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कई नगर थे जो हमें

8 जुलाई 2022

14 बार देखा गया 14

कई नगर थे

जो हमें देखने थे।

जिन के बारे में पहले पुस्तकों में पढ़ कर

उन्हें परिचित बना लिया था

और फिर अखबारों में पढ़ कर

जिन से फिर अनजान हो गये थे।

पर वे सब शहर-

सुन्दर, मनोरम, पहचाने

पराये, आतंक-भरे

रात की उड़ान में

अनदेखे पार हो गये।

कहाँ हैं वे नगर? वे हैं भी?

हवाई अड्डों से निकलते यात्रियों के चेहरों में

उन की छायाएँ हैं :

यह : जिस के टोप और अखबार के बीच में भवें दीखती हैं-

इस की आँखों में एक नगर की मुर्दा आबादी है;

यह-जो अनिच्छुक धीरे हाथों से

अपना झोला

दिखाने के लिए खोल रहा है,

उस की उँगलियों के गट्टों में

और एक नगर के खँडहर हैं।

और यह-जिस की आँखें

सब की आँखों से टकराती हैं, पर जिस की दीठ

किसी से मिलती नहीं, उस का चेहरा

और एक क़िलेबन्द शहर का पहरे-घिरा परकोटा है।

नगर वे हैं, पर हम

अपनी रात की उड़ान में

सब पार कर आये हैं

एक जगमग अड्डे से

और एक जगमग अड्डे तक।

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रचनाएँ
पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ
5.0
अज्ञेय जी का पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 में उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया के कुशीनगर में हुआ। इस कविता का संदेश है कि व्यक्ति और समाज एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए व्यक्ति का गुण उसका कौशल उसकी रचनात्मकता समाज के काम आनी चाहिए। जिस तरह एक दीपक के लिए अकेले जलने से बेहतर है, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ। उसी के लिए स्वर-तार चुनता हूँ। ताना : ताना मज़बूत चाहिए : कहाँ से मिलेगा? जो उसे रसों में बोर कर रंजित करेगा, तभी तो वह खिलेगा। इसलिए आत्म विसर्जन के जरिये वह स्वयं को परम सत्ता से जोड़ देता है। यही पूरी कविता की मूल संवेदना है
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एक सन्नाटा बुनता हूँ

8 जुलाई 2022
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पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ। उसी के लिए स्वर-तार चुनता हूँ। ताना : ताना मज़बूत चाहिए : कहाँ से मिलेगा? पर कोई है जो उसे बदल देगा, जो उसे रसों में बोर कर रंजित करेगा, तभी तो वह खिलेगा। मैं एक गाढ़े

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निमाड़: चैत

8 जुलाई 2022
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(1) पेड़ अपनी-अपनी छाया को आतप से ओट देते चुप-चाप खड़े हैं। तपती हवा उन के पत्ते झराती जाती है। (2) छाया को झरते पत्ते नहीं ढँकते, पत्तों को ही छाया छा लेती है।

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खिसक गयी है धूप

8 जुलाई 2022
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पैताने से धीरे-धीरे खिसक गयी है धूप। सिरहाने रखे हैं पीले गुलाब। क्या नहीं तुम्हें भी दिखा इनका जोड़ दर्द तुम में भी उभरा?

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खुले में खड़ा पेड़

8 जुलाई 2022
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भूल कर सवेरे देहात की सैर करने गया था वहाँ मैं ने देखा खुले में खड़ा पेड़। और लौट कर मैं ने घरवाली को डाँटा है, बच्ची को पीटा है : दफ्तर पहुँच कर बॉस पर कुढ़ूँगा और बड़े बॉस को भिचे दाँतों

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तुम सोए

8 जुलाई 2022
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तुम सोये नींद में अधमुँदे हाथ सहसा हुए कँपने को कँपने में और जकड़े मानो किसी अपने को पकड़े कौन दीखा सपने में कहाँ खोये तुम किस के साथ अधमुँदे हाथ नींद में तुम सोये।

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मेज़ के आर-पार

8 जुलाई 2022
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मेज़ के आर-पार आमने-सामने हम बैठे हैं हमारी आँखों में लिहाज है हमारी बातों में निहोरे हमारे (अलग-अलग) विचारों में एक-दूसरे को कष्ट न पहुँचाने की अकथित व्यग्रता। अभी बैरा के आने पर सूची में

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हाँ, दोस्त

8 जुलाई 2022
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हाँ, दोस्त, तुम ने पहाड़ की पगडंडी चुनी और मैं ने सागर की लहर। पहाड़ की पगडंडी  सँकरी, पथरीली, ढाँटी,पर स्पष्ट लक्ष्य की ओर जाती हुई : मातबर और भरोसेदार पगडंडी जो एक दिन निश्चय तुम्हें पड़ाव प

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कई नगर थे जो हमें

8 जुलाई 2022
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कई नगर थे जो हमें देखने थे। जिन के बारे में पहले पुस्तकों में पढ़ कर उन्हें परिचित बना लिया था और फिर अखबारों में पढ़ कर जिन से फिर अनजान हो गये थे। पर वे सब शहर- सुन्दर, मनोरम, पहचाने पराये,

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कोई हैं जो

8 जुलाई 2022
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कोई हैं जो अतीत में जीते हैं  भाग्यवान् हैं वे, क्यों कि उन्हें कभी कुछ नहीं होगा। कोई हैं जो भविष्य में जीते हैं  भाग्वान् हैं वे, क्यों कि वे आगे देखते ही चुक जाएँगे। कोई हैं जो पर जो इस खोज

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प्राचीन ग्रंथागार में

8 जुलाई 2022
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हाँ, इसे मैं छू सकता हूँ-उस की लिखावट को  उस को मैं छू नहीं सकता। वह लिख कर चला गया है। यहाँ, पुस्तकालय के इस तिजोरी-बन्द धुँधले सन्नाटे में मैं उस की लिपि की छुअन से रोमांचित हो सकता हूँ वह-वह चल

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हम घूम आए शहर

8 जुलाई 2022
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गाड़ी ठहराने के लिए जगह खोजते-खोजते हम घूम आये शहर  बीमे की क़िस्तें चुकाते बीत गयी ज़िन्दगी। अतीत से कट गये चढ़ा कर फूल चन्दन। अब जिस में जीते हैं उस से मिले तो क्या मिले? खीसें निपोरता किता

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घर की याद

8 जुलाई 2022
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क्या हुआ अगर किसी को घर की याद आती है और वह उसे देश कह कर देशप्रेमी हो जाता है? या कि उसे लोगों के चेहरों के साथ बाँध कर निजी चेहरे हों तो (गीति-काव्यकार?) या कि (जिस-तिस के हों तो)-चलो-मानववादी?

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शिशिर का भोर

8 जुलाई 2022
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उतना-सा प्रकाश कि अँधेरा दीखने लगे, उतनी-सी वर्षा कि सन्नाटा सुनाई दे जाए; उतना-सा दर्द याद आए कि भूल गया हूँ, भूल गया हूँ हाइडेलबर्ग

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समाधि-लेख / पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ

8 जुलाई 2022
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 एक समुद्र, एक हवा, एक नाव, एक आकांक्षा, एक याद  इन्हीं के लाये मैं यहाँ आया। यानी तुम्हारे। पर तुम कहाँ हो? कौन-से किनारे?

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मृत्युर्धावति पंचमः

8 जुलाई 2022
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क्या डर ही बसा हुआ है सब में डर ही से भागता है पाँचवाँ सवार? और उन डरे हुओं के डर से भाग रहे हैं सब मानते हुए अपने को अशरण, बे-सहार  क्या कोई नहीं है द्वार इस भय के पार? इससे क्या नहीं है नि

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देखिए न मेरी कारगुजारी

8 जुलाई 2022
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अब देखिए न मेरी कारगुज़ारी कि मैं मँगनी के घोड़े पर सवारी कर ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान और सेठ साहब के लिए पंसार-हट्टे की हर दूकान से किराया वसूल कर लाया हूँ थैली वाले को थैली तोड़

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दुःसाहसी हेमंती फूल

8 जुलाई 2022
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लोहे और कंकरीट के जाल के बीच पत्तियाँ रंग बदल रही हैं। एक दुःसाहसी हेमन्ती फूल खिला हुआ है। मेरा युद्ध प्रकृति की सृष्टियों से नहीं मानव की अपसृष्टियों से है। शैतान केवल शैतान से लड़ सकता है।

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हरा अंधकार

8 जुलाई 2022
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रूपाकार सब अन्धकार में हैं  प्रकाश की सुरंग में मैं उन्हें बेधता चला जाता हूँ, उन्हें पकड़ नहीं पाता। मेरी चेतना में इस की पहचान है कि अन्धकार भी एक चरम रूपाकार है, सत्य का, यथार्थ का विस्तार

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विदेश में कमरे

8 जुलाई 2022
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 वहाँ विदेशों में कई बार कई कमरे मैं ने छोड़े हैं जिस में छोड़ते समय लौट कर देखा है कि सब कुछ ज्यों-का-त्यों है न!-यानी कि कहीं कोई छाप बची तो नहीं रह गयी है जो मेरी है जिसे कि अगला कमरेदार

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वह नकारता रहे

8 जुलाई 2022
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वे कहते गये हाँ, हाँ, और फूल-हार उन पर चढ़ते गये; पाँवड़ों और वन्दनवारों की सुरंग-सी में वे निर्द्वन्द्व बढ़ते गये। सुखी रहें वे अपनी हाँ में। लेकिन जिस का नकार उस की नियति है वह भी नकारता र

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बलि पुरुष

8 जुलाई 2022
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ख़ून के धब्बों से अँतराते हुए पैरों के सम, निधड़क छापे। भीड़ की आँखों में बरसती घृणा के पार जाते हुए उस के प्राण क्यों नहीं काँपे? सभी पहचानते थे कि वह निरीह है, अकेला है, अन्तर्मुखी है  पर क्

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कभी-अब

8 जुलाई 2022
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कभी ऐसा था कि वे वहाँ ऊँचे खम्भों पर अकेले थे। हम यहाँ ठट्ठ के ठट्ठ बोलते थे जैकारे। अब ऐसा है कि वहाँ एक बड़े चबूतरे पर भीड़ है और हम यहाँ ठट्ठ के ठट्ठ अकेले हैं।

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उनके घुड़सवार

8 जुलाई 2022
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उन के घुड़सवार हम ने घोड़ों पर से उतार लिये। हमारे युग में घुड़सवारी का चलन नहीं रहा। (घोड़ों का रातिब हमीं को खाने को मिलता रहा।) उन की मूर्तियाँ गला दी गयीं  धातु क्या हुआ, पता नहीं। उस के तो

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हीरो

8 जुलाई 2022
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सिर से कंधों तक ढँके हुए वे कहते रहे कि पीठ नहीं दिखाएंगे और हम उन्हें सराहते रहे। पर जब गिरने पर उनके नकाब उल्टे तो उनके चेहरे नहीं थे।

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जो पुल बनाएँगे

8 जुलाई 2022
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जो पुल बनाएँगे वे अनिवार्यत पीछे रह जाएँगे। सेनाएँ हो जाएँगी पार मारे जाएँगे रावण जयी होंगे राम; जो निर्माता रहे इतिहास में बन्दर कहलाएँगे।

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बाबू ने कहा

8 जुलाई 2022
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बाबू ने कहा : विदेश जाना तो और भी करना सो करना गौ-मांस मत खाना। अन्तिम पद निषेध का था, स्वाभाविक था उस का मन से उतरना  बाक़ी बापू की मान कर करते रहे और सब करना।

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नन्दा देवी-1

8 जुलाई 2022
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 ऊपर तुम, नन्दा! नीचे तरु-रेखा से मिलती हरियाली पर बिखरे रेवड को दुलार से टेरती-सी गड़रिये की बाँसुरी की तान  और भी नीचे कट गिरे वन की चिरी पट्टियों के बीच से नये खनि-यन्त्र की भट्ठी से उठे ध

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नन्दा देवी-2

8 जुलाई 2022
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 वहाँ दूर शहर में बड़ी भारी सरकार है कल की समृद्धि की योजना का फैला कारोबार है, और यहाँ इस पर्वती गाँव में छोटी-से-छोटी चीज़ की भी दरकार है, आज की भूख-बेबसी की बेमुरव्वत मार है। कल के लिए हमे

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नन्दा देवी-3

8 जुलाई 2022
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तुम वहाँ हो मन्दिर तुम्हारा यहाँ है। और हम हमारे हाथ, हमारी सुमिरनी यहाँ है और हमारा मन वह कहाँ है?

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नन्दा देवी-4

8 जुलाई 2022
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वह दूर शिखर यह सम्मुख सरसी वहाँ दल के दल बादल यहाँ सिहरते कमल वह तुम। मैं यह मैं। तुम यह एक मेघ की बढ़ती लेखा आप्त सकल अनुराग, व्यक्त; वह हटती धुँधलाती क्षिति-रेखा  सन्धि-सन्धि में बसा वि

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नन्दा देवी-5

8 जुलाई 2022
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समस्या बूढ़ी हड्डियों की नहीं बूढ़े स्नायु-जाल की है। हड्डियाँ चटक जाएँ तो जाएँ मगर चलते-चलते; देह जब गिरे तो गिरे अपनी गति से भीतर ही भीतर गलते-गलते। कैसे यह स्नायु-जाल उसे चलाता जाये आयु के

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नन्दा देवी-6

8 जुलाई 2022
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नन्दा, बीस-तीस-पचास वर्षों में तुम्हारी वन-राजियों की लुगदी बना कर हम उस पर अखबार छाप चुके होंगे तुम्हारे सन्नाटे को चींथ रहे होंगे हमारे धुँधआते शक्तिमान ट्रक, तुम्हारे झरने-सोते सूख चुके होंग

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नन्दा देवी-7

8 जुलाई 2022
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पुआल के घेरदार घाघरे झूल गये पेड़ों पर, घास के गट्ठे लादे आती हैं वन-कन्याएँ पैर साधे मेड़ों पर। चला चल डगर पर। नन्दा को निहारते। तुड़ चुके सेब, धान गया खलिहानों में, सुन पड़ती है आस की गमक

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नन्दा देवी-8

8 जुलाई 2022
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यह भी तो एक सुख है (अपने ढंग का क्रियाशील) कि चुप निहारा करूँ तुम्हें धीरे-धीरे खुलते! तुम्हारी भुजा को बादलों के उबटन से तुम्हारे बदन को हिम-नवनीत से तुम्हारे विशद वक्ष को धूप की धाराओं से धुल

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नन्दा देवी-9

8 जुलाई 2022
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कितनी जल्दी तुम उझकीं झिझकीं ओट हो गईं, नन्दा ! उतने ही में बीन ले गईं धूप-कुन्दन की अन्तिम कनिका देवदारु के तनों के बीच फिर तन गई धुन्ध की झीनी यवनिका।

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नन्दा देवी-10

8 जुलाई 2022
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सीधी जाती डगर थी क्यों एकाएक दो में बँट गयी? एक ओर पियराते पाकड़, धूप, दूर गाँव की झलक, खगों की सीटियाँ बाँसुरी में न जाने किस सपनों की दुनिया की ललक दूसरी ओर बाँज की काई-लदी बाँहों की घनी छाँ

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नन्दा देवी-11

8 जुलाई 2022
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 कमल खिला दो कुमुद मुँदे नाल लहरायी सिहरती झील गहरायी कुहासा घिर गया। हंस ने डैने कुरेदे ग्रीवा झुला पल-भर को निहारा विलगता फिर तिर गया।

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नन्दा देवी-12

8 जुलाई 2022
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 ललछौंहे पाँकड़ के नीचे से गुज़रती डगर पर तुम्हारी देह-धार लहर गयी धूप की कूची ने सभी कुछ को सुनहली प्रभा से घेर दिया। देख-देख संसृति एक पल-भर ठहर गयी। फिर सूरज कहीं ढलक गया, साँझ ने धुन्ध-धू

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नन्दा देवी-13

8 जुलाई 2022
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यूथ से निकल कर घनी वनराजियों का आश्रय छोड़ कर गजराज पर्वत की ओर दौड़ा है  पर्वत चढ़ेगा। कोई प्रयोजन नहीं है पर्वत पर पर गजराज पर्वत चढ़ेगा। पिछड़ता हुआ यूथ बिछुड़ता हुआ मुड़ता हुआ जान गया है क

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नन्दा देवी-14

8 जुलाई 2022
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निचले हर शिखर पर देवल  ऊपर निराकार तुम केवल.

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नन्दा देवी-15

8 जुलाई 2022
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 रात में मेरे भीतर सागर उमड़ा और बोला : तुम कौन हो? तुम क्यों समझते हो कि तुम हो? देखो, मैं हूँ, मैं हूँ, केवल मैं हूँ. मैं खो गया सागर उमड़ता रहा उस की उमड़न में दबा मैं सो गया सोता रहा और

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वन-झरने की धार

8 जुलाई 2022
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 मुड़ी डगर मैं ठिठक गया। वन-झरने की धार साल के पत्ते पर से झरती रही। मैं ने हाथ पसार दिये, वह शीतलता चमकीली मेरी अँजुरी भरती रही। गिरती बिखरती एक कल-कल करती रही  भूल गया मैं क्लान्ति, तृषा,

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दिन तेरा

8 जुलाई 2022
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     दिन तेरा      मैं दिन का      पल-छिन मेरे तू धारा      मैं तिनका भोर सवेरे      प्रकाश ने टेरा दिन तेरा      तू मेरा..

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धार पर

8 जुलाई 2022
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हाँ, हूँ तो, मैं धार पर हूँ      गिर सकता हूँ।      पर तुम-तुम पर्वत हो कि चट्टान हो      कि नदी हो कि सागर हो      (मैं धार पर हूँ)      तुम आँधी हो कि उजाला हो      कि गर्त्त हो कि तीखी शराब

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जियो मेरे

8 जुलाई 2022
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जियो, मेरे आज़ाद देश की शानदार इमारतो जिन की साहिबी टोपनुमा छतों पर गौरव ध्वज फहराता है लेकिन जिन के शौचालयों में व्यवस्था नहीं है कि निवृत्त हो कर हाथ धो सकें! (पुरखे तो हाथ धोते थे न? आज़ादी से

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चले चलो, ऊधो

8 जुलाई 2022
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अब चले चलो, ऊधो! इहाँ न मिलिहैं माधो! अच्छा है इस वृन्दावन-नन्दग्राम-मथुरा में मरना और उधर, वहाँ दूर द्वारका पार फिर उभरना दम साधो और गहरे गमीर में कूदो। चले चलो, ऊधो!

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विदा का क्षण

8 जुलाई 2022
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नहीं! विदा का क्षण समझ में नहीं आता। कहने के लिए बोल नहीं मिलते। और बोल नहीं हैं तो कैसे कहूँ कि सोच कुछ सकता हूँ? केवल एक अन्धी काली घुमड़न जो बरस कर सरसा सकती है सब डुबा सकती है या जो बहिया

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वीणा

8 जुलाई 2022
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 पहले उस ने कहा देखो-देखो आकाश वह प्रकाश का सागर अछोर और मैं ने देखा तिरते पंछी फैलाये डैने मानो नावें पसारे पाल जातीं दूर अजाने किनारे की ओर फिर उस ने कहा देखो-देखो वह विस्तार हरियाली का और मैं न

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तुम्हारे गण

8 जुलाई 2022
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 तुम्हारा घाम नया अंकुर हरियाता है तुम्हारा जल पनपाता है तुम्हारा मृग चौकड़ियाँ भरता आता है चर जाता है। तुम्हारा कवि जो देख रहा है मुग्ध गाता है, गाता है! हँसती रहने देना जब आवे दिन तब देह बुझे

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हँसती रहने देना

8 जुलाई 2022
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जब आवे दिन तब देह बुझे या टूटे इन आँखों को हँसती रहने देना! हाथों ने बहुत अनर्थ किये पग ठौर-कुठौर चले मन के आगे भी खोटे लक्ष्य रहे वाणी ने (जाने अनजाने) सौ झूठ कहे पर आँखों ने हार, दुःख,

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बर्फ़ की तहों के नीचे

8 जुलाई 2022
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बर्फ़ की तहों के बहुत नीचे से सुना मैं ने उस ने कहा : यहीं गहरे में अदृश्य गरमाई है तभी सभी कुछ पिघलता जाता है देखो न, यह मैं बहा! मेरी भी, मेरी भी शिलित अस्ति के भीतर कहीं तुम ने मुझे लगातार पि

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मथो

8 जुलाई 2022
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 यह अन्तर मन यह बाहर मन यह बीच कलह की -नहीं, जड़ नहीं!-मथानी। मथो, मथो, ओ मनो मथो इस होने के सागर को जो बँट चला आज देवों-असुरों के बीच! अब लो निकाल जो निकले गागर-भर! आवे जब तर तै कर लेना क्

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उत्सव पिंगला

8 जुलाई 2022
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लहरीला पिघला सोना झरने पर तिपहर की धूप मुगा रेशम के लच्छे डाल बादाम की फूलों-लदी बसन्ती बयार में। पारदर्श पलकें। और आँखें? सब-कुछ उन में कहा जाता है वे कुछ नहीं बतातीं। ‘आत्मा की खिड़कियाँ।’

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होमोहाइडेल वर्गेसिस

8 जुलाई 2022
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यहाँ जो खोपड़ी मिली थी मेरी तो नहीं ही थी, निश्चय ही मेरे किसी पूर्वज की भी नहीं थी। हम क्या थे, कौन हैं यह हम पाँच महीने पाँच बरस, पचीस बरस बाद ही निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते पर हम कौन क्या नहीं

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चुप-चाप नदी

8 जुलाई 2022
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चुप-चाप सरकती है नदी, चुप-चाप झरती है बरफ़ नदी के जल में गल जाती है। लटकी हैं छायाएँ निष्कम्प पानी में। और एक मेरे भीतर नदी है स्मृतियों की जो निरन्तर टकराती है मेरी दुरन्त वासनाओं की चट्टान

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वसन्त आया तो है

8 जुलाई 2022
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 वसन्त आया तो है पर बहुत दबे-पाँव यहाँ शहर में हम ने उस की पहचान खो दी है उसने हमें चौंकाया नहीं। पर घाटी की दुःखी कठैठी ढाल पर कई सूखी नामहीन बूटियाँ रहीं जिन्हें उसने भुलाया नहीं। सब एकाएक ए

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झाँकी

8 जुलाई 2022
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ओझल होती-सी मुड़-भर कर सब कह गयी तुम्हारी छाया। मुझ को ही सोच-भरे यों खड़े-खड़े जो मुझ में उमड़ा वह कहना नहीं आया।

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संभावनाएँ

8 जुलाई 2022
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अब आप ही सोचिए कितनी सम्भावनाएँ हैं -कि मैं आप पर हँसूँ और आप मुझे पागल करार दे दें; -या कि आप मुझ पर हँसें और आप ही मुझे पागल करार दे दें; -या आप को कोई बताये कि मुझे पागल करार दिया गया और आप

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नाच

8 जुलाई 2022
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एक तनी हुई रस्सी है जिस पर मैं नाचता हूँ। जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ वह दो खम्भों के बीच है। रस्सी पर मैं जो नाचता हूँ वह एक खम्भे से दूसरे खम्भे तक का नाच है। दो खम्भों के बीच जिस तनी हु

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अब भी यही सच है

8 जुलाई 2022
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 अब भी यही सच है कि अभी एक गीत मुझे और लिखना है। अभी उस के बोल नहीं हैं मेरे पास पर एकाएक कभी लगता है कि मेरे भीतर कुछ जगता है और जैसे किवाड़ खटखटाता है और उस के साथ यह विश्वास पक्का हो आता है

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सीमांत पर

8 जुलाई 2022
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चेहर हो गये हैं यन्त्र सभ्य। मँजे चमकते हैं बोल कर छिपाते हैं। पर हाथ अभी वनैले हैं उन के गट्टे चुप भी सच सब बताते हैं। बस कभी-परम दुर्लभ! आँसू : वे ही बचे हैं जो कभी गाते हैं।

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क्लाइस्ट की समाधि पर

8 जुलाई 2022
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 एक ढंग है जीने का एक मरने का और एक ये दोनों किनारे पार करने का। समस्या बीच में है। जिजीविषा। एक धन। एक नदी। एक असाध्य रोग। एक खेल। एक लम्बा नशा जिसमें एक किनारा दो में बँटता है, दो किनारे ए

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ना जाने कोई भेष

8 जुलाई 2022
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खेतों में मद और मूसलों की दोहरी मार से त्रस्त-ध्वस्त बिछे थे यादव-वीर। सूर्य अस्त, चन्द्र अस्त, वनों के महावृक्षों के बीच बढ़ा -गुफा में फैलते सीरे-सा! पसरा था अन्धकार! और मैं था कि सजग, सावधान

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सड़क के किनारे गुलाब

8 जुलाई 2022
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बेमंज़िल सड़क के किनारे एकाएक गुलाब की झाड़ी। व्याख्या नहीं, सफाई नहीं-निपट गुलाब। बेमंजिल शनिवारी सैरगाड़ी में मैं। कोई अर्थ नहीं, सम्बन्ध नहीं-निपट मैं। कितनी निर्व्याज, अजटिल होती हैं स्थितिय

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महावृक्ष के नीचे (पहला वाचन)

8 जुलाई 2022
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जंगल में खड़े हो? महारूख के बराबर थोड़ी देर खड़े रहो महारूख ले लेगा तुम्हारी नाप। लेने दो। उसे वह देगा तुम्हारे मन पर छाप। देने दो। जंगल में चले हो? चलो चलते रहो। महारूख के साथ अपना नाता बदलत

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महावृक्ष के नीचे (दूसरा वाचन)

8 जुलाई 2022
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वन में महावृक्ष के नीचे खड़े मैं ने सुनी अपने दिल की धड़कन। फिर मैं चल पड़ा। पेड़ वहीं धारा की कोहनी से घिरा रह गया खड़ा। जीवन : वह धनी है, धुनी है अपने अनुपात गढ़ता है। हम : हमारे बीच जो गुनी

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वन-मिथक

8 जुलाई 2022
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महावन में बिखरे हैं जाति-धन पुराण। सीमा-शिखरों के गढ़ उन्हें मढ़ते रहे हैं ऐश्वर्य से और अभी पेड़ हैं स्वयं ध्वस्त गौरव-अस्त। फिर भी, फिर भी नगर-घिरी वन-सीमा के ऊपर मँडराते रहते हैं आदिम प्राण.

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शरद विलायती

8 जुलाई 2022
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आया है शरद विलायती क्या बना है! रंगीन फतुही काली जुर्राबें, हवा में खुनकी मिज़ाज में तुनकी दिल में चाहे जाती धूप की कसक पर चाल में विजेता की ठसक हम जान गये यह सब सुनहली शराबें पीने का बहाना है!

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तीसरा चरण

8 जुलाई 2022
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फूली डालों के चामर से सहलाये हुए नदी के अदृश्य गति गहराते पवित्र पानी को फिर भँवराते जा रहे हैं नये जवानों के शोर-भरे जल-खेल। कोई दूसरा ही किनारा उजलाते होंगे अवहेलित लीला-हंस! फलेंगे तो अलूचे

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सभी से मैं ने विदा ले ली

8 जुलाई 2022
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सभी से मैं ने विदा ले ली  घर से, नदी के हरे कूल से, इठलाती पगडंडी से पीले वसन्त के फूलों से पुल के नीचे खेलती डाल की छायाओं के जाल से। ब से मैं ने विदा ले ली  एक उसी के सामने मुँह खोला भी, पर

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जाड़ों में

8 जुलाई 2022
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लोग बहुत पास आ गए हैं। पेड़ दूर हटते हुए कुहासे में खो गए हैं और पंछी (जो ऋत्विक हैं) चुप लगा गए हैं।

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साल-दर-साल

8 जुलाई 2022
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 पार साल बरसात में ऊपर से नीचे तक चीरती उस पर बिजली गिरी थी पार साल बाँजों से फाँद कर वनाग्नि नीचे से ऊपर तक उस की डालें झुलसा गयी थीं। इस साल वर्षा में उसकी डालों से काही झूल आयी है। वनखंडी

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शरद तो आया

8 जुलाई 2022
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हाँ, शरद आया ऊपर खुली नीली झील तिरते बादलों के पाल। हरे हरसिंगार। तिनकों से ढले दो-चार ओस-आँसू-कन। खिली उजली धूप नीचे सिहर आया ताल। शरद तो आया : मदिर आलोक फल लाया  नहीं पर इस बार दीखे हृदय-

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नन्दा

8 जुलाई 2022
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शरद की धुन्ध बढ़ आयी है गलियारों में उजले पाँवड़े पसारती। चीड़ की पत्तियाँ। तमिया गयी हैं छोरों पर (बस, आग की फुनगी-सी पीतिमा कोरों पर) डालें मुड़-मुड़ कर ऊपर को जाती-सी हवा के झोंके साथ मंड

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झर गयी दुनिया

8 जुलाई 2022
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झर गयी है दुनिया मैं हूँ झर गया मैं तुम हो झर गये तुम प्रश्न है झर गया है प्रश्न युद्ध है झर गया युद्ध जीवन है वही दुनिया है, मैं हूँ, तुम हो, प्रश्न है, युद्ध है कविता है।

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उस से

8 जुलाई 2022
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अच्छा लगता है यों तुम्हें पीछे छोड़ जाना बँधी हुई भावना निबाहते संकल्प की स्वतन्त्रता का बहाना। अकेले श्रम साहस कर रचना में खोना विनय से लोकालय में रम जाना। अच्छा लगता है फिर बाहर छोड़ दुनिया क

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धावे

8 जुलाई 2022
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पहाड़ी की ढाल पर लाल फूला है बुरूँस, ललकारता; हर पगडंडी के किनारे कली खिली है अनार की; और यहाँ अपने ही आँगन में अनजान मुस्करा रही है यह कांचनार। दिल तो दिया-दिलाया एक ही विधाता ने  धावे मगर उस

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धूप-सनी छाया

8 जुलाई 2022
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खिड़की के आगे वह झुकी डाल-सी : पत्तों के बीच ढले ताँबे के सेब धूप में लिखे गये-से डोले; फिर वह धूप-सनी छाया चौखट के आगे से सरक गयी। चौंध लगी सीधी आँखों में।

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देहरी

8 जुलाई 2022
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मेरी आँखों ने मुझे सहलाया है जैसे शिशु अँगुलियाँ हिलगे शशे को कौतुक से मेरे हाथ तेरे हाथ खेले हैं जैसे पर्वती सोतों के आलोक के बुलबुलों-बसे पानी से रोमांचित होते मेरे ओठों ने तुझे चूमा है सिहरी

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तुम तक

8 जुलाई 2022
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तुम तक कहीं मेरा स्वर पहुँच जाय अचानक तुम एक कहीं तुम पकड़ जाओ औचक कहीं बात झर जाय मगर कहाँ! क्यों व्यर्थ हृदय यों मर जाय!

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हट जाओ

8 जुलाई 2022
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तुम चलने से पहले जान लेना चाहते हो कि हम जाना कहाँ चाहते हैं। और तुम चलने देने से पहले पूछ रहे हो क्या हमें तुम्हारा और तुम्हारा मात्र नेतृत्व स्वीकार है? और तुम हमारे चलने का मार्ग बताने का

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आतंक

8 जुलाई 2022
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ऊपर साँय-साँय बाहर कुछ सरक रहा दबे पाँव : अन्धकार में आँखों के अँगारे वह हिले वहाँ-क्या उतरा वह? रोंए सिहर रहे, ठिठुरा तन : भीतर कहीं धुकधुकी-वह-वह-क्सा पसरा वह? बढ़ता धीरे-धीरे पथराया मन साँ

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क्या करोगे

8 जुलाई 2022
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खोली को तो, चलो सोने से मढ़ लो, पर सुअर तो सुअर रहेगा उस का क्या करोगे? या फिर उसे भी मार के उस की (सोने की) प्रतिमा गढ़ लो  सजा-सँवार के बिठा दो अन्दर। खोली? अरे, कन्दरा, गुफा-मन्दर! पाँव पू

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बौद्धिक बुलाए गए

8 जुलाई 2022
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हमें कोई नहीं पहचानता था। हमारे चेहरों पर श्रद्धा थी। हम सब को भीतर बुला लिया गया। हमारे चेहरों पर श्रद्धा थी हम सब को भीतर बुला लिया गया। उस के चेहरे पर कुछ नहीं था। उस ने हम सब पर एक नज़र डाल

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प्रतीक्षा गीत

8 जुलाई 2022
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हर किसी के भीतर एक गीत सोता है जो इसी का प्रतीक्षमान होता है कि कोई उसे छू कर जगा दे जमी परतें पिघला दे और एक धार बहा दे। पर ओ मेरे प्रतीक्षित मीत प्रतीक्षा स्वयं भी तो है एक गीत जिसे मैं ने ब

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जरा व्याध

8 जुलाई 2022
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मैं पाप नहीं लाया ढो कर वन से बाहर भी पग-पग पर खाता ठोकर मैं प्रश्न-भरा अकुलाया बस-आप आया। साथ में-अर्थ लाया अव्यर्थ अर्थ की परतें। मैं-जरा व्याध मार नारायण को ले आया वैश्वानर नर! निर्जर..

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