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जीवन

hindi articles, stories and books related to jivan


मैं अपने देश का हमेशा,दिल से सम्मान करती हूं।छाया रहे आलोक हमेशा,दिल से अरमान रखती हूं।।शान हमारा है ये तिरंगा,तीन रंग है ये दर्शाता।किरणें बिखेरता केसरिया,सफेद रंग सादगी दर्शाता।।तिरंगे का अपना रंग ह

मनभावन सावन की फुहार,रिमझिम रिमझिम बरसे बूंदे।पपीहा भी गाए राग मल्हार,छाए बादल आह्लादित बूंदे।।मनभावन सावन की फुहार,मंद मंद चले पवन की बयार।रिमझिम रिमझिम बरसे मेघा,घुमड़ घुमड़ कर छाए बादर।।मनभावन

जी करे कभी ख़त बन जाऊँ मन के गर्भ की बात बताँऊ, औरों को तो बहुत बताया, आज खुद को खुद की बात सुनाऊँ, मोह की सुई बाधुंँ प्रेम की डोर से, शब्द शब्द के मोती पीरोंऊँ, गुथूं सपनो की एक माला, और उ

सतरंगी आसमान बिखर गया,अपने में समाहित सातों रंग।सतरंगी आसमान में उड़ने को,बेताब पंछी उन्मुक्त गगन को।।बिखरे रंग सतरंगी आसमान में,उड़ कर अपनी छटा बिखेरते।उड़ते बादल आह्लादित होते,पुलकित हो फिर मन मुस्क

विचलित मन काहे को तू,क्यों इतना अधीर हुआ रे।मन की शांति भंग हुई,काहे मन तू अधीर हुआ रे।।सोच में शामिल है तू,है शामिल तू विचारों में।दूर नहीं एक पल भी,बेचैन हमेशा विचारों में।।उत्कृष्टता की झलक दिखा,वि

मौन जितना गहरा होगा,स्पष्टता परमात्मा की उतनी।सुनना अगर आवाज़ चाहते,सागर में मोती हो जितनी।।मौन रहो और ध्यान करो,परमात्मा की आवाज़ सुनो।ध्यान करो एकाग्र रहो,अंतरात्मा की आवाज सुनो।।मौन रहकर हृदय से जु

दीप तले अंधेरा होता है,जब दीप प्रज्वलित होता है।चहुंओर प्रकाश फैला कर,खुद ही जलता रहता है।।दीप तले अंधेरा लेकिन,चहुंओर रौशनी भर देता है।दीप तले पतंगा आए तो,जल कर वह मर जाता है।।दीप तले अंधेरा है किन्त

जिज्ञासा एक आशा है,जागरूकता जो जगाती।कुछ जानने को उत्सुक,मन में आस वह जगाती।।उत्सुक और बेचैन मन,पिपासा को वह जगाता।जिज्ञासा है एक आशा,बेचैन मन को शांत करता।।जब तक जान न लेता,तब तक शांत न होता।जिज्ञासा

समुद्र की लहरें किनारे पे,ये आती जाती रहती हैं।ऊंचे वेग से उठती गिरती,उद्विग्नता मन में जगाती हैं।।समुद की लहरें उफनती है,संग समुद्री जीव आते हैं।किनारे पर ठहर कर कैसे,संसार की माया देखते हैं।।समुद्र

सुमिरन करो प्रभु को,लगे नश्वर जग संसार।माया मोह के छूटे बंधन,लगे नश्वर जग संसार।।जिंदगी है दो पल की,सिर्फ नाम प्रभु का लीजै।पार लगेगी नैया तुम्हरी,इक बार सुमिरन कर लीजै।।आया है रे तू मनवा,देखन तू

ज्ञानी व्यक्ति के ज्ञान से,अज्ञानी व्यक्ति अर्जित करै।अज्ञानी व्यक्ति के अज्ञान को,कोऊ व्यक्ति अर्जित न करै।।जीवन के अन्धकार दूर होत,ज्ञानी व्यक्ति से ज्ञानार्जन होत।अज्ञानी व्यक्ति भी घबरात ,जब उहे ज

नारी स्वयं शक्ति होती है ,होते हैं इसके विभिन्न रूप।जरूरत खुद को जानने की,होते क्या है इसके ये रूप।।नारी दुर्गा नारी ही शक्ति,नारी शक्ति अपरम्पार है।खुद को जाने और पहचाने,जीवन मंत्र का ये सार है।।नारी

कर्म प्रधान है राज्य हमारा,राजा - रंक जीवन के पर्याय।धर्म पर न आए संकट कभी,जीवन का है यही उपाय।।संपत्ति, उपलब्धि, सफलता,यही तो है मूलभूत कारण।कर्म, धर्म और सफलता,जीवन के ये है उदाहरण।।अहंकार से नहीं ब

पत्थर की तरह से ही,जैसे हो मजबूत इरादे।कभी न तोड़ना इनको,करो ये हमसे वादे।।पत्थर को तोड़ना भी,नहीं होता है आसान।वार गर बार बार करोगे,तोड़ना होता है आसान।।पत्थर में भी होता,है ये भगवान हमारा।मानो

अनुभव नहीं कोई कल्पना,कर्म से ही यह आता है।प्रयास विफल नहीं होता,अनुभव तो जरूर मिलता है।।कर्म में हो समाहित जब,अनुभव का ज्ञान मिलता।प्रयास से अनुभव हासिल,स्वीकार ये खुद को होता।।कर्म भूमि मनुष्य के हा

व्यर्थ दो चीजें,नहीं होनी चाहिए,अन्न के कण,और आनंद के क्षण,मुस्कराते रहो,कभी अपने लिए,कभी अपनों के लिए।फूलों में भी,पाए जाते हैं कीड़े,पत्थरों में भी,पाए जाते हैं हीरे,मुस्कराते रहो,कभी अपने लिए,कभी अ

अच्छी भूमिका और अच्छे लक्ष्य।यही तो हमारे जीवन का उद्देश्य।।मुस्कराने की वजह जरूरी नहीं।बात बात पर मुस्कुराना ठीक नहीं।।मुलाकात की भूमिका भले ही न हो।हमसे जरूरी नहीं कि मुलाकात ही हो।।दिल में वही वही

दुनिया की भीड़ में अकेला,राही अपनी मंजिल तलाशता।भटक रहा है इधर - उधर,राह अपनी हर पल बदलता।।दुनिया की भीड़ में अकेला,खो न जाए कहीं पर।साथ ढूंढता है वो किसी का,साथ मिल जाए कहीं पर।।दुनिया की भीड़ में अक

फूलों की बहार छाई,जुड़ी मिट्टी से होती है।शाखा कितनी ऊंची होजड़े मिट्टी में होती है।।फूलों का खिलना भी,मन का हो मुस्काना।फूल खिलते हैं ऐसे,देते चमन को नजराना।।इंसा में संस्कार पनपते,जब जुड़े हो वो मिट

मंजिले तय करते हैं हम,रास्तों से शुरुआत होती है।डगर टेड़ा ही सही तो क्या,रास्तों से शुरुआत होती है।।रास्ता पथरीला ही सही,बढ़ते चलो उस डगर पे।रुकावटें हटाते चलो तुम,बढ़ते चलो उस डगर पे।।मंजिल का पता नह

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