अब तक आपने पढ़ा वीणा अपने अतीत में राजश्री से हुई उसकी पहली मुलाकात की बातचीत याद कर रही होती है और और वर्तमान में अचानक भूख से व्याकुल हो राजन्शी थाली चम्मच बजाने लगती है अब आगे-
राजन्शी की थाली चम्मच बजाने की आवाज़ से वीणा की तंद्रा टूटी, उसका ध्यान गैस पर गया; जिस पर रखी दाल उबल कर लगभग आधी हो चुकी थी। उसने गैस बंद किया और राजन्शी की और देखते हुए बोली -
बेटा 5 मिनिट बैठो बस में लेकर अभी आई
राजन्शी उछलती हाथ नचाती हुई किचन से बाहर निकल गई।
कुछ ही देर में वीणा ने टेबल पर खाना लगा दिया था।
ममा! राजश्री मौसी मेरे जन्मदिन पर आएंगी ना!?
खाना खाते हुए राजन्शी ने सवाल किया?
आप बुलाना तो जरूर आएँगी।
हाँ! ठीक है आप उन्हें कॉल करना, मैं उनसे बात करूँगी वैसे भी मुझे उनकी याद आ रही थी।
ठीक है हम खाना खाने के बाद उन्हें कॉल करेंगे। जल्दी से पूरा फिनिश करना। कह कर वीणा भी खाने में लग गई।
दोनों ने खाना खत्म किया। छः साल की नन्हीं राजन्शी अपने छोटे -छोटे हाथों से सर्विंग डिशेस और बाकी चीज़ें किचन में रखने में वीणा की मदद करने लगी।
ममा! आपको मैं एक बात तो बताना भूल ही गई। आज मुझे मेम ने शाबासी दी और साथ मे चॉकलेट भी दी ममा....!
वो भी बड़ी वाली ये बताते हुए राजन्शी के चेहरे भोले से चेहरे से मुस्कराहट जाने का नाम नहीं ले रही थी। जैसे सारे जहाँ। की खुशियाँ उस चॉक्लेट में समाई हों।
वीणा -और....!!? फिर…!?
और.....!!? फिर..! फिर, कुछ नहीं! नन्ही राजन्शी ने धीरे से दबी सी आवाज़ में ये कहा।
जिस पर वीणा ने उसे झूठे गुस्से से घूरा।
अरे....! सच कह रही हूँ, मैंने नहीं खाई!!!
मैं खाने वाली थी… मतलब! मतलब अभी!......जस्ट... पर याद आया कि आज हमने आइसक्रीम खाई है पर....!! ममा!!प्लीज़ खा लूं? प्लीज़....!! तुरंत अपना अंदाज़ बदलते हुए दयनीय से भाव दिखाते हुए मुंह बना कर राजन्शी बोली।
अच्छा ठीक है। खा लो। मगर जीभ पर रखना....दाँतों से बिल्कुल नहीं चबाना और......!!!
हाँ ..!! हाँ!! पता है! ब्रश करना नही भूलना है... मुझे सब पता है, ममा! मैं कोई छोटी सी बच्ची थोड़ी हूँ!! वीणा को बीच में रोक कर सब हिदायतें खुद पूरी करती हुई शरारती मुस्कान के साथ राजन्शी खिलखिलाती हुई बोली।
मेरी दादी माँ! आप तो बहुत बड़ी हो.....! सबसे बड़ी..... ! वीणा ने हँसते हुए उसके गाल पर एक चपत लगते हुए कहा।
राजन्शी चॉकलेट खाने में और वीणा किचन साफ़ करने में व्यस्त हो गई।
राजन्शी ब्रश करके आओ तब तक मैं मौसी को फ़ोन लगा रही हूँ।
ओके! ममा! कहकर राजन्शी चली गई।
वीणा ने राजश्री मैडम का नंबर डायल किया।
राजश्री के फ़ोन की घंटी बज रही है....
राजश्री भीड़ में घिरी हुई लगभग 23-24 की उम्र की एक लड़की के साथ खड़ी है। लोग तमाशबीन बनकर जमा हो गए हैं।
"किस तरीके की मानवीयता है ये कपड़े भी खराब कर दिए आप लोगों ने मिलकर इसके।"
राजश्री धीमे पर सख़्त स्वर में बोली।
"आप क्या इसकी रिश्तेदार हैं, जो भाषण सुनाने आ गईं अपने काम से मतलब रखिए ना "
भीड़ में से एक ने कहा।
"रिश्तेदार चाहे नहीं हूँ मगर इंसान ज़रूर हूँ और अपने काम से ही मतलब रख रही हूँ "
"आपको ज्यादा समाज सेविका बनने की जरुरत नहीं हैं पर्स चुराने की कोशिश की इसने" " ये भाई का।"
"मैंने कुछ नहीं चुराया बाईसा," डरी सहमी सी आवाज़ राजश्री के पीछे से आई.... मैं बस उठा के.....
हाँ! हाँ! ज्यादा समझदार बनने की कोशिश मत कर… झूठ बोलती है…! उसके आगे बोलने से पहले ही चिल्लाते हुए उसने लड़की को चुप करा दिया। उधर राजश्री के फोन ना उठाने पर वीणा थक कर फोन साइड में रख देती है और अचानक खिड़की से बाहर नज़र पड़ने पर कोई व्यक्ति उसे बाहर खड़ा घर में झांकता दिखाई देता है।
आखिर राजश्री यहाँ क्या कर रही है!? कौन है वह लड़की जो भीड़ में गिरी है!? क्या सच में वह कोई चोर है ? लोग उसे क्यों घेर कर खड़े हैं? उधर वीणा के घर के बाहर उसे किस की परछाई दिखाई दी.? जानने के लिए पढ़ें अगला एपिसोड।