नई दिल्लीः जब शुरुआती दिनों में यूपी की सियासत में मुलायम सिंह पैर जमाने में लगे थे तो परिवार के लिए भी समय दे पाना मुश्किल होता था। मुलायम के लिए बड़ी चुनौती के दिन रहे, उस वक्त उनकी पहली पत्नी यानी अखिलेश की मां मालती देवी बीमारी से भी जूझ रहीं थीं। अस्वस्थ रहने से बालक अखिलेश की देखभाल खुद नहीं कर सकतीं थीं। मुलायम कुनबे के करीबी बताते हैं तब शिवपाल यादव पिता के रूप में तो उनकी पत्नी अखिलेश की मां का फर्ज निभाती रहीं। अखिलेश के लिए शिवपाल दंपती चाचा-चाची नहीं मुख्य अभिभावक की भूमिका में रहे। मगर...वक्त पलटा तो अब रिश्तों ने भी अंगड़ाई ली है। आज वही शिवपाल दुहाई देते फिर रहे कि उनके भतीजे की सरकार में ही उनकी कोई नहीं सुन रहा। आज वही शिवपाल तब इस्तीफा देने की बात कर रहे, जब कि मुलायम के साथ बतौर लक्ष्मण निभाई उनकी भूमिका व मेहनत से आज सपा यूपी की मुख्य पार्टी बन चुकी है। सपा में हर रोज कलह बढ़ने की खबर आ रही। भतीजे अखिलेश के राज मे आखिर इतने बेचारे और बेगाने कैसे हो गए शिवपाल। पढ़िए, इनसाइड स्टोरी
बचपन में अखिलेश की मां नहीं रहीं तो हाथ से दूध पिलाते रहे शिवपाल
अखिलेश जब छोटे यानि 5 साल के थे तभी से उनकी माँ मालती देवी बीमार होने के कारण अस्वस्थ्य थीं. और ज्यादातर गांव में ही रहती थीं. माँ के अस्वस्थ्य होने के कारण अखिलेश की देखभाल उनके चाचा शिवपाल यादव और उनकी पत्नी करती थीं. यहाँ तक कि अखिलेश के माँ- बाप का रोल उनके चाचा और चाची ने ही ऐडा किया. मुलायम कुनबे के करीबी बताते हैं कि अखिलेश को दूध पिलाने से लेकर टाई-बेल्ट बांधकर स्कूल के लिए सजाने का काम खुद शिवपाल और उनकी पत्नी करते रहे। ताकि अखिलेश को मां की कमी न खले। एक जुलाई 1973 को जन्मे अखिलेश की प्राथमिक शिक्षा गृहक्षेत्र इटावा के सेंट मैरी स्कूल में हुई। प्राइमरी की पढ़ाई होने के बाद अखिलेश को राजस्थान के धौलपुर स्थित सैनिक स्कूल पढ़ने भेजा गया। वहां 12 वीं की शिक्षा हासिल करने के बाद अखिलेश ने मैसूर के एसजे कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बीटेक किया।पहली पत्नी से निधन के बाद जब मुलायम सिंह यादव ने अपनी करीबी साधना गुप्ता से दूसरी शादी की तो अखिलेश के बालमन को महसूस हुआ कि कहीं वह उपेक्षित न हो जाएं। इससे अखिलेश काफी परेशान भी रहने लगे थे। यह मनोदशा समझ शिवपाल यादव ने उन्हें हमेशा संबल दिया।
विदेश में पढ़ाई के पीछे भी शिवपाल का फैसला
मुलायम सिंह के बारे में सर्वविदित है कि वे अंग्रेजीदां कल्चर के धुरविरोधी रहे। कहा जाता है कि अखिलेश को देश में ही पढ़ाने के पक्षधर रहे, मगर, शिवपाल भविष्य की जरूरत समझते थे। मुलायम कुनबे के करीबी बताते हैं कि अखिलेश को हाईटेक एजूकेशन के लिए आस्ट्रेलिया भेजने का फैसला शिवपाल यादव ने की। जिस पर मुलायम राजी हुए और अखिलेश ने आस्ट्रेलिया से एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग से मास्टर्स की डिग्री ली।
राजपूत कन्या डिंपल से अखिलेश की शादी के लिए मुलायम को मनाया
जब अखिलेश यादव ने राजपूत व सैन्य परिवार से जुड़ी डिंपल से शादी की इच्छा जताई तो पिता मुलायम नाराज हुए। वे यदकुल में राजपूत कन्या की एंट्री के बजाए स्वजातीय बहू के पक्षधर थे। इस पर अखिलेश परेशान रहे तो अमर सिंह व शिवपाल यादव ने मुलायम के दिल से सारी आशंकाएं निकालीं, तब जाकर 24 नवंबर 1999 को उनकी डिंपल से शादी हो सकी।
2012 के चुनाव से शिवपाल को लगने लगा झटका
भले ही अखिलेश के लिए शिवपाल चाचा रहे, मगर बचपन से लेकर 27 साल में सांसद बनने के बीच के समय सबसे ज्यादा भावनात्मक जुड़ाव उनसे शिवपाल यादव ने ही रखा। 2012 का विधानसभा चुनाव नजदीक आया तो सियासी भंवर में रिश्तों ने अजब करवट ली। केंद्र की राजनीति में खुद को स्थापित कर चुके मुलायम अस्वस्थ भी चल रहे थे। चूंकि शिवपाल यादव प्रदेश अध्यक्ष के साथ नेता प्रतिपक्ष रहे तो मुलायम की अस्वस्थता की वजह से पार्टी ही नहीं बाहर के लोग भी सत्ता मिलने पर शिवपाल का मुख्यमंत्री बनना तय मान रहे थे। मगर चचेरे भाई रामगोपाल ने शिवपाल से न पटने पर उनके मुख्यमंत्री बनने पर अपना पत्ता साफ होने की आशंका सताने लगी तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से अखिलेश को सीएम प्रोजेक्ट करना शुरू किया। साथ ही मुलायम को भी पार्टी के भविष्य के लिए कमान युवा अखिलेश को देने की राय दिए। पुत्र मोह में मुलायम को यह राय जंच गई। यह शिवपाल के लिए बड़ा झटका रहा।
शिवपाल खुद नहीं बन पाए तो मुलायम को ही मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहे
2012 के विधानसभा चुनाव में बहुमत की जीत की क्रेडिट मीडिया ने अखिलेश की झोली में डाल दी। क्योंकि वे युवा चेहरे थे और सबसे ज्यादा रैलियां किए थे। मगर सियासी जानकार बताते हैं कि इसमें अखिलेश की साइकिल रैलियों से ही जीत नसीब नहीं हुई। बल्कि बसपा राज में स्मारक, पार्क घोटाले को लेकर एंटीइन्कमबैंसी फैक्टर व प्रदेश अध्यक्ष रहते शिवपाल की ओर से तैयार मजबूत सांगठनिक ढांचे की वजह से जीत नसीब हुई थी। ऐसे में शिवपाल को यह उम्मीद कतई नहीं थी उनकी बजाए भतीजे को मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा। इस पर शिवपाल ने मुलायम से कहा कि मैं मुख्यमंत्री न बनूं कोई बात नहीं मगर सीनियर लीडरशिप की नजर में अखिलेश अभी बच्चे हैं। ऐसे में हमें उनके अंडर में काम करने में असहजता महसूस होगी। लिहाजा आप ही सीएम बनें तो बेहतर होगा, मगर मुलायम ने फैसला नहीं बदला। खैर यहां भी अखिलेश से भावनात्मक जुड़ाव के आधार पर मुख्यमंत्री पद पर अखिलेश ने समझौता कर दिया।
जब संगठन-सरकार दोनों ने नजरअंदाज किया तो टूट गया सब्र
करीबी बताते हैं कि मुख्यमंत्री नहीं बने तो भी शिवपाल को उतना बुरा नहीं लगा। मगर, जब संगठन और सरकार दोनों में पिछले एक साल से शिवपाल की उपेक्षा शुरू हो गई तो उनके दिल को ठेस पहुंचने लगी। अंसारी ब्रदर्स को सपा में शिवपाल लाना चाहते थे, अखिलेश ने पार्टी की छवि का हवाला देकर रोक दिया। शुरूआत में डीपी यादव की एंट्री रोककर अखिलेश सुर्खियां लूट चुके थे। अब सचिवालय के अफसरों ने भी शिवपाल का कहा मानना बंद कर दिया। क्योंकि उनमें संदेश चला गया कि अखिलेश अब बच्चे नहीं रहे। सपा के चार से पांच पॉवर सेंटर्स से खुद को उन्होंने दूर कर लिया है। संगठन की पूरी कमान खुद हाथ में ले ली है। मेट्रो, एक्सप्रेसवे जैसे प्रोजेक्ट पर खुद फैसला लेकर पूरा करा रहे हैं। शिवपाल की बदौलत संगठन में जमे लोग भी जब कोई काम लेकर शिवपाल के पास पहुंचते तो नहीं हो पाता। इससे शिवपाल को पार्टी में पूरी तरह से बेगाना हो जाने का अहसास हुआ। यही वजह है कि मुलायम के पास इस्तीफे की पेशकश तक पहुंच गए। ऊपर से अब खुद अमर सिंह का यह बयान देना कि शिवपाल अपने गृह जनपद इटावा में एक एसएसपी क्या जसवंतनगर में कोई काम नहीं करा सकते। यह बयान शिवपाल की बेचारगी साबित करने को काफी है। यह किस्सा है शिवपाल के पार्टी में बेगाना हो जाने का। उधर करीबी अखिलेश की कुछ मजबूरी बताते हैं। कहते हैं कि अखिलेश को शिकायत मिलती रही कि पार्टी की छवि खराब करने वाले ज्यादातर चाचा के जरिए काम कराना चाहते हैं। इस पर अखिलेश ने शासन-प्रशासन में ज्यादा तवज्जो न देने का संदेश पास करा दिया।