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जीवन

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सपनों को साकार करने में,व्यस्त तुम इतने हो जाओ।समय ही न मिले कभी भी,कुछ और में गुम हो जाओ।।उदासी ना हो जिंदगी की,सपनों को पंख मिल जाए।उदासी के लिए वक़्त नहीं,अरमानों को पंख मिल जाए।।सपनों को जीवन देना

मैं हूं तुम्हारी हिंदी भाषा,इसको तुम पहचान लो।अस्तित्व हूं तुम्हारा मैं,मुझको तुम पहचान लो।।कर्म हूं और कृति भी मैं,अस्तित्व है यूं मुझसे जुड़ा।मर्म हूं और व्यथा भी मैं,अस्तित्व तुम्हारा मुझसे जुड़ा।।

आदर्शों की मिसाल बना के,सदा ज्ञान का प्रकाश जगाता।बाल पन महकता शिक्षक,भाग्य हमारा शिक्षक बनाता।।गुरु ज्ञान का दीप जलाकर,जीवन हमारा महकता शिक्षक।विद्या का धन देकर ऐसे,मन आलोकित करता शिक्षक।।धैर्य का हम

आंखे तो सबकी एक जैसी,देखने का अंदाज अलग होता।बातें सबकी होती अलग अलग,कहने का अंदाज अलग होता।।दिलों के एहसास की बातें,धड़कन का अंदाज अलग होता।बातें जुबां पे आती रहती,कहने का अंदाज अलग होता।।इज्ज़त शौक

देख कर माथे की लकीरें,चिंता का विषय कुछ लगती।सोच विचार चिंतन गहन,अकारण ही कुछ उपजती।।देख कर पत्थर पर लकीरें,न मिटने का अंदेशा देती।कभी न खत्म निशान हो,ऐसा लकीरें ये संदेशा देती।।देख कर कागज़ के पन्नों

पूर्णिमा का चांद देखो,कैसे बिखेर रहा चांदनी।तारे भी जग मग करते,रौशन हो रहे संग चांदनी।।पूर्णिमा की रात हम तुम,कुछ बात संग चांदनी में।कैसे अपनी छटा बिखेरी,कुछ बात इस चांदनी में।।पूर्णिमा की इस रात में,

खोया खोया चांद आज,गुम हो गई चांदनी इसकी।आज अंधेरी रात आ गई,कहां गई है चांदनी उसकी।।खोया खोया चांद आज,कहां गए सितारे उसके।जो टिमटिमाते थे प्रतिपल,रौशन करते थे जो प्रतिपल।।खोया खोया चांद आज,सोचता रहता ह

आज हमारी ईश्वर में आस्था,है कितनी यह देखो जरा।कोई तो करता पूजा साधना,कोई करे ऐसे खिलवाड़ जरा।।कोई उड़ाए मजाक आस्था का,कोई आस्था को अपना संसाधन।कोई करे ईश्वर की अर्चना याचना,कोई समझे पब्लिसिटी का साधन।

ओस की बूंदें धरा पर,ऐसे पल्लवित होती हैं।कदम धरा पर पड़ते ही,तन मन स्फूर्ति भरती हैं।।ओस की बूंदें पंखुड़ीयों पर,पुष्प भी खिल उठता है।कोमल कोमल सी कोपलें,खुशबू से मन खिल उठता है।।आसमान से गिरी धरा पर,

सुबह सुनहरी धूप खिली,आंगन में चारपाई बिछी।आ गई दादी चारपाई पे,आंगन में चारपाई बिछी।।हुए एकत्रित बच्चे सारे,करते सब दादी दादी जी।दादी जी ने गले लगाया,आओ मेरे प्यारे बच्चों जी।।चाय नाश्ता है तैयार सब,मा

समझते हो गर कर्म को,जरूरत नहीं धर्म समझने की।पाप क्या और पुण्य क्या,कर्म ही करते रहने की।।कर्म तुम्हारे जुड़े पुण्य से,फल अच्छे तुम्हें मिलेंगे।बुरे कर्म तो जुड़ेंगे पाप से,फल उसके भी मिलेंगे।।कर्म हम

नादान परिंदे होते हैं,उड़ने की कोशिश करते। रहते हैं अपने बसेरे में,उड़ने की ख्वाहिश रखते।।नादान परिंदे होते हैं,आकाश छूने का दंभ भरते। कोशिशें नाकाम हो जाती,फिर भी कोशिश करते रहते।।नादान परि

सूरज ने बोला चंदा से,मैं दूल्हा तुम दुल्हन हो।शाम ढले आया सूरज,चंदा से तारे हैं बाराती हो।।शाम से कहते तारे सारे,आओ इस जश्न में शामिल हो।तारे भी बोले सारे मिलकर,तैयारी में हम सब शामिल हो।।हम तारे है ब

प्रभु कृपा हम पे,इतनी बनाए रखना।सही रास्ते पे,हमको चलाए रखना।।मन दुखे न किसी का,कृपा इतनी बनाए रखना।प्रभु कृपा हम पे,इतनी आस बनाए रखना।।रिश्ते न बिगड़े कभी,मेल इतना बनाए रखना।समझ और समझदारी हो,कृपा इत

सांसे जब तक है,टकराव होते रहेंगे।रिश्ते जब तक है,टकराव होते रहेंगे।।बोलते रहते हैं पीठ पीछे,बोलते रहने दो।क्या फर्क पड़ता है,लगाव रहने दो।।दिल से दुआ करो,हर किसी की खैर रहे।खुदा हाथ थामे अपना,हर किसी

मनमौजी या मन का मौजी,चले वह अपनी ही डगर।मंजिल का पता न राह का,राह चले वह अनजानी डगर।।मनमौजी या मन का मौजी,न दिन का ठौर न रात का।मस्तमौला सा फिरता रहता,राह का पता न मंजिल का।।मनमौजी या मन का मौजी,न भूख

खुले आसमान में सूरज ने,आभा अपनी बिखराई आज।पेड़ों के झुरमुट से प्रस्फुटित,किरणों ने जमीं छुई आज।।खुले आसमान में पंछियों ने,नभ में अपने पंख पसारे।।उड़ते हुए ये एहसास करते,आजादी का जश्न मना रे।।खुले आसमा

मुश्किलों के सदा हल हो ऐ जिंदगी।थके न फुर्सत के पल दे ऐ जिंदगी।।दुआ है कि सबका सुखद आज दे ऐ जिंदगी।आज सुखद है तो आने वाला कल भी दे ऐ जिंदगी।।इत्तेफाक से सबके रंग देखे हमने ऐ जिंदगी।चेहरे भी बदले हुए द

प्राचीन भारत की कलाकृति,मंदिरों, महलों में नजर आती।कुछ तो खंडहर में तब्दील हुए,अब अवशेषों में नजर आती।।दुनिया राजा महाराजाओं की,प्राचीन भारत के नज़राने थे।अस्त्र शस्त्र और शास्त्रों में गुरु,गुरुकुल म

बिखरे है फूल बागों में,जैसे बागों में बहार है।महक उठा आशना हमारा,जैसे बागों में बहार है।।फूल दिए दिए हमें ऐसे,उनकी खुशबू से महक उठे।बगिया हमारे घर की महकी,उनकी खुशबू से महक उठे।।फूल से खिलते बच्चे हमा

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