पिछले एपिसोड में अपने सुना वीणा के बारे में राजश्री का सिक्स्थ सेंस उसे विचलित कर देता है। और वीणा का घर न जानते हुए भी वह वहाँ पहुँच जाती है। उसकी स्थिति देख तुरन्त उसे अस्पताल ले जाती है जहां इलाज के बाद होश आने पर वीणा कहती है-
"दीदी!"
राजश्री उसकी और देखती है।
"मैं अब वापस उस घर में नहीं जाऊँगी।" कहकर वीणा फिर रोने लग जाती है।
उस व्यक्ति के लिए मैंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया उसे सुधारने और उसका घर संवारने के लिए। उसी के लिए काम करने बाहर निकली। आज भी उसके खर्चे पूरे कर रही हूँ उसका घर चला रही हूँ। और आप जानती हैं फिर भी उसके मन में मेरे लिए इतने बुरे विचार हैं। उसके हिसाब से मैं स्कूल जाने के बहाने... मुझे तो कहते भी शर्म आ रही है मेरा अपना पति मेरे बारे में ऐसे विचार रखता है।
दीदी! सबूत मांग रहा है वो मुझसे इस बच्चे के उसी के होने का!!! कहते कहते वीणा और जोर से रोने लगी थी।
दीदी! आज जो इसके दुनिया मे आने के पहले ही इसके प्रति इतना निर्दयी है। वो अपनी शंकालु प्रवृत्ति के साथ बच्चे को कैसे प्यार करेगा!? कैसे अच्छी परवरिश दे पायेगा!?
राजश्री ने उसे पानी देकर उसे शांत किया और कहा चिंता मत करो जो तुम चाहोगी वही होगा। मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ। इस समय खुश रहना चाहिए तुम्हें। इस पर गलत असर होगा न!!राजश्री ने उसके हाथ पर हाथ रख सांत्वना देते हुए कहा।
आज जो हुआ वो शायद मैं मरते दम तक नहीं भूलूँगी दीदी!
अपने बच्चे को उसकी छत्रछाया में रखकर एक और जीवन जान बूझ के खराब नहीं होने दूँगी मैं। अब चाहे जमाना कुछ भी कहे। मैं नहीं रहूँगी उस शख्स के साथ जिसे मुझसे कोई सरोकार नहीं कोई परवाह नहीं। कहकर वीणा शांत बैठ गई।
राजश्री के मन में अब संतुष्टि के भाव थे। अब उसके मन में वीणा के लिए घर कर चुकी चिंता कुछ कम हो गई थी।
"दवाई लेकर आती हूँ, फिर हम हमारे घर चलेंगे। तुम्हारे पति के घर नहीं।" कहकर राजश्री मुस्कुरा दी।
राजश्री के चेहरे पर वर्तमान में भी आंसुओं के साथ एक मुस्कान उभर आई। रात के दो बज चुके थे। वह लाइट जला अपनी डायरी पेन लेकर बैठ गई। कुछ देर अपने मन की स्याही से कागज़ रंगने के बाद फिर सोच विचार में डूब गई।
रानी की आँखों में भी आज कहाँ नींद होगी राजश्री सोचने लगी कि कैसे उसके मूड को बदला जाए? राजश्री ने तरीका सोच लिया था सोचकर ही उसके चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई।
सुबह जल्दी भी उठना है। उस लड़के को भी बुलाया है, सोचकर राजश्री सोने की कोशिश करने लगी।
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सुबह राजश्री उठकर नहाने गई और वापस आई तब तक रानी ने चाय बना दी थी।
राजश्री ने तैयार होते हुए कहा दो दिन तुम बस आराम करो। कुछ करने की जरुरत नहीं है न ही कुछ सोचने की।
कल मेरी एक प्यारी सी चिड़िया का जन्मदिन है और तुम भी मेरे साथ चलोगी उसे भी अच्छा लगेगा और तुम्हारा मूड तो इतना अच्छा हो जाएगा कि बस!
मैं ग्यारन्टी देती हूँ उससे मिलकर तुम पिछला सब भूल जाओगी!
और ये सब छोड़ो तुम अभी शालिनी आएगी, वो नाश्ता खाना सब बना देगी। बात करना उससे भी। बहुत नरम दिल, सुलझी हुई और अच्छी लड़की है।
राजश्री बात कर ही रही थी और इतने में दरवाज़े की घंटी बजी।
"लो नाम लिया और आ गई।"
"सौ साल जियोगी तुम!!!" दरवाज़ा खोलते हुए मुस्कुराकर राजश्री बोली।
"अच्छा! !! वह बच्चों सी चहक उठी। सच दीदी!?
अब तो मन करता भी है कि सौ साल जियूँ!! सब आपकी संगत का असर है।"
"बिलकुल जिओगी मेरी बात हो गई भगवान् से।" राजश्री ने कहा और दोनों हंसने लगीं।
उन्हें देखकर रानी भी मुस्कुरा दी।
"अच्छा सुनो ये रानी है आज इसके लिए भी खाना बनाना। "
और शाम को मेरे साथ चलना है तैयार रहना। राजश्री बिना रुके जल्दी से बोल गई।
ओह!!! हाँ, दीदी!! कल तो छोटी राजश्री का जन्मदिन है न!
बिलकुल जाना ही पड़ेगा। वरना छोटी राजश्री तो मेरी चटनी बना देंगी।
कहकर शालिनी हंसने लगी।
आपकी बेटी भी है!!? रानी ने पूछा।
हाँ! समझ लो मेरी ही है। ज़ेरॉक्स कॉपी है मेरी! बाकी शालिनी बता देगी तुम्हें।
चलो अब बातें बाद में, दोनों आराम से बैठकर करना। फ़िलहाल मुझे 2 -3 लोगों से मिलना है। फिर कुछ काम से भी जाना है। पहले नाश्ता बना लो जल्दी से।
शालिनी किचन में जाने लगी।
"मैं मदद कर देती हूँ।" कहकर रानी भी उठ गई।
तुम नहीं मानोगी न!? चलो ठीक है!! दोनों मिलकर बना लो।
उन्हें निर्देशित कर राजश्री ने वीणा को फ़ोन मिलाया।
गुड मॉर्निंग!! प्यारी दीदी!! बोलिए! क्या आदेश!?
"गुड मॉर्निंग! वीणा!"
"संस्था गई थीं तुम!?"
नहीं!! कल आपकी बेटी को जन्मदिन की शॉपिंग पर ले गई थी। आज जाऊँगी।
राजंशी गई स्कूल ?
हाँ! दीदी! अभी।
ओके! सुनो!
मैं, शालिनी, शालिनी का बेटा ऋषभ, और वह जो नई लड़की है न, रानी नाम है उसका, हम सब आएँगे चिड़िया का जन्मदिन मानाने।
सुनकर वीणा खुश हो गई।
वाह! दीदी! मजा आ गया!
और सुनो उसको बताना नहीं अभी।
सरप्राइज़ देंगे!!
अच्छा है! आपके साथ कुछ दिन रहेंगे।मज़ा आएगा खूब बातें करनी हैं आपसे।
अरे! अरे! अरे! ब्रेक लगाओ वीणा!!!
मैं ज्यादा रुक नहीं पाऊँगी। आज शनिवार है शाम को निकलेंगे। रात तक पहुंच जाएँगे। और रविवार जन्मदिन मानकर शाम को निकल जाऊँगी, मैं शालिनी को लेकर। रानी को तुम्हारे पास छोडूंगी एक दो दिन। संस्था ले जाना उसे मन बहल जाएगा।
अरे! प्लीज़! दीदी! रुक जाना न!
अरे! वीणा! समझा करो यार दूसरे दिन एक केस की सुनवाई है।
फिर कभी प्लान करते हैं साथ रहने का।
ठीक है!! उदास से स्वर में ठंडी सी आह भरकर वीणा बोली।
और सुनो! रक्षा के पेरेंट्स को पैसे भेजना मत भूलना ठीक है।
आपको इतना सब याद कैसे रहता है दीदी कोर्ट का, बाहर का, घर का, संस्था का, ऑफिस का!?
सब काम आपको जुबानी याद रहते हैं!?
ज़ुबानी याद तब रहती हैं चीज़े जब वो हरदम ज़ेहन में रहती हैं।
मेरे लिए लाइफ का मतलब ही यही है वीणा बस।
और अब तुम मेरी जगह फिट हो रही हो धीरे धीरे और मुझे तुमसे बहुत उमीदें हैं। तुम्हें भी तो कैसे सबकी फिक्र सताती रहती है। इसको तुम्हें और राजन्शी को ही आगे बढ़ाना है किसी भी कीमत पर।
हम बिलकुल करेंगे दीदी!!
थैंक्यू।
थैंक्स टू यू दीदी! मेरे जीवन को दिशा देने के लिए। मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि मेरे जीवन मे भी खुशियाँ आ सकती हैं।
हमारे जीवन मे खुशियाँ हम चाहें तो बुरे से बुरे पलों में भी ला सकते हैं। ये सिर्फ और सिर्फ हम पर ही निर्भर है। बस कुछ सही फैसले सही समय पर लेने जरूरी होते हैं। थोड़ा धैर्य रखना होता है और आत्मनिर्भर बनने की राह में हमेशा अग्रसर रहना होता है।
और अब इतनी सी बात के लिए कितनी बार थैंक्स बोलोगी!?
चलो मैं रखती हूँ। तुम्हें भी जाना होगा न!?
हाँ, दीदी! मिलते हैं जल्दी। कहकर वीणा ने फ़ोन रख दिया ।
"आज बहुत से काम निपटाने हैं। "
कल निकलना भी है खुद से ही बड़बड़ाती हुई राजश्री स्टडी रूम में चली गई और अपने काम निपटाने लैपटॉप खोल बैठ गई।
कुछ देर बाद शालिनी नाश्ता लेकर आई।
बाहर ही आ रही हूँ मैं। साथ ही बैठकर करते हैं।
चलो!
शालिनी वापस लौटने लगी तो राजश्री ने कहा
और सुनो!!
आज तुम यहीं रुकना तुम्हारे बेटे को स्कूल से लेने के लिए काका को भेज देना वे चले जाएँगे।
शाम को मैं आती हूँ, फिर वीणा के घर के लिए निकलेंगे।
जी दीदी!
तीनो ने साथ बैठ कर नाश्ता किया।
दीदी खाने में क्या बनाऊँ!?
दोनों मिलकर तय कर लो जो पसंद हो बना लो मैं खाकर नहीं जाऊँगी ।
अभी मैं ऑफिस में हूँ दो घंटे। फिर काम निपटाकर चिड़िया के लिए गिफ्ट लेकर घर आउंगी।
आज बहुत काम निपटाने हैं कल के भी। तो सीधा शाम को मिलते हैं ठीक है!?
हाँ दीदी। शालिनी ने कहा।
काका भी आ गये हैं शायद। देखो उन्हें चाय नाश्ता दे दो।
जी दीदी!
राजश्री, बाहर घर के बगीचे में बने अपने ऑफिस में जाकर बैठ गई।
यहां रानी पर चोरी का इल्जाम लगाने वाला वह युवक पहले से इंतज़ार कर रहा था जिसे राजश्री ने आज बुलाया था।
क्या थी इसकी कहानी? और क्यों इसने रानी पर चोरी का इल्जाम लगाया था!?
पढ़ें अगला एपिसोड, ओर जाने आगे की कहानी।
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