सीबीआई के ही दो पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा और एपी सिंह अब सीबीआई के कठघरे में हैं। और मौजूदा वक्त में सीबीआई के एडिशनल डायरेक्टर राकेश आस्थाना नायक है । क्योकि उन्होने लालू कुनबे पर ही शिंकेजा कस दिया है । यू सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट ने जब सरकारी तोता कहा तब सीबीआई के डायरेक्टर रंजीत सिन्हा थे । जिनपर अब आरोप लग चुका है कि उन्होंने कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले की जांच प्रभावित करने की कोशिश की। सीबीआई के तोता रहते हुये ही एपी सिंह टायरेक्टर बने । जिनपर अब आरोप लग चुका है कि उन्होने मीट कारोबारी कुरैशी का साथ दिया । तो क्या देश की प्रीमियर जांच एंजेसी सीबीआई की साख बची ही नही है । तो आईये जरा सीबीआई के मौजूदा एडिशनल टारेक्टर राकेश आस्थाना के बारे में भी जान लें . जो आज के नायक है । तो अस्थाना 1984 के बैच के गुजरात कैडर के अफसर हैं और आस्थाना ही चारा घोटाला में मुख्य जांच अधिकारी थे और 1997 में चारा घोटाला में लालू की गिर्फतारी की थी । लेकिन चारा घोटाले के बाद दिल्ली में वाजपेयी सरकार आने के बाद अस्थाना गुजरात कैडर वापस चले गए और मनमोहन सिंह सरकार आने के बाद लालू यादव को लगा की अस्थाना रूपी बेताल का पीछा उनसे छूटा. लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था. और आज सीबीआई ने उन्ही की अगुवाई में लालू कुनबे के ठिकानो पर पर छापा मारा । दरअसल आस्थाना को मोदी सरकार के करीब इसलिये माना जाता है क्योकि साल 2015 में ही राकेश अस्थाना को मोदी सरकार सीबीआई में एडिशनल डायरेक्टर के रूप में लेकर आई थी. सीबीआई के पूर्व निदेशक अनिल सिन्हा के पिछले साल 2 दिसंबर को रिटायर होने से ठीक पहले राकेश अस्थाना को सीबीआई का इंचार्ज डायरेक्टर बना दिया गया था.मोदी सरकार ने 1 दिसंबर 2016 की रात को एक चौंकाने वाला निर्णय करते हुए सीबीआई में नंबर 2 रहे स्पेशल डायरेक्टर रूपक कुमार दत्ता को गृमंत्रालय में ट्रांसफर कर दिया था और सीबीआई में ही एडिशनल डायरेक्टर के रूप में काम कर रहे नंबर तीन आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना को इंचार्च डायरेक्टर बना दिया था. जिसको लेकर काफी बवाल मचा था. राकेश अस्थाना के जिम्मे कई राजनेताओं की जांच की जिम्मेदारी है. मसलन मुलायम सिंह यादव, मायावती, ममता बनर्जी और अब लालू प्रसाद यादव और उनके पत्नी और बेटे. गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना के पास इस समय सीबीआई के कई केस हैं, जिसमें से अगस्टा वेस्टलैंड डील और विजय माल्या केस भी मुख्यरूप से शामिल है. तो क्या मान लिया जाये अब न्याय होगा । जबकि देश का सच तो ये है कि कैमरा बंद होते ही नेता ये कहने से नहीं चुकता कि ,"हम सियासत करने के लिए आए हैं। हम सियासत नहीं करेंगे तो क्या घास छीलेंगे।" जी ये बयान नेता कैमरे पर कभी नहीं कहते लेकिन पत्रकारों से बातचीत में खुलकर कहते हैं। जब सरकार अटल बिहारी बाजपेयी की थी, तब कांग्रेसी इसे खूब कहते थे। जब सरकार मनमोहन सिंह की हुई, तो बीजेपी के नेताओं ने इस जमुले को दोहराते रहे। और अब लालू यादव के कुनबे को सीबीआई ने अपने शिकंजे में लिया तो कांग्रेसी फिर यह कहने से नहीं चूक रहे। तो सीबीआई का चरित्र न तो सत्ता के लिए बदला है, न विपक्ष के लिए। इसलिए घोटालों की लंबी फेहरिस्त है, जो कमोवेश हर सरकार के दामन पर दाग की तरह चस्पां हैं। लेकिन हर सत्ता ने रेनकोट कुछ इस तरह से पहना है कि उसका दाग रेनकोट तले छिप जाता है। खासतौर से देश की इकोनामी 1991 में पी वी नरसिंहराव के वक्त से जिस तरह बदली, उसके बाद क्रोनी कैपिटलिज्म सत्ता के सिस्टम में तब्दील हो गया। मसलन पी वी नरसिंहराव का दौर हो या अटल बिहारी बाजपेयी का दौर हो या फिर मनमोहन सिंह का दौर हो। घोटालों का सिलसिला थमा नहीं और विपक्ष सत्ता में आने के लिए करप्शन के मुद्दे को राजनीति क तौर पर जनता के बीच भी उठाता रहा। सत्ता बदलती रही-करप्शन चलता रहा। और याद कीजिए 2014 के चुनाव प्रचार के वक्त में कोयला घोटाला हो, कॉमनवेल्थ हो, टू जी हो, आदर्श हो या फिर रॉबर्टवाड्रा का ही जमीन घोटाला क्यों न हो-नाम सभी का ही लिया गया। लेकिन-किसी भी घोटाले में किसी भी नेता को सजा आजतक नहीं हुई। और जो लालू यादव चारा घोटाले में दोषी करार दिए जा चुके हैं-जेल जा चुके हैं, चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध है-वो बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतकर अपने बच्चों को सत्ता की कुंजी थमा देते हैं। तो फिर सीबीआई के आज के छापे और दस घंटे की पूछताछ के बाद बदलेगा क्या। क्योंकि भ्रष्टाचार से जुड़े मामले देश में किसी फिल्म सरीखे हो लिए हैं, जब वे खुलते हैं तो दर्शकों को आनंद देते हैं-लेकिन चंद घंटे के रोमांच के बाद बदलता कुछ भी नहीं। याद कीजिए फिल्म मदारी का वो डायलाग , सरकार भ्रष्ट्र है ये कहना ठीक नहीं है । सरकार भ्रष्ट्रचार के लिये ही है ये कहना ठीक होगा ।