डायरी दिनांक ०५/०३/२०२२ - अहंकार और स्वाभिमान में अंतर
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अहंकार और स्वाभिमान के मध्य बहुत थोड़ा अंतर है। बहुधा स्वाभिमान को अहंकार समझने की भूल हो जाती है। जबकि स्वाभिमान एक दैवीय गुण है और अहंकार एक दानवीय प्रवृत्ति। स्वाभिमानी व्यक्ति के विचार का क्षेत्र हमेशा खुद से बहुत आगे होता है। वह खुद के साथ साथ दूसरों के सम्मान के लिये भी जागरूक होता है। तथा सभी के हित की इच्छा से विरोध करता है। जबकि अहंकारी व्यक्ति का चिंतन केवल खुद तक विस्तृत होता है। अहंकारी व्यक्ति खुद के अहंकार की संतुष्टि के लिये किसी भी हद तक गिर सकता है। अहंकार हमेशा अवसरवादिता को जन्म देता है। अहंकारी व्यक्ति दूसरों के ही नहीं अपितु खुद के आत्मसम्मान को भी गिरवी रख सकता है।
वास्तव में स्वाभिमान शव्द के अंतर्गत आ रहे स्व का अर्थ केवल खुद की अवधारणा से बहुत आगे होता है। हालांकि उसे अनुभूति खुद से संबंधित किसी बात से होती है। पर उसे दर्द उस असंख्य लोगों की परिस्थितियों को खुद में अनुभव कर होता है जो कि उस जैसी स्थिति से गुजरे थे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी रेलगाड़ी की प्रथम श्रेणी की बोगी में यात्रा कर रहे थे। उन्हे अपमानित कर उस बोगी से बाहर कर दिया गया। उसके बाद उनके मन की दशा उनका स्वाभिमान थी।
अहं ब्राह्मस्मि श्री भीष्म साहनी की प्रसिद्ध कहानी है। कहानी का नायक उस समय तक भारतीयों की पीड़ा को तब तक नहीं समझ पाया जब तक कि वह खुद उस पीड़ा से नहीं गुजरा।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।