पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा किसी लड़की को घेरे हुए भीड़ खड़ी है जिसकी मदद के लिए राजश्री आगे आती है। लोग उस लड़की पर चोरी का इल्जाम लगा रहे हैं और वह लड़की जब अपनी सफाई में कुछ कहना चाहती है उससे पहले ही कोई युवक चिल्लाते हुए टोक देता है। अब आगे
हाँ! हाँ!ज्यादा समझदार बनने की कोशिश मत कर झूठ बोलती है। कहकर उसके आगे बोलने से पहले ही वह उसे चुप करा देता है।
"पर्स चुराया भी है तो क्या आपको इसे मार देने का हक मिल गया?" राजश्री बोली।
सात-आठ लोग मिलकर एक महिला के साथ बहुत अच्छा
व्यवहार कर रहें हैं आप!?
चोरी की है तो पुलिस को फ़ोन कीजिए। मैं खुद कर देती हूँ। पर आप लोगों में इतनी सी संवेदनशीलता नहीं
एक महिला पर हाथ उठा रहे हैं!? केस तो आप पर भी बनता है!"
सुनते ही एक 'समझदार' तमाशबीन भीड़ से बाहर निकल लिया।
"महिला है तो क्या फायदा ऐसे उठाएगी महिला होने का ?"
मैंने नहीं कहा फायदा उठाने दो। पुलिस किसलिए है, शिकायत कीजिए और आप भी तो कोतवाल न होकर भी कोतवाल बनने का फायदा उठा रहे हैं। इसे कम से कम एक बार पूछिए
क्यों किया!? किसलिए किया! इसने ऐसा!? सफाई देने का हक़ तो भगवान भी देते हैं एक बार आप लोग उनसे भी बड़े हो गए? सीधे ही बिना पूछताछ जज बने फैसला सुना रहे हैं।
"हमारे दुखड़े कम नहीं हैं और न ही इतना समय, जो रोड पर बैठकर दूसरों का दुखड़ा सुनते रहें।" युवक तो जैसे जवाब तैयार ही लिए बैठा था छूटते ही तुरंत बोल पड़ा।
"हाँ! जी सर! आप जैसे महानुभाव दुखड़ा सुनने के लिए बने भी नहीं हैं, महोदय!!आप से लोग सिर्फ और सिर्फ तमाशा खड़ा करने के लिए बने हैं और उसके लिए भरपूर समय है आपके पास। नहीं !?"
राजश्री के निडरता से, ऊँची आवाज़ में कहे, इस तीखे कटाक्ष को सुनकर, वहाँ कुछ पल के लिए चुप्पी छा गई। पर वे लोग इतनी आसानी से कैसे हार मान लेते वह भी एक औरत से!!!!
अच्छा मेडम अपनी सहानुभूति अपने पास रखिए। हमें कोई लेना देना नहीं है इससे।
राजश्री को इसी वाक्य का इंतज़ार था। अब उसने पैंतरा बदला!
"अरे! लेना देना कैसे नहीं है कितने पैसे थे पर्स में!?" राजश्री ने सीधे उसके चेहरे पर नज़र टिकाते हुए पूछा ।
प..प.पाँच सौ रुपये! इस बार युवक बहुत धीमे स्वर में शांति से बोला और इधर उधर देखने लगा।
"मैंने कोई पैसे नहीं चुराए! मेम साहब! सिर्फ नीचे गिरा पर्स उठाया था, वापस देने के लिए। और इसलिए खोल कर देख रही थी कि कोई फोटो हो या कुछ हो, जिससे किसका है मालूम पड़े।"
राजश्री को पर्स खोलते देख महिला ने फिर से सफाई देनी चाही मगर राजश्री ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए
पर्स से पांच सौ का नोट लेकर उस आदमी की और बढ़ाया। राजश्री की घूरती नज़रें अब भी युवक के चेहरे पर थीं।
मामला ख़त्म होते देख अब भीड़ छंटने लगी। आखरी के दो तीन लोगों समेत धीरे से वह व्यक्ति भी आगे बढ़ने को हुआ।
रुको! जरा! राजश्री बोली।
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उधर वीणा घबराई सी दरवाज़े तक पहुँचती है।
तब तक वह परछाई राजन्शी और वीणा के कमरे की खड़की तक पहुंच कर अंदर देखने लगती है राजन्शी का ध्यान उस पर जाते ही वह
मम्मा! मम्मा! जोर से चिल्लाती है। वीणा कमरे की तरफ दौड़ती है, जहां उसे खिड़की के दूसरी तरफ लंगड़ाता हुआ कोई आदमी भागता दिखाई देता है। वीणा उस और जाकर देखना चाहती है मगर राजन्शी उसे रोक लेती है।
मम्मा! प्लीज़ आप कहीं मत जाओ।
इस समय डरी हुई राजन्शी के पास रहना वह उचित समझती है।
मैं नहीं जा रही, बेटा! कहकर वह राजन्शी को गले लगा लेती है।
मम्मा! कौन था वहाँ!? ऐसे रूम में क्यूँ झाँक रहा था? घबराकर राजन्शी पूछती है।
पता नही बेटा दुबारा आया तब पूछेंगे। कहकर वीणा चिंता में पड़ जाती है। कौन है ये शक़्स और उस युवक को पैसे देने के बाद राजश्री ने क्यों रोका! जानने के लिए पढ़ें जीवन सारथि कहानी का अगला एपिसोड।
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