डायरी दिनांक ११/०३/२०२२- सुबह की राम राम
सुबह के नौ बज रहे हैं।
आज सुबह सुबह उपन्यास वैराग्य पथ का ग्यारहवाँ भाग लिखने का प्रयास किया पर मन उस अवस्था पर नहीं मिला जो कि इस उपन्यास के आखरी भागों को लिख सके। इस भाग में राजा ऋतुध्वज तथा मदालसा की मानसिक अवस्थाओं का चित्रण करना चाह रहा था। उस चित्रण के लिये जिस तरह की बाह्य और आंतरिक शांति की आवश्यकता थी, वह मिल नहीं रही थी। फिर उस भाग को अभी अधूरा छोड़ दिया है। सायंकाल या रात में सोने से पूर्व पूरे मन से इस भाग को लिखने का प्रयास करूंगा।
आज पूरा अखबार चुनावी चर्चा से भरा मिला। विभिन्न सोशल मीडिया में चुनावी चर्चा ही रहीं और चूंकि हमारा प्रतिलिपि मंच भी बहुत हद तक सोशल प्लेटफार्म है, इसलिये यहाॅ भी चुनावी चर्चा मिलती रहीं।
वैसे एक सत्य यह भी है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता दल के प्रजंड विजय के पीछे विपक्षी दलों की भी पर्याप्त भूमिका रही है। कभी कभी सामने बाले की गलतियां दूसरे की जीत का आधार बन जाती हैं।
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि उत्तर प्रदेश की जनता वर्तमान सरकार से पूरी तरह खुश है। चुनाव से पूर्व विरोध की अच्छी लहर थी। अनुमान था कि इस बार कड़ा मुकाबला रहेगा।
होली आने बाली है। तथा ऐसे अवसर पर होली की चर्चा होना लाजिमी है। आद्या जी चिप्स और पापड़ बना रही हैं। चुनमुन ने होली के लिये गुलरिया तैयार की हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों के हिसाब से सभी अपना उल्लेख कर रहे हैं।
कहीं कहीं हसी मजाक मर्यादा भी पार कर रहे हैं तथा अधिकतर लोग बुरा न मानो होली है के सिद्धांत के अनुसार बुरा भी नहीं मान रहे। फिर भी उचित है कि अपनी आयु, पद और प्रतिष्ठा के अनुसार ही आचरण करना चाहिये। कोई बुरा नहीं मान रहा, इसका अर्थ यह कहीं नहीं है कि कोई बुरा नहीं मानेगा। प्रतिष्ठा बनाने में वर्षों लग जाते हैं तथा मिटने में क्षण भी नहीं।
मैं बचपन से होली के नाम पर हुल्लड़बाजी से दूर रहा हूं। यदि कहीं किसी हुल्लड़बाजी में जहाँ मर्यादा का अतिक्रमण हो रहा हो, आपको मैं दिखाई दे जाऊं तब निश्चित समझ लेना कि वह मैं तो कदापि नहीं हूं।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।