डायरी दिनांक १०/०३/२०२२ - सायंकालीन चर्चा
शाम के पांच बजकर पचास मिनट हो रहे हैं ।
आखिर आज बड़े चुनावी समर का लगभग परिणाम आ गया। जो बहुत सारे राजनैतिक दलों के लिये कुछ न कुछ सोचने को छोड़ गया। उम्मीद है कि सभी दल अपने निर्णय पर पुनर्विचार करेंगें।
आज कार्यालय में भी पूरा दिन चुनावी बहार में डूबा रहा। मतगणना के दौरान एक बार स्पीड इश्यू की शिकायत आयी। पर जल्द सिद्ध हो गया कि वह स्पीड इश्यू संबंधित सर्वर के लोड के कारण था।
एक मुहावरा है - कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाने। सचमुच कई बार लोगों की बातों का सही आशय समझ में नहीं आता है। और कभी कभी समझ में आता भी है तो कुछ कर नहीं सकते, सिवाय कहीं और निगाह कर कहीं और निशाना लगाने के।फिर कभी कभी यह भी विचार आता है कि क्यों भला कहीं और देखते हुए कहीं और निशाना लगाने में समय गंवाया जाये।
कभी कभी डायरी लिखना भी बहुत कठिन हो जाता है। जो लिखना चाहते हैं, उसे सोशल मीडिया पर लिखा नहीं जा सकता है। फिर लिखकर मिटाने के अलावा कुछ उपाय भी नहीं बचता।
मन करता है कि लगातार लिखता जाऊं। मन की कोई बात मन में न रहने दूं। फिर दूसरी तरफ मन ही मन का करने नहीं देता।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।