पिछले भाग में आपने पढ़ा
वीणा अपनी बेटी को स्कूल लेने के लिए आई है और वहाँ वह अपने अतीत में खो जाती है इस स्कूल से उसकी बहुत सी यादें जुड़ी हुई थीं। बेटी को लेकर वह मार्केट जाती है। वे दोनों खाना खाकर आइसक्रीम शॉप पर जाते हैं, जहाँ आइसक्रीम का पेमेंट करने पर वीना को पता चलता है कि दो की जगह 3 आइसक्रीम का बिल बनाया गया है। वीणा इसकी वजह पूछती है तो दुकानदार उन्हें बताता है कि आपकी बेटी एक आइसक्रीम लेकर चली गई है। वीणा चौंक जाती है, उसे राजन्शी कहीं दिखाई नहीं देती और वह बहुत चिंतित हो जाती है। जल्दी से पैसे दे शॉप से निकल वह राजन्शी को ढूंढने लगती है। अब आगे
वीणा ने पीछे मुड़कर देखा तो राजन्शी वहां नहीं थी। वह घबरा गई और पैसे देकर तुरंत बाहर निकली अपने दाएं बाएं देखा तो राजन्शी उससे 8 -10 क़दम दूर थी और उसी की तरफ आ रही थी । उसे देखकर वीणा की जान में जान आती है
"राजन्शी आप कहाँ गये थे बेटा मैं कितना डर गई थी।" राजन्शी की और बढ़ते हुए वीणा थोड़े गुस्से में बोली।
"सॉरी मम्मा, मैं तो बस आज के हैप्पीनेस मोमेंट के लिए गई थी।"
"लेकिन आपको मुझे बताना चाहिए न बेटा, ऐसे मार्किट में बिना मम्मी के अकेले घूमना रिस्की है।"
"सॉरी मम्मा!, आगे से पक्का ध्यान रखूंगी। अब मेरी आइसक्रीम तो दे दो प्लीज़! पूरी ही पिघल रही है।" अपनी आइसक्रीम की ओर देख रोनी सी शक्ल बनाकर वह बोली
"हाँ ये लो, मगर आज का आपका हैप्पीनेस मोमेंट मुझे भी तो बताओ।"आइसक्रीम खाते हुए वीणा बोली।
"हाँ! मम्मा! चलो मैं दिखाती हूँ। जब हम रेस्टोरेंट से बाहर निकले और आप बिल दे रह थे तब एक बच्चा 1 आंटी से रहा था, उसे आइसक्रीम खानी है और आंटी कह रही थीं कि उनके पास पैसे नहीं हैं, आइसक्रीम नहीं ले सकते। उनके कपड़े भी फटे थे तो मुझे लगा मुझे आज का हैप्पीनेस मोमेंट मिल गया! इसीलिए तो मैंने अभी आइसक्रीम लेने को कहा" आइसक्रीम पर अपनी जीभ फिराते हुए राजन्शी मुस्कुराते हुए बोली। सुनकर वीणा के चेहरे पर गर्वमिश्रित मुस्कान तैर गई और साथ ही मन उमड़ पड़ा बेटी के लिए ढेर सारा प्यार। बात करते हुए वीणा को राजन्शी उनके पास ले गई।
बच्चा पास ही बैठा ख़ुशी से आइसक्रीम खा रहा था। राजन्शी को देख कर उस बच्चे की माँ तुरन्त खड़ी हो गई वीणा को देख हाथ जोड़ बोली, "बाईजी सा आपकी लड़की खूब समझदारऔर दयालु है।"
मुस्कुराते हुए उसे वीणा ने पूछा कुछ काम करती हैं आप?
उसने बताया कि जब जो मिल जाए।
कभी मिलता है कभी नहीं।
सुनकर वीणा ने उसे एक पता समझाते हुए कहा कि यहाँ आप चले जाइए। कल दोपहर आपको काम मिल जाएगा।
"कहाँ रहती हैं आप!?" वीणा ने फिर प्रश्न किया।
"जहाँ जगह मिल जाए।"
वीणा के प्रश्न के जवाब में महिला ने आँखों में अश्रु भरते हुए कहा।
आपके बेटे का दाख़िला मैं सरकारी स्कूल में करवा दूंगी, इसे स्कूल भेजना शुरू कीजिए।
"बिना शिक्षा के जीवन का कोई अर्थ नहीं होता" कहते हुए वीणा ने एक ठंडी सी आह ली।
साथ ही उसे वीणा ने सौ रुपये दिए और कहा आज का दिन इसमें चलाइए । कल आपको आपके काम का एडवांस दिलवा दूंगी। मगर मैने आप पर भरोसा किया है, इसे भूलियेगा नहीं और अपना काम पूरा ईमानदारी से कीजिएगा।"
औरत की आँखों से अश्रुधारा बह निकली, हज़ारों दुआएं देती हुई वह वीणा के पैर छूने लगी। वीणा ने उसे रोकते हुए कहा ये सब ईश्वर का किया है तो ईश्वर का धन्यवाद दीजिए । उसने राजन्शी को भी खूब दुआएं दीं और वादा किया वह पूरी ईमानदारी से काम करेगी। सुनकर वीणा की आँखें भी भीग गईं।
राजन्शी ये पूरा नज़ारा बड़े ही ध्यान से देख रही थी अपनी माँ की ही तरह वह बहुत संवेदनशील थी। छोटी सी उम्र में बहुत समझदार भी। ये वीणा की परवरिश का ही असर था और राजश्री जी की संगत का परिणाम। शॉपिंग करते हुए पूरे रास्ते राजन्शी के मासूम सवालों से घिरी रही वीणा..
"मम्मा वे बार बार रो क्यों रही थी"?
"आपके पैर क्यों छू रही थी"?
और "आप क्यों रो रहे थे" आदि इत्यादि ।
वीणा सभी सवालों के समझाइश भरे और उसके बासुलभ मन को संतुष्ट कर देने वाले उत्तर देती रही तब जाकर वह शांत हुई।
दोनों शॉपिंग करके घर जाने लगीं। राजन्शी ने अपनी पसंद की कुछ चीजें लीं थीं। कुछ वीणा ने अपने हिसाब से उसे दिलवाई थीं। ऑटो रुकवा कर दोनो घर पहुंची। राजन्शी को यूनिफॉर्म बदल कर हाथ मुंह धोने के लिए निर्देशित कर वह भी कपडे बदलने चली गई। फ्रेश होकर उसने राजन्शी का होमवर्क उसे बताया।
उसके मस्तिष्क में अब भी वह औरत और उसका बेटा घूम रहा था। उनकी दशा याद करके वीणा की आँखें नम हो गईं ।
उसने राजन्शी को कहा "थैंक्यू! बेटू! आज आपकी वजह से मम्मा को भी हैप्पीनेस मोमेंट मिल गया!"
"वेलकम मम्मा" राजन्शी की मीठी आवाज़ गूंजी।
वह मुस्कुराती हुई खाने के लिए कुछ बनाने किचन की तरफ जाने लगी। आज रह-रह कर उसकी आँखों के सामने उसका अपना अतीत घूम रहा था। एक पल वह अपनी अतीत को याद कर फिर से सिहर गई।
मेरे जीवन में अगर राजश्री जी ना आतीं तो शायद मैं भी इसी तरह दर दर भटक रही होती। सोचकर उसकी रूह काँप गई। और उसी के साथ राजश्री जी के प्रति उसके मन में बसी प्रेम और श्रद्धा और भी बढ़ गई। आखिर कौन है यह राजश्री? वीणा का इन से क्या संबंध है? वीणा के अतीत में क्या घटनाएं हुई ?और किस तरह व उनसे बचकर वर्तमान जीवन की ओर बढ़ पाई ?