डायरी दिनांक १४/०३/२०२२ - छोटी डायरी
रात के सात बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।
अभी बहन चुनमुन ने कहा कि आजकल मैं बहुत ज्यादा छोटी डायरी लिख रहा हूँ? चुनमुन की बात सही है। ऐसा नहीं है कि मेरे मन में विचारों का प्रवाह कम हो गया है। अथवा मैं सब कुछ लिख चुका हूँ। वास्तव में लिखने को बहुत कुछ है। पर सही बात है कि जब भी मैं मन की बातों को लिखना चाहता हूँ, उसी समय मेरा मन ही मुझे रोकने लगता है। वैसे भी यह डायरी तो ओनलाइन डायरी है। जिसपर सभी कुछ लिखा नहीं जा सकता है।
आज से कुछ वर्षों पूर्व मैं लगभग मानसिक रूप से व्यथित व्यक्ति था। मेरे बाबूजी को और मम्मी को मेरी बहुत ज्यादा चिंता रहती थी। वर्ष २०१२ में तो मैं अनिद्रा जैसी बीमारी का शिकार हो चुका था। वे बहुत कठिन दिन थे। हमेशा मन में प्रश्न रहता था कि हमने पूर्व जन्म में ऐसा क्या बुरा किया है जिसका दुष्परिणाम देख रहा हूँ।
परेशानी हम सभी के सामने थी। पर बाबूजी हम सभी में सबसे ज्यादा मजबूत थे। उनसे हम सभी को संबल था। पर एक दिन वह संबल भी टूट गया। बाबूजी दिव्य साकेत लोक को प्रस्थान कर गये।
लिखने से प्रसिद्धि मिली, पहचान मिली, पुरस्कार मिले, पर ये सब बहुत बाद में हैं। वास्तव में लिखने से मुझे फिर से एक संबल मिला। लिखते रहने से मुझे विपदाओं को देख उन्हें अनदेखा करने का तरीका मिला।
कभी कभी लेखन क्षेत्र में मिली सफलताएं भी मुझे दुखी करने लगती हैं। कभी कभी अवहेलना को अनदेखा करना कठिन होने लगता है। और कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि जिन्हें मैं पूरी तरह जानता भी नहीं हूँ, जिनसे मेरा कोई भी सीधे सीधे संबंध भी नहीं है, जिनका मुझसे द्वेष करने का कोई कारण भी नहीं है, वे मुझे संसार का सबसे बड़ा खलनायक सिद्ध करने लगते हैं। कारण प्रयास कर भी नहीं समझ पाता।
भले ही मेरे बहुत सारे लेखन को सराहा गया है फिर भी मेरा सर्वोच्च लेखन सीतायन ही है। यह वह लेखन है जिसे लिखा नहीं जा सकता है। जो स्वतः ही लिखा गया है।
सीतायन न तो पूर्णतः बाल्मीकि रामायण के अनुसार है और न पूर्णतः तुलसीकृत रामचरित मानस के अनुसार। अपितु कुछ उस तरह से जिस तरह मैं माता सीता के चरित्र को विचार करता हूं। विशेषकर अग्निपरीक्षा और सीता परित्याग के विषय में मेरे विचारों के अनुसार। जहाँ अग्निपरीक्षा और सीता परित्याग की पूरी पृष्ठभूमि तैयार की गयी।
कहानी तो सुनी होगी कि रावण वध के लिये प्रभु श्री राम देवी आराधना की थी तथा देवी ने परीक्षा में प्रभु श्री राम के नैत्र मांगे थे।
पर सत्य बात है कि अग्निपरीक्षा की पृष्ठभूमि वहीं तैयार हुई थी जबकि देवी रूपी माता सीता ने पहले प्रेम की परीक्षा ली थी। तथा श्री राम द्वारा नैत्रों को अर्पित करना उनके मन में माता सीता के लिये असीम प्रेम का द्योतक था।
सीतायन की माता सीता अग्नि वास कर भगवान श्री राम को नर लीला करने के लिये अकेला नहीं छोड़ती हैं अपितु वे असुरवध यज्ञ में श्री राम की संगिनी हैं।
मम्मी जी का कहना यही है कि सीतायन में माता सीता के चरित्र के साथ साथ प्रभु श्री राम के चरित्र को बहुत ऊंचाई पर स्थापित किया गया है।
मुझसे पूर्व भी श्री मैथिली शरण गुप्त जी ने अपने विचारों के अनुसार रामकथा को लिखा है तथा उर्मिला तथा कैकेयी के पात्रों का विशेष चित्रण किया है।
शायद सीतायन किसी विशेष उद्देश्य से लिखा काव्य है। तथा उसके बाद ही मेरा काव्य लेखन बहुत कम हो गया है।
सही बात तो यही है कि आजकल मैं लेखन के कारण फिर से व्यथित ही हूँ। फिर मन में बहुत ज्यादा विचार बन नहीं पाते। स्वतः ही डायरी का आकार छोटा होता जाता है।
इसीलिये मेरी डायरी में बार बार तितिक्षा, मान अपमान में समभाव का उल्लेख हो रहा है। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि जल्द तितिक्षा को मेरे मन मस्तिष्क में भर दें। फिर किसी द्वारा की गयी निकृष्ट से निकृष्ट निंदा भी मेरे मन को प्रभावित न कर पाये।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।