पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा विनोद से मुलाकात के बाद हर तरह से मज़बूत राजश्री भी कुछ पल के लिए अपने अतीत में पहुंच जाती है। सालों से दबा दर्द फिर बाहर आ उसे कचोटने लगता है। घर आकर चाय के साथ वह अपनी डायरी के पन्नो में मन को रमाने की कोशिश करती है। अतीत के कुछ पन्नों को पढ़ते हुए वह आँखें बंद करती है तो पलकों से आंसू बाहर ढुलक आते हैं। अब आगे-
राजश्री ने उठकर मुँह धोया, अपना कप उठाकर किचन वाश बेसिन में ले जाकर धोने लगी।
रानी ने कप हाथ से लेकर धोने के लिए उठना चाहा।
मगर शालिनी में उसे रोक दिया।
वे नहीं धोने देंगी। एक ही कप है ना। और बर्तन रखे होते अगर तो रख़ देतीं।
चलो फटाफट।
हाथ धोते हुए राजश्री ने कहा।
रानी अब राजश्री को लेकर एकदम आश्चर्य से भरी हुई थी।
ऐसा किरदार उसने पहली बार देखा जीवन में।
होते तो कई होंगे, पर उसका पाला पहली बार पड़ा। थोड़ा बहुत समझ रही थी अब उसे।
ऊपर से सख्त पर कोमल हृदय की राजश्री ने उनके हृदय पर अपना राज एक ही दिन में कर लिया था। जैसे वो सब से मिलते ही पहली मुलाकात में कर लिया करती थी।
बातों की धनी राजश्री दूसरों के लिए जितनी नर्मदिल थी, अपने लिए उतनी ही कठोर थी। अपने दुख किसी से नहीं कहती। सिवाय ईश्वर और अपनी डायरी के। उसका मानना था कि उसे सिर्फ दूसरों के दुख परेशान कर सकते हैं। वो हर हाल में उन्हें इनसे निकालना चाहती थी। दूसरों को दी खुशी उसे संबल देती थी।
सामान लेकर चारों बाहर आ गए।
शालिनी! राजश्री ने गाड़ी की ओर बढ़ते हुए पूछे पलट कर शालिनी की ओर देखकर कहा।
हाँ, दीदी!
आज आधे रास्ते ड्राइविंग तुम्हें करनी होगी।
शुरू में मैं ही ड्राइव करती हूं। जब ऋषभ सो जाए तो तुम ड्राइविंग सीट पर आ जाना। मेरा सिर बहुत दर्द कर रहा है, कमर भी। मगर वीणा को हाँ कह दिया है तो जाना जरूरी है।
जी दीदी! शालिनी ने हामी भरी।
शालिनी और शालिनी का बेटा पीछे बैठे। आगे रानी और राजश्री ड्राइवर सीट पर।
रानी बस राजश्री को देख रही थी। इस वक़्त उसके मस्तक पर सोच विचार चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं। आँखे सामने रोड की और जमीं थी और हाथ स्टेयरिंग पर सधे। उस पर उसके अपने आंतरिक तेज से दमकता चेहरा, जैसे कोई दिव्य आत्मा हो। कोई इतना अच्छा और परफेक्ट कैसे हो सकता है…? उसे देखते हुए एक पल को प्रसन्नता, फिर आश्चर्य, शंका और रश्क के भाव एक साथ आ गए उसके मन में।
क्या हुआ!?
सोच विचार में गुम रानी अचानक आए राजश्री के प्रश्न से चौंक गई। उसे अंदाजा ही नहीं रहा उस पर राजश्री का ध्यान कब से था।
नहीं-नहीं! दीदी! कुछ नहीं! सकपकाकर रानी बोली।
रानी! मैं समझ सकती हूँ, तुम्हारी स्थिति! मगर कब तक लेकर बैठे रहोगी…? हमें पुरानी बुरी बातें भूलकर जीवन में आगे बढ़ जाना चाहिए, यही सही होता है। जीवन के लिए।
हाँ, दीदी! रानी ने जवाब दिया।
रानी को समझाते हुए, राजश्री ने भी अब खुद को थोड़ा बहुत संयत कर लिया था और ध्यान ड्राइविंग पर देने लगी।
पीछे की सीट पर शालिनी के साथ बैठा ऋषभ कुछ देर तक बातें करते हुए सो गया।
उसे सुला कर शालिनी ड्राइविंग सीट पर आ गई। राजश्री भी पीछे की सीट पर सिर टिका, आंखें बंद कर, आराम करने लगी।
वाह! दीदी! आपको ड्राइविंग भी आती है!?
रानी ने शालिनी से पूछा।
हाँ! ड्राइविंग तो मुझे दीदी ने ही सिखाई है। दीदी हमेशा कहती हैं, हमें स्वयं पर ही निर्भर होना चाहिए और दुनिया में जितनी चीजें सीख सकते हैं जरूर सीखनी चाहिए। कब किस चीज की जरूरत पड़ जाए कहा नहीं जा सकता।
खाली रोड पर सामान्य से थोड़ी तेज़ गति से भागती गाड़ी में बातें करते हुए ये सफर कब कट गया मालूम भी नहीं पड़ा। लगभग साढ़े 3 घण्टे में वे वीणा के घर पहुंच गए। ऋषभ भी उठ गया था।
राजन्शी दौड़ कर राजश्री के गले लग गयी।
जय श्री कृष्णा! मासी!
जय श्री कृष्णा! मेरी चिड़िया हमेशा खुश रहो!
नन्ही राजन्शी चहकती हुई अब इन दोनों के पास आगई।
जय श्री कृष्णा! शालिनी मासी!
रानी मासी! जय श्री कृष्णा! आप कैसे हैं!?
रानी आश्चर्य में भर गई उसका नाम बच्ची की मीठी आवाज़ में सुनकर नीचे बैठ उसके गालों पर प्यार से हाथ रख बोली।
आप मेरा नाम जानती हो!?
हाँ! मम्मी ने बताया था कि मेरी एक और बेस्ट फ्रेंड बनने वाली है। राजंशी चहकी।
आप मेरे साथ मेरी डॉल से भी खेलना हाँ!
मैं अपने खिलौने सबके साथ शेयर करती हूँ।
जरूर खेलूंगी लेकिन हमें डॉल के साथ खेलने की क्या जरूरत है, आप खुद भी सच में बहुत ही प्यारी डॉल हो।
दोनों का वार्तालाप सुन सब हँसने लगे।
राजश्री ने वीणा को घूर कर देखा, वीणा कान पकड़ते हुए मासूम बच्चे सी बोली-
क्या करूँ, दीदी! आपकी चिड़िया ने इतनी रट लगाई हुई थी कि मौसी को फ़ोन करो। वे आ रही हैं या नही वरना मैं बर्थडे नहीं मनाऊँगी! तो मुझे आपका सरप्राइज इसे बताना पड़ा।
सो सॉरी!
चलो कोई नहीं! कह जार राजश्री मुस्कुरा दी।
राजंशी को देखकर सब अपनी सारी परेशानियां भूल गए थे।
अच्छा इस सबमे आप ऋषभ को तो भूल ही गए। वीणा ने राजंशी से कहा।
अरे! भूली कहाँ मम्मा वो तो मेरे भाई हैं ना!? और भाई तो बहनों की मदद के लिए होते हैं ना!? कहते हुए वो राजश्री, शालिनी, रानी, वीणा सबका हाथ पकड़ उन्हें सोफ़े तक ले जाकर बिठाते हुए बोली
चलो आप सब यहाँ बैठो तो मैं ऋषभ भैया के साथ सबके लिए पानी लेकर आती हूँ।
कहकर, जबरदस्ती वो ऋषभ को भी किचन में ले गई।
उसकी मीठी-मीठी आवाज़ में प्यारी प्यारी बातें सुन, माहौल सबकी हंसी से खुशगवार सा हो गया था।
सच, दीदी! आप सही ही कहते हो! चिड़िया ही है! हरदम चहकती रहती है! वीणा ने कहा।
ईश्वर करे हमेशा यूँ ही चहकती रहे। राजश्री ने स्मित मुस्कान और स्नेहासिक्त भाव से मन ही मन उसे आशीर्वाद दे दिया।
दोनों बच्चों ने सबकी जलसेवा की।
खाना खाकर, सबने मिलकर अंताक्षरी खेली। रानी को तो राजंशी इतनी भा गई कि वो उसका साथ एक पल के लिए भी नहीं छोड़ना चाहती थी।
राजश्री भी ये देखकर खुश थी कि रानी को जिस उद्देश्य से यहाँ लाए हैं, वह पूरा हो गया समझो। कुछ समय में शायद पिछली सब घटनाएँ अब ये भूल जाएगी।
बच्चों और बड़ों का दूध, चाय पीने का दौर चला और कुछ देर बाद सब सोने चले गए।
वीणा रसोई में सुबह की कुछ तैयारियां करने में लग गई तो राजश्री भी छत पर आ गई।
ठंडी हवा में फुर्सत से वो ना जाने कितने समय के बाद बिना किसी काम के इस तरह फुरसत में खड़ी थी।
आँखें बंद कर उस ठंडक को चेहरे पर महसूस कर वह सोचने लगी, गर्मी के गर्म दिंनो में हवा की ये ठंडी बयार कितना सुकून देती है।
न चाहते हुए भी शाम को कही विनोद की बातों ने उज़के मस्तिष्क में हलचल मचाना शुरू कर दी थी।
काम खत्म कर , वीणा राजश्री जी को ढूंढते हुए छत पर आई।
अच्छा! तो हवा खानी थी आज आपको!? इसलिए खाना कम खाया क्या!?
वीणा की आवाज सुनकर राजश्री ने पीछे मुड़कर देखा और मुस्कुरा दी।
क्या बात है भाई! आज हमारी खुशमिज़ाज़ दीदी किन विचारों में गुम है?
क्या राजश्री अपनी अज़ीज़ वीणा को अपनी परेशानी बतायेगी!? क्या वीणा विनोद के बारे में जानती है!? आने वाले एपिसोड्स में पढ़ना न भूलें राजश्री के जीवन के स्याह पन्ने...
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