शांत से उड़ते हुए बादल कहां जाते हैं
पेड़ से अलग हुए पत्ते कहां जाते हैं
कितनी भी शिद्दत से ढूंढो तो नहीं मिलते
ना जाने, हो कर जुदा लोग कहां जाते हैं
जहां में कहीं तो होगा इनका भी ठिकाना
शाम ढलते ही उजाले जाने कहां जाते हैं
भोर की दश्तक होते ही हकीकत में बदलते हैं
पलकों से उतर कर वरना ख्वाब कहां जाते है
हर सफर का तकदीर में नहीं होता है, पूरा होना
जिन्हें मंजिल नहीं मिलती वो रास्ते कहां जीते हैं
जलने से पहले क्या? कभी सोचा है दीपक ने
उजाले से जलकर अंधेरे आखिर कहां जाते हैं !!!