समाज में गुम हो चुकी संवेदनशीलता को जगाने का प्रयास करती एक कहानी है, जीवन सारथि! एकसाथ कईं सामाजिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करती,स्त्री सशक्तिकरण का उदाहरण प्रस्तुत करती, 'भिखारी' कह कर समाज से अलग कर दिया गया वर्ग भी कैसे समाज के सहयोग से हाशिये से उठकर मुख्यधारा में शामिल हो सकता है, इसका उदाहरण प्रस्तुत करती, गंभीर बीमारियों से जूझते लोगों के प्रति हमारे अमानवीय व्यवहार को लक्षित करती, सुख- दुख, हास्य-मनोरंजन से रोचकता के गलियारों में घुमाती हुई, राजश्री,वीणा और शालिनी जैसे कईं संवेदनशील किरदारों की कहानी है यह! आशा है, कुछ सुप्त भावनाओं को जगाकर यह आपके हृदय पर एक अमिट छाप छोड़ जाएगी!
Episode 1
ईश्वर की महिमा अपरम्पार है! किस रूप में कब, कहाँ, किसे मिल जाएँ!!! कहना मुश्किल है…!
कुछ वर्ष पहले इसी विद्यालय में उसे भी तो ईश्वर के एक रूप के दर्शन हुए थे! राजन्शी के स्कूल की घंटी की आवाज़ ने, सोच में डूबी वीणा की तन्द्रा तोड़ी।
इसी घंटी ने कुछ वर्ष पूर्व उसके जीवन की नई राह का शुभारम्भ किया था! आज उसी स्कूल के बाहर बैठी वह अपनी बेटी राजन्शी की छुट्टी होने का इंतज़ार कर रही थी। छुट्टी की घण्टी बजते ही राजन्शी दौड़ाते हुए आकर वीणा के गले लग गई!
"हाउ वाज़ योर डे!?" वीणा ने भरपूर मुस्कुराहट बिखेरते हुए पूछा ।
"परफ़ेक्ट ममा.!"
अपनी प्यारी सी, छः वर्षीय बेटी के मुँह पर मुस्कुराहट के साथ बिखरे शब्द सुनकर वीणा भावविभोर हो गई। बेटी के हाथ से स्कूल बैग लेकर, एकदूसरे का हाथ थाम कर दोनो माँ बेटी चल पड़ीं । वीणा के विचारों की त्सुनामी अब भी सुर मिला रही थी उसके क़दमों की ताल से। ये विद्यालय उसके जीवन मे नींव का पत्थर साबित हुआ था। राजश्री मेडम का तबादला हुए 3 वर्ष हो चुके थे अब। लेकिन वीणा को वे आज भी भुलाये नहीं भूलतीं और न ही वह मन ही मन रोज़ उन्हें धन्यवाद देना भूलती है। उसके लिए राजश्री जी भगवान के समान थीं। आखिर वीणा को नयी ज़िन्दगी तो उन्होंने ही दी थी । कितने कष्टों से भरी थी उसके जीवन की राह! उस समय अगर वे नहीं होतीं तो वीणा आज भी उसी नर्क में घुट रही होती। उस दिन भी इसी तरह बजी स्कूल की घंटी ने ही तो जीवन बदला था उसका…!
वरना आज भी वो इस स्कूल मे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का जीवन व्यतीत करती हुई, उस घर मे नर्क सी यातना भोगते हुए ही जी रही होती।
आज आप अपनी स्कूटी क्यों नहीं लाए!? मेरे पैर दर्द कर रहें हैं!
अपने अतीत के विचारों में वो ऐसी खो गई थी, उसे ध्यान ही नहीं रहा, नन्हीं राजन्शी को पैदल चलाते हुए वह काफ़ी दूर आगई है!
राजन्शी की आवाज़ ने उसकी तन्द्रा तोड़ी!
"अरे!! सोsss…सॉरी! बेटाss!
अभी ऑटो रुकवाते हैं। आज स्कूटी का टायर पंक्चर हो गया था तो उसको ठीक करने के लिए छोड़ आई हूँ और आपके बर्थडे की शॉपिंग भी तो करनी है न हमें!?"
उत्साह दिखाते हुए वीना बोली
ये सुनते ही नन्हीं राजन्शी के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आगई। वह खुश होते हुए बोली मम्मा आज हम आइसक्रीम भी खाएँगे..... ?
जरूर खाएँगे! रानी बिटिया!!! कहते हुए उसने रोड के उस पार जाते ऑटो वाले को हाथ दिखाया उसके रुकते ही उसने राजन्शी को गोद में उठाकर रोड क्रॉस किया और ऑटो में बैठ गई ।
दोनों मार्केट पहुँचे। नन्हीं सी राजन्शी का ध्यान आसपास के नज़ारों और लोगों पर बराबर बना रहता है। वीणा को लगता है बच्ची को भूख लगी होगी।
उसने राजन्शी से कहा "पहले हम कुछ खा लें ,फिर शॉपिंग करेंगे।
"ओके! मम्माss!" राजन्शी ने जवाब में कहा।
एक रेस्टोरेन्ट में खाना खाकर जब वे दोनों बाहर निकले तो राजन्शी को आइसक्रीम की शॉप दिख गई।
"मम्माssss जोर से अलाप में चिल्लाते हुए तुरंत उसने उँगली आइसक्रीम पार्लर की तरफ घुमा दी। वीणा को हंसी आगई।
राजन्शी भी मुस्कराते हुए शब्दों पर ज़ोर देते हुए बोली "अभीsssss"।
"ओके! मैडम! चलिए अभी खिला देते हैं!"
सुनते ही राजन्शी ख़ुशी से उछल पड़ी।
आइसक्रीम पार्लर में जाकर वीणा ने दो आइसक्रीम ली। अपने लिए वनीला और राजन्शी के लिए चॉकलेट फ़्लेवर । काउंटर पर बिल देने लगी तो उसमें तीन आइसक्रीम का बिल बनाकर दिया हुआ था। उसने पूछा तो बताया कि एक आपकी बेटी लेकर बाहर गई है। वीना यह सुनकर चिंता में आगई। उसने
पीछे मुड़कर देखा तो राजन्शी वहाँ नहीं थी। वह घबरा गई और पैसे देकर तुरंत बाहर निकली। उसके दिमाग मे सुरेश का विचार आया और वह राजन्शी के लिए और चिंतिंत हो गई।
आखिर कहाँ गई इतनी छोटी सी बच्ची!? किसके लिए वह एक आइस्क्रीम उसने अतिरिक्त ली!? क्या है वीना का अतीत? कौन हैं राजश्री मैडम? सुरेश का इन सबसे क्या connection है क्या वही बच्ची को ले गया होगा?
जानने के लिए पढ़ें जीवन सारथि का अगला एपिसोड।
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