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कागज़ पर बिखरे रंग

Sarla Mehta

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काव्य संग्रह *कागज़ पर बिखरे रंग* नमस्कार पूर्व में मेरी दो पुस्तकें आ चुकी हैं... एक काव्यसंग्रह *ठूठ से झाँकती कोपलें* एवं कहानी संग्रह *सँजोई कहानियाँ* । किन्तु प्रचार प्रसार के अभाव में ये पुस्तकें स्वान्तःसुखाय ही बनकर रह गई। वैसे ही मेरा मुख्य कारण था एक प्रतियोगिता *प्रथम पोथी सम्मान* जो साठ वर्ष आयु के पश्चात प्रकाशित हुई हो। मैं आज़ादी से दो वर्ष बड़ी हूँ और लेखन भी सेवानिवृति के बाद आरम्भ हुआ। अतः सब कार्यों में विलंब ही होता रहा। अभी गत पाँच छः वर्षों से लेखनी खूब चल रही है। हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखती हूँ। चलिए बात करते हैं आपके द्वारा छपने वाली तीसरी पुस्तक की। यह काव्यसंग्रह होगा। देशभक्ति, समाज, नारीउत्थान, प्रकृति, पर्यावरण, सेना, जल, नदियाँ एवं उपदेशात्मक लघु कविताएँ भी मिल आदि विभिन्न विषयों पर मैंने बहुत लिखा है। यह सब आभासी पटल पर विभिन्न समूहों में प्रेषित करती रहती हूँ। इन्हें पाठकों का प्यार व प्रशंसा मिलती रहती हैं। वैसे मैं छंदमुक्त ही अधिकतर लिखती हूँ किन्तु उनमें भी गेयता का आभास आप पाएँगे। मेरी कविताओं में साधारण पद्य के अतिरिक्त हाइकु, वर्ण पिरामिड, चोका, मनहरण घनाक्षरी भी कई हैं। मैंने अपनी कविताओं में ह्रदय की समस्त भावनाओं को उड़ेलने का प्रयास किया है। आप चाहे तो कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर देती हूँ। [12/03, 11:21 am] Sarla Mehta: विषय:--*दीपक जैसा बनने की अभिलाषा* *मेरी अभिलाषा* चाह नहीं सूरज बनकर जग में किरणें बिखराऊँ निशा तिमिर समेट कर हर आँगन में उतर जाऊँ बन जाऊँ स्नेह दीप ऐसा उन सब वारियर्स के लिए सेना पुलिस डॉक्टर टीम सफ़ाईकर्मियों व सेवकों जलूँ माटी का एक दीया सीमा के प्रहरियों के नाम जगमगाते हमारी जिंदगी दिनरात सेवा में जुटकर दीया बनूँ दिवंगतों के नाम बिछड़ गए असमय हमसे जलता रहूँ निरन्तर याद में फैलाऊँ कीर्ति मैं चहुँ ओर दीया बन जलूँ झोपड़ी में किसी गरीब की देहरी पर या जिस राह से गुजरते हैं कफ़न बाँधे ये वीर सैनिक सरला मेहता इंदौर [15/03, 11:20 am] Sarla Mehta: #कविता #आशाकीकिरणयुद्धकेदौरान हुआ कभी महा रक्तपात कलिंगयुद्ध का वो उत्पात शांति की किरणें फैली थी अशोक ने त्यागा राजपाट युद्ध क्रांतियों का इतिहास दे मानवता का अहसास राग द्वेष बैर के कटु लम्हें दे सौहार्द प्रेम के सन्देश भूल शत्रुता दोस्त बनते भाईचारा हैं खूब दर्शाते चार रोटियाँ भी बांटकर पड़ोसी का हैं पेट भरते सागर में ज्यों आते तूफ़ान जन धन का है अवसान कुछ रत्न अमोल पाते हैं युद्ध के भी ऐसे परिणाम सरला मेहता इंदौर स्वरचित अप्रकाशित [17/03, 12:31 pm] Sarla Mehta: रंगों का आया है त्योहार खुशियाँ लाया संग अपार घोलो रे रंग केसरिया टेसू फुलवा से लदी डालियाँ रंग गुलाल की सजी थालियाँ सखियाँ खड़ी हैं द्वार घोलो रे रंग केसरिया रंग दीनी मोरी धवल चुनरियाँ बिखरा दी मोरी गजरे की कलियाँ मुच्छया मरोड़े सरदार घोलो रे रंग केसरिया रूठ गई मोरी नन्हीं ननदियाँ माँग रही है सोने की पैजनियाँ सासूजी का उमड़ा प्यार घोलो रे रंग केसरिया देवर भर लाए पिचकारी नेग में दीनी बनारसी साड़ी देवरानी अब लाओ सरकार घोलो रे रंग केसरिया चुपके से सैंया जी भी आए मुठिया में केसर भर लाए मैं शरम से हो गई लाल घोलो रे रंग केसरिया [18/03, 7:09 pm] Sarla Mehta: होली,,,मनहरण घनाक्षरी रंगों की बहार आई, खुशियाँ हज़ार लाई, तन मन भीग रहा, फाग सब गाइए। भूल कर द्वेष भाव, याद रखना सद्भाव, सब अच्छे सब अच्छा, शत्रुता बिसारिए। पर्यावरण प्रियता, प्रकृति संरक्षणता, सूखे सरस रंगों से, उत्सव मनाइए। राम की मर्यादा रहे, कर्मवीर सारे बने, प्रहलाद की रक्षा हो, होलिका जलाइए। सरला मेहता इंदौर स्वरचित किताब की फोटो सोची नहीं है। 

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