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डायरी दिनांक ०३/०३/२०२२

3 मार्च 2022

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डायरी दिनांक ०३/०३/२०२२

शाम के छह बज रहे हैं।

  आज विभागीय काम से कासगंज गया था। कोरोना के बाद पहली बार शहर से बाहर फील्ड वर्क के लिये गया तथा कोई समस्या नहीं आयी। कोरोना के बाद जब आफिस जोइन किया था, उस समय शारीरिक थकान के विषय में लिख कर दे दिया था। फिर emf का काम आ गया। इतने बीच में फील्ड का काफी काम लंबित हो गया है। जिसे धीरे धीरे निपटाना है।

  फील्ड में जाते समय गाड़ी में पढते रहने का अच्छा मौका मिल जाता है। जबकि आफिस में ऐसा बहुत ज्यादा संभव नहीं है। साथ ही साथ जहाँ जो अच्छा खरीदने को मिले, उसकी खरीदारी भी होती रहती है। देहाती इलाकों में पैंठ में अच्छी सब्जियां मिल जाती हैं। मिठाइयों के विषय में भी फायदा रहता है। इसे बोलते हैं - आम के आम और गुठलियों के दाम।

  हर क्षेत्र में फायदे के साथ कुछ नुकसान भी होते हैं। फील्ड की नौकरी में कई बार घर आने में देर होती है। घर पर किसी को कोई समस्या आने पर तुरंत वापस नहीं आ सकते। कभी कभी अचानक नये काम भी निकल आते हैं।

जब मृत्यु से बचने का कोई भी उपाय न रहे, उस समय कुछ लोग एकदम निर्भय बन जाते हैं। फिर जोश जोश में असंभव को भी संभव कर देते हैं।

   आत्मबल किसी की शक्तिहीन को अपार शक्तिशाली बना देता है। वैसे शक्तिहीन कोई भी नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति ईश्वरीय शक्तियों को धारण करता है।

  किसी भी राजा के लिये उसके खुद का मान सम्मान अधिक महत्वपूर्ण नहीं होता है। राजा के लिये केवल और केवल देश महत्वपूर्ण होना चाहिये। तथा जो राजा केवल खुद को श्रेष्ठ दिखाने के देशहित की चिंता को त्याग देता है, मानवता की बलि चढाने लगता है, उस शासक को तानाशाह कहा जाता है।

अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।

 


कविता रावत

कविता रावत

बहुत अच्छी प्रस्तुति लेकिन अपने यहाँ के राजा तो अपने को ही सर्वोपरि मानते हैं और अगर न भी माने तो उसे चंगु-मंगुओं की फौज उसे इतना ऊपर तक पहुंचा देते हैं कि वहां से राष्ट्र बहुत बौना दिखने लगता है।

3 मार्च 2022

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रचनाएँ
देनंदिनी मार्च २०२२
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