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माता

माखन लाल चतुर्वेदी

10 अध्याय
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25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

संकट के पुष्पक पर आई जिसकी पुण्य-साध की वेला! अपने पागलपन में, बेदी पर शिर जो उतार आता है ! उसकी साँस-साँस में, कसकें--'महासांस' की 'साँसें' सारी । वह अरमानों का अपनापन जी की कसकों की ध्वनि-धारा हैं |  

mata

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पुस्तक के भाग

1

कोमलतर वन्दीखाना

18 अप्रैल 2022
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'शंकर' थी; अब कारागृह है हिमगिरि की दीवार, हाय गले का तौक बना गंगा-यमुना का हार; धन्य ! बंग खंभात अब्धि की लहरों की हथकड़ियां, रामेश्वर पर चढ़ी तरंगें बनी पैर की कड़ियाँ । कोमलतर बन्दीखाने के तीस कोट

2

लौटे

18 अप्रैल 2022
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वह आता है किये निहाल, गर्व से उठाये भाल पुष्य भूमि ह्रदय संभाले पथ में खड़ी; अब जाता है हमारा शोक क्यों कर रहेगी रोक दीन दुखी लोगों की अनी सी उमड़ी बड़ी; सभी खीझने खिजाने और रीझने रिझाने वाले प्

3

वह संकट पर झूल रहा है

18 अप्रैल 2022
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कांटों ने संकेत दिया था शीघ्र पुष्प आने वाले हैं सागर के वे ज्वार, तुम्हारे घर मोती लाने वाले हैं पंखिनियाँ, प्रभु की ऊंचाई का, प्राणों में गान करेंगी; आँसू की बूंदों से, साधें सिमिट-सिमिट पहिचान क

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विदा

18 अप्रैल 2022
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जाग रही थी, चैन न लेती थी मस्तानी आँखडियां, पहरा देती थीं पागल हो, ये पागलिनी पाँखडियाँ, भौहें सावधान थीं ओठों ने भूला था मुसकाना, आह न करती डरती थी, पथ- पाले कोई दीवाना ! सूरज की सौ-सौ कि

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सेनानी

18 अप्रैल 2022
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तुझको लख युग मुख खोल उठा, बेबस तब स्वर में बोल उठा, तेरा जब प्रलय-गान निकला, ले, कोटि-कोटि शिर डोल उठा । आशा ऊषा यह द्वार खोज विजया, का सोना ले आई ! यह भली जगा दी तरुणाई ! माँ का 'उभार' खोलती सी

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मीर

18 अप्रैल 2022
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दे प्यारे, अपनी आँखों में आमेजान वहाँ पाऊँ, विमल-धर्म-जयगढ़ पर तेरे उसे समुद्र टकरा पाऊँ भाव-पोत पर लाद, प्रेम के पुष्प-पत्र पहुँचा पाऊँ; अपनी क्षीण धार, उस निधि से किसी प्रकार मिला पाऊँ; उद्गम

7

अमरते ! कहाँ से ?

18 अप्रैल 2022
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अमरते आई दौड़ कहाँ से । यह यौवन, यह उभरन आली छीनी कैसे माँ से ! अमरते पलकें बिह्वल प्रहर प्रतीक्षक दिन दीवाने कैसे ? मास मनाने लगे, रूठकर बैठी हूँ मैं जैसे ? अमरते माँ के घर- रहना ही हो

8

उच्चत्व से पतन स्वीकार था !

18 अप्रैल 2022
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मनहर, पतन स्वीकार था मुझको, पतन स्वीकार था! हे हिमशिखर ! तुमको लगा जो निम्न पथ, मेरे लिए हर-द्वार था। मुझको, पतन स्वीकार था! मेरा उतरना, दौड़ना, पथ-पत्थरों का तोड़ना कर हरी-हरी वसुंधरा उदंड अंग

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दृढ़व्रत

18 अप्रैल 2022
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बज्र बरसाने दे उन्हें तू खड़ा देखा कर, फूल बिखराने दे लुभाते हैं लुभाने दे । गालियाँ सुनाने दे तू आरती उतारने दे, दण्ड आजमाने दे या चन्दन चढ़ाने दे । होवे बनवास कारावास, नर्कवास पद चूमे अमरत्व उस

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राष्ट्रीय झंडे की भेंट

18 अप्रैल 2022
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माँ, रोवो मत, शीघ्र लौट घर आऊँगा, प्रस्थान करूँ बाबा दो आशीष, पताका पर सब कुछ क़ुरबान करूँ। लौटूँगा मैं देवी, हाथ में विजय पताका लाऊंगा। कष्ट-प्रवास, जेल-जीवन की तुमको कथा सुनाऊँगा। दौड़ पड़ो वीरो,

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