•---मौत का कुआँ ---•
वास्तव मे एक ऐसा खेल है,,
जो खेलते हैं ऐसा लगता है जैसे उन्हें जिन्दगी की कोई प्रवाह ही नहीं ,,
समय जोग हुआ हम भी कुछ आशाओं के साथ गांव छोड़कर शहर चले आये वैसे हमारा जोधपुर भी कोई गांव नहीं है परन्तु वहाँ रहना शायद हमारे भाग्य मे नही था,
इसलिए हम उसे छोड़कर किसी और शहर का सफर तय करने के लिए निकल पड़े,,,
लेकिन मेरी यात्रा के लिए कुछ समय और शेष था ,,
इसलिए में जोधपुर भ्रमण के लिए निकल पड़ा ,,
भाई वाक्य जोधपुर का भ्रमण इतिहासिक हैं,,
वाक्य शहर की सुन्दरता मेरे मन को आकर्षित कर रही थी ,,
घूमते -घूमते मैनें कुछ दूरियाँ तय की थी, की मुझे एक बड़ा सा ग्राउन्ड दिखाई दिया उसकी बनावटों से वो कोई खेल का मैदान लग रहा था,,मेरे मन में उसके बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करने की इच्छा हुई और में उसके मुख्य प्रवेश द्वार की ओर बढ़ा ,,
पहुंचकर देखा तो वाक्य वो
ब्रखतुल खाँ एक क्रिकेट स्टेडियम ही था,,
उसके चारों ओर खाली जगह पर उस दिन बड़ा सा हाट लगा हुआ था,
बचा हुआ शेष समय में भी वही पर बिताना उचित समझा और मेले की सुन्दरता को मेरी आँखें निहारने लगी•--
और वहीं पर लगा हुआ था जोखिम भरा खतरनाक खेल •----
{ मौत का कुआँ }
वैसे तो कुआँ जमीन के अन्दर खोदा हुआ रहता हैं,,
लेकिन यह कुछ ऊंचाई पर था इसलिए समझने में थोड़ी कठिनाई हुई •---
बहुत ही भिड़भाड़ और लोगों को उत्साहित देख कर में विचार करने लगा आखिर क्या संकेत दे रहा है ये मौत का कुआँ जिससे लोग इतने चिल्ला रहे हैं ,,में भी वहां जाने का मार्ग खोज रहा था कि अचानक लोगों की जाती हुई कतार नज़र आई मुझे पता चल गया कि उपर जाने का एकमात्र यही मार्ग हैं ,,
इसलिए में भी उस कतार मे शामिल हो गया एक -एक कर चलते रहे तभी एक भाई सा बिच खड़े थे और टिकट -टिकट चिला रहे थे,और मैनें तो कोई टिकट ही नहीं लिया था अब क्या कतार तोड़ कर बाहर निकल आया और टिकट कोन देता है कितने मे देगा ये सोचने लगा तभी मेरी नज़र टिकट काऊंटर पर पड़ी और में वहाँ चला गया और पूछा भाई साहब एक टिकट का कितना,,,
दस रुपए दस रुपए,,
लेकिन साहब दस रुपए भी मेरे लिए ज्यादा था परन्तु क्या करें देखने की जो चाहत थी उसके आगे मुझे विवश होना पड़ा और में
जेब मे हाथ डाला कुल दो सौ बिस रुपये निकले परन्तु दो सौ रुपये तो मुझे मेरी मंजिल तक पहुँचने के लिए बचा के रखना था,,
लेकिन मन की जिन्द को कोन जित पाया,,और में भी हार गया और दस का नोट उन्हें थमा दिया टिकट ले कर जल्दी से उपर चला गया भिड़ भाड़ मे जगह बना कर कुऐ का किनारा पकड़ कर मौत के कुऐ का जो भयानक नजारा था उसे देखने लगा,,वाक्य जबरदस्त दर्शय था,,
वैसे तो हमारे देवासीसमाज के लोग किसी भी चीज़ की शौक कम ही रखते हैं ,,परन्तु आज की भावी पीढ़ी अपने जीवन मे बहुत कुछ परिवर्तन ला रहे हैं,,
और शौक भी बढ़ा रहे हैं •---
खेर जाने दो में तो आज भी एक बुजुर्गो की तरह सामान्य जीवन जीने वाला व्यक्ति हूँ •------और जैसा में सोच रहा था वैसा कुछ नहीं था,मौत का कुआँ तो एक मनोरंजन का कुआँ था लेकिन उस मे हो रही करतूतें वाक्य दिल बहलाने वाली थी ,,
पास मे खड़े कुछ लोग बातें कर रहे थे,ये तो सब नज़र बन्द का कमाल है,वरना कोई ऐसे गाड़ीया चला सकते हैं,तो कोई बता रहे थे ये तो जादू है,लेकिन कुछ लोग अपने हाथों में नोट लेकर अपने हाथ लम्बे कर रहे थे,तभी अचानक खिलाड़ी आता हैं, दोनों हाथ छोड़ कर दर्शकों के हाथों से नोट ले कर अपने शरीर और गाड़ी का बेलेन्स बनाते हुए फिर इधर उधर गाड़ी को दोड़ाने लग जाता हैं,,ये नज़ारा देख कर में सोचने लग गया कोई इतनी स्पीड मे किसी के हाथ की वस्तु को कैसे ले सकता क्या सचमुच मे ही यह नज़र बन्द का ही कमाल है,,
मेरे मन की इच्छा भी प्रगति कर
गई,,
दस का नोट जो था जेब मे उसे भी बाहर खिच लाई ,,निकले थे गांव से हम करने कमाई,,
शौक -शौक मे जेब खाली हो गई,,
और ज्यौ ही उस कलाकार ने मेरे हाथ से वो दस रुपये का नोट लिया तब जाके में इस खेल की रचना समझ पाया •------
मौत के कुऐ पर बाकी सब लोग उत्साह मना रहे थे •--
लेकिन मेरे तो वाक्य प्राण चले जा रहे थे
•-- •---लेखक ----•
भाई मंशीराम देवासी
बोरुन्दा जोधपुर
9730788167