नई दिल्ली : इसी महीने मोदी सरकार अपने तीन साल पूरे करने वाली है लेकिन तीन साल पूरे होने से पहले मोदी सरकार अपने रुख में बदलाव लाती दिख रही है। सरकार अपनी सबसे प्रचारित किये जाने वाली योजना 'मेक इन इंडिया' की जगह पर अब 'बाय इन इंडिया' को ज्यादा तरजीह दे रही है। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार एक ऐसी नीति बनाने जा रही है जिसमे घरेलू खरीद नीति को प्राथमिकता दी जाएगी। रिपोर्ट के अनुसार पीएमओ ने इसकी रूप रेखा तैयार करने के लिए एक बैठक भी की। कहा जा रहा है कि इस नीति को जल्दी लाया जा सकता है।
सरकार को लगता है कि घरेलू खरीद को तरजीह देने की किसी भी नीति से ज्यादा संख्या में रोजगार का भी सृजन होगा, जो नरेंद्र मोदी सरकार का अहम एजेंडा भी है। सरकार के सामने मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया बड़ी चुनौती बन चुकी है। दावा किया गया था कि इसे रोजगार मिलेगा लेकिन रोजगार अब भी मोदी सरकार के सामने समस्या बनी हुई है।
‘बाय इन इंडिया’ नीति में ऐसे क्षेत्रों को शामिल किया जा सकता है, जिनमें सरकार सबसे बड़ी खरीदार है जैसेकि इंजीनियरिंग, मशीनरी और कागज आदि। सीमेंट भी ऐसा ही एक क्षेत्र है लेकिन इसमें अधिकांश खपत की आपूर्ति घरेलू विनिर्माण के जरिये ही की जाती है। इसमें पेट्रोलियम और स्टील क्षेत्र में घरेलू खरीद को तरजीह देने का निर्णय यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई विकसित देशों में आर्थिक राष्ट्रवाद जोर पकड़ रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का संरक्षणवादी रुख, खासकर एच1बी वीजा पर उनके कदम से आईटी उद्योग पर खासा असर पड़ा है। हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय वटपार नीति के तहत इस नीति को चुनौती भी दी जा सकती है। अगर यह नीति लागू होती है तो अन्य देशों से सस्ते उत्पादों की कम लागत का लाभ उठाने से देश वंचित रह सकता है। वैसे, इसकी व्याख्या 'अप्रत्यक्ष संरक्षण' या 'वर्चुअल संरक्षण' के तौर पर की जा सकती है और संभव है कि इसे विश्व व्यापार संगठन में चुनौती का सामना न करना पड़े।
वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री निर्मला सीतारमन ने हाल ही में कहा कि सरकार सितंबर तक औद्योगिक क्रांति 4.0 पर नीति लेकर आएगी, जिससे विनिर्माण कंपनियों और रोजगार सृजन में मदद मिलेगी।