धरती माँ रे गोद में ना जाने किता जीवों ने जन्म लियो पण अपनी बुद्धि रे कारण मानव जीव ने सर्वश्रेष्ठ
स्थान पायो -•-माँ धरती ने भी मानव को अपना प्रथम और अतिउत्तम पुत्र के रुप मे स्वीकारा ईतना ही नहीं माँ ने मानव को पुत्र के रूप में पाकर अपने आप को धन्य व भाग्यशाली माना -•-
इसलिए अपनी गर्भ से निकलने वाली समस्त सामग्री का मालिक भी मानव ही बना-•-
में मंशीराम देवासी प्रार्थना करता हूँ
आप सभी से की माँ धरती पर अपने आप को बोझ नहीं बनने देगे
•-----परन्तु आज कल -----•
मादक पदार्थों का सेवन कर मानव अपने नैतिकता के सारे सिद्धांतों को भूला रहा है --•--
भटक रहे हैं अपने क्रमों के मार्ग से
नष्ट कर रहे हैं बुद्धि को अपने तुच्छ विचारों से --•--
मिटा रहे हैं अपने मर्यादा पुरुषोत्तम होने के सारे गुणों को --•--
में कहता हूँ आज से ऐसा प्रण ले अपने जीवन में मादक पदार्थों का कभी सेवन नहीं करेगें--------
कभी कभी में सोचता हूँ कि संसार मे सारी रचनाओं की कल्पना कवि महोदय जी द्वारा रच दी -•-
एक एक शब्द को
एक एक क्षण को
एक एक विचार को
एक एक दर्द को
एक एक खुशी को
एक एक पल को और
प्राणी की चलने वाली सांसों
का वर्णन बहुत ही गहराई से
किया है --•--
लेकिन फिर भी प्राणी के अपने अपने भाव होते हैं ----
कुछ कल्याणकारी शब्द लिखकर अपने आप को धन्य समझूँगा
आप मेरा हौसला बढाते रहे
और में लिखता रहूँगा
•--म्हारी एक छोटी सी कविता आप लोगों रे इंतजार मे --•
म्हारे देखता -देखता एक
अनहोनी घटना घटी
उण घटना ने देख म्हारी
आँख्याँ रेगी फटी रे फटी
एक हट्टा -कट्टा भाईड़ा
ने लत लागगी दारु री
खुद तो कमावे कोनी
कमाई खायगो माँ बाप री
दारु पिवणा मे कांई सार
इज्जत गमावै खुद आपरी
सुबह शाम री कांई बात
जिम्मे कोनी दोपहर री
एक हट्टा -कट्टा भाईड़ा
ने लत लागगी दारु री
म्हारी बात थे मानजौ
थे मत पिवजौ दारु
म्हारी छोटी लेखनी सूँ
में तो थाणो जीवन सवारुं
लिखणो तो मैनें कोनीआवे
पण लिखणे रो जतन करु
में तो घुंटकी कोनी लेऊ पण तो
भी लिखूँ घुंटकी लेवै बाणे सारु
अबे तो समझणा बन जावौ थे
किऊ पिवौ हो ढोला-मारु
हाथ जोड़ ने समझाऊ थाने
या पछे थाणी में आरती उतारु
मंशीराम देवासी कहें
नशे के अधीन हो रही दुनिया
को अब में कैसे सुधारुं
आज सूँ नशा पता रो त्याग करो
जीवन री नई शुरुआत करो