देहरादून: उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव को लेकर इस बार मुक़ाबला बेहद ही दिलचस्प हो रहा है. एक और जहा भाजपा सत्ता में आने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को भुनाना चाह रही है, तो वहीँ कांग्रेस हरीश रावत के दम पर मैदान मारने की तैयारी में, लेकिन दोनी ही पार्टियों के प्रदेश अध्यक्षों के सामने लड़ाई तो अब क़द बचाने की है। यह चुनाव इन दोनों के राजनीति क भविष्य को भी तय करेगा। लेकिन इस क़द से लेकर पद तक की लड़ाई में दुष्यंत कुमार का ज़िक्र भी ज़रूरी है -''कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये, कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये''
रानीखेत से चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने एक ओर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, तो वहीँ कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय टिहरी को छोड़कर सहसपुर में भाग्य आज़मा रहे हैं. दोनों ही पार्टियों के अध्यक्ष के लिए यह लड़ाई साख और नाक दोनो की ही है, क्यूंकि नंबर गेम बढ़ाने लिए एक-एक सीट जीतना जरुरी है. वहीँ अपनी पार्टियों में अपना कद बढ़ाने के लिए भी दोनों ही कप्तानों के लिए जीत जरूरी है.
अजय की विजय पर मंडरा रहा है खतरा
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और नेता विपक्ष अजय भट्ट रानीखेत से चौथी बार विधान सभा चुनाव लड़ रहे हैं. अजय भट्ट ने साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के करण माहरा को महज़ 78 वोटों से चुनाव हराया था. ऐसे में जीत का अंतर ज्यादा नहीं होने के चलते अजय भट्ट को इस बार के चुनाव में खासी मेहनत करनी पड़ रही है. करण माहरा मुख्यमंत्री हरीश रावत के साले हैं. करन माहरा 2007 में अजय भट्ट को इसी सीट से चुनाव हरा चुके हैं. ऐसे में अजय भट्ट के लिए चुनौती कम नहीं है. रानीखेत में माहरा परिवार का उत्तर प्रदेश के समय से दबदबा रहा है. करण माहरा के पिता गोविन्द सिंह माहरा तत्कालीन यूपी सरकार में मंत्री रहे चुके हैं. जिसके चलते प्रदेश की राजनीति में माहरा परिवार का खासा दख़ल हर दौर में रहा है. मुख्यमंत्री के ग्रह जनपद होने के चलते इस सीट पर हरीश रावत का भी पूरा जोर है.
भट्ट के लिए अपने हुये बाग़ी
अजय भट्ट के लिए कांग्रेस के करन माहरा भले ही बड़ी चुनौती हों लेकिन उनके सामने भाजपा के ज़िलाध्यक्ष रहे प्रमोद नैनवाल भी इस बार एक बड़ी चुनौती हैं. नैनवाल कल तक रानीखेत में उनके सिपहसालार थे और आज उनके ही ख़िलाफ़ चुनावी ताल ठोक रहे हैं. ऐसे में अजय भट्ट को अपने ही लोगों से ज्यादा नुकसान हो रहा है. संगठन में ख़ासी पकड़ रखने वाले नैनवाल के एन मौके पर चुनावी ताल ठोकने से अजय भट्ट को बड़ा नुकसान हो रहा है. क्योंकि प्रमोद नैनवाल भाजपा के वोट बैंक में ही सेंध लगाएंगे, जिसके चलते कांग्रेस को साफ तौर पर फायदा होता नज़र आ रहा है.
निर्णायक समीकरण
रानीखेत में जातीय समीकरण एक बड़ा आधार माना जाता है. जाति के आधार से यहां 45% वोट क्षत्रिय, 24% ब्राह्मण, 3% मुस्लिम और 28% अन्य जातियों के मतदाता हैं. जिस लिहाज़ से भी अजय भट्ट को खासा नुकसान हो सकता है, क्योंकि अजय भट्ट और प्रमोद नैनवाल दोनों ही ब्राह्मण उम्मीदवार हैं, इसके चलते भी कांग्रेस के करन माहरा को क्षत्रीय होने के चलते भट्ट से 20 दिखाई पड़ रहे हैं. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद अजय भट्ट रानीखेत से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.
डगमगाती नैया में उपाध्याय
किशोर उपाध्याय जो खुद ऋषिकेश से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन राजपाल खरोला का पलड़ा भारी होने के चलते किशोर को अंतिम समय में सहसपुर भेजा गया. टिहरी से विधान सभा टिकट नहीं मिलने पर किशोर उपाध्याय अब ऐसे में सहसपुर किशोर को कितना रास आता है, देखना होगा.
किशोर पर है बाहरी होने का ठप्पा
सहसपुर सीट किशोर उपाध्याय के लिए बिल्कुल नई सीट है. क्योंकि उन्हें इस बात का कतई इल्म नहीं था कि हाईकमान उन्हें यहाँ से चुनाव लड़ने को भी कह सकता है. ऐसे में किशोर को सहसपुर विधानसभा में बाहरी होने का विरोध भी झेलना पड़ रहा है. क्योंकि सहसपुर सीट पर चुनाव लड़ रहे सभी प्रमुख उम्मीदवार सहसपुर के ही रहने वाले हैं. टिहरी के रहने वाले किशोर के लिए यह बेहद परेशानी भरा है।
बागी आर्येन्द्र शर्मा खेल बिगाड़ने को तैयार
किशोर उपाध्याय के लिए सबसे बड़ी चुनौती 2012 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रहे आर्येन्द्र शर्मा हैं. पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के खासमखास रहे आर्येन्द्र शर्मा का सहसपुर सीट पर दबदबा रहा है. ऐसे में किशोर के लिए आर्येन्द्र से पार पाना बेहद मुश्क़िलों से भरा होने वाला है.
बंट जाएगा मुस्लिम वोट
सहसपुर सीट पर 26% से ज्यादा मुस्लिम वोटर्स हैं, जो कांग्रेस के साथ बसपा और सपा में भी बटते हैं. वहीँ कांग्रेस के बागी आर्येन्द्र शर्मा की भी मुस्लिम वोटर्स पर ख़ासी पकड़ है. जिसके चलते किशोर की दिक्कतें कम नहीं हो रही हैं. सहसपुर सीट पर करीब 11% ब्राह्मण, 18 % ठाकुर, 18% एससी/ एसटी, 11% ओबीसी और 18% अन्य जातियों के वोटर्स हैं, जो अलग-अलग पार्टियों में बटा हुआ है.
सहसपुर में क़ैद हो गए किशोर
किशोर उपाध्याय सहसपुर में लगातार मिल रही चुनौतियों के चलते यहाँ से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद किशोर अन्य उम्मीदवारों के प्रचार में नहीं जा पा रहे हैं. जिसके कारण अब किशोर उपाध्याय की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठने लगे हैं.
चुनाव करेगा राजनीतिक भविष्य को तय ?
किशोर उपाध्याय और अजय भट्ट दोनों के लिए यह विधानसभा चुनाव उनका राजनीतिक भविष्य की दिशा को बताने वाला होगा. क्योंकि मुश्क़िल हालात में जीत इनके पॉलिटिकल करियर को और आगे बढ़ाएगी, लेकिन इनकी हार के साथ पार्टी में भी इनके वजूद पर सवाल खड़े हो सकते हैं. अगर ये दोनों अपनी सीट बचा पाते हैं तो पार्टी में इनका क़द और बढ़ जाएगा वरना खेल ख़त्म...