
इलाहाबाद : इलाहाबाद के मुट्ठीगंज कालीबाड़ा और उमा शकर मिल के सामने बसी बस्ती के झोपड़पट्टी में रहने वाले एक उस बच्चे की कहानी जिसकी जिन्दगी एक थप्पड़ ने बदल डाली. बस यहीं से इस बच्चे को उसकी झकझोरती आत्मा ने उसे एक आटा बेचने वाले से यूपी की सत्ता के कैबिनेट मंत्री का सरताज पहना दिया गया.
यह कहानी किसी और की नहीं बल्कि इलाहबाद दक्षिणी विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार बनाये गए उस नंद गोपाल गुप्ता उर्फ़ नंदी के संघर्ष की कहानी है, जिसने उसको एक झाड़ू लगाने वाले इंसान से चंद महीनों में यूपी की बसपा सरकार का मंत्री बनने पर मजबूर कर दिया था. दरअसल नंदी ने भी कम संघर्ष नहीं किया. चतुर्थश्रेणी कर्मचारी के घर जन्में होने के कारण नंदी को लोगों के घरों में चौका बर्तन करने के साथ ही साथ झाड़ूपोचा भी करना पड़ा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. यहीं नहीं आज भी नंदी अपने साथ हुए बचपन के उस किस्से को भूल नहीं पाए हैं, जो सजा एक गरीब बच्चे को महज एक हंसी का एक ठहाका लगाने पर दी गयी थी. ‘ इंडिया संवाद’ से बात करते हुए नंदी बताते हैं कि की एक दिन वह अपने पडोसी के घर टीवी देख रहे थे, तभी लोगों को हँसाने वाला एक ऐसा द्रश्य सामने आ गया और वह जोर से हंस दिए.
इसी हंसी की आवाज को सुमकर उनके मालिक ने पीछे से उनके कान उमेठते हुए उनके गाल पर दो कन्टाप जड़ दिए . इस कंटाप के पड़ने के बाद उन्होंने सोच लिया अब वह ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, जिसको करने से उनकी हंसी का एक ठहाका लगाने पर भी जुबान सीकर रखनी पड़ती हो. दरअसल नंदी को नींद आना ही बंद हो गयी, तभी उसने आर्थिकरूप से मजबूत बनने की थान ली और उसने अपने पिता से एक बीसीआर और एक कलर टीवी ख़रीदा और लोगों को फिल्म किराये पर दिखाने का धंधा शुरू किया. इस धंधे से कुछ पैसा जोड़कर उन्होंने एक परचून की दुकान खोलकर आटा बेचने का धंधा शुरू किया. एक दिन वह एक शादी समारोह में थे तभी कुछ लोगों ने बसपा विधायक राजूपाल की सनसनीखेज ढंग से निर्मम हत्या कर दी गयी थी. इसी वक्त उन्होंने सोच लिया की इलाहाबाद से गुंडा राज समाप्त करने के लिए उन्हें राजनीती में आना चाहिए. साल २००५ में हुई इस हत्या के बाद वह मायावती से मुलाकात करने लखनऊ चल दिए. लखनऊ में कुछ दिन गुजरने के बाद उनकी मुलाकात बहनजी से हुई. बसपा सुप्रीमो से मिलने के बाद नंदी ने उन्हें बताया की वह राजनीती में क्यों आना चाहते हैं और साल २००७ के विधानसभा चुनाव में मायावती ने बसपा से उनके जज्बातों को देखकर टिकट दे दिया.
ये यूपी का सबसे मुश्किल चुनाव था, जिसमें एक तरफ बीजेपी से केशरीनाथ त्रिपाठी मैदान में थे तो राजनीती में धुरंदर मानी जाने वाली रीता बहुगुणा जोशी एन कांग्रेस से मैदान में थीं. सपा के टिकट से सबसे बड़े व्यापार ी श्यामा चरण गुप्ता मैदान में थे. इन तीन महीनों में राजनीती के इन धुरंदर न खिलाडियों के आगे इस नौसखिये जवान ने अपने चुनाव प्रचार का ऐसा तरीका घर-घर वोट मांगने जाने का सूझा की इलाहबाद की जनता का झुकाव नंदी की तरफ हो गया. फिर क्या था नंदी के नाम की ऐसी हवा चली की उसने इन सभी महारथियों को पीछे छोड़ दिया और जब नतीजे सामने आये तो वह भारी मतो से चुनाव जीते. दरअसल इसके पीछे नंदी का वह सेवा संस्थान है, जिसमें ९३००.बूथ कार्यकर्ता सक्रीय है. अपने इन्हीं कार्यकर्ताओं की डीएम पर २०१२ में नंदी की पत्नी ने निर्दलीय नामांकन कर ilahabad के मेयर का चुनाव जीत लिया था. फ़िलहाल बीजेपी ने उनके इन्हीं बूथ शक्ति को देखते हुए उन्हें तमाम विरोध के बावजूद इलाहबाद की द्क्षिणी विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है. बाहरहाल नंदी अपने बूथ के समान्तर इसी व्यवस्था के डीएम पर यह चुनाव जीतने का दावा कर रहे हैं.