बाप
बेटी मत कर यह पाप
समझा रहीयो तेरो काको
छोरी क्यों नहीं पड़े थने झांको
समझा रहा तेरा भाई
अब तो मान जा बाई
समझा रही तेरी बहन
कैसे करेगी सबकूछ सहन
तुझे तो अभी तक यह छोटी सी बात लग रही हैं क्योंकि तु अभी नादान हैं
क्या बित रही होगी तेरे परिवार पर
परेशान पुरा खानदान हैं,,
पर जात के पुत्र से प्रेम कर
कौनसा अच्छा होगा,,
बहुत रोयेगी उस दिन बेटी
जिस दिन तेरे बच्चा होगा,,
घर से भाग कर तु भाग अपना
बदल रही हैं,
तु अपने आप को और माँ बाप
को अपना बदल रही हैं,,
याद रहे •---
जो माँ -बाप को दुख देता हैं
वो कभी सूख नहीं पाता हैं •---
प्रत्येक रचना मेरी अपनी रचना है
इसलिए मेरा नाम लिखना
मेरा अहंकार नहीं
मेरा अधिकार समझें •-----
•-------प्रणाम ------•
•-------------विचारक
भाई मंशीराम देवासी
बोरुन्दा जोधपुर
9730788167