पिछले एपिसोड में अपने पढ़ा, राजश्री बुजुर्ग दंपत्ति को उनका घर दिलवाकर उनसे ढेर सारी दुआएँ और आशीष पाकर निकलती है और एक कैफ़े में जाकर बैठती है। जहाँ कोई व्यक्ति उसकी टेबल के पास आकर खड़ा होता है। मगर राजश्री उसे देख कर भी अनदेखा कर देती है। अब आगे
"मैं बैठ सकता हूँ यहाँ?"
राजश्री की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया न पाकर, उसने पूछा।
"ये मेरा घर नहीं है, जहाँ बैठने के लिए आपको मुझसे इजाज़त लेनी पडे!"
"मुझे डिस्टर्ब किये बिना, आप जहाँ बैठना चाहें बैठ सकते हैं।" बेरुख़ी से राजश्री ने जवाब दिया।
उतरा सा चेहरा लिए वह सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया।
राजश्री अपनी डायरी में लिखने में तल्लीन थी। अंदर से थोड़ी असहज जरूर हुई पर दिखाना नहीं चाहती थी।
सामने बैठे व्यक्ति के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह कुछ कहना चाहता है। पर शब्द जैसे गले में ही अटक कर रह जा रहे थे।
"राssज...श्री.." बमुश्किल उसके मुंह से निकला।
प्रतिउत्तर में फिर सन्नाटा...और बेरुख़ी
"... मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"
"जो बात करनी है, उसमें बात करने जैसा कुछ नहीं है।"
राजश्री ने अपनी डायरी में ही नज़र गढ़ाए हुए रूख़ा-सा जवाब देकर, उसके किए कराए पर पानी फेर दिया।
"एक बार सुन..... "
"पेपर्स लाए हैं आप....?"
उसका अगला वाक्य पूरा होने से पहले ही राजश्री ने सवाल दाग़ दिया। सवाल पूछते हुए इस बार उसकी तीख़ी नज़रें सामने वाले शख़्स पर थीं।
"नहीं....."अरुचिपूर्ण सवाल का अत्यंत ठंडे स्वर में बेहद असहजता उस व्यक्ति ने जवाब दिया।
"फिर बात ख़त्म ही है मैं बता चुकी हूँ पहले ही..."
राजश्री बोली।
"मुझे दूसरे विषय में बात करनी है।" थोड़े अनमने भाव से वह फिर भी बोला।
जिस व्यक्ति की शक़्ल देखना भी राजश्री को गंवारा नही था, आज उसी को सामने बैठा देख बड़ी कोफ़्त हो रही थी राजश्री को। पर आसपास बैठे लोगों के सामने तमाशा न बने इसलिए बेहद संयत होकर उसे झेल रही थी। और इसी लोकलाज के चलते उसके सवालों के जवाब न चाहते हुए भी दे रही थी। अन्यथा कोई और मौका होता तो वह उससे मुख़ातिब होने की बात को ही सिरे से खारिज़ कर देती। इसी उधेड़बुन में आख़िरकार बेमन से बोली
"5 मिनिट हैं आपके पास... बोलिए।"
"जो कोर्ट में मेरे..."
इस पर बात करने की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है....!! इस बार हिक़ारत सी नज़रों से उसकी और देखते हुए, उसकी बात काटते हुए राजश्री ने फिर उसे चुप कर दिया।
इस जवाब के बाद गुस्से से भरी उस शख़्स की आँखें राजश्री पर टिकी हुई थीं।
जिन्हें नज़रअंदाज़ कर राजश्री वेटर की और रुख़ कर बोली।
"एक्सक्यूसमी, जेंटलमेन! मेरी चाय का क्या हुआ?"
"बस आ रही है मेम"
"Thanku"
कुछ पलों के सन्नाटे के बाद मजबूरी में वह शख़्स खुद को संयत करते हुए फिर बोला
राजश्री भूल भी जाओ सब।
राजश्री ने ग़ुस्से से 1 नज़र उसे घूर कर देखा…
अबकी बार शर्मिंदगी भरे भाव से वह बगलें झांकने लगा।
राजश्री भरे मन से पुनः अपनी डायरी के साथ व्यस्त हो गई।
शब्दों और नज़रों के इतने तीखे प्रतिघातों के बाद वह उठकर चला जाना चाहता था, मगर आज उसका राजश्री से बात करना ज़रूरी था। अपने असली भावों को एक तरफ़ सरका के फ़िर से खुद को सामान्य कर वह वहीं बैठा रहा।
आखिर कौन है यह शख्स ? राजश्री किन पेपर्स की बात कर रही है ? और यह किस उद्देश से किस विषय पर बात करने आया है!? जानने के लिए पढ़ें अगला एपिसोड(स्वरचित) dj कॉपीराईट © 1999 – 2020Google