राजश्री ने बात करते हुए ही उसे सोफे पर बैठने का इशारा किया और वीणा से कहा तुम ठीक हो न कोई परेशानी तो नहीं "?
"नहीं दीदी सब ठीक हैं "बात करते हुए वीणा ने राजश्री को मार्किट की घटना सुनाई।
"तुम्हारी बेटी तुमसे भी ज्यादा समझदार भावुक और संवेदनशील है। ख़ुशी है मुझे जानकार। वरना आजकल लोगों को दूसरों के प्रति दया भाब तो दूर अपने परिवार और परिजनों से से ही कोई लेना देना नहीं होता। "
"वह मेरी बेटी कहाँ है दीदी वो तो आपकी ही है इसीलिए तो वो राजन्शी है यानी राजश्री का अंश। अगर आप नहीं होते तो वो इस दुनिया में ही नहीं आती "
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"ऐसा कुछ नहीं वीणा सब लिख रखा है ईश्वर ने पहले ही। "
हर रोज़ ही कोई मुझे मुसीबत में दिख जाता और लगता है कि इस दुनिया को लोग स्वर्ग कह कैसे सकते हैं? स्वर्ग बनने में न जाने कितनी सदियां लग जाएँगी।"
"आप हो तो दीदी स्वर्ग बनाने के लिए "
"लेकिन मेरे बाद तुम इसकी कड़ी टूटने मत देना।"
कितनी बार आपको बोला है कि ऐसे मत कहा करो।
"आप परेशान लग रहे हो दीदी "
"नहीं बस ऐसे ही आज कोई लड़की मिली मुझे मार्किट में उस को साथ लेकर आई हूँ घर। "
कल बताती हूँ उसके बारे में फिलहाल चाय बनाई है खाने के लिए कुछ आर्डर करती हूँ क्यूंकि बहुत देर होगई है।
आपके अहसान उसके और मेरे जैसे लोग कैसे उतार पाएँगे दीदी क्या वीणा !तुम फिर से शुरू हो गई।
"अच्छा दीदी आप आराम से बैठिये। खाना मंगवाइये,खाइये हम कल बात करते हैं। वरना और देर हो जाएगी। और सो जाना रात को। पूरी रात अब उसके बारे में सोचते मत रहना आप उसके लिए कुछ अच्छा कर ही लोगे पता है मुझे।
"हाँ कोशिश करूंगी सोने की। "
कहकर राजश्री ने फ़ोन काट दिया
वीणा ने फोन टेबल पर रखा राजंशी भी सो गई थी।
दीदी कितनी अच्छी हैं आज फिर किसी जरुरतमंद को ले आईं अपने घर। ना जाने कितनो के घर सँवारे हैं उन्होंने भगवान् उन्हें लम्बी उम्र और सारी खुशियाँ देना।
कहकर हाथ जोड़ वीणा सुबह के कामों की लिस्ट बनाने लगी।
राजश्री चाय के साथ कुछ बिस्किट्स और नमकीन ले आई। वह लड़की अब भी चुपचाप बैठी थी। शायद अभी भी वह घटना, वही दृश्य उसकी आँखों के सामने घूम रहा था।
"तुम्हारा नाम क्या है?"
चुप्पी तोड़ने और उसका ध्यान वहाँ से हटाने के उद्देश्य से राजश्री ने पूछा।
"रानी" नज़रें झुकाये हुए ही धीरे से वह बोली।
सुन्दर नाम है रानी। और मैं राजश्री हूँ। कमाल है न हम दोनों के नाम 'र' से शुरू होते हैं।
"तुम मेरी दोस्त बनोगी?"
आश्चर्य मिश्रित भाव से रानी ने राजश्री को देखकर "हाँ" कह दिया।
चलो पहले चाय पी लो कुछ खा लो फिर हम दोनों मिल कर आराम से बातें करेंगे।
राजश्री माहौल को हल्का बना कर इसी प्रयास में लगी थी कि वह सब कुछ भूल जाए। पर मन के घाव भला इतनी जल्दी भरते हैं कहीं?
उसने राजश्री के कहने पर चाय का कप हाथ में ले लिया । फिर कुछ सोचकर, राजश्री को देखकर बोली -
"आपने कैसे मुझ पर भरोसा कर लिया,अगर मैंने झूठ बोला होता तो ?"
रानी के सवाल पर राजश्री कुछ देर के लिए खामोश हो जाती है सवाल वाजिब था अखिर कैसे राजश्री ने उस पर भरोसा किया और क्यों क्या राजश्री कहीं फसने वाली है या उसने कुछ सोचकर रानी की मदद की जानने के लिए पढ़ें अगला भाग।
जानने के लिए पढ़िए धारावाहिक जीवन सारथि का अगला एपिसोड ।
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