डायरी दिनांक १०/०३/२०२२ - सुबह की राम राम
सुबह के नौ बज रहे हैं।
मतगणना आरंभ हो चुकी हैं। आज एटा शहर का बाजार बंद रखा गया है। हमारे विभाग के कुछ अधिकारियों की ड्यूटी जिला निर्वाचन अधिकारी के आदेश पर मतगणना केंद्र पर दूरसंचार व्यवस्था सम्हालने के लिये लगायी गयी है। ऐसा हर बार होता है। तथा हर बार हमारे विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों का अनुभव अच्छा नहीं रहता है। छोटी छोटी बातों में उपेक्षा का अनुभव रहता रहा है।
' मियां की दौड़ मस्जिद तक ' एक प्रसिद्ध मुहावरा है। इसका यथार्थ आशय मानसिक अवस्था का वर्णन करना है। अक्सर मनुष्य अपनी सोच में आसानी से बदलाव नहीं कर पाते।
क्रिया प्रतिक्रिया का नियम भौतिक विज्ञान के अतिरिक्त मानव स्वभाव और मन पर भी लागू होता है। जब भी मनुष्य अपनी विचारधारा बदलना चाहता है, उस समय उसे उसकी पुरानी विचारधारा रोकती है। यह अच्छे और बुरे दोनों तरह की विचारधारा पर लागू होता है। सच्ची बात है कि विचारों में आमूल परिवर्तन संभव नहीं है।
उसके उपरांत भी सभी को बदलना होता है। चाहे थोड़ा ही क्यों न हो। थोड़ा थोड़ा सभी बदल भी जाते हैं। हालांकि बदलने के बाद भी जब उनसे और अधिक बदलने की अपेक्षा की जाती है, उस समय उनका मन भी विद्रोही बनने लगता है। केवल बदलाव के उपासक ही विद्रोही नहीं बनते अपितु अपनी सामर्थ्य से खुद में बदलाव करने के बाद भी घिसी पिटी परिपाटी, कूपमंडूकता, विचारों में संकीर्णता जैसे आरोपों को सुनने बाले भी विद्रोही बन जाते हैं।
दबाव का विरोध करना इलास्टिसिटी कहलाता है। जैसे एक रबर को खेंचने पर वह खिंचती है तथा छोड़ देने पर पुरानी आक्रति में आ जाती है। जैसे कमान की डोरी खींचने पर खिंचती जरूर है पर छोड़ने पर पुराने रूप में आती है। यही स्थिति दबाव में बदलाव कर रहे मन की होती है। तथा अवसर मिलने पर जब पूर्व मान्यता पर वापस आता है, उस समय कुछ अधिक ही विद्रोही बन जाता है।
इस तरह बदलाव के समर्थकों और विरोधियों का विद्रोह चलता रहता है। जबकि थोड़ी सी सावधानी से इनसे बचा जा सकता है। जबरदस्ती कोई भी बदलाव संभव नहीं है। इस विषय में एक दूसरे को सम्मान देने की महती आवश्यकता है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।