पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा, राजश्री टी ट्रीट कैफ़े में बैठी है, जहाँ एक व्यक्ति आकर खड़ा होता है और उससे बैठने की इजाज़त मांगता है, उस व्यक्ति से बात करने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं है पर फिर भी वह वहाँ से जा नहीं रहा। राजश्री वेटर से जल्दी चाय लेन को कहती है, अब आगे-
मेम आपकी चाय!
वेटर चाय रख कर बोला।
सर आप लेंगे कुछ!?
एक कॉफी विनोद ने उसकी और देख जवाब दिया।
राजश्री डायरी बन्द कर अपनी चाय पीने में तल्लीन हो गई थी। इस समय उसके अंदर मची उथल-पुथल, ग़ुस्से, घृणा के भावों को सिर्फ़ ये गर्म चाय ही ठंडा कर सकती थी।
सुक़ून से आंखे बंद कर वो चाय का हर एक घूँट ऐसे पी रही थी, जैसे कोई अमृत पी रहा हो। कुछ देर वह राजश्री को देखता रहा…और उसकी बेरुख़ी को नज़रंदाज़ करते हुए फ़िर बोल पड़ा।
मुझे एक बात और कहनी है।
अब इसके सब्र का बाँध टूट गया। कप जोर से टेबल पर रखते हुए राजश्री उस पर बरस पड़ी।
"मिस्टर विनोsssद!
कितनी बातें कहनी है आपको!
ये पेपर, ये पेन।
लिख कर दे दीजिए! ताकि मैं एक बार में सबका जवाब दे दूँ! और शांति से मेरा काम कर सकूँ।
दूसरी बात
मुझे बार-बार एक ही बात दोहराकर टाइम वेस्ट करने की आदत नहीं है।
राजश्री ने खुद को संयत करते हुए मगर थोड़ी तेज़ आवाज़ में, तटस्थ भाव से उत्तर दिया।
अब तुम बात को बढ़ा रही हो।
उसने अपना पक्ष रखने की कोशिश की।
मैं तो बात को कब का खत्म कर चुकी हूँ, हमेशा के लिए।
न मेरा आपसे कोई लेना देना पहले था न अब है और न कभी हो पाएगा।
राजश्री एक सांस में सब बोल गई।
यही तो मैं पूछना चाहता हूँ।
व्हाय!?
आफ्टर ऑल आय एम योर हस्बैंड!
इस बार प्रतिउत्तर में विनोद की भी आवाज़ तेज़ हो गई थी। जिसमें पति होने का अभिमान और पत्नि के बात न सुनने पर उसके मन का ग़ुस्सा साफ़ झलक रहा था।
बट आय एम नॉट योर वाइफ एनी मोर! उतनी ही तेज़ आवाज़ में उसी के सुर में राजश्री ने उत्तर दे डाला।
एक दो लोगों की नज़रों को ख़ुद पर महसूस कर वह स्वर धीमा कर बोली।
आपको मेरा हस्बैंड बने रहने में इंटरेस्ट है तो इट्स नॉट माय फॉल्ट।
मैं पहले ही आपको तलाक के पेपर्स दे चुकी हूँ, आपको उन्हें साइन करने में परेशानी है।
नाओ प्लीज़ मूव ऑन!
आगे बढ़ें अपनी लाइफ में ओर मेरा पीछा छोड़ दें, बेहतर है।
बिना रुके आगे भी उसी स्वर में एक सांस में बोलकर जैसे अब वह इस बात को ख़त्म कर देना चाहती थी।
पर विनोद कहाँ मानने वाला था। आज दिखावटी पछतावा तो जरूरी हो गया था।
मानता हूँ मेरी गलती है मगर, मुझसे नहीं हो पाएगा।
विनोद अब थोड़े धीमे स्वर में बोला।
क्यों!? अब इतने सालों बाद क्यों समझ आरहा है कि नही हो पायेगा!?
ये आप नहीं आपका स्वार्थ बोल रहा है महोदय!! मैं जानती हूँ, आप ये सुलह किस नियत से करने आए हैं, कोई इतना भी खुदगर्ज़ कैसे हो सकता है मेरा आपका तो कोई रिश्ता हो ही नहीं सकता।
साथ वे लोग होते हैं, जिनके विचार मिलते हों, जिनकी मानसिकता मिलती हो और सबसे बड़ी बात जो एक दूसरे के साथ मन से निभाने को तैयार हो!
और हाँ! इन सबसे महत्वपूर्ण बात! आपके हिसाब से जिन का स्टेटस भी एक सा हो राइट!?
मुझ में और आप में इनमें से एक भी समानता नहीं है तो बेहतर होगा कि इस पर बहस करके आप मेरा और अपना समय खराब न करें और अब आपका स्टेटस मेरे लायक नहीं है!!!!
विनोद मूक प्राणी सा बस सब सुनता रहा। सारे उसी के शब्द थे। बस कहने वाली ज़ुबाँ बदल गई थी! वह कुछ कहने की स्थिति में नहीं था। सुनने के अलावा फिलहाल कोई चारा भी नहीं था।
और जिनकी भावनाएं, संवेदनाएं पूरी तरह मर चुकी हो ऐसे लोग मुझे मेरे आसपास भी नहीं चाहिए जीवन में।
अपनी बात खत्म कर राजश्री ने चाय का आखरी घूँट पिया, कप रखा और जाने लगी।
विनोद की चुप्पी देख उसकी और रुख़ कर फीकी मुस्कुराहट लिए पलट कर बोली-
वैसे भी चाय और कॉफी वालों का आपस में कोई मेल नहीं होता। ये बात देर से ही सही पर मेरे समझ मे गई है और मैं चाय कभी छोड़ नही सकती!!
ये गर्म लोहे पर हथोड़े की मार जैसा लगा विनोद को।
बस अवाक् सा वह राजश्री को सुनता-देखता रहा।
राजश्री तेज़ी से कैफ़े के बाहर निकल गई।
विनोद पराजित से योद्धा सा मुँह लटकाए, पहले जाती हुई राजश्री को और अब अपनी ठंडी हो चुकी कॉफ़ी को निहारता रहा।
आख़िर राजश्री ने अपने पति को क्यों छोड़ दिया!? क्या कहानी है उसके अतीत की!? क्या राजश्री का फैसला सही है या विनोद अपनी जगह सही है!? जानने के लिए पढ़ें अगला एपिसोड।
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