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जीवन सारथी भाग 8

2 अगस्त 2022

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पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा किसी लड़की को घेरे हुए भीड़ खड़ी है जिसकी मदद के लिए राजश्री आगे आती है। लोग उस लड़की पर चोरी का इल्जाम लगा रहे हैं और वह लड़की जब अपनी सफाई में कुछ कहना चाहती है उससे पहले ही कोई युवक चिल्लाते हुए टोक देता है। अब आगे

हाँ! हाँ!ज्यादा समझदार बनने की कोशिश मत कर  झूठ बोलती है। कहकर उसके आगे बोलने से पहले ही वह उसे चुप करा देता है।

"पर्स चुराया भी है तो क्या आपको इसे मार देने का हक मिल गया?" राजश्री बोली।

 सात-आठ लोग मिलकर एक महिला के साथ बहुत अच्छा 
व्यवहार कर रहें हैं आप!?

चोरी की है तो पुलिस को फ़ोन कीजिए। मैं खुद कर देती हूँ। पर आप लोगों में इतनी सी संवेदनशीलता नहीं 
एक महिला पर हाथ उठा रहे हैं!? केस तो  आप पर भी बनता है!"

सुनते ही एक 'समझदार'  तमाशबीन भीड़ से बाहर निकल लिया। 

"महिला है तो क्या फायदा ऐसे उठाएगी महिला होने का ?"

मैंने नहीं कहा फायदा उठाने दो।  पुलिस किसलिए है, शिकायत कीजिए और आप भी तो कोतवाल न होकर भी कोतवाल बनने का फायदा उठा रहे हैं। इसे कम से कम एक बार पूछिए

क्यों किया!? किसलिए किया! इसने ऐसा!? सफाई देने का हक़ तो भगवान भी देते हैं एक बार आप लोग उनसे भी बड़े हो गए? सीधे ही बिना पूछताछ जज बने फैसला सुना रहे हैं।

 "हमारे दुखड़े कम नहीं हैं और न ही इतना समय, जो रोड पर  बैठकर दूसरों का दुखड़ा सुनते रहें।" युवक तो जैसे जवाब तैयार ही लिए बैठा था छूटते ही तुरंत बोल पड़ा। 

"हाँ! जी सर! आप जैसे  महानुभाव दुखड़ा सुनने के लिए बने भी नहीं हैं, महोदय!!आप से लोग सिर्फ और सिर्फ तमाशा खड़ा करने के लिए बने  हैं और उसके लिए भरपूर समय है आपके पास। नहीं !?"

 राजश्री के निडरता से, ऊँची आवाज़ में कहे, इस तीखे कटाक्ष को सुनकर, वहाँ कुछ पल के लिए चुप्पी छा गई।  पर वे लोग इतनी आसानी से कैसे हार मान लेते वह भी एक औरत से!!!!

अच्छा मेडम अपनी सहानुभूति अपने पास रखिए। हमें कोई लेना देना नहीं है इससे। 

राजश्री को इसी वाक्य का इंतज़ार था। अब उसने पैंतरा बदला! 
"अरे! लेना देना कैसे नहीं है कितने पैसे थे पर्स में!?" राजश्री ने सीधे उसके चेहरे पर नज़र टिकाते हुए पूछा । 

प..प.पाँच सौ रुपये! इस बार युवक बहुत धीमे स्वर में शांति से बोला और इधर उधर देखने लगा। 

"मैंने कोई पैसे नहीं चुराए!  मेम साहब! सिर्फ नीचे गिरा पर्स उठाया था,  वापस देने के लिए। और इसलिए खोल कर देख रही थी कि कोई फोटो हो या कुछ हो, जिससे किसका है मालूम पड़े।"

राजश्री को पर्स खोलते देख महिला ने फिर से सफाई देनी चाही मगर राजश्री ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए
पर्स से पांच सौ का नोट लेकर उस आदमी की और बढ़ाया। राजश्री की घूरती नज़रें अब भी युवक के चेहरे पर थीं। 

मामला ख़त्म होते देख अब भीड़ छंटने लगी। आखरी के दो तीन लोगों समेत धीरे से वह व्यक्ति भी आगे बढ़ने को हुआ।

 रुको! जरा! राजश्री बोली। 
***************************

उधर वीणा घबराई सी दरवाज़े तक पहुँचती है।

तब तक वह परछाई राजन्शी और वीणा के कमरे की खड़की तक पहुंच कर अंदर देखने लगती है  राजन्शी का ध्यान उस पर जाते ही वह
मम्मा! मम्मा! जोर से चिल्लाती है। वीणा कमरे की तरफ दौड़ती है, जहां उसे खिड़की के दूसरी तरफ लंगड़ाता हुआ कोई आदमी भागता दिखाई देता है। वीणा उस और जाकर देखना चाहती है मगर राजन्शी उसे रोक लेती है।
मम्मा! प्लीज़ आप कहीं मत जाओ।

इस समय डरी हुई राजन्शी के पास रहना वह उचित समझती है।
मैं नहीं जा रही, बेटा! कहकर वह राजन्शी को गले लगा लेती है।
मम्मा! कौन था वहाँ!? ऐसे रूम में क्यूँ झाँक रहा था? घबराकर राजन्शी पूछती है।

पता नही बेटा दुबारा आया तब पूछेंगे। कहकर वीणा चिंता में पड़ जाती है। कौन है ये शक़्स और उस युवक को पैसे देने के बाद राजश्री ने क्यों रोका!  जानने के लिए पढ़ें जीवन सारथि कहानी का अगला एपिसोड।
(स्वरचित) dj  कॉपीराईट © 1999 – 2020Google


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समाज में गुम हो चुकी संवेदनशीलता को जगाने का प्रयास करती एक कहानी है, जीवन सारथि! एकसाथ कईं सामाजिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करती,स्त्री सशक्तिकरण का उदाहरण प्रस्तुत करती, 'भिखारी' कह कर समाज से अलग कर दिया गया वर्ग भी कैसे समाज के सहयोग से हाशिये से उठकर मुख्यधारा में शामिल हो सकता है, इसका उदाहरण प्रस्तुत करती, गंभीर बीमारियों से जूझते लोगों के प्रति हमारे अमानवीय व्यवहार को लक्षित करती, सुख- दुख, हास्य-मनोरंजन से रोचकता के गलियारों में घुमाती हुई, राजश्री,वीणा और शालिनी जैसे कईं संवेदनशील किरदारों की कहानी है यह! आशा है, कुछ सुप्त भावनाओं को जगाकर यह आपके हृदय पर एक अमिट छाप छोड़ जाएगी! मुख्य पात्र राजश्री अन्य मुख्य पात्र वीणा और शालिनी इसके अतिरिक्त के सहायक पात्र रानी सुरेश विनोद श्रीधर डॉक्टर राजेश कहानी को रुचिपूर्ण बनाकर रखते हैं। कहानी का पहला दृश्य ईश्वर की महिमा अपरम्पार है! किस रूप में कब, कहाँ, किसे मिल जाएँ!!!  कहना मुश्किल है…! कुछ वर्ष पहले इसी विद्यालय में उसे भी तो ईश्वर के एक रूप के दर्शन हुए थे! राजन्शी के स्कूल की घंटी की आवाज़ ने, सोच में डूबी वीणा की तन्द्रा तोड़ी। इसी घंटी ने कुछ वर्ष पूर्व उसके जीवन की नई राह का शुभारम्भ किया था! आज उसी स्कूल के बाहर बैठी वह अपनी बेटी राजन्शी की छुट्टी होने का इंतज़ार कर रही थी। छुट्टी की घण्टी बजते एक हाथ थाम कर दोनो माँ बेटी चल पड़ीं । वीणा के विचारों की त्सुनामी अब भी सुर मिला रही थी उसके क़दमों की ताल से। ये विद्यालय उसके जीवन मे नींव का पत्थर साबित हुआ था। राजश्री को दूसरे शहर गए हुए तीन वर्ष हो चुके थे अब। लेकिन वीणा को वे आज भी भुलाये नहीं भूलतीं और न ही वह मन ही मन रोज़ उन्हें धन्यवाद देना भूलती है। उसके लिए राजश्री जी भगवान के समान थीं। आखिर वीणा को नयी ज़िन्दगी तो उन्होंने ही दी थी । कितने कष्टों से भरी थी उसके जीवन की राह! उस समय अगर वे नहीं होतीं तो वीणा आज भी उसी नर्क में घुट रही होती। उस दिन भी इसी तरह बजी स्कूल की घंटी ने ही तो जीवन बदला था उसका…! वरना आज भी वो इस स्कूल मे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का जीवन व्यतीत करती हुई, उस घर मे नर्क सी यातना भोगते हुए ही जी रही होती। कौन है वीणा क्या है उसका अतीत कैसे बदली राजश्री ने अनपढ़ वीणा की ज़िंदगी क्या है अन्य पात्रों की कहानी जानने के लिए पढ़ें जीवन सारथि।
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