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" गोरैया "

23 जून 2015

375 बार देखा गया 375
featured image कट गए पेड़ नष्ट हुए वन असंतुलित हो गया पर्यावरण ऋतुचक्र हो गया अनियंत्रित भयभीत कर रहा ग्लोबल वार्मिंग फ़ैल रहे कंक्रीट के जंगल, हो रही पानी की किल्लत हर ओर नहीं बचे पशु पक्षियों के बसेरे कहाँ जाएँ, कहाँ रहें ये बेचारे ? विलुप्त हो रहीं एक-एक करके इन की बहुत सी प्रजातियां भुला बैठे हम अपने स्वार्थ में,की इनका भी उतना हक़ है ईश्वर की बसाई इस दुनिया पर नहीं है कोई प्राणी बिना मकसद उपयोग है, इन में से प्रत्येक का बनाते हैं सुन्दर मनमोहक रंगबिरंगी ये हमारी इस दुनिया को हमारी परम्परा में चींटियों, गायों, नागों, कौओं और कुत्तों को श्राद एवं पर्वों में अनेक अवसरों पर खिलाने का प्रावधान था आधुकनिकता, प्रगतिशीलता के भ्रम में भुला बैठे हम वह सब सामने आने लगे हैं परिणाम आइये थोड़ा सा चुग्गा[दाना] थोड़ा सा पानी किसी उचित स्थान पर रखने की फिर से शुरुआत करें प्रकृति को बचाये रखने में सहयोग के भागीदार बन एक पुण्य कार्य करें.......

रणबीर सिंह कुशवाह की अन्य किताबें

अर्चना गंगवार

अर्चना गंगवार

आज नहीं तो कल इस पर विचार करना ही पड़ेगा ............

24 सितम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

प्रकृति-प्रेम से पुष्पित-पल्ल्वित रचना हेतु आभार !

27 अगस्त 2015

वर्तिका

वर्तिका

सार्थक रचना के लिये बधाई|पेड़ कट रहे हैं, कंक्रीट के जंगल बढ रहे हैं, ऐसे समय में पशु-पक्षी जायें तो जायें कहाँ!

26 अगस्त 2015

रणबीर सिंह कुशवाह

रणबीर सिंह कुशवाह

मित्र आपका भी हृदय से आभार,,,

17 जुलाई 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

रणबीर सिंह कुशवाहा जी, पर्यावरण संरक्षण पर केन्द्रित उत्कृष्ट रचना प्रकाशित करने हेतु हृदय से आभार! बहुत-बहुत बधाई !

23 जून 2015

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"साथ"

6 फरवरी 2015
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लफ्ज़ बनकर हम तुम्हारी किताबों में मिलेंगे महक बनकर हम फूलों की बगिया में मिलेंगे हमारा वादा हैं, जब भी कभी करोगे याद हमे आंसू की बूँद बनकर तुम्हारी आँखों में मिलेंगे

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"माँ"

6 फरवरी 2015
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रात को घर के किस कमरे में जलती होगी माँ बाप का मरना मेरे लिए जब इतना भारी है उन के बिना तो रोज ही जीती मरती होगी माँ पानी का नलका खोला तो आंसू बह निकले ​गहरे कुएं से पानी कैसे भरती होगी माँ मेरी खातिर अब भी चाँद ब नाती होगी ना जब भी तवे पर घर की रोटी पकाती होगी माँ

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" सलीका "

6 फरवरी 2015
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हर शख्स मुझे जिंदगी जीने का अपना तौर - ओ - तरीका बताता है कैसे समझाऊ कि इक ख्वाब अधुरा है वरना जीना तो हमें उनसे बहतर आता है !

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"रिश्ता"

6 फरवरी 2015
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टूटे हुए उस पेड़ को ज़माना हो गया, न जाने क्यूं वो परिंदा आज भी अपना आशियाना देखने रोज़ आता है लगता हैं, मेरा गांव अब अनाथ हो रहा हैं वहां भी अब रिश्ते दफनाए जाने लगे हैं !!!

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"न जाने क्यों हम इतने बड़े हो गए"

6 फरवरी 2015
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न जाने क्यों हम इतने बड़े हो गए ? मम्मी की गोद और पापा के कंधे न पैसे की सोच न लाइफ के फंडे न कल की चिंता न फ्यूचर के सपने अब कल की फ़िकर और अधूरे सपने मुड़ कर देखा तो बहुत दूर हैं अपने मंजिलों को ढूंढ़ते हम कहाँ खो गए न जाने क्यों? हम इतने बड़े हो गए

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"मिशाल - ए - समझदारी"

29 जनवरी 2015
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एक बार एक चीनी , एक पाकिस्तानी और एक भारतीय अरब देश में शराब पीते हुए पकड़े गए , इसके लिए वहां की सरकार ने उन्हें 20-20 कोड़े मारने की सजा सुनाई , सजा से पहले जेलर ने कहा की " आज मेरी बेगम की सालगिरह है और वो चाहती है की अपनी सजा से पहले तुम लोग एक एक मन्नत मांग लो "....... चीनी ने कहा की मेरी पीठ पर

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"जिंदगी"

31 जनवरी 2015
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बहुत कुछ सीखा देती है ज़िन्दगी हंसा के रुला भी देती है ज़िन्दगी इस जिंदगी को भरपूर जी लो दोस्तों क्यूंकि बहुत कुछ बाकी रह जाता है और जल्द ख़त्म हो जाती है ज़िन्दगी

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"तेरी मौजूदगी"

6 फरवरी 2015
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जैसे ठंडी हवाएं बादलों की गड़गड़ाहट और बारिश के कुछ छींटे जैसे बाग़ में नाचता हुआ मोर कोयल का चारों तरफ शोर और गुनगुना रहे हों भँवरे कुछ गीत जैसे समुन्दर का किनारा लहरों का सरगम गाना और कुछ रेत में दबे हुए मोती जैसे डूबते हुए सूरज का रंग लाल हर चेहरे में बस तेरी ही झलक दिखती काश कि तेरी मौजू

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" था कोई अपना सा "

6 फरवरी 2015
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था अपना सा, मगर मेरा नहीं था बहुत था दूर, पर इतना नहीं था उसे वो तोड़ना क्यों चाहता था ? बंधन जो कभी बांधा ही नहीं था नहीं वो मिल सका ये है हक़ीक़त कहूँ कैसे उसे चाहा नहीं था ? उस को फुरसत तो थी, चाह न थी था वो मसरूफ पर इतना नहीं था जी लिया दर्द, पी लिए आंसू कहाँ रोता, तेरा कांधा नहीं था !!!

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" क़र्ज़ "

6 फरवरी 2015
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आहिस्ता चल जिंदगी अभी कुछ क़र्ज़ चुकाना बाकी है कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है रफ़्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए कुछ छूट गए रूठों को मनाना बाकी है, रोतों को हँसाना बाकी है कुछ हसरतें अभी अधूरी हैं, कुछ काम अभी और भी जरुरी हैं ख्वाइशें जो छूट गईं इस दिल में उनको दफ़नाना अभी ब

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" नफरत "

6 फरवरी 2015
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मैंने उसे एक इशारा किया उसने सलाम लिख के भेजा मैंने पूछा तुम्हारा नाम क्या है ? उसने "चाँद" लिख कर भेजा मैंने पूंछा तुम्हे क्या चाहिए ? उसने सारा आसमान लिख कर भेजा मैंने पूछा कब मिलोगे ? उसने कयामत की शाम लिख के भेजा मैंने पूछा किस से डरते हो ? उसने मुहब्बत का अंजाम लिख के भेजा मै

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" अक्श "

6 फरवरी 2015
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अक्श धुंधला पड़ा है, मेरा खो सा गया हूँ, मैं..... जाने क्या -क्या ख्वाहिश लिए सो सा गया हूँ, मैं..... वो हर घडी मुझे गैर किये जाते हैं चाहत देखे बगैर बैर किये जाते हैं !!

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" माँ "

31 जनवरी 2015
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" माँ " नसीब भी वो है अज़ीज़ भी वो है दुनिया की भीड़ में सबसे करीब भी वो है उनकी दुआ से से चलती है, ज़िन्दगी क्योंकि खुदा भी वो है "माँ" एक ऐसी हस्ती है, जिनके बारे में... "समंदर ने कहा" माँ एक ऐसी हस्ती है जो अपनी औलाद के लाखों राज सीने में छुपा लेती है "दुआ ने कहा" माँ वो शख्सियत है, जो हर

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" चेहरा "

6 फरवरी 2015
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वह सब जो कभी अपना सा लगा था भुला सा हुआ है टूटे पत्तों के नीचे दब कर रात दिन का संग गर्मजोशी भरे जब वो नहीं तब उन के तजकरे आज सोचा भी तो याद नहीं आया बस यों लगता रहा कि वो नाम रखा है, जुबां पर चुरा नहीं पाया था जिसको अन्धेरा आँखों में रचा बसा हुआ चेहरा अनजाना सा लगा जो

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" हादसा "

6 फरवरी 2015
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हादसों से तुम अगर घबराओगे एक दिन खुद हादसा बन जाओगे जानते हो पत्थरों का शहर है ये किस गली से आईने ले जाओगे देख लेना तुम अगर मुन्शिफ बने सच यही है, सच कह नहीं पाओगे बांटते फिरते हो अपनापन मगर अपनी तनहाई कहाँ ले जाओगे अब भी प्यार करना सीख लो राज एक दिन वरना बहुत पछताओगे अपन

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" द्विस्वप्न "

6 फरवरी 2015
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कल थीं.....कठिन राहें, तपती बालू, चिलचिलाती धूप और तुम्हारी छाया अब सिर्फ.....तन्हाई, तुम्हारी याद मन में टीस, और तुम्हारा साया फिर कल .....तम्मनाएँ, तुम्हारे स्वप्न आस और हमारी आरज़ू फिर एक बार .....वही द्विस्वप्न, होंगे हम सब, एक साथ !!

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" सलाह "

6 फरवरी 2015
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अक्ल ये कहती है, सयानो से बनाए रखना दिल ये कहता है, दीवानो से बनाए रखना लोग टिकने नहीं देते हैं, कभी भी चोटी पर जान - पहचान ढलानों से भी बनाए रखना जाने किस मोड़ पे मिट जाएं निशां मंजिल के राह के ठौर - ठिकानों से भी बनाए रखना हादसे हौसलों को तोडना चाहेंगे फिर भी चंद जीने के बहानों से भी ब

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" कहाँ जाते हैं "

6 फरवरी 2015
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शांत से उड़ते हुए बादल कहां जाते हैं पेड़ से अलग हुए पत्ते कहां जाते हैं कितनी भी शिद्दत से ढूंढो तो नहीं मिलते ना जाने, हो कर जुदा लोग कहां जाते हैं जहां में कहीं तो होगा इनका भी ठिकाना शाम ढलते ही उजाले जाने कहां जाते हैं भोर की दश्तक होते ही हकीकत में बदलते हैं पलकों से उतर कर वरना ख्वाब कहां जात

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" एहसास "

31 जनवरी 2015
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मुझको यकीं है, सच कहती थी, जो भी "माँ" कहती थी जब मेरे बचपन के दिन थे चांद में परियां रहती थी इक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे रिश्ता तोड़ लिया इक वो दिन जब पेड़ की शाखाएं बोझ हमारा सहती थी !!!

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" आदमी "

6 फरवरी 2015
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एक सुकून कि तलाश मे, ना जाने कितनी बेचैनियाँ पाल लीं... फिर भी बड़े ही फक्र से लोग कहते हैं, हम बड़े हो गये और ज़िन्दगी संभाल ली...

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" इशारा "

31 जनवरी 2015
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किसी शाम कभी आँचल का किनारा देना मैं अगर डूब के उभरुं तो सहारा देना तेरी उल्फत में मुक्कमल हूँ हर पहलु से मुझे दर्द भी देना तो सारा देना मैं तेरे गम के समंदर में किनारा दूंगा तू मुझे हिज्र के तूफ़ान में सितारा देना मैं तेरी याद के सेहरा में कहीं रहता हूँ कभी आना तो हल्का सा इशारा देना !

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" कड़वा सच "

31 जनवरी 2015
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1940 में संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को ले कर चर्चा चल रही थी। एक भारतीय प्रवक्ता बोलने के लिए खड़ा हुआ। अपना पक्ष रखने से पहले उसने ऋषि कश्यप की एक बहुत पुरानी कहानी सुनाने की अनुमति माँगी। अनुमति मिलने के बाद भारतीय प्रवक्ता ने अपनी बात शुरू की... "एक बार महर्षि कश्यप, जिनके नाम पर कश्मीर का नाम पड़

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" दोस्ती "

2 फरवरी 2015
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हमारी दोस्ती पे गर कभी शक हो तो अकेले, घर के आँगन में सिक्का उछाल लेना मेरे दोस्त गर चित्त गिरा ? तो हमारी दोस्ती पहाड़ सी पक्की और पट्ट गिरा ? तो सिक्का पलट लेना ए दोस्त अकेले में ख़ुदा के सिवाय कौन देखता है !!

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" आदमी "

2 फरवरी 2015
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खो चुका विश्र्वास खुद का आदमी कौन सा इनसान कैसा आदमी टूटता है ठोकरों के नाम से कांच के बरतन भले, या आदमी देह नशवर है, तो मरती एक बार आत्मा से रोज-रोज मरता आदमी कोई भी अपनी नजर में कुछ नहीं इससे ज्यादा और क्या गिरेगा आदमी मौत तुही बोल तुझको क्या ? मिला सिर्फ मुर्दा शरीर या............ "आदमी"

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" आधुनिक सभ्यता "

6 फरवरी 2015
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तुलसी की जगह मनीप्लांट ने ले ली... चाची की जगह आन्टी ने ले ली... पिता जी डैड हो गए... भाई तो अब ब्रो हो गए... बहिन भी अब सिस हो गई... दादी-नानी की लोरी तो अब टायं-टायं फिस्स हो गई... टीवी के सीरियल में सास बहु में भी सांप नेवले का रिश्ता है ! पता नहीं एकता कपूर औरत है, या फरिस्ता है ? जीती जागती मा

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" तुम्हारा साथ "

6 फरवरी 2015
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जिस ख्याल से जुड़े हैं, हम तुमसे, हमें इन आखों में बना रहने दो.. जिस एहसास से जुड़े हैं, हम तुमसे, हमें उन साँसों में बसा रहने दो.. जिस दिल से जुड़े हैं, हम तुमसे, हमें उन धडकनों में ही धड़कने दो.. जिस एतबार से जुड़े हैं, हम तुमसे, हमें इन ख्यालों में बरक़रार रहने दो.. जिस चाहत से जुड़े हैं, हम तुमसे, हमें

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" अनोखा आशीर्वाद "

6 फरवरी 2015
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कागज़ पर पेंसिल से कुछ लिखती हुई माँ के पास जाकर जब बेटे ने माँ के पांव छुए तो माँ ने कहा तुम पेंसिल जैसे बनना बेटे ने आशचर्या चकित हो पूंछा क्यों माँ ? ....माँ ने कहा तुममे महान उपलब्धियां हासिल करने की योग्यता है, किन्तु यह भी याद रखें की तुम्हे एक ऐसे हाथ की भी जरुरत होती है जो तुम्हारा म

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"आस "

6 फरवरी 2015
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अजीब किस्म का अहसास दे गया मुझको वो खेल-खेल में बनवास दे गया मुझको... लगा के माथे पे मेरे वो रोशनी का तिलक दिन निकलने का विश्वास दे गया मुझको.. बुलाने आया था मुझको जो भोज की ख़ातिर अजीब शख़्स था उपवास दे गया मुझको... वो ऊंचे आसमान का कोई डकैत बादल था जो अश्क ले के मेरी, प्यास दे गया मुझको... पराई चि

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" तन्हाई "

6 फरवरी 2015
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उम्मीद तो मंजिल पे पहुचने की बड़ी थी तकदीर मगर जाने कहाँ सोई पड़ी थी ख़ुश थे के गुजारेंगे रफ़ाक़त में सफर अब तन्हाई मगर बाँहों को फ़ैलाए खड़ी थी [रफ़ाक़त] - साथ

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" बचपन "

6 फरवरी 2015
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बचपन कुछ ऐसे बीता जैसे कुछ पल पहले मै बच्चा था कुछ ऐसा लगता है, अब के शहर से तो मेरा गाँव अच्छा था भुला सकते भी है, कैसे हम अपनी बचपन की यादो को बर्फ का गोला ,चूरन की पुडिया घर में मकड़ी का जाला ही अच्छा था जब सड़क पे गिराता कोई बालू [रेत] अपना घर बनाने को हम चोरी से उनसे छोटे-२ घरौदे बनाते वो ही अच

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" दया की भीख "

9 फरवरी 2015
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उस दिन ट्रेन लेट होकर रात्रि 12 बजे पहुँची। बाहर एक वृद्ध रिक्शावाला ही दिखा जिसे कई यात्री जान बूझकर छोड़ गए थे। एक बार मेरे मन में भी आया, इससे चलना पाप होगा,फिर मजबूरी में उसी को बुलाया, वह भी बिना कुछ पूछे चल दिया। कुछ दूर चलने के बाद ओवरब्रिज की चढ़ाई थी, तब जाकर पता चला, उसका एक ही हाथ था। मैं

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" समानता "

11 फरवरी 2015
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चलने वाले दोनों पैरों में कितना फर्क है | एक आगे तो एक पीछे ..... पर ना तो आगे वाले को अभिमान है, और न पीछे वाले का अपमान क्योंकि उन्हे पता है कि .... पल भर में ये बदलने वाला है | .....यही ज़िन्दगी है .....

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" DICTIONARY"

11 फरवरी 2015
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DICTIONARY ही एक ऐसी जगह है जिसमें: 1. Death, Life से पहले आती है। 2 .End, Start से पहले आता है। 3. Divorce, Marriage से पहले आताहै। 4. Child, Parents से पहले आता है। 5. Evening, Morning से पहले आती है। 6. Result, Test से पहले आता है। 7. Destination, Struggle से पहलेआता है। 8. Dinner, Lunch से पहले

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" बड़े हो गए हम "

11 फरवरी 2015
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कभी पहली बार स्कूल जाने मे डर लगता था…आज अकेले ही दुनिया घुम लेते हे ।। पहले 1st नंबर लाने के लिए पढ़ते थे, आज कमाने के लिए पढ़ते हें !! गरीब दूर तक चलता है … खाना खाने के लिए… अमीर दूर तक चलता है… खाना पचाने के लिए … किसी के पास खाने के लिये एक वक्त की रोटी नहीं है ….. किसी के पास रोटी खाने के लिए

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" यादें "

11 फरवरी 2015
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कुछ लोग , जीवन की राहों में अंजाने बनकर टकराते हैं ! जिंदगी में कभी कभी ऐसे मुकाम भी आते है ! दोस्त बनके हमारे हमको ही छल जाते हैं वो हमारे बनके दिल में उतर जाते हैं लाख करे कोशिश वो हमारी यादो से नहीं निकल पाते हैं ! फरेब देते हैं हमे और हम उन्हें पहचान नहीं पाते हैं ! हम बस चुप रह जाते हैं बिना धा

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" वास्तविक सौन्दर्य "

11 फरवरी 2015
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हर सुबह घर से निकलने के पहले सुकरात आईने के सामने खड़े होकर खुद को कुछ देर तक तल्लीनता से निहारते थे. एक दिन उनके एक शिष्य ने उन्हें ऐसा करते देखा. आईने में खुद की छवि को निहारते सुकरात को देख उसके चहरे पर बरबस ही मुस्कान तैर गई. सुकरात उसकी और मुड़े और बोले, " बेशक तुम यही सोचकर मुस्कुरा रहे हो न की

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" महाशिवरात्रि "

16 फरवरी 2015
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सभी मित्रगणों को महाशिवरात्री के शुभ अवसर की मंगल कामनाएं.... ,,,,,- भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्र के लिए बीज मंत्र ,,,,,- ॐ नमः शिवाय - ॐ नमः शिवाय - ॐ नमः शिवाय ,,,,,- शिव वंदना ॐ वन्दे देव उमापति सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम् l वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनां पतिम् ll वन्दे सूर्य शशांक वह्न

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" मेला पुस्तकों का "

23 फरवरी 2015
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कहते हैं, जिंदगी एक मेला हैं, और किताबें उस मेले को समझने का एकमात्र हथियार, तो पुस्तक मेला क्या हैं ? एक मेले को समझने की कोशिश में जुटा एक और मेला वास्तव में मुझे बुक फेयर से तनाव सा होता हैं ! न जाऊं तो अपराध बोध होता हैं, और जाऊं तो रिक्तता बोध ! अपराध भाव से बचने के लिए हर बार जाता हूँ ! औ

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" विद्वता पर भारी तजुर्बा "

26 फरवरी 2015
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गंगा स्नान के बाद अर्ध्य देते हुए विद्वान पंडित बुदबुदा रहे थे ! प्रीति बड़ी माता की और भाई का बल, ज्योति बड़ी किरणों की और गंगा का जल, यह सुन समीप से गुजर रही बुजुर्ग महिला को हंसी आ गई ! विद्वान पंडित जी को उन बुजुर्ग महिला का हंसना अपमानजनक लगा ! उन्होंने गांव के सरपंच से उनकी शिकायत की अगले दि

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" भूलें कैसे "

14 मार्च 2015
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कोई-कोई रात, बात नहीं भूलती मुलाक़ात.....सौगात नहीं भूलती हिदायतें, माँ - बाप की भूलें कैसे गुरु, बड़ों की निगाहें नहीं भूलती बस एक बादल ने उलझाया था ! भीगा सब....बरसात नहीं भूलती चाहतों का पहरावा...विशेष नहीं कब तक...इन्तजार नहीं भूलती जिस ने हिला,कंपा, सिहरा दिया बातचीत...वारदात...नहीं भूलत

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" वियोग "

14 मार्च 2015
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तुम कुछ इस तरह....चले गए सारे ख्वाब ही नींद से चले गए तुम्हारी थी, जो ऐसी रूसवाई खिली हुई धूप में छांव हो आई तुम्हारे हाथों से पतवार छूट गई मेरे प्यार की......कश्ती डूब गई जिंदगी का इन्द्रधनुष बदरंग हो गया बसंत का मौसम अब पतझड़ हो गया क़दमों के निशान पर मैंने पग मिला लिए पर तुम तो हमसे चार

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" बेशकीमती रंग "

14 मार्च 2015
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आज मुझसे मेरे ऑफिस पर किसी क्लाइंट ने पूछा कि सबसे महंगा और अच्छा रंग कौन सा होता है मैंने कहा कीमत में तो कई रंग हे जो महंगे होते है उनमे से एक रंग है ....“लाल “ तभी एक अन्य बुजुर्ग साहब जो मेरे ऑफिस आये थे उन्होंने कहा बेटा सबसे महँगा रंग “पीला“ होता है मैंने कहा वो कैसे , उन्होंने जो जवाब द

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" शायद "

23 मार्च 2015
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वफ़ा उस की कागजी थी शायद जरा सी आंच न सह सकी उस के आने का करते रहे इन्तजार कोई गलतफहमी जरूर थी शायद ख्वाब न पूरे हो सके अपने हमारी कोशिशों में थी कमी शायद सांस बेशक उस की चलती रही तमन्ना जीने की ख़त्म हो चुकी शायद मिलने तुम से हम आते जरूर हक़ से तुम ने कभी बुलाया ही नहीं शायद,,,,

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" इकरार "

23 मार्च 2015
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दो घडी ये मिलन की हमारे लिए कीमती है दीदार की बात करो डर गए तो गए इस जमाने से हम अब चलो आर पार की बात करो संग मिल के सनम खाई थी जो कसम वक़्त है इकरार की बात करो !!!

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" उलझन सेंट की "

1 अप्रैल 2015
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नेताजी बस में यात्रा कर रहे थे, थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन उस दिन शायद उन की कारें पत्नी के रिश्तेदारों की. सेवा में लगी होंगी, यही .एक ऐसी. जगह होती है. जहां किसी खास मर्द की कोई अपील काम नहीं करती सो, उस रोज नेताजी बस में यात्रा करने को मजबूर थे, उन के साथ वाली सीट पर एक सुन्दर स्त्री आ कर बैठी

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" आइना "

12 मई 2015
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जगत का निर्माण करने वाले विधाता ने बार एक मनुष्य को अपने पास बुलाकर पूंछा वत्स तुम क्या चाहते हो ? मनुष्य ने कहा मैं उन्नति करना चाहता हूँ, सुख -शांति चाहता हूँ, और चाहता हूँ, सब लोग मेरा गुणगान करें ! विधाता ने मनुष्य के सामने दो गठरियां रख दीं और बोले इन गठरियों को ले लो ! इनम

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" मनुहार "

5 जून 2015
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रुत मनुहार की आई है संग सजनी का प्यार लाई है नैन तेरे, जैसे छलकते पैमाने डूब गए कितने, इन में दीवाने होंठ ऐसे, जैसे दो गुलाबी कमल दिल चाहे उन पे, लिखूं मैं गजल आँखों का काजल जुल्फों की बदरी आने दे ख्वाबों में मुझे प्यारी पगली दिल को सुकूं आये ऐसे यारा पानी से बुझता जैसे अंगारा !!!

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" गोरैया "

23 जून 2015
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कट गए पेड़ नष्ट हुए वन असंतुलित हो गया पर्यावरण ऋतुचक्र हो गया अनियंत्रित भयभीत कर रहा ग्लोबल वार्मिंग फ़ैल रहे कंक्रीट के जंगल, हो रही पानी की किल्लत हर ओर नहीं बचे पशु पक्षियों के बसेरे कहाँ जाएँ, कहाँ रहें ये बेचारे ? विलुप्त हो रहीं एक-एक करके इन की बहुत सी प्रजातियां भुला बैठे हम अपने स

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" उस ईश्‍वर का पता "

21 जुलाई 2015
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--------------------- --------------------- --------------------- जब जब लड़खड़ाया मंदिर की सीढि़यों पर आकर गिरा विश्‍वास का बोझ अपने कन्‍धे से उतार तुम्‍हारे सिर पर रख दिया यह जाने बिना कि तुम उठाओगे कि नहीं..... किस किस का बोझ उठा सकते हो.... अपने ही भय से भयभीत बुदबुदाए तुम्‍हारे मंत्र वे कि जि

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" जिंदगी एक सबक "

23 जुलाई 2015
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सुन्दर कविता जिसके अर्थ काफी गहरे हैं मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है, उम्र के साथ जिंदगी को ढंग बदलते देखा है !! वो जो चलते थे तो शेर के चलने का होता था गुमान उनको भी पाँव उठाने के लिए सहारे को तरसते देखा है !! जिनकी नजरों की चमक देख असीम साहस वाले भी सहम जाते थे लोग, उन्ह

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" हिन्दी "

18 सितम्बर 2015
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तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी।अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं, पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।

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!! पापा !!

21 सितम्बर 2015
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पापा ! आप समझ रहें है ना ???पापा ! जब मैं छोटा था,आप उतनी बाते नहीं करते थे,जितनी “माँ” करती थी।पापा !कभी-कभी जब जिद्द करता था,रोता था, चुप नहीं कराते थे,“माँ” दौड़ी चली आती थी।पापा !आप हर छोटी-बड़ी बात पर,लम्बा भाषण दिया करते थेऔर “माँ”गोद में उठाकर चूम लिया करती थी।पापा !मुझे लगता था,“माँ” ने म

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" ज़िन्दगी "

10 अक्टूबर 2015
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हर बात कुछ याद दिलाती है हर याद कुछ मुस्कान लाती है कौन नहीं चाहता खुशियों को,पास रखना अपने पर कहाँ वो हर पल साथ रह पाती है समय का आभाव भी बहुत है ज़िन्दगी में भूल गए अच्छे पलों को पैसे की बंदगी में पर साथ तो अतीत का भी चाहिए बहुत ही कम समय और शब्द कम है, ज़िन्दगी में !!!

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" चाँद "

10 अक्टूबर 2015
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चारो तरफ़ अँधेरा, सब कहते अँधेरी रात हैबात है कुछ और मगर, सब कहते यही बात है "राज" की एक बात तुम्हे, मै बतलाने आया हूँ चाँद से बेखबर उसकी, चांदनी से मिल आया हूँ लिपट गई थी चांदनी मुझसे, भूल कर बात सबइसीलिए तो छाई थी, देखो अँधेरी रात तबनासमझ चांदनी की तुम्हे, दास्तान सुनाने आया हूँ चाँद से बेखबर उसकी

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