जब काल मनुज पर छाता है।
बुद्धि -विवेक मर जाता है।।
हरिश्चंद्र जैसा सत्यवादी राजा
काल से कहां है बच पाया।
सुदामा जैसा सदपुरुष निर्धनता से
नहीं पिंड छुड़ा पाया।।
काल का वक्त जब आता है।
सब कुछ तहस- नहस कर जाता है।।
कालचक्र से प्रकोप से आज तक
कोई नहीं है बच पाया।
वक्त वक्त का दुश्मन बन गया जब
कालचक्र का पहिया घूम गया।।