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जीवन सारथि भाग 19

21 अगस्त 2022

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पिछले एपिसोड में अपने पढ़ा विनोद और राजश्री पति पत्नी हैं विनोद सुलह करने आया है मगर राजश्री इसके खिलाफ है दोनों के बीच तीखी बहस होती है। राजश्री उठकर कैफ़े से बाहर चली आती है। अब आगे

राजश्री बेहद मज़बूत थी। विनोद से किनारा करने के बाद दोबारा कभी उसने उसे याद नहीं किया। 

लेकिन, आज खुद को संयत नहीं कर पा रही थी। गाड़ी चलाते हुए भी पुराना अतीत उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था। विनोद की सालों पहले कही एक एक बात उसके दिमाग मे आज जस की तस गूंज रही थी। सिर दर्द से जैसे फटा जा रहा था अब उसे  चक्कर से आ रहे थे। सांस जैसे कुछ देर के लिए बंद होती सी लगी। बैग से उसने दो गोलियाँ निकाल कर खाईं। कुछ देर गाड़ी रोक खड़ी हुई और फ़िर जैसे तैसे घर पहुँची। दरवाज़ा शालिनी के बेटे ने खोला।


"जय श्री कृष्णा मौसी"

ऋषभ की आवाज़ सुनते ही उसने पर्स से चॉकलेट लेकर उसे देकर कहा जय श्री कृष्णा!


अरे, वाह! चॉकलेट ! 


भगवान को याद किया न! उन्होंने ही भेजी है।


खुश होकर ऋषभ, थैंक्यू मासी! कहकर चॉकलेट ले कर चला गया।


मगर, राजश्री के चेहरे की मुस्कराहट आज गुम थी।


शालिनी, राजश्री का चेहरा पढ़ने की कोशिश करती रही।


"कुछ टेंशन में हो दीदी"


"नहीं, कुछ खास नहीं, शालिनी!


"मैं अंदर जा रही हूँ प्लीज़ एक कप चाय बना दो फिर एक घण्टे में निकलते हैं।"

कहकर राजश्री अपने कमरे के बाथरूम में चली गई। 


चाय इस वक़्त।? रानी ने आश्चर्य व्यक्त किया।


"दो ही व्यसन हैं हमारी दीदी को। एक डायरी लिखने का दूसरा चाय का।"

"सुख में चाय, गहरे दुख में चाय, लिखे तब चाय, पढ़ें तब चाय, काम कर रही हो तो चाय, खाली बैठी हो तो चाय।"

"आज जरूर परेशान है, जब भी कोई दर्द सताता  है उन्हें चाय ज़रूर याद आती है।"


"पर हुआ क्या होगा!!??" 

रानी आश्चर्य और दुख मिश्रित स्वर में बोली।


"कौन जाने!? शायद कोई हम-सा ही मिल गया हो! दुखियारा! और तो कोई दुःख उनको छू भी नहीं सकता। वे चाहे तो हमेशा खुश रह सकती है। अच्छी कमाई है। अपने दो घर हैं, गाड़ियां हैं, बढ़िया जीवन है। फिर भी औरों को अपना बना कर उनके दुखों को आत्मसात करके खुद परेशानी ओढ़ लेती हैं और उन्हें खुशियों की चादर ओढ़ाने की हरसंभव कोशिश करती रहती हैं।उनसे दुख नही देखा जाता किसी का विशेष कर के औरतों का।"


"न जाने लोग कैसे कह देते हैं, औरतें, औरतों की दुश्मन होती है! दीदी को देख कर लगता है इनसे अच्छा औरतों का सहयोगी और दोस्त तो कोई और नही हो सकता!" रानी सोचने लगी।


"चलो चाय बना दें।"

शालिनी और रानी बातें करते हुए चाय बनाने में लग गईं।


राजश्री नहाकर बाथरूम से निकली और विचारों में गुम हो गई।

काश! इस पानी से अंदर के सारे ग़म दर्द परेशानियाँ  भी धुल जातीं। 

एक ठंडी सी आह भरी उसने। सिर अभी भी भारी था उसका ओर उसके सिरदर्द की एकमात्र दवा चाय आ चुकी थी।


"रानी ठीक है न!?"


"हाँ, दीदी!"

"मगर आप मुझे ठीक नहीं लग रहे।"

शालिनी ने चिंतित स्वर में कहा।


"ठीक हूँ, सिरदर्द है बस थोड़ा।"


"मुझे थोड़ी देर अकेले बैठना है। तुम जाने की तैयारी कर लो सात बजे हम निकल ही जाएँगे।"


शालिनी के जाते ही राजश्री अपनी डायरियाँ  निकाल कर बैठ गई। कुछ देर बैठ कर सबसे पहली डायरी के कुछ पन्ने पलटे, फ़िर बैठ कर यूं ही शून्य में नज़र गढ़ाए, कुछ सोचती रही। सोचते-सोचते आँखें भर आई उसकी।


फिर आख़री वाली डायरी खोल कर कुछ लिखने बैठ गई, शून्य में ताकते हुए कुछ देर यूँ ही बैठी रही कुछ सोच रही थी शायद।


आँखें बंद की तो पलकों से आंसू बाहर ढुलक आए! 


आखिर क्या लिखती है राजश्री इन अलग अलग डायरियों में!? ऐसे क्या दुख छुपे हैं उसके अतीत में!? क्या शालिनी या वीणा इस सबके बारे में जानती हैं? जानने के लिए अगला एपिसोड पढ़ना न भूलें।


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जीवन सारथि
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समाज में गुम हो चुकी संवेदनशीलता को जगाने का प्रयास करती एक कहानी है, जीवन सारथि! एकसाथ कईं सामाजिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करती,स्त्री सशक्तिकरण का उदाहरण प्रस्तुत करती, 'भिखारी' कह कर समाज से अलग कर दिया गया वर्ग भी कैसे समाज के सहयोग से हाशिये से उठकर मुख्यधारा में शामिल हो सकता है, इसका उदाहरण प्रस्तुत करती, गंभीर बीमारियों से जूझते लोगों के प्रति हमारे अमानवीय व्यवहार को लक्षित करती, सुख- दुख, हास्य-मनोरंजन से रोचकता के गलियारों में घुमाती हुई, राजश्री,वीणा और शालिनी जैसे कईं संवेदनशील किरदारों की कहानी है यह! आशा है, कुछ सुप्त भावनाओं को जगाकर यह आपके हृदय पर एक अमिट छाप छोड़ जाएगी! मुख्य पात्र राजश्री अन्य मुख्य पात्र वीणा और शालिनी इसके अतिरिक्त के सहायक पात्र रानी सुरेश विनोद श्रीधर डॉक्टर राजेश कहानी को रुचिपूर्ण बनाकर रखते हैं। कहानी का पहला दृश्य ईश्वर की महिमा अपरम्पार है! किस रूप में कब, कहाँ, किसे मिल जाएँ!!!  कहना मुश्किल है…! कुछ वर्ष पहले इसी विद्यालय में उसे भी तो ईश्वर के एक रूप के दर्शन हुए थे! राजन्शी के स्कूल की घंटी की आवाज़ ने, सोच में डूबी वीणा की तन्द्रा तोड़ी। इसी घंटी ने कुछ वर्ष पूर्व उसके जीवन की नई राह का शुभारम्भ किया था! आज उसी स्कूल के बाहर बैठी वह अपनी बेटी राजन्शी की छुट्टी होने का इंतज़ार कर रही थी। छुट्टी की घण्टी बजते एक हाथ थाम कर दोनो माँ बेटी चल पड़ीं । वीणा के विचारों की त्सुनामी अब भी सुर मिला रही थी उसके क़दमों की ताल से। ये विद्यालय उसके जीवन मे नींव का पत्थर साबित हुआ था। राजश्री को दूसरे शहर गए हुए तीन वर्ष हो चुके थे अब। लेकिन वीणा को वे आज भी भुलाये नहीं भूलतीं और न ही वह मन ही मन रोज़ उन्हें धन्यवाद देना भूलती है। उसके लिए राजश्री जी भगवान के समान थीं। आखिर वीणा को नयी ज़िन्दगी तो उन्होंने ही दी थी । कितने कष्टों से भरी थी उसके जीवन की राह! उस समय अगर वे नहीं होतीं तो वीणा आज भी उसी नर्क में घुट रही होती। उस दिन भी इसी तरह बजी स्कूल की घंटी ने ही तो जीवन बदला था उसका…! वरना आज भी वो इस स्कूल मे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का जीवन व्यतीत करती हुई, उस घर मे नर्क सी यातना भोगते हुए ही जी रही होती। कौन है वीणा क्या है उसका अतीत कैसे बदली राजश्री ने अनपढ़ वीणा की ज़िंदगी क्या है अन्य पात्रों की कहानी जानने के लिए पढ़ें जीवन सारथि।
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