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जीवन सारथि भाग 5

2 अगस्त 2022

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अब तक आपने पढ़ा गरीब परिवार में पली बढ़ी वीणा अपने अतीत को याद कर रही है जिंदगी से जद्दोजहद करते हुए वह इस स्कूल में काम ढूंढ लेती है।  स्कूल में उसकी मुलाकात राजश्री से होती है और उसके द्वारा बार बार वीणा से  उदास रहने का कारण पूछने और सांत्वना भरे शब्द कहने पर वीणा की रुलाई फूट पड़ती है। अब आगे 

वीणा को रोता हुआ देख राजश्री ने उसकी पीठ सहलाकर सान्त्वना देते हुए पानी का गिलास थमाया। उसकी अवस्था स्थिर होने का इन्तज़ार किया और पूछा-

"बताओ क्या बात है पति से कोई झगडा हुआ क्या!?"

धीरे धीरे वीणा ने अपनी पूरी कहानी राजश्री जी के सामने सुना दी। पति किस तरह रोज उसे पीटता है, धमकाता है, सुख चैन सब छीन रखा है।
"मेडम जी शाम होते ही जी घबराने लगता है बस यही सोचती रहती हूँ कि आज क्या क्या झेलना होगा घर जाकर। जैसे तैसे मन मारकर घर जाती हूँ।"

लेकिन इतना सब कुछ सहन करती ही क्यों हो!?

तो क्या करऊँ! मेडम जी!?

यदि उसे तुम्हारी क़द्र नही तो छोड़ दो।

नहीं-नहीं मेडम जी लोग क्या कहेंगे!? वह घबराते हुए बोली। 

कौन से लोगो के बारे मे सोच रही हो वीणा!? जिन्हें ये जानकारी रखने से भी परहेज़ है कि तुम किस हाल मे हो?

लेकिन समाज और परिवार वाले खुश नहीं होंगे, मेरे ऎसा कदम उठाने पर।

तुम गई थीं न उनके पास अपनी समस्या लेकर!? अनुभवी राजश्री ने निर्णायक स्वर मे पूछा। 

जवाब वही मिला जो वे पहले से जानतीं थीं।

"जी!!" नज़रें झुकाती हुई वीणा बोली।

फ़िर!? राजश्री जी ने उसकी और देखते हुए पूछा। 

फ़िर! क्या!!! बहन अपने परिवार मे सुखी है, उसने मुझसे इतना जरूर कहा कभी भी कोई जरुरत हो तो बताना कोशिश करुँगी तेरी मदद कर पाऊं। लेकिन पति के साथ निबाह के लिए सामंजस्य तो तुझे ही बिठाना होगा। हमने तो बचपन से दुःख और संघर्ष देखा है, अब तो तुझे इसकी आदत हो जानी चाहिए और वीणा हमारे जैसे गरीब लोगों की यही ज़िंदगी होती है। इससे अच्छे की तो हम सिर्फ कभी न पूरी होने वाली आशा ही कर सकते हैं।

और भाई!?? राजश्री ने सवाल किया

भाई-भाभी भी अपने जीवन मे खुश हैं। किराए के कमरे में रहते हैं। भाई कहता है तुझे कहाँ रखूँगा!? जैसे भी हो निबाह कर ले वहीं। हो सकता है तेरे प्रयासों से जीजाजी बदल जाएँ!! वैसे भी लड़की का असली घर तो उसका ससुराल ही होता है!!! और औरत चाहे तो पति को बदल सकती है!!!!!

एक माँ थीं जो शायद मेरा दुःख समझतीं वे अब रही नहीं। कभी-कभी तो मुझे लगता है कि वे होतीं तब वे भी शायद मुझे ही समजझाइश देतीं!!!!

तो तुम तैयार हो पुरी ज़िन्दगी ऎसे घुट-घुट कर जीने के लिये? राजश्री ने उसका मन टटोलना चाहा

नहीं मैडम जी, लेकिन छोड़ कैसे दूँ? समाज क्या कहेगा मुझे? भाई-बहन परिवार सबको ताने देंगे लोग। असमंजस के भाव लिए वीणा बोली।

कौन से समाज की परवाह है वीणा तुम्हें? वही समाज जो कभी तुम्हारे काम न आया!? कोई एक व्यक्ति भी मुझे बता दो जो तुम्हे एक दिन भी पति की मार से बचाने आया हो!?

ये तो मैने भी कई बार सोचा मेडम जी! मगर हिम्मत नहीं होती!
 आख़िर नाम के लिए ही सही, पति तो है उसका साया सिर से हट गया तो..  कहते कहते वीणा घबराहट के भाव लिए चुप हो गई।

राजश्री एक फीकी हंसी लाते हुए अफ़सोस से अपनी गर्दन दाएँ बाएँ हिलाते हुए एक पल के लिए चुप हो गई। फिर बोली-

हम्म्म!!! तो ये बात है!?
अच्छा एक बात बताओ किस पति का नाम अपने साथ जोड़े रखना चाहती हो!? जिसको पत्नी शब्द के मायने भी नहीं पता!? वीणा ने अश्रुपूरित नज़रों से राजश्री जी की और
देखती रह गई।
आखिर क्या समझाना चाहती है राजश्री वीणा को? क्या सुरेश और वीणा  का तलाक करवाना ही उसका उद्देश्य है.? क्या वह वीणा का मन बदलने में कामयाब होगी या यह बातचीत वीणा के जीवन को किसी अलग ही रास्ते की और मोड़ देगी! जानने के लिए अगला एपिसोड पढ़ना न भूलें।
(स्वरचित) dj  कॉपीराईट © 1999 – 2020  Google


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जीवन सारथि
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समाज में गुम हो चुकी संवेदनशीलता को जगाने का प्रयास करती एक कहानी है, जीवन सारथि! एकसाथ कईं सामाजिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करती,स्त्री सशक्तिकरण का उदाहरण प्रस्तुत करती, 'भिखारी' कह कर समाज से अलग कर दिया गया वर्ग भी कैसे समाज के सहयोग से हाशिये से उठकर मुख्यधारा में शामिल हो सकता है, इसका उदाहरण प्रस्तुत करती, गंभीर बीमारियों से जूझते लोगों के प्रति हमारे अमानवीय व्यवहार को लक्षित करती, सुख- दुख, हास्य-मनोरंजन से रोचकता के गलियारों में घुमाती हुई, राजश्री,वीणा और शालिनी जैसे कईं संवेदनशील किरदारों की कहानी है यह! आशा है, कुछ सुप्त भावनाओं को जगाकर यह आपके हृदय पर एक अमिट छाप छोड़ जाएगी! मुख्य पात्र राजश्री अन्य मुख्य पात्र वीणा और शालिनी इसके अतिरिक्त के सहायक पात्र रानी सुरेश विनोद श्रीधर डॉक्टर राजेश कहानी को रुचिपूर्ण बनाकर रखते हैं। कहानी का पहला दृश्य ईश्वर की महिमा अपरम्पार है! किस रूप में कब, कहाँ, किसे मिल जाएँ!!!  कहना मुश्किल है…! कुछ वर्ष पहले इसी विद्यालय में उसे भी तो ईश्वर के एक रूप के दर्शन हुए थे! राजन्शी के स्कूल की घंटी की आवाज़ ने, सोच में डूबी वीणा की तन्द्रा तोड़ी। इसी घंटी ने कुछ वर्ष पूर्व उसके जीवन की नई राह का शुभारम्भ किया था! आज उसी स्कूल के बाहर बैठी वह अपनी बेटी राजन्शी की छुट्टी होने का इंतज़ार कर रही थी। छुट्टी की घण्टी बजते एक हाथ थाम कर दोनो माँ बेटी चल पड़ीं । वीणा के विचारों की त्सुनामी अब भी सुर मिला रही थी उसके क़दमों की ताल से। ये विद्यालय उसके जीवन मे नींव का पत्थर साबित हुआ था। राजश्री को दूसरे शहर गए हुए तीन वर्ष हो चुके थे अब। लेकिन वीणा को वे आज भी भुलाये नहीं भूलतीं और न ही वह मन ही मन रोज़ उन्हें धन्यवाद देना भूलती है। उसके लिए राजश्री जी भगवान के समान थीं। आखिर वीणा को नयी ज़िन्दगी तो उन्होंने ही दी थी । कितने कष्टों से भरी थी उसके जीवन की राह! उस समय अगर वे नहीं होतीं तो वीणा आज भी उसी नर्क में घुट रही होती। उस दिन भी इसी तरह बजी स्कूल की घंटी ने ही तो जीवन बदला था उसका…! वरना आज भी वो इस स्कूल मे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का जीवन व्यतीत करती हुई, उस घर मे नर्क सी यातना भोगते हुए ही जी रही होती। कौन है वीणा क्या है उसका अतीत कैसे बदली राजश्री ने अनपढ़ वीणा की ज़िंदगी क्या है अन्य पात्रों की कहानी जानने के लिए पढ़ें जीवन सारथि।
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