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जब तुमने यह धर्म पठाया

16 अप्रैल 2022

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जब तुमने यह धर्म पठाया

मुँह फेरा, मुझसे बिन बोले,

मैंने चुप कर दिया प्रेम को

और कहा मन ही मन रो ले

कौन तुम्हारी बातें खोले!

ले तेरा मजहब यह दौड़ा

मौन प्रेम से कलह मचाने,

और प्रेम ने प्रलय-रागिनी-

भर दी अग-जग में अनबोले

कौन तुम्हारी बातें खोले!

मैंने बात तुम्हारी मानी

ठुकरा दिया प्रेम को जीकर,

मर-मर कर मैं चढ़ा शिखर पर

प्रेम चढ़ा सूली पर डोले,

कौन तुम्हारी बातें खोले!

मैंने सोचा अपने मजहब

में तुम एक बार आओगे,

तुम आये, छुप गए प्रेम में

मेरे गिरे आँख से ओले।

कौन तुम्हारी बातें खोले!

बाहों में ले, दौड़-धूप कर

मैंने मज़हब को दुलराया,

पर तुम मुझको धोखा देकर

अरे, प्रेम के जी से बोले,

कौन तुम्हारी बातें खोले!

मैं बस लौट पड़ा मज़हब के

पर्वत से, सागर को धोया,

मानो गंगा का यह सोता

पतनोन्मुखी पतन-पथ डोले

कौन तुम्हारी बातें खोले!

सिंधु उठाया जी भर आया

थोड़ा-पा दिल खाली देखा,

पलकें बोल उठीं अनजाने

कौन नेह पर मजहब तोले

कौन तुम्हारी बातें खोले!

आँखों के परदों पर देखा

प्रेमराज, अंजलि भर दौड़े

रे घटवासी, मैंने वे घट

तेरे ही चरणों पर ढोले;

कौन तुम्हारी बातें खोले!

आह! प्रेम का खारा पानी

उसका धन, मेरी नादानी

किस पर फेंकूँ अत्याचारी

साजन! तू पग थलियाँ धोले।

कौन तुम्हारी बातें खोले!

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रचनाएँ
हिम तरंगिनी
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सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा।
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जो न बन पाई तुम्हारे

16 अप्रैल 2022
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जो न बन पाई तुम्हारे गीत की कोमल कड़ी। तो मधुर मधुमास का वरदान क्या है? तो अमर अस्तित्व का अभिमान क्या है? तो प्रणय में प्रार्थना का मोह क्यों है? तो प्रलय में पतन से विद्रोह क्यों है? आये, या

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तुम मन्द चलो

16 अप्रैल 2022
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तुम मन्द चलो, ध्वनि के खतरे बिखरे मग में तुम मन्द चलो। सूझों का पहिन कलेवर-सा, विकलाई का कल जेवर-सा, घुल-घुल आँखों के पानी में फिर छलक-छलक बन छन्द चलो। पर मन्द चलो। प्रहरी पलकें? चुप, सोने

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खोने को पाने आये हो

16 अप्रैल 2022
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खोने को पाने आये हो? रूठा यौवन पथिक, दूर तक उसे मनाने आये हो? खोने को पाने आये हो? आशा ने जब अँगड़ाई ली, विश्वास निगोड़ा जाग उठा, मानो पा, प्रात, पपीहे का- जोड़ा प्रिय बन्धन त्याग उठा, मानो

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जागना अपराध

16 अप्रैल 2022
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जागना अपराध! इस विजन-वन गोद में सखि, मुक्ति-बन्धन-मोद में सखि, विष-प्रहार-प्रमोद में सखि, मृदुल भावों स्नेह दावों अश्रु के अगणित अभावों का शिकारी- आ गया विध व्याध; जागना अपराध! बंक वाली, भौ

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यह किसका मन डोला

16 अप्रैल 2022
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यह किसका मन डोला? मृदुल पुतलियों के उछाल पर, पलकों के हिलते तमाल पर, नि:श्वासों के ज्वाल-जाल पर, कौन लिख रहा व्यथा कथा? किसका धीरज `हाँ' बोला? किस पर बरस पड़ीं यह घड़ियाँ यह किसका मन डोला?

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चलो छिया-छी हो अन्तर में

16 अप्रैल 2022
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चलो छिया-छी हो अन्तर में! तुम चन्दा मैं रात सुहागन चमक-चमक उट्ठें आँगन में चलो छिया-छी हो अन्तर में! बिखर-बिखर उट्ठो, मेरे धन, भर काले अन्तस पर कन-कन, श्याम-गौर का अर्थ समझ लें जगत पुतलि

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गो-गण सँभाले नहीं जाते मतवाले नाथ

16 अप्रैल 2022
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गो-गण सँभाले नहीं जाते मतवाले नाथ, दुपहर आई वर-छाँह में बिठाओ नेक। वासना-विहंग बृज-वासियों के खेत चुगे, तालियाँ बजाओ आओ मिल के उड़ाओ नेक। दम्भ-दानवों ने कर-कर कूट टोने यह, गोकुल उजाड़ा है, गुपाल

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सूझ का साथी

16 अप्रैल 2022
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सूझ, का साथी मोम-दीप मेरा! कितना बेबस है यह जीवन का रस है यह छनछन, पलपल, बलबल छू रहा सवेरा, अपना अस्तित्व भूल सूरज को टेरा- मोम-दीप मेरा! कितना बेबस दीखा इसने मिटना सीखा रक्त-रक्त, बिन्

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सुनकर तुम्हारी चीज हूँ

16 अप्रैल 2022
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सुनकर तुम्हारी चीज हूँ रण मच गया यह घोर, वे विमल छोटे से युगल, थे भीम काय कठोर; मैं घोर रव में खिंच पड़ा कितना भयंकर जोर? वे खींचते हैं, हाय! ये जकड़े महान कठोर। हे देव! तेरे दाँव ही निर्

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वे तुम्हारे बोल

16 अप्रैल 2022
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वे तुम्हारे बोल! वह तुम्हारा प्यार, चुम्बन, वह तुम्हारा स्नेह-सिहरन वे तुम्हारे बोल! वे अनमोल मोती वे रजत-क्षण! वह तुम्हारे आँसुओं के बिन्दु वे लोने सरोवर बिन्दुओं में प्रेम के भगवान का संग

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धमनी से मिस धड़कन की

16 अप्रैल 2022
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धमनी से मिस धड़कन की मृदुमाला फेर रहे? बोलो! दाँव लगाते हो? घिर-घिर कर किसको घेर रहे? बोलो! माधव की रट है? या प्रीतम- प्रीतम टेर रहे? बोलो! या आसेतु-हिमाचल बलि का बीज बखेर रहे? बोलो! या दाने

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भाई, छेड़ो नही, मुझे

16 अप्रैल 2022
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भाई, छेड़ो नहीं, मुझे खुलकर रोने दो यह पत्थर का हृदय आँसुओं से धोने दो, रहो प्रेम से तुम्हीं मौज से मंजु महल में, मुझे दुखों की इसी झोपड़ी में सोने दो। कुछ भी मेरा हृदय न तुमसे कह पायेगा,

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उड़ने दे घनश्याम गगन में

16 अप्रैल 2022
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उड़ने दे घनश्याम गगन में| बिन हरियाली के माली पर बिना राग फैली लाली पर बिना वृक्ष ऊगी डाली पर फूली नहीं समाती तन में उड़ने दे धनश्याम गगन में! स्मृति-पंखें फैला-फैला कर सुख-दुख के झोंके खा-

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जिस ओर देखूँ बस

16 अप्रैल 2022
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जिस ओर देखूँ बस अड़ी हो तेरी सूरत सामने, जिस ओर जाऊँ रोक लेवे तेरी मूरत सामने। छुपने लगूँ तुझसे मुझे तुझ बिन ठिकाना है नहीं, मुझसे छुपे तू जिस जगह बस मैं पकड़ पाऊँ वहीं। मैं कहीं होऊँ न हो

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जब तुमने यह धर्म पठाया

16 अप्रैल 2022
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जब तुमने यह धर्म पठाया मुँह फेरा, मुझसे बिन बोले, मैंने चुप कर दिया प्रेम को और कहा मन ही मन रो ले कौन तुम्हारी बातें खोले! ले तेरा मजहब यह दौड़ा मौन प्रेम से कलह मचाने, और प्रेम ने प्रलय-राग

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बोल तो किसके लिए मैं

16 अप्रैल 2022
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बोल तो किसके लिए मैं गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ? प्राणों की मसोस, गीतों की- कड़ियाँ बन-बन रह जाती हैं, आँखों की बूँदें बूँदों पर, चढ़-चढ़ उमड़-घुमड़ आती हैं! रे निठुर किस के लिए मैं आँसुओं में प्

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बोल राजा, बोल मेरे

16 अप्रैल 2022
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बोल राजा, बोल मेरे! दूर उस आकाश के उस पार, तेरी कल्पनाएँ बन निराशाएँ हमारी, भले चंचल घूम आएँ, किन्तु, मैं न कहूँ कि साथी, साथ छन भर डोल मेरे! बोल राजा, बोल मेरे! विश्व के उपहार, ये निर्मा

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बोल राजा, स्वर अटूटे

16 अप्रैल 2022
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बोल राजा, स्वर अटूटे मौन का अब बाँध टूटे जी से दूर मान बैठी थी जी से कैसे दूर? बता दो? ऐ मेरे बनवासी राजा! दूरी बनी कुसूर? बता दो? उठ कि भू पर चाँद टूटे बोल राजा, स्वर अटूटे मौन का अब बाँध ट

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उस प्रभात, तू बात न माने

16 अप्रैल 2022
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उस प्रभात, तू बात न माने, तोड़ कुन्द कलियाँ ले आई, फिर उनकी पंखड़ियाँ तोड़ीं पर न वहाँ तेरी छवि पाई, कलियों का यम मुझ में धाया तब साजन क्यों दौड़ न आया? फिर पंखड़ियाँ ऊग उठीं वे फूल उठी, मे

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ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा

16 अप्रैल 2022
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ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा मेरी सुरत बावली बोली- उतर न सके प्राण सपनों से, मुझे एक सपने में ले ले। मेरा कौन कसाला झेले? तेर एक-एक सपने पर सौ-सौ जग न्यौछावर राजा। छोड़ा तेरा जगत-बखेड़ा चल उठ, अ

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ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा

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ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा मेरी सुरत बावली बोली उतर न सके प्राण सपनों से, मुझे एक सपने में ले ले। मेरा कौन कसाला झेले? तेर एक-एक सपने पर सौ-सौ जग न्यौछावर राजा। छोड़ा तेरा जगत-बखेड़ा चल उठ, अब

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मन धक-धक की माला गूँथे

16 अप्रैल 2022
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मन धक-धक की माला गूँथे, गूँथे हाथ फूल की माला, जी का रुधिर रंग है इसका इसे न कहो, फूल की माला! पंकज की क्या ताब कि तुम पर मेरे जी से बढ़ कर फूले, मैं सूली पर झूल उठूँ तब, वह ’बेबस’ पानी पर झू

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चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हुआ

16 अप्रैल 2022
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चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हुआ, डालियों को यों चिताने-सी लगी आँख की कलियाँ, अरी, खोलो जरा, हिल खपतियों को जगाने-सी लगी पत्तियों की चुटकियाँ झट दीं बजा, डालियाँ कुछ- ढुलमुलाने-सी लगीं, किस परम आन

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नाद की प्यालियों, मोद की ले सुरा

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नाद की प्यालियों, मोद की ले सुरा गीत के तार-तारों उठी छा गई प्राण के बाग में प्रीति की पंखिनी बोल बोली सलोने कि मैं आ गई! नेह दे नाथ क्या नृत्य के रंग में भावना की रवानी लुटाने चले? साँस के पा

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सुलझन की उलझन है

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सुलझन की उलझन है, कैसी दीवानी, दीवानी! पुतली पर चढ़कर गिरता गिर कर चढ़ता है पानी! क्या ही तल के पागलपन का मल धोने आई हैं? प्रलयंकर शंकर की गंगा जल होने आई हैं? बूँदे , बरछी की नौकों-सी मु

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कौन? याद की प्याली में

16 अप्रैल 2022
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कौन? याद की प्याली में बिछुड़ना घोलता-सा क्यों है? और हृदय की कसकों में गुप-चुप टटोलता-सा क्यों है? अरे पुराने दुःख-दर्दों की गाँठ खोलता-सा क्यों है? महा प्रलय की वाणी में उन्मत्त बोलता-सा क्

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हरा हरा कर, हरा

16 अप्रैल 2022
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हरा हरा कर, हरा हरा कर देने वाले सपने। कैसे कहूँ पराये, कैसे गरब करूँ कह अपने! भुला न देवे यह ’पाना’- अपनेपन का खो जाना, यह खिलना न भुला देवे पंखड़ियों का धो जाना; आँखों में जिस दिन यमुना

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हरा हरा कर, हरा

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हरा हरा कर, हरा हरा कर देने वाले सपने। कैसे कहूँ पराये, कैसे गरब करूँ कह अपने! भुला न देवे यह ’पाना’ अपनेपन का खो जाना, यह खिलना न भुला देवे पंखड़ियों का धो जाना; आँखों में जिस दिन यमुना

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दूर न रह, धुन बँधने दे

16 अप्रैल 2022
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दूर न रह, धुन बँधने दे मेरे अन्तर की तान, मन के कान, अरे प्राणों के अनुपम भोले भान। रे कहने, सुनने, गुनने वाले मतवाले यार भाषा, वाक्य, विराम बिन्दु सब कुछ तेरा व्यापार; किन्तु प्रश्न मत बन

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मत झनकार जोर से

16 अप्रैल 2022
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मत झनकार जोर से स्वर भर से तू तान समझ ले, नीरस हूँ, तू रस बरसाकर, अपना गान समझ ले। फौलादी तारों से कस ले ’बंधन, मुझ पर बस ले, कभी सिसक ले कभी मुसक ले कभी खीझकर हँस ले, कान खेंच ले, पर न

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जहाँ से जो ख़ुद को

16 अप्रैल 2022
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जहाँ से जो ख़ुद को जुदा देखते हैं ख़ुदी को मिटाकर ख़ुदा देखते हैं । फटी चिन्धियाँ पहिने, भूखे भिखारी फ़कत जानते हैं तेरी इन्तज़ारी बिलखते हुए भी अलख जग रहा है चिदानंद का ध्यान-सा लग रहा है

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माधव दिवाने हाव-भाव

16 अप्रैल 2022
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माधव दिवाने हाव-भाव पै बिकाने अब कोई चहै वन्दै चहै निन्दै, काह परवाह वौरन ते बातें जिन कीजो नित आय-आय ज्ञान, ध्यान, खान, पान काहू की रही न चाह भोगन के व्यूह, तुम्हें भोगिबो हराम भयो दुख मे

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तुम्हीं क्या समदर्शी भगवान

16 अप्रैल 2022
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तु ही क्या समदर्शी भगवान? क्या तू ही है, अखिल जगत का न्यायाधीश महान? क्या तू ही लिख गया वासना दुनिया में है पाप? फिसलन पर तेरी आज्ञा से मिलता कुम्भीपाक? फिर क्या तेरा धाम स्वर्ग है जो तप,

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उठ अब, ऐ मेरे महाप्राण

16 अप्रैल 2022
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उठ अब, ऐ मेरे महा प्राण! आत्म-कलह पर विश्व-सतह पर कूजित हो तेरा वेद गान! उठ अब, ऐ मेरे महा प्राण! जीवन ज्वालामय करते हों लेकर कर में करवाल करते हों आत्मार्पण से भू के मस्तक को लाल! किन्

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मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक

16 अप्रैल 2022
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मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक! प्रलय-प्रणय की मधु-सीमा में जी का विश्व बसा दो मालिक! रागें हैं लाचारी मेरी, तानें बान तुम्हारी मेरी, इन रंगीन मृतक खंडों पर, अमृत-रस ढुलका दो मालिक! मधुर-मधुर कुछ

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आज नयन के बँगले में

16 अप्रैल 2022
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आज नयन के बँगले में संकेत पाहुने आये री सखि! जी से उठे कसक पर बैठे और बेसुधी- के बन घूमें युगल-पलक ले चितवन मीठी, पथ-पद-चिह्न चूम, पथ भूले! दीठ डोरियों पर माधव को बार-बार मनुहार थकी मै

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मार डालना किन्तु क्षेत्र में

16 अप्रैल 2022
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मार डालना किन्तु क्षेत्र में जरा खड़ा रह लेने दो, अपनी बीती इन चरणों में थोड़ी-सी कह लेने दो; कुटिल कटाक्ष, कुसुम सम होंगे यह प्रहार गौरव होगा पद-पद्मों से दूर, स्वर्ग- भी, जीवन का रौरव होगा।

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महलों पर कुटियों को वारो

16 अप्रैल 2022
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महलों पर कुटियों को वारो पकवानों पर दूध-दही, राज-पथों पर कुंजें वारों मंचों पर गोलोक मही। सरदारों पर ग्वाल, और नागरियों पर बृज-बालायें हीर-हार पर वार लाड़ले वनमाली वन-मालायें छीनूँगी निधि

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मैंने देखा था, कलिका के

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मैंने देखा था, कलिका के कंठ कालिमा देते मैंने देखा था, फूलों में उसको चुम्बन लेते मैंने देखा था, लहरों पर उसको गूँज मचाते दिन ही में, मैंने देखा था उसको सोरठ गाते। दर्पण पर, सिर धुन-धुन मैंन

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यह अमर निशानी किसकी है?

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यह अमर निशानी किसकी है? बाहर से जी, जी से बाहर तक, आनी-जानी किसकी है? दिल से, आँखों से, गालों तक यह तरल कहानी किसकी है? यह अमर निशानी किसकी है? रोते-रोते भी आँखें मुँद जाएँ, सूरत दिख जाती है,

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सजल गान, सजल तान

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सजल गान, सजल तान स-चमक चपला उठान, गरज-घुमड़, ठान-ठान बिन्दु-विकल शीत प्राण; थोथे ये मोह-गीत एक गीत, एक गीत! छू मत आचार्य ’ग्रन्थ’ जिसके पद-पद अनंत, वाद-वाद, पन्थ-पन्थ, व्यापक पूरक दिगंत; ल

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यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे

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यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे! भाग्य खोजता है जीवन के खोये गान ललाम इसी में, यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे! अन्धकार लेकर जब उतरी नव-परिणीता राका रानी, मानों यादों पर उतरी हो खोई-सी पहचान पुरानी; तब जागृ

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आते-आते रह जाते हो

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’आते-आते रह जाते हो, जाते-जाते दीख रहे आँखें लाल दिखाते जाते चित्त लुभाते दीख रहे। दीख रहे पावनतर बनने की धुन के मतवाले-से दीख रहे करुणा-मंदिर से प्यारे देश निकाले-से। दोषी हूँ, क्या जीने

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दुर्गम हृदयारण्य दण्ड का

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दुर्गम हृदयारण्य दण्डका रण्य घूम जा आजा, मति झिल्ली के भाव-बेर हों जूठे, भोग लगा जा! मार पाँच बटमार, साँवले रह तू पंचवटी में, छिने प्राण-प्रतिमा तेरी भी, काली पर्ण-कुटी में। अपने जी की जलन

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हे प्रशान्त, तूफान हिये

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हे प्रशान्त! तूफान हिये- में कैसे कहूँ समा जा? भुजग-शयन! पर विषधर मन में, प्यारे लेट लगा जा! पद्मनाभ! तू गूँज उठा जा! मेरे नाभि-कमल से, तू दानव को मानव करता रे सुरेश! निज बल से! प्यारे विश्वाध

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अपना आप हिसाब लगाया

16 अप्रैल 2022
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अपना आप हिसाब लगाया पाया महा दीन से दीन, डेसिमल पर दस शून्य जमाकर लिखे जहाँ तीन पर तीन। इतना भी हूँ क्या? मेरा मन हो पाया निःशंक नहीं, पर मेरे इस महाद्वीप का इससे छोटा अंक नहीं! भावों के ध

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आ मेरी आंखों की पुतली

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आ मेरी आंखों की पुतली, आ मेरे जी की धड़कन, आ मेरे वृन्दावन के धन, आ ब्रज-जीवन मन मोहन! आ मेरे धन, धन के बंधन, आ मेरे तन, जन की आह! आ मेरे तन, तन के पोषण, आ मेरे मन-मन की चाह! केकी को केका,

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वह टूटा जी, जैसा तारा

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वह टूटा जी, जैसा तारा! कोई एक कहानी कहता झाँक उठा बेचारा! वह टूटा जी, जैसे तारा! नभ से गिरा, कि नभ में आया! खग-रव से जन-रव में आया, वायु-रुँधे सुर-मग में आया, अमर तरुण तम-जग में आया, मिटकर आ

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कैसे मानूँ तुम्हें प्राणधन

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कैसे मानूँ तुम्हें प्राणधन जीवन के बन्दी खाने में, श्वास-वायु हो साथ, किन्तु वह भी राजी कब बँध जाने में? इन्द्र-धनुष यदि स्थायी होते उनको यदि हम लिपटा पाते, हरियाली के मतवाले क्यों रंग-बिरंगे

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मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी

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मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! उस सीमा-रेखा पर जिसके ओर न छोर निशानी; मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! घास-पात से बनी वहीं मेरी कुटिया मस्तानी, कुटिया का राजा ही बन रहता कुटिया की रानी ! मचल मत, दूर-दूर

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मैं नहीं बोला, कि वे बोला किये

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मैं नहीं बोली, कि वे बोला किये। हृदय में बेचैन मुख खोला किये, दो हृदय ले, तौल पर तौला किये। यह न था बाजार, पर उनके तराजू हाथ में थी, क्रोध के थे, किन्तु उनके बोल थे कि सनाथ मैं थी, सुघढ़, मन

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पुतलियों में कौन

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पुतलियों में कौन? अस्थिर हो, कि पलकें नाचती हैं! विन्ध्य-शिखरों से तरल सन्देश मीठे बाँटता है कौन इस ढालू हृदय पर? कौन पतनोन्मुख हुआ दौड़ा मिलन को? कौन द्रुत-गति निज- पराजय की विजय पर? पत्र

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हाँ, याद तुम्हारी आती थी

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हाँ, याद तुम्हारी आती थी, हाँ, याद तुम्हारी भाती थी, एक तूली थी, जो पुतली पर तसवीर सी खींचे जाती थी; कुछ दूख सी जी में उठती थी, मैं सूख सी जी में उठती थी, जब तुम न दिखाई देते थे मनसूबे फीके ह

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अपनी जुबान खोलो तो

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अपनी जुबान खोलो तो हो कौन ज़रा बोले तो! रवि की कोमल किरणों में प्रिय कैसे बस लेते हो? नव विकसित कलिकाओं में तुम कैसे हँस लेते हो? माधव की पिचकारी की बूँदों में उछल पड़े से, आँखों में लहलह करते

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तुही है बहकते हुओं का इशारा

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तुही है बहकते हुओं का इशारा, तुही है सिसकते हुओं का सहारा, तुही है दुखी दिलजलों का ’हमारा, तुही भटके भूलों का है धुर का तारा, जरा सीखचों में ’समा’ सा दिखा जा, मैं सुध खो चुकूँ, उससे कुछ पहले आ

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गुनों की पहुँच के

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गुनों की पहुँच के परे के कुओं में, मैं डूबा हुआ हूँ जुड़ी बाजुओं में, जरा तैरता हूँ, तो डूबों हुओं में, अरे डूबने दे मुझे आँसुओं में! रे नक्काश, कर लेने दे अपने जी की, मिटाऊँ, ला तस्वीर

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पत्थर के फर्श, कगारों में

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पत्थर के फर्श, कगारों में सीखों की कठिन कतारों में खंभों, लोहे के द्वारों में इन तारों में दीवारों में कुंडी, ताले, संतरियों में इन पहरों की हुंकारों में गोली की इन बौछारों में इन वज्र बरसती

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