योग शरीर को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाता है।योग मुख्यतः चार प्रकार का होता है--- राज योग, कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग।राज योग-- राज अर्थात राजसी योग। इसमें आठ अंग होते हैं।इसमें यम, शपथ
मानवता के लिए योग करें,स्वस्थ जीवन को हम जिए।शक्ति और स्फूर्ति जगाए,तन मन को स्वस्थ बनाए।।मानवता के लिए योग करें,योग दिवस को यादगार बनाए।समय अपना कुछ देकर ऐसे,नियमित योग से ताज़गी जगाए।।मानवता के लिए
चैन ओ सुकून मिलता है या तो यार की बाहों में या फिर घर की पनाहों में याद सताती है, तड़पाती है या तो यार दिलदार की या फिर घर बार की । जब तक इनका साथ है तो घबराने की क्या बा
पिता धूप होता है,मां छाव होती है,पिता आकाश तो,मां धरती होती है,पिता सख्त है अगर,तो मां नरम होती है,इस निस्वार्थ प्रेम का,कोई मोल नहीं है,कद्र करो उनकी,भले पिता या माता,पिता सख्त मिजाजीसर पर हाथ हो,उनक
पूरे दिन काम कर जब घर आतेदेख परिवार को सुखी वो मुस्कुरातेपूरे दिन की थकान के बाद जब सुनते पत्नी के मन की बातेबहन की खुशी के रखवालेहर कदम हर मुश्किल मोड़ परबहन का हाथ थामे खड़े नजर आतेघर आते ही मा
संत कबीर जी का जन्म काशी में सन 1398 (संवत 1455) में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को माना जाता है। उनके अनुयायी उनके जन्मदिवस को 'कबीर साहेब प्रकट दिवस' के रूप में मनाते हैं। वे एक मस्तमौला संत थे, जिन्हों
रेलयात्रा का सफर,होता बड़ा सुहाना।पल भर में कहां पे,ले जाए सफर सुहाना।।छुक छुक करती हुई,रेल चलती चली जाए।दिखते सुन्दर पेड़ पौधे,मनमोहक लगता जाए।।नदी पहाड़ आए रास्ते में,या फिर खेत खलिहान हो।लगते हैं य
मन में विचारों का तूफान सा उठा है दिल में जज्बातों का कोहराम मचा है दिमाग फंस गया है समस्याओं के भंवर में झंझावातों से ये मन अशांत हो गया है जीवन में आंधी तूफान जब भी आते हैं&n
क्या ये रिश्ता हैकैसा ये नाता हैअशांत मन को शांत कर जाता हैना जानू तुम मेरे क्या होदोस्त हो या मेरे मीत होदे खुशी वो प्यारी सी रीत होकह दूं बेझिझक हर बातमां के मन सा तेरा प्यार सा अहसासनही चाहत त
मिट्टी के खिलौने देखो,होते हैं ये कितने सुन्दर।सुन्दर और सलोने खिलौने,होती है मूरत कितनी सुन्दर।।मिट्टी के खिलौने देखो,बनते हैं कच्ची मिट्टी से।कच्ची मिट्टी को सांचे में,ढाल के मूरत ये मिट्टी से।
ये देश हमारी जान है, ईमान है।आन बान और शान है, अभिमान है।।स्वभाव है इसके अलग- अलग, शान है।हमें वतन पे मर मिटना है, अभिमान है।।तरह तरह के फूल खिले हैं, चमन एक है।अनेकता में एकता सिखाता, भाषाएं अनेक है।
ऐ वीरों लड़ाई के बाद,कैसे करूं तेरा शुक्रिया,हर उस क्षण का शुक्रिया,जो तूने सौंप दिया देश को,हर एक स्वांस का शुक्रिया,जो तूने दिया देश को,थामा है तुमने,एक दूजे का हाथ,हाथ को थामने का शुक्रिया,जो एकता
रिमझिम है तो सावन गायब,बच्चे हैं तो बचपन गायब।क्या हो गई तासीर खुदाया,अपने है तो अपनापन गायब।।चक्रव्यूह रचना अपनों से सीखो,अपने ही अपनों को सिखाते।विश्वास न करना तुम कभी,अपने ही ये तुमको सिखाते।।संभाल
एक मासूम जान की कीमत,समझ नहीं सकता है कोई।मां ही समझ सकती है उसे,और नहीं समझ सकता कोई।।मासूम का रुदन उस दर्द को,मां ही है समझ सकती।करुणा भरी पुकार उसकी,मां ही तो फिर समझती।।एक मासूम जान उसकी,मां के आं
कल बुरा था ऐ मुसाफिर,आज अच्छा हो जाएगा।वक़्त ही तो थमा मुसाफिर,रोके से क्या रुक जाएगा।।सफर की शुरुआत जो की,रास्तों से वो नहीं घबराते हैं।हौसला रखो बढ़ाने का कदम,मुसाफिर रास्ते खुद बनाते हैं।।रास्ता ऐ
जिंदगी पर किताब लिखेखुशियों के पल नायब लिखे या अपनो से मिले दर्द बेहिसाब लिखेइश्क मुहब्बत दिल बहलाने की बातें लिखेचाहतों को प्यार राहतें जनाब लिखेइश्क की राहों में हुए तबाहबिखरे सारे ख्वाब ल
आकाश से परे एक दुनिया,सजाया देश की बेटियों ने।शेरनियों की भांति गर्जना की,मान बढ़ाया देश की बेटियों ने।।धरती का कलेजा फटा होगा,रोते हुए खुशी से झूमता होगा।आंसूओं से गला रूंधा होगा,रोते हुए गले लगाया त
समय और शब्द का तुम,न लापरवाही से करो प्रयोग।वरना दुनिया की भीड़ में,होगा तुम्हारी ही उपयोग।।गलत बोलने पर कभी,वह वापस नहीं आता।शब्द तीर की तरह होता,कमान में वापस नहीं आता।।जो कल समय था आज नहीं,आज के पल
जिन्दगी क्या है , कभी धूप तो कभी छांव कभी दौड़ती सी लगे तो कभी लगे ठहराव कभी दुखों की गठरी, कभी सुखों का समन्दर एक ही नियम है , जो जीता वही है सिकन्दर गमों के पहाड़ हैं, ढेरों
टिमटिमाते सपनों का,आना और जाना।रातों को भी नींद में,उठ कर बैठ जाना।।पूरे होंगे सपने सारे,ये आशा बनाए रखना।निराशा का तिल भर भी,न छू कर भी जाना।।कहते हैं कि दुनिया में,उम्मीद पे कायम है।फिर भी सपने पूरे