नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा हिंदी न्यूज़ चैनल 'NDTV इंडिया' को एक दिन के लिए बैन किये जाने की कई विश्लेषक, पत्रकार और विपक्ष के नेता आलोचना कर रहे हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी न्यूज़ चैनल के प्रसारण को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के मद्देनजर बैन किया गया है। सरकार जहाँ इस फैसले को सही मान रही है वहीँ एडिटर गिल्ड का कहना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है। NDTV इंडिया पर लगाया गया एक दिन का बैन उचित है या नही इसको समझने के लिए आपको यह समझना जरूरी है कि जिस कानून के अनुसार NDTV के प्रसारण को रोकने की बात कही गई है वह आखिर है क्या और चैनल की रिपोर्टिंग ने इसका उल्लंघन किया अथवा नही।
सरकार ने चैनल को क्यों बैन किया ?
सूचना और प्रसारण मंत्रालय का कहना है कि चैनल का प्रसारण एक दिन के लिए रोक दिया जाये क्योंकि उसने कुछ ऐसी संवेदनशील जानकारी अपनी रिपोर्टिंग में दी जिसका फायदा आतंकवादी उठा सकते थे। जैसे हथियारों की जगह का लोकेशन, स्कूल और रेसिडेंशियल इलाके की जानकरी इत्यादि।
केबल टीवी एक्ट अधिनियम का नियम 6 (1) (पी) क्या कहता है ?
संविधान का केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम के नियम 6 (1) (पी) कहता है कि सुरक्षा बलों के एंटी टेरेरिस्ट ऑपरेशन के दौरान कोई भी केबल सर्विस 'लाइव कवरेज' को जारी नही रख सकता। हालाँकि यह बात भी सरकार के जहाँ में होगी की कवरेज लाइव थी या नही।
इस मामले को इंटर मिनिस्ट्रियल कमेटी (IMC) ने देखा। जिसमे सरकार के कई अधिकारी मौजूद होते हैं। जो सूचना और प्रसारण मंत्रालय को रिपोर्ट देती है।
NDTV का बयान
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का आदेश प्राप्त हुआ है। बेहद आश्चर्य की बात है कि NDTV को इस तरीके से चुना गया. सभी समाचार चैनलों और अखबारों की कवरेज एक जैसी ही थी। वास्तविकता में NDTV की कवरेज विशेष रूप से संतुलित थी। आपातकाल के काले दिनों के बाद जब प्रेस को बेड़ियों से जकड़ दिया गया था, उसके बाद से NDTV पर इस तरह की कार्रवाई अपने आप में असाधारण घटना है। इसके मद्देनजर NDTV इस मामले में सभी विकल्पों पर विचार कर रहा है।
क्या सवाल उठा रहे हैं जानकार ?
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल उठाया पूर्व चीफ मार्केंडेय काटजू ने उनका कहना है कि कानून के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में सुरक्षा बालों के ऑपरेशन के लाइव कवरेज पर प्रतिबन्ध है लेकिन NDTV इंडिया का कवरेज लाइव नही था। NDTV ने सुरक्षा बलों के सर्च अभियान को लाइव नही दिखाया। यह मात्र रिपोटिंग थी। उन्होंने सुरक्षाबलों को लड़ते हुए नही दिखाया, ऑपरेशन के कोई दृश्य भी नही दिखाए इसलिए यह बैन गैरकानूनी है। काटूज का कहना है कि मीडिया के लोगों ने रूल 6 (1) (पी) 1994 को ध्यान से नही पढ़ा, वह कुछ भी टिप्पणी करते रहते हैं।
कई लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि जिस मीडिया का महत्व सरकार पर निगरानी रखना है उसके पास सजा देने का अधिकार कैसे हो सकता है। इसके लिए तो न्यूज़ ब्राडकास्टिंग स्टैण्डर्ड अथॉरिटी (NBSA) जैसी संस्थाएं बनाई गई है। जिसने पत्रकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों को रखा गया है।
पत्रकार विनोद कापड़ी ने एक विडियो ब्लॉग में कहा है कि सरकार किस चैनल को ऐसे बैन नही कर सकती। इसके लिए एक स्वतंत्र संस्था न्यूज़ ब्राडकास्टिंग स्टैण्डर्ड अथॉरिटी (NBSA) बनाई गई है। ऐसे तो भविष्य में सरकार किसी भी चैनल पर अपने प्रतिकूल बोलने पर प्रतिबन्ध लगा सकती है।
इंडिया टुडे के चेयरमैन अरुण पूरी का कहना है कि चैनल को बैन करना सरकार के हाथ में एक खतरनाक हथियार है। हमें NBSA के रेगुलेशन की इज्जत करनी चाहिए।
राज्यसभा टीवी में पत्रकार गिरीश निकम ने अपने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है, '' मुझे लगता है कि सूचना प्रसारण मंत्रालय को वह विडियो अपलोड करना चाहिए। जिसे इंटर मिनिस्ट्रीयल कमेटी के सामने बैन लगाने के फैसले से पहले रखा गया था।
मीडिया मुग़ल और राज्यसभा सांसद सुभाष चंद्रा इन तर्कों से इत्तेफाक नही रखते। आज उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर NDTV इंडिया पर बैन को सही ठहराया। उनका कहना है कि ''देश की सुरक्षा में दो मत नहीं हो सकते। सरकार द्वारा NDTV इंडिया पर एक दिवसीय प्रतिबन्ध को मैं बिलकुल सही मानता हूँ!''