गंगा स्नान के बाद अर्ध्य देते हुए विद्वान पंडित बुदबुदा रहे थे !
प्रीति बड़ी माता की और भाई का बल, ज्योति बड़ी किरणों की
और गंगा का जल, यह सुन समीप से गुजर रही बुजुर्ग महिला
को हंसी आ गई ! विद्वान पंडित जी को उन बुजुर्ग महिला का
हंसना अपमानजनक लगा ! उन्होंने गांव के सरपंच से उनकी
शिकायत की अगले दिन पंचायत बुलाई गई ! सरपंच ने बुजुर्ग
महिला से पूंछा क्या ? तुमने विद्वान पंडित का अपमान किया है !
बुजुर्ग महिला ने कहा मै भला विद्वान पंडित जी का अपमान क्यों
करूंगी ! विद्वान पंडित जी बोले कल तुम गंगा किनारे हंसी थी !
क्या वह मेरा अपमान नहीं था ? बुजुर्ग महिला ने जवाब दिया
आप पर नहीं आप की बात सुनकर हंसी थी ! विद्वान पंडित बोले
प्रीति बड़ी माता की और भाई का बल, ज्योति बड़ी किरणों की
और गंगा का जल ! सरपंच बोले इसमें हंसने की बात क्या है !
बुजुर्ग महिला बोली विद्वान पंडित जी बात सत्य प्रतीत होती है !
पर है नहीं,सरपंच ने पूंछा तो फिर सत्य क्या है ? बुजुर्ग महिला
ने कहा प्रीति बड़ी त्रिया की और बांहों का बल ज्योति बड़ी नयनों
की और मेघों का जल ! बात अगर पिता और पुत्र में फंसे तो माँ
पुत्र का साथ नहीं देगी, लेकिन पत्नी हर हाल में साथ होगी ! जब
दुश्मन अकेले में घेर लेगा तो बल भाई का नहीं, अपनी बाहों का
काम आएगा ज्योति नयनो की इसलिए बड़ी हैं, कि जब आँखें
ही न हों तो सूरज की किरणों की रोशनी या अमावस का अन्धेरा
सब बराबर है ! गंगाजी पवित्र हैं, लेकिन मेघों के समान न तो जन
जन की प्यास बुझा सकती है, न भूमि की सिंचाई कर सकती है !
सरपंच ने विद्वान पंडित जी से कहा अब क्या कहेंगे ?
विद्वान पंडित जी बोले मै समझ गया, किताबी ज्ञान काफी नहीं !
जीवन मै तजुर्बे से भी सीखना होगा !!