पिछले भाग में आने सुना राजश्री रितेश से मिलकर उसे ड्राइवर की जॉब दिलवाती है साथ ही उसके आफिस में बैठे बुजुर्ग दंपत्ति से बातचीत कर उन्हें घर के अंदर लाकर नाश्ते के लिए बिठा किसी को फोन करती है।
"हेलो!" कहती हुई बात करने के लिए राजश्री अपने कमरे में चली जाती है।
"हेलो!" उधर से भी जवाब आया।
क्या मेरी बात साहिल जी से हो रही है!?
जी मैडम साहिल बोल रिया हूँ बोलो क्या काम है!?
एक घर चाहिए था मुझे। थोड़े अच्छे इलाके में आसपास के लोग अच्छे हों। शोर शराबा न हो। शांति हो।
राजश्री ने अपने घर और कोर्ट के पास के इलाके में उसे कोई छोटा सा 2 कमरों का बताने को कहा।
उसने दो तीन इलाकों के नाम बताए जिसमे से एक न्यायालय से सिर्फ मिनिट की दूरी पर था।
एरिया उसका जाना पहचाना था और वैसा ही जैसा उसे चाहिए था। पास ही वकील कॉलोनी थी जहाँ सभी वकील रहते थे और राजश्री का वहाँ कईं बार जाना आना होता था।
ठीक है! अभी कमरा दिखा सकते हैं!?
अरे हओ मेडम आप तो आ जाओ कबी बी बता देऊँगा।
ठीक अभी आधे से एक घंटे में पहुँच रही हूँ मैं।
फ़ोन रख राजश्री ने फिर डायरी निकाली। कुछ लिखा और बाहर निकल गई।
शालिनी! मैं निकल रही हूँ। जल्दी आने की कोशिश करती हूँ। फिर शाम को निकलते हैं सब तैयारी कर के रखना।
आप लोग चलिए मेरे साथ। कमरा मिल गया है, कोर्ट के पास ही है। मुझे भी उधर ही कुछ काम से जाना है। आपको वहाँ तक छोड़ दूंगी मैं।
दोनों कृतज्ञता का भाव लिए उठ खड़े हुए। शालिनी ने राजश्री के कहे अनुसार एक टिफिन में खाना पैक कर उन्हें दे दिया।
राजश्री उन्हें लेकर निकल गई कुछ ही देर में वे उस इलाके में आगये थे जहाँ कमरे की बात हुई थी।
साहिल भी उन्हें बाहर ही मिल गया था। उसने उन्हें कमरा दिखा दिया।
घर दरख लेने के बाद उसने उन्हें पूछा-
यहाँ रहने में कोई समस्या तो नहीं होगी आपको!? राजश्री ने दम्पति से पूछा।
दोनों ने एक दूसरे की और देखा जैसे कुछ कहना चाह रहे हों।
क्या हुआ अच्छी नहीं क्या जगह आंटीजी!?
नहीं! बेटा! पर किराया क्या रहेगा?
मैं आऊँगी हर 15 दिन में आपके हाथ की चाय पीने। पिलाएँगे ?
हाँ! बेटा! कैसी बात कर रही हो!? जरूर पिलाएँगे अंकलजी बोले।
बस वही किराया समझ लीजिए। कहकर राजश्री मुस्कुरा दी।
वैसे ये खरीद लिया है मैंने। किराये का नहीं है। और कोई भी आपको यहाँ से कभी जाने के लिए नहीं कहेगा।
नहीं! बेटा! इतने अहसान मत चढ़ाओ कैसे उतरेंगे!?
कोई अहसान नहीं है ये सब। आपके अच्छे कर्मो का प्रतिफल है, जो ईश्वर दे रहें हैं। मेरा कोई लेना देना नहीं है इसमें। उल्टा मेरे सिर पर आपकी चाय का कर्ज़ा चढ़ने वाला है आप तो फायदे में ही हैं चिंता न करें।
कहकर राजश्री मुस्कुरा दी।
दो तीन दिन में पेपर्स तैयार कर लेना ये आज से ही रहेंगे। पेपर्स इन्हे देकर बचे हुए अमाउंट का चैक ले जाना, मेरे ऑफिस से। ये पता है मेरा। कहकर राजश्री ने अपना कार्ड साहिल को दिया।
कोई भी परेशानी हो ये मेरा कार्ड रखिए। इस पर नंबर है बेझिझक कभी भी कॉल कीजिये। और तीन दिन बाद फिर से मेरे पास आइएगा।
कहकर राजश्री ने उन्हें भी अपने कार्ड के साथ ही कुछ पैसे दिए तो दोनों फिर संकोच में पड़ गए।
सोचिये मत!!! खाने और जरुरत का कुछ ही सामान आएगा बस आपका। उतने ही हैं ज्यादा नहीं हैं।
पर बेटा..!
संकोचवश वे इतना ही बोल सके।
भगवान ने भेजे हैं रख लीजिए और बदले में बस आशीर्वाद दे दीजिए कि जब भी किसी को मदद की जरुरत हो मैं कर पाऊं।
दोनों ने अश्रुपूरित नेत्रों सहित उसके सिर पर हाथ रख खूब आशीर्वाद दिया राजश्री को।
"भगवान् तुम्हें सबकुछ दे बेटा! हमेशा खुश रहो! राजश्री उनके मन में बस गई थी अपनी बेटी की तरह। जाते हुए उसे देखते रहे दोनों।
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राजश्री ने काम निपटा कर राजन्शी के लिए उपहार खरीदे। शाम के पाँच बज चुके थे और इस समय वह बिना चाय पिए रह नहीं सकती थी। इसलिए मार्किट के बीचों बीच बने टी-ट्रीट कैफ़े में चाय पीने के लिए बैठ गई।
राजश्री सोच विचार में गुम डायरी पेन निकाल कर बैठ अपनी चाय का इंतज़ार ही कर रही थी कि इतने में एक व्यक्ति उसकी टेबल के पास आ खड़ा हुआ। राजश्री ने नज़रें ऊपर कर उसे देखा और बिना कोई प्रतिक्रिया दिए फिर डायरी में देखने लगी।
"मैं बैठ सकता हूँ यहाँ!?" उस व्यक्ति ने पूछा।
"ये मेरा घर नहीं है जहाँ आपको मुझसे इजाज़त लेनी पड़े। मुझे डिस्टर्ब किए बिना आप जहाँ बैठना चाहें बैठिये।"
कौन है यह व्यक्ति जिसके साथ राजशी इतने रूखे स्वर में बात कर रही है और क्यों!? क्या होगा आगे? जानने केलिए पढ़ें अगला एपिसोड
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