21 जुलाई 2015
3 फ़ॉलोअर्स
चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर इन्फोटेक स्टैंडर्ड्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड D
तुम मेरे लड़खड़ाने की प्रतीक्षा करते हो तुम मेरी पराजय में मुस्कुराते हो तुम मेरी भूख पर पिघलते हो सिर झुकाने पर ही देखते हो मुझे......रणवीर सिंह कुशवाह जी, .......अनुपम, प्रशस्य रचना है ! बहुत सुन्दर !
24 जुलाई 2015
वाह ... बहुत अलग लिखा है आपने ... सच कहे तो मेरे हिसाब से भगवान ने हमे बहुत कुछ दिया है .. हमे इस ज़िन्दगी के लिए उसका शुक्रगुजार होना चाहिए .. वरना हमे भी वो किसी झोपड़ पट्टी में पटक देता तो हम क्या कर लेते ... इस कविता के माध्यम मैं उस इश्वर का धन्यवाद देता हूँ जिसने हम सबको सब कुछ दिया ...
23 जुलाई 2015
संगठन का कोटि कोटि आभार,,,,
23 जुलाई 2015
गंतव्य तक पंहुचते हुए जीवन पथ पर मानव मन भी क्या-क्या सोचता है...कैसे-कैसे प्रश्न करता है मन स्वयं से...उत्कृष्ट रचना !
21 जुलाई 2015