नई दिल्ली : कालेधन के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवम्बर को एक ऐसा ऐतिहासिक कदम उठाया जिसके बाद यही कहा गया कि अब देश में कालाधन पूरी तरह समाप्त हो जायेगा। सरकार ने तर्क दिया कि इससे ब्लैकमनी वालों के पास पड़े 500 और 1000 के नोट रद्दी हो जायेंगे, यानी कालाधन समाप्त लेकिन इस घोषणा के महज 20 दिन बाद ही मोदी सरकार यह लड़ाई कालेधन पर कमजोर दिखाई दी। सरकार के नए नियमों के अनुसार जिन लोगों के पास अभी भी कालाधन है वह इसे 50 प्रतिशत जुर्माना देकर सफ़ेद कर सकते हैं।
अगर आपके पास ब्लैकमनी है और आप इसे डिक्लेयर नहीं करते हैं और इनकम टैक्स डिपॉर्टमेंट आपकी ब्लैकमनी पकड़ लेता है तो आपको कुल रकम का 60 फीसदी टैक्स और टैक्स पर 25 फीसदी सरचार्ज देना होगा। यह कुल मिलाकर रकम का 85 फीसदी होगा। यानी फिर भी आपके पास कुछ 15 प्रतिशत कालाधन तो आएगा ही। रेवन्यू सेक्रेटरी हंसमुख आधिया ने कहा है कि इन संशोधन के तहत कालाधन डिक्लेयर करने वालों का नाम गोपनीय रहेंगे।
नए नियमों से लगता है कि सरकार कालेधन को रद्दी होते नही देख सकी, क्योंकि जिन लोगों के पास कलाधन था और वो इसे इसे फेंक रहे थे या पीएम मोदी के शब्दों में कहें तो गंगा डाल रहे थे तो उन्होंने बड़ी गलती कर दी। इससे पहले सरकार ने कालेधन के लिए 'इनकम डिक्लेरेशन स्कीम (IDS) 30 सितंबर तक चलाई थी। सरकार ने चेतावनी दी थी कि कि यह आखिरी मौका होगा अपनी आय घोषित करने का इसके बाद कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
वैसे नोटबन्दी का फैसला सरकार ने बिना तैयारी के साथ कैसे लागू किया गया इसको 8 नवम्बर के बाद सरकार द्वारा बार बार संशोधन के लिए लाये गए उन 9 नोटिफिकेशन से भी समझा जा सकता है। नोटबंदी के फैसले पर क्रेडिट सुइस रिसर्च रिपोर्ट कहती है देश में 14.5 लाख करोड़ रुपये की करेंसी रद्दी हो चुकी है और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अब तक महज 1.5 लाख करोड़ रुपये के नोट छापे हैं। यानी 90 प्रतिशत अर्थव्यवस्था मंदी में चली गई।
सरकार को ये स्कीम क्यों लानी पड़ी
आर्थिक जानकारों की माने तो नोटबंदी के बाद सरकार ने लोगों को अपने नोट बदलने का जो समय दिया था उसमे ज्यादातर लोगों ने अपना कालाधन जनधन खातों और अन्य माध्यमों से सफ़ेद कर दिया। दो हफ़्तों में ही जनधन के खातों में 64250 करोड़ की रकम जमा हुई। इसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि जनधन खातों में जमा कालाधन केवाईसी कमियों के कारण पकड़ा जाना मुश्किल है।
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विराग गुप्ता कहते हैं कि सरकार के पास कोई ऐसा कोई कानूनी अधिकार नही है जिसमे 2.5 लाख जमा करने वाले पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती। कानूनी कारणों से ही सरकार अपने 200 प्रतिशत जुर्माने वाले फैसले से पलटी थी। बड़ी संख्या में कालाधन नष्ट भी हो रहा था। सरकार को इसका आर्थिक और राजनीति क फायदा भी शायद कम होता।
लाइन में लगने वालों का क्या ?
सरकार ने यह डिस्क्लोजर स्कीम लाकर उन कालाधन रखने वालों को एक मौका दे दिया है जिसमे उनके पास 50 प्रतिशत पैसा तो आ ही जायेगा। अब सवाल यह उठता है कि जिस कालाधन के खिलाफ लड़ाई के नाम पर सरकार ने लोगों को लाइन पर लगने के लिए मजबूर किया और कई लोगों की जाने भी गई उसका क्या होगा। लोग प्रधानमंत्री मोदी के फैसले के साथ इसलिए खड़े थे क्योंकि वह काले धन के खिलाफ थे।
इन सबके बीच कई और सवाल हैं, प्रधानमंत्री ने जब घोषणा की थी कि 30 दिसंबर के बाद पुराने नोटों में पड़ा कालाधन समाप्त हो जायेगा क्योंकि पुराने नोट रद्दी हो जायेंगे फिर आपने अब उन रद्दी हुए कागजों को ज़िंदा कर कालेधन वालों को सफ़ेद करने का मौका क्यों दिया जा रहा है । क्या इसे सरकारी मनी लॉन्ड्रिंग स्कीम कहना उचित नही होगा। अगर सरकार ने ऐसा कुछ ऐसे लोगों को देखते हुए किया है जो किसान हैं या ईमानदार हैं, फिर इस पर 50 प्रतिशत जुर्माना क्यों लिया जा रहा है। कुल मिलाकर जो लड़ाई बड़े लोगों के खिलाफ थी उसमे उसमें छोटे लोगों को क्यों परेशान किया गया।