नशे में बहकते नन्हें कदम
वैसे कोई भी समय ऐसा नहीं रहा जिसे पूरी तरह निष्कलंक कहा जा सके। जिस काल को पूर्ण सात्विक काल कहा जा सके। कुरीतियों से कोई भी काल पूरी तरह नहीं बचा है। पूर्ण सतयुग मात्र एक कल्पना है। जो कभी भी संभव नहीं है। सत्व, रज और तम तीनों हर काल में विद्यमान रहे हैं। सच्ची बात है कि त्रिगुणात्मक सृष्टि में यदि तम पूरी तरह मिट जायेगा तो सृष्टि भी नहीं रहेगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार महान संत गयासुर के तम को पूरी तरह नष्ट करने के संकल्प के कारण ही भगवान विष्णु ने उनका वध किया था।
बच्चे किसी भी देश और समाज का भविष्य होते हैं। माना जाता है कि जो बच्चे बचपन में सही राह के अनुवर्ती होते हैं, वे बड़े होकर जिम्मेदार नागरिक बनते हैं।
आज एक बड़ा प्रश्न उठ रहा है कि किशोरों के नशे की तरफ बढते कदमों का कारण क्या है और उन्हें नशे से किस तरह बचाया जा सकता है।
सबसे पहला कारण तो परिवार ही लगता है। जिस परिवार में बड़े नशे करने के शौकीन होते हैं, उस परिवार के बच्चे भी कम आयु में नशे में डूबने लगते हैं। वास्तव में उनके लिये नशा कोई बुराई नहीं होता। अपने माता-पिता को देख वह नशा में आत्मगौरव अनुभव करते हैं। विभिन्न कुतर्कों से वे नशे की उपयोगिता सिद्ध करते रहते हैं। जो कि वास्तव में उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि का द्योतक होता है।
दूसरा प्रमुख कारण कुसंगति है। कई बार लगने लगता है कि नसेड़ी परिवार के बच्चे नशे के प्रचार प्रसार का काम व्यापक रूप में करते हैं। फिर संस्कारी परिवार के बच्चे भी बहुत हद तक भ्रमित होने लगते हैं। उन्हें अपने माता-पिता की शिक्षा गलत लगने लगती है। वे भी नशे के आदी होने लगते हैं।
तीसरा सबसे प्रमुख कारण नशे के कारोबारी हैं। जो अपने कारोबार को बढाने के लिये किशोरों को नशे के दलदल में डुबो रहे हैं। पढाई में असफल, प्रेम में असफल किशोर उनके प्रमुख लक्ष्य होते हैं। वास्तव में ऐसे कारोबारियों का एक बड़ा जाल सा होता है जिसमें एक बार फसने के बाद किसी किशोर का उससे निकल पाना आसान नहीं होता है।
उपाय :
वैसे नशा मुक्त युवा समाज तैयार करने के काफी प्रयास किये गये हैं। फिर भी संकल्प में कमजोरी, इच्छा शक्ति की कमी और कुछ राजनैतिक स्वार्थ के कारण भी ये सारे प्रयास फलीभूत नहीं हो रहे। ऐसे में कुछ बड़े उपाय करने होंगे ताकि हम सभी के बच्चे नशा दैत्य से बच सकें।
(१) बच्चों से नित्य संवाद स्थापित करें। बच्चों को अनुभव कराते रहें कि नशा करना कितना बुरा होता है। बच्चों के मित्रों के स्वभाव पर ध्यान रखें। उचित है कि उन्हें कुसंगति से बचाते रहें।
(२) सफलता और असफलता दोनों जीवन के अंग हैं। बच्चे अपेक्षाकृत अधिक भावुक होते हैं। असफलता की स्थिति में उन्हें परिवार के अधिक भावनात्मक सपोर्ट की आवश्यकता होती है। बच्चों की रुचि के अनुसार ही उन्हें आगे बढने की छूट देनी चाहिये। शिक्षा का कोई भी भेद किसी से कम नहीं है। फिर भी ज्यादातर माता पिता बच्चों पर किसी खास क्षेत्र के लिये दवाव बनाते हैं। ऐसे किशोर ही नशे के कारोबारियों के लक्ष्य बन जाते हैं। उचित है कि बच्चों को भावनात्मक सहयोग दिया जाये।
(३) इस विंदु में मैं जो लिखने जा रहा हूं उसपर बहुत लोगों को आपत्ति हो सकती है। फिर भी सही बात है कि एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा करती है। नीति भी कहती है कि पूरे समाज के कल्याण के लिये कुछ के हितों की अनदेखी करना आवश्यक है। जो बच्चे अपने पारिवारिक संस्कारों के कारण बचपन से ही नशे के आदी होते हैं, उन्हें शिक्षण संस्थानों से दूर ही रखना चाहिये। ताकि शिक्षा के लिये विद्यालय जाते किशोर इनसे बचे रहें। अभिभावकों को भी इस विषय में एकजुट रहना चाहिये।
ये सब मेरे व्यक्तिगत विचार हैं जिनमें भूल चूक की पूरी संभावना है।
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'