दीपावली का शाब्दिक अर्थ होता है - दीपों की पंक्ति| इस त्यौहार में लोग दीपों की पंक्ति बदल रूप में अपने घर के अंदर एवं बाहर जलाते हैं| इस प्रकार, यह प्रकाश का त्योहार है| यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है| इस दिन लोग गणेश लक्ष्मी का पूजन करते हैं, जिन्हें पौराणिक कथा के अनुसार धन, समृद्धि, विघ्नहरण एवं ऐश्वर्या का भगवान माना जाता है| दीपावली से 1 दिन पहले का दिन 'धनत्रयोदशी' या 'धनतेरस' अति शुभ माना जाता है| इस दिन लोग सोना चांदी एवं बर्तन खरीदते हैं| धनतेरस मनाने के पीछे का पौराणिक कारण इस प्रकार है- कहा जाता है कि समुद्र मंथन के पश्चात लक्ष्मी की उत्पत्ति इसी दिन हुई थी इसलिए इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है| समुद्र मंथन से ही धन्वंतरि, जी ने औषध विज्ञान का प्रणेता माना जाता है, की उत्पत्ति कार्तिक मास की त्रयोदशी को हुई थी| इसलिए इस दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है|
श्री रामचंद्र जी जब रावण का वध एवं 14 वर्ष का वनवास व्यतीत करके अयोध्या वापस लौटे, तो अयोध्या वासियों ने उनके स्वागत में अपने घर एवं नगर को भी के दीपों से जगमगाया था| गोस्वामी तुलसीदास जी ने गीतावली में इसका रमणीय वर्णन किया है -
"सांझ समय रघुवीर पुरी की शोभा आजू बनी|
ललित दीप मालिका विलोकही हितकरि अवध धनी|"
पश्चिम बंगाल में लोग दीपावली को काली पूजा के रूप म मनाते हैं| वहां बड़े-बड़े एवं भव्य पंडालों के अंदर मां काली की प्रतिमा प्रति स्थापित की जाती है| काली पूजा के बाद वहां लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है| दीपावली का अपना धार्मिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व है, किंतु आज इस त्यौहार में कई प्रकार की बुराइयां भी समाहित हो गई है इस त्यौहार के नाम पर लोग अपनी सामर्थ्य का प्रदर्शन करते हुए हजारों रुपए पटाखों में उड़ा देते हैं| अत्यधिक पटाखे जलाना जिस डाल पर बैठे, उसी डाल को काटने जैसा है|
जिसे शुद्ध हवा में हम सांस लेते हैं, उसी को पटाखों से हम और शुद्ध करते हैं, यह कितनी अज्ञानता है| जुआ खेलना इस त्यौहार की सबसे बड़ी बुराई है, यदि जुआ नहीं खेला जाए तथा पटाखे ना जलाएं जाए तो यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश की विजय के अपने संदेश को सार्थक करता नजर आएगा| आज इन बुराइयों को दूर कर इस त्यौहार के उद्देश्यों को सार्थक करने की आवश्यकता है|