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कसक:लघु उपन्यास

25 दिसम्बर 2021

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                        कहानी  कसक

(जब सरहदें बुलाती हैं तो सैनिक मातृभूमि के लिए तत्काल युद्धस्थल में जाता है।माँ भारती की रक्षा हेतु शत्रु से युद्ध में वह वैयक्तिक प्रेम को भुलाकर देश के लिए अपने जीवन बलिदान को तत्पर हो उठता है।इस लंबी कथा में शौर्य सिंह नामक एक देशभक्त सैनिक के वैयक्तिक प्रेम व राष्ट्रप्रेम की संवेदनापूर्ण कहानी है।)
                      (1)

आज कॉलेज का पहला दिन है। कॉलेज के मुख्य द्वार पर गहमागहमी है और बहुत से लड़के लड़कियां चहलकदमी कर रहे हैं। कुछ लड़के और लड़कियां छोटे-छोटे झुंड में हैं और बातों में मशगूल हैं। कॉलेज के सायकल स्टैंड में अपनी दुपहिया खड़ी कर एक लड़का सकुचाया हुआ सा नोटिस बोर्ड की ओर बढ़ता है।एक-दो और विद्यार्थी जो फर्स्ट ईयर के ही होंगे, पहले से टाइम टेबल नोट कर रहे हैं।नोटिस बोर्ड पर टाइम टेबल देखकर वह फर्स्ट फ्लोर में बने हुए फर्स्ट ईयर की क्लास में पहुंचता है। अभी क्लास का समय हुआ नहीं है।एक दो स्टूडेंट कक्षा के सामने गलियारे में हैं।लड़के और लड़कियों को आपस में बेतकल्लुफी से बातें करते देखकर वह युवक आश्चर्यचकित हो उठा था। दरअसल वह गांव के स्कूल में पढ़ा था। वहां सह- शिक्षा तो थी लेकिन लड़के और लड़कियां बहुत अधिक घुलते-मिलते नहीं थे। लड़के और लड़कियों के ग्रुप तो बिल्कुल अलग-अलग होते थे।वहां किसी लड़की के पास जाकर उससे बातें कर लेना बहुत हिम्मत का काम समझा जाता था। कॉलेज में भी उसने इसी तरह के दृश्य की कल्पना की थी।

वह कक्षा के भीतर गया।उसने सोचा भी नहीं था कि वहां अंदर कोई होगा, लेकिन उसे आश्चर्य हुआ कि एक लड़की पहले ही वहां बैठी हुई है।वह अपनी कॉपी में कुछ लिखने में मशगूल थी।एक क्षण को तो लड़का उसे देखता ही रह गया।तीखे नाक-नक्श वाली वह आकर्षक लड़की शांति की प्रतिमूर्ति सी दिख रही थी। आंखों में गजब का आत्मविश्वास और होठों पर एक हल्की मुस्कान।लड़के को नीला रंग बहुत पसंद था और वह लड़की गहरे नीले सूट में थी। उसे ऐसा लगा जैसे आकाश और समंदर की सारी नीलिमा उस सौंदर्य की देवी में समाहित हो उठी हो।एक क्षण बाद लड़के ने अपना मुंह तुरंत दूसरी ओर कर लिया और आत्मग्लानि से भर उठा। मन ही मन सोचने लगा- हे भगवान मेरा मन कहां भटक गया था। अगर लड़की मुझे यूं देख लेती तो मेरे यूँ एकटक देखते रहने से उसे बुरा लग सकता था।

लड़का उस लड़की के पास से गुजरते हुए एक बेंच पर बैठने जा ही रहा था कि अब उस लड़की का ध्यान  उसकी ओर गया। उसने कहा-

"हेलो,मैं शांभवी हूँ। इसी कक्षा में पढ़ती हूं और आप?"

"....जी..जी..मैं शौर्य सिंह।…. आज पहली बार कॉलेज आया हूं।"- हेलो के जवाब में हाथ जोड़ते हुए उसने उत्तर दिया।
मुस्कुराते हुए उस लड़की ने कहा-

"आज तो सबके लिए कॉलेज का पहला दिन ही है,क्योंकि यह फर्स्ट ईयर की क्लास है।

"जी….जी…"-शौर्य सिंह ने लगभग हकलाते हुए कहा।

"अरे तो आप घबरा क्यों रहे हैं?रिलेक्स रहिए।आइए बैठिए।"

लड़की ने अपनी बेंच पर एक ओर खिसकते हुए शौर्य सिंह को उस पर बैठने का इशारा किया।

शौर्य सिंह सकुचाते हुए उस बेंच पर बैठ गया। माथे पर उभर आए पसीने को पोंछते हुए सिक्का सिंह अब सहज होने की कोशिश करने लगा। युवती ने पूछा-

"क्या आपने टाइम टेबल नोट कर लिया है?"

-"हां"

- "तब तो ठीक है।मैंने नोटिस बोर्ड के पास भीड़ देखी इसलिए पहले पीरियड की डिटेल देखकर सीधे यहीं आ गई। सोचा बाद में नोट कर लूंगी।जरा दिखाइए कॉपी मुझे।"

-"यह लीजिए टाइम टेबल। मैंने भी यहां आते हुए पहले नोटिस बोर्ड से इसे कॉपी में उतारने का ही काम कर लिया था।"

शांभवी मुस्कुराई और शौर्य सिंह की कॉपी से अपनी कॉपी में टाइम टेबल नोट करने लगी।उधर शौर्य सिंह मन ही मन हनुमान जी का स्मरण करने लगा-हे हनुमान जी! मैंने गांव से इस शहर में आने से पहले ही निश्चय कर लिया था कि केवल पढ़ाई में ध्यान दूंगा। लड़कियों से दो हाथ दूर रहूंगा लेकिन पहले ही दिन देखिए, यह क्या हो गया प्रभु? मैं तो यही मानता हूं देवा कि हर लड़की हमेशा आदर और सम्मान के लिए ही होती है और अनजाने भी हमारे किसी व्यवहार से उनको असहज लगना उनका अनादर ही है। मुझे क्षमा करना प्रभु।

                   (2)

शौर्य सिंह एक शर्मीला और संकोची नवयुवक है लेकिन कॉलेज आकर कुछ ही दिनों में धीरे-धीरे सामान्य होने लगा।बात अब उसकी समझ में आ गई थी कि अगर कॉलेज में सह शिक्षा है। यहां प्रैक्टिकल के लैब एक हैं।लाइब्रेरी एक है।ऐसे में सभी एक साथ बैठते हैं और लड़के-लड़कियों में आपसी बातचीत होती है, तो इसमें गलत कुछ भी नहीं। फिर भी वह लड़कियों से एक सम्मानजनक दूरी बनाकर रहना चाहता था। लड़कियों को लेकर उसकी झिझक तो एक हद तक दूर गई थी, लेकिन उसे लगता था कि किसी लड़की की मर्यादा और निजता को बनाए रखने के लिए उसे हर समय थोड़ा स्पेस देना बहुत आवश्यक है।वह इस बात का विशेष ध्यान रखता था कि जाने-अनजाने उससे किसी का अपमान ना हो जाए। वैसे उसके जैसे सीधे,सरल और भोले युवक से ऐसा होना असंभव ही था।

शांभवी और शौर्य सिंह में जान पहचान अब गहरी होने लगी। उनकी मुलाकात लाइब्रेरी में भी होने लगती।शांभवी थोड़े मुखर स्वभाव की थी लेकिन वह अपनी पढ़ाई के प्रति गंभीर थी और अन्य लड़कियों की तरह उसका ध्यान नई-नई फ्रेंडशिप, फैशन,लेटेस्ट हेयर स्टाइल और नई फिल्मों में लगभग ना के बराबर था।वहीं शौर्य सिंह तो था ही पढ़ाकू।दोनों की मित्रता और गहरी होने लगी। यहां तक कि लेबोरेटरी में भी वे अपने काम में इस तरह तल्लीन रहते कि अन्य स्टूडेंट्स के चले जाने के बाद भी देर तक प्रैक्टिकल करते रहते। कई बार तो लैब अटेंडेंट को उन्हें आकर बोलना पड़ता- भई,अब लैब बंद करने का समय हो गया है।आप लोग अपने- अपने घर जाओ।

                 (3)

अनजाने ही शांभवी ने शौर्य सिंह के जीवन में अपनी एक अलग जगह बनाना शुरू कर दिया था। शौर्य सिंह उस दिन को कभी नहीं भूलता, जिस दिन शांभवी ने उससे कहा था- चलो कैंटीन में बैठकर एक-एक कप कॉफी पी लें। अब तक लड़कियों को लेकर  शौर्य सिंह की झिझक भी पूरी तरह दूर हो गई थी। दोनों एक साथ कैंटीन पहुंचे।वहां उन्होंने साथ बैठकर कॉफी पी। यह किसी लड़की के साथ इस तरह बैठकर कॉफी पीने का उसका पहला अनुभव था, इसलिए पूरे समय वह सकुचाता ही रहा।वे देश- दुनिया की बहुत सी बातों पर चर्चा भी करते रहे ।पड़ोसी राष्ट्र की शह पर घाटी में फैलाई जा रही अशांति और हिंसा की खबरों से वे व्यथित भी हुए लेकिन जल्द ही उन्होंने बातचीत का टॉपिक कॉलेज और अपने-अपने घर परिवार पर केंद्रित कर दिया। इसी बीच हल्की बारिश होने लगी और कैंटीन में पहले से बैठे लड़के और लड़कियां कॉलेज के मुख्य बिल्डिंग की ओर दौड़कर जाने लगे, ताकि तेज बारिश शुरू होने से पहले ही वे अपने-अपने घर पहुंच जाएं ,लेकिन शांभवी और शौर्य सिंह अपनी-अपनी कॉफी को जल्दी समाप्त करने के मूड में नहीं थे। भले ही दोनों के कप की कॉफी कब की ठंडी हो चुकी थी।यह शौर्य सिंह के जीवन का एक अविस्मरणीय दिन था। घर पहुंचकर उसे अत्यधिक खुश देखकर माँ ने पूछा भी-"क्या बात है बेटा? कुछ खास बात तो नहीं?"

वहीं शौर्य सिंह ने मुस्कुराकर बात को टाल दिया।
अगले दिन कॉलेज में लड़कों ने शौर्य सिंह को छेड़ा-"क्या विश्वामित्र जी की तपस्या भंग होने जा रही है?" वही लड़कियों ने शांभवी को छेड़ा- "आखिर जोगी महाराज को रास्ते पर ले ही आईं ना?"

  

                  (4)
  

...............एक बार मेजर शौर्य सिंह फ़ील्ड ड्यूटी करते-करते अपने कॉलेज के दिनों को याद कर रहे थे, जब शांभवी नामक एक लड़की से उनका परिचय हुआ था। अपनी ड्यूटी करते हुए भी व्यक्ति अपने प्रिय और आत्मीय लोगों को कभी नहीं भूलता है। घर से महीनों के लिए दूर रहते हुए शौर्य सिंह जहां मम्मी और पापा को लेकर भावुक हो जाते हैं,वही प्रिय की स्मृति उनके हृदय के लिए उत्साह व एक नई ताज़गी लिए हुए आती है।

  सेना के मेजर शौर्य सिंह कई दिनों से बॉर्डर एरिया में तैनात है ।जब से क्रॉस बॉर्डर फायरिंग बढ़ी है और इसकी आड़ में पड़ोसी राष्ट्र के सैनिक आतंकवादियों को सीमा के भीतर प्रवेश कराते हैं,उन्हें चौबीसों घंटे चौकन्ना रहना पड़ता है।आजकल पड़ोसी राष्ट्र की बॉर्डर एक्शन टीम 'बैट' सीधे घुसपैठ की फिराक में रहती है।इस सीमाई राज्य से विशेष धारा हटाए जाने के बाद से पड़ोसी राष्ट्र को शायद अब यह लगता है कि इस राज्य को अपने मुल्क में मिलाने का उनका सपना अब सपना ही रह जाने वाला है । पहले उन्होंने यह सोचा था कि धारा हटाए जाने की बड़ी भारी प्रतिक्रिया होगी और बड़ा जन आंदोलन खड़ा होगा, लेकिन उनके इरादों पर पानी फिर जाने से उन्होंने फिर अपनी पुरानी नीति के तहत घुसपैठियों को देश में भेजना और यहां हिंसा तथा खून खराबा कर अशांति फैलाना शुरू किया।

     मेजर शौर्य सिंह और उनकी आठ सदस्यों की टुकड़ी ड्यूटी पर है और यहां ये टीम अभी तीन-चार दिनों तक रहेगी। एक साथी मेजर,एक कैप्टन और बाकी पाँच सैनिक बिखरे हुए हैं और मेजर शौर्य सिंह अभी इस एरिया में अकेले ही अपनी ड्यूटी कर रहे हैं।ड्यूटी एकदम फ्रंट के मोर्चे पर है, जहां से पड़ोसी राष्ट्र का उस पार का इलाका कुछ दूरी तक साफ नजर आता है। यह देश का वह सीमाई इलाका है, जहां अभी घुसपैठ रोकने के लिए सेंसर लगाने का काम किया जा रहा है ।

काफी देर तक दूरबीन से बाहर का दृश्य देखते रहने के बाद शौर्य सिंह ने आंखों को आराम दिया। उन्होंने सेटेलाइट फोन से अपने साथियों का हाल जाना । आसपास के एरिया में किसी गड़बड़ी की कोई आशंका नहीं दिखने के बाद उन्हें थोड़ी राहत की सांस ली।उनका हाथ अपनी जेब में गया और पर्स निकालकर वह अपने परिवार की फोटो को देखने लगा।इस फोटो में उनके मम्मी-पापा हैं और चार साल की उम्र का सिक्का खुद है।इस फोटो को निहारते हुए शौर्य सिंह पुरानी यादों में खो गया। मम्मी और पापा को याद करने के बाद वे मोड़कर पर्स जेब में रखने ही जा रहे थे कि फिर एक फोटो नीचे गिरा। वह फोटो एक लड़की....शांभवी की थी।उसे उठाकर बड़े प्रेम से देखते हुए शौर्य सिंह मुस्कुरा उठे। इस फोटो को देर तक निहारते-निहारते ही मेजर शौर्य सिंह अतीत में कहीं खो से गए थे। यादों की श्रृंखला समाप्त होने पर वे पुनः एक झटके से उठे और टहलने लगे।

                 (5)

                                            नवंबर का महीना है।ठिठुरा देने वाली ठंड में भी सैनिक मातृभूमि के प्रति अपने धर्म निभाते हैं ।अभी बर्फबारी शुरु नहीं हुई है।यह प्रायः दिसंबर अंत से शुरू होती है।बर्फबारी के मौसम में लहराती बलखाती नदी और इसके आसपास शंकु के आकार के देवदार तथा चीड़ के खूबसूरत पेड़ों से गिरते बर्फ़ के टुकड़े और आसपास गिरती बर्फ़ की चादर से इलाके की खूबसूरती और निखर उठती है।वैसे अभी पतझड़ का वातावरण भी सुरम्य है।उसकी तैनाती धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले राज्य में है।वह पश्चिम हिमालय के दो मुख्य पर्वत स्कंधों में से एक के आसपास के किसी इलाके में है।पास ही झेलम नदी इलाके में वह कस्बाई स्थान भी है ,जहां पड़ोसी राष्ट्र के घुसपैठियों ने दो साल पहले धोखा देकर एक बड़े कायराना हमले को अंजाम दिया था।

                               घुसपैठ रोकने के लिए पानी से भरे थोड़े दलदली इलाके में कँटीली तार लगाना तो असंभव है। ऐसे में सैनिकों को अग्रिम चौकी से निकलकर शिफ्टवाइज़ नियंत्रण रेखा तक आना पड़ता है।मेजर शौर्य सिंह भी अपनी राइफल लेकर नियंत्रण रेखा के बिल्कुल नज़दीक इस पार कहीं तैनात है।अभियान का  नेतृत्व वे स्वयं करते हैं और सैनिकों को हमेशा उत्साहित करते रहते हैं। वे केवल अपनी सुविधा और अपने सामानों के ढोने के लिए एक-दो सैनिकों को अपने साथ नहीं रखते, बल्कि पूरी टुकड़ी बराबरी से अपना काम खुद करती है।यहां एक कमांडर तो है, लेकिन सारे बराबर के श्रम करने वाले हैं।
                                                          मेजर शौर्य सिंह,उम्र लगभग पचीस बरस।चुस्त कसरती शरीर। कॉलेज के दिनों से ही उसे कसरत और जिम का जैसे जुनून था ।उसे मीलों तक लंबी दौड़ लगाने का अभ्यास था। उसने अपने शरीर को किशोरावस्था में ही एक सैनिक की आवश्यकता के अनुरूप ढाल लिया था । उसे लगता था कि वह शरीर को जितना फिट रखेगा, वह देश की सेवा उतने ही अच्छी तरह से कर सकेगा।             

                  (6)

            अभी मेजर शौर्य सिंह जहां हैं, वहां गाड़ियों से आने का प्रश्न ही नहीं था।ये लोग घंटों पैदल चलकर यहां तक पहुंचे थे। जिस टुकड़ी को उन्होंने रिलीव किया था, उन्हें भी कैंप तक पहुंचने में घंटों ही लगे होंगे।अपनी राइफल को उन्हें हर समय लोडेड रखना पड़ता है ।रात को नाइट विजन दूरबीन  बहुत काम काम आती है। दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने के बाद से आए दिन कॉम्बेट होते रहती है।मेजर ने एक बार फिर चहलकदमी शुरू की। काफी देर तक पैदल गश्त लगाने के बाद वे थोड़ा थक गए और एक पेड़ के नीचे बैठकर तने से टिककर सुस्ताने लगे।वह तब भी चौकन्ने थे।उनका एक हाथ राइफल पर था और सीधे हाथ से वे दूरबीन पकड़ कर दूर का नजारा देख रहा था। नियंत्रण रेखा के उस तरफ भी ऐसा ही भूगोल था और पेड़ों के कारण अधिक दूरी तक तो नहीं देखा जा सकता था लेकिन उन्होंने अपेक्षाकृत कुछ ऊंची जगह का चयन किया था ।वहां से उनकी दृष्टि दूर तक जा पाने के साथ-साथ,एक छोटे नाले पर भी बराबर बनी रह सकती थी ।

   यह नाला गहरा था और इसमें पर्याप्त पानी बहता था।इस पर एक बहुत पुराना लकड़ी का पुल था जो जगह-जगह से जर्जर हो गया था। शायद 65 या 71 की लड़ाई में जब सैनिकों को यह इलाका पार कर शत्रु के इलाके में घुसना पड़ा था,तभी इस कामचलाऊ पुल को भी बनाया गया होगा।पुल की तख्तियों पर हल्की काई जमी दिखाई देती है।कहीं-कहीं बेलें भी उग आई हैं। ऐसा लगता है कि दशकों से किसी ने इस पुल पर पैर नहीं रखा है। यह कई जगहों से टूटा फूटा पुल है फिर भी साबुत है।लेकिन है इतना जर्जर कि किसी के द्वारा इसका प्रयोग करने का प्रश्न ही नहीं था। इस दुर्गम इलाके से विशेषकर इस पुल से होकर आज तक कभी घुसपैठ भी नहीं हुई होगी। फिर भी सावधानी के तौर पर यहां भी गश्त लगाई जाती है।
 
                        (7)

      
……..शौर्य सिंह  ने मुस्तैदी से एक बार फिर आसपास के एरिया में गश्त लगाया और  अपने साथियों से बात की।उन्हें लगातार गश्त करते रहने के बारे में उन्होंने निर्देश भी दिए। अभी शाम ढलने में एक से डेढ़ घंटा है। वह 18 वर्ष पूर्व की यादों में डूब गया। सात साल के एक छोटे से बच्चे ने स्कूल से घर आकर अपना बैग रखते हुए मां से पूछा-

   - माँ-माँ, पिताजी कब आएंगे?

   -बेटा,उन्हें आना तो जल्दी चाहिए था पर अभी तक कोई खबर नहीं है।

   -कोई बात नहीं माँ,आ जाएंगे। और ऐसा तो अक्सर होता रहता है।

- हाँ रे!तू बड़ी समझदारी की बातें करता है। वैसे तूने सच ही कहा है।ऑपरेशनल एरिया में वे कहां पर हैं और शत्रुओं से कैसे मुकाबला कर रहे हैं,इसकी जानकारी तो शायद यहां के सीओ साहब को भी कई बार नहीं होती है।

- पता है, पता है मां !आखिर बड़ा होकर मुझे भी तो फौज में जाना है।

- नहीं-नहीं, मैं तुम्हें फौज में नहीं जाने दूंगी, तुम्हारे पिता की तरह। एक तो उनके बाहर ड्यूटी पर रहने के समय मेरा दिल तब तक जोरों से धड़कते ही रहता है, जब तक वे घर ना आ जाएं और ऊपर से तू फौज में जाने की बात करता है।

- ठीक है मां जैसा तुम कहोगी मैं वैसा करूंगा।

-अच्छा अब तो हाथ मुंह धो ले।मैं तुम्हारे लिए खाना लगाती हूं ।

- हाँ मां!

शौर्य सिंह के पिता कैप्टन विजय  फौज में हैं ।और तैनाती भी इसी सीमाई राज्य में है,जहां आए दिन उन्हें ऑपरेशनल एरिया में जाना पड़ता है । सीमा पर तनाव के कारण अक्सर उनकी छुट्टियां रद्द हो जाती हैं और कई बार तो वे कई-कई दिनों तक घर नहीं आ पाते हैं। विजय की पत्नी दीप्ति आर्मी एरिया के सुरक्षित क्वार्टर में अपने बेटे शौर्य सिंह के साथ रहती है। बड़ी रिहायशी कॉलोनी में होने के कारण रोजमर्रा के जीवन में कोई तकलीफ नहीं है।वह आर्मी जीवन के उतार-चढ़ाव की भी अभ्यस्त हो गई है।शौर्य आर्मी के स्कूल में पढ़ता है।खेलने के लिए बड़ा मैदान है। कई तरह की सुविधाएं हैं और फौजियों की पत्नियों  के साथ खुद दीप्ति का दोपहर का समय  अच्छे से कट जाता है।वह आर्मी विमेन वेलफेयर सोसाइटी से जुड़ी भी है इसलिए समाज सेवा के कामों में भी अपना वक्त देती है।

              (8)

  शाम का वक्त है।दीप्ति पड़ोसी महिलाओं के साथ क्वार्टरों के आगे वाले खुले स्थान में बैठी हुई है। गपशप हो रही है।बच्चे मैदान में खेल रहे हैं ।आर्मी की एक-दो गाड़ियां कमांड ऑफिस की तरफ से आती-जाती दिखाई देती हैं। आर्मी के कुछ जवान मैदान के एक सिरे पर वॉलीबॉल खेलने में व्यस्त हैं। सब कुछ अपने ढर्रे पर है लेकिन दीप्ति का ध्यान सभी से बातों में मशगूल होने के साथ-साथ अपने पति की ओर भी लगा हुआ है।आज तीन दिन हो गए। विजय का न कोई फोन आया, ना आर्मी की ओर से कोई सूचना ही प्राप्त हुई।

  जब विजय घर से निकलते हैं तो सामान्य सूचना अवश्य देते हैं कि कितने दिन लगने वाले हैं।इस बार उन्होंने संभावित समय तीन दिन ही बताया था,इसलिए वह सुबह से ही प्रतीक्षा कर रही है कि आज वह अवश्य लौट आएंगे क्योंकि आर्मी वालों का किसी भी ऑपरेशन को लेकर किया गया  पूर्वानुमान प्रायः सही ही निकलता है।लेकिन इस बार इन तीन दिनों में उनका एक भी फोन नहीं आया। शाम ढलने लगी थी और सूर्य के प्रकाश को सांझ का स्याह आवरण अपने में समेट रहा था। आर्मी ग्राउंड के चारों ओर बने पेड़ों में पक्षियों का कलरव ठीक शाम के समय तेज हो जाता है लेकिन जब रात अपने पंख फैलाने लगती है तो पक्षी भी खामोश हो जाते हैं ।यह इस बात का संकेत होता है कि वे अपने-अपने नीड़ों तक पहुंच चुके हैं लेकिन दीप्ति का क्या? वह तो अपने घोंसले में अभी तक प्रतीक्षारत है।शौर्य सिंह खेल कूद कर घर लौटा और घर पहुंचकर 'पापा कब आएंगे' 'पापा कब आएंगे' की ही रट लगाए रहा। खाना खाकर वह मां की गोद में जल्दी ही सो गया।दीप्ति पुत्र शौर्य सिंह का सर अपनी गोद में रखे रखे ही ऊँघने लगी। रात को 11:00 बज चुके थे और तभी मोबाइल की घंटी घनघनाई।

-अरे दीप्ति,अब तक जाग रही हो।

-ओहो! कहां हो आप? आप ठीक तो हो ?घर तो नहीं पहुंचे आप।क्या बात है?एक फोन भी नहीं किया।

   -सॉरी बाबा।वे आतंकवादी अभी तक चूहों की तरह अपने घर के बनाए बंकरों में घुसे हुए हैं और हमने उन्हें मजबूती से घेर रखा है। हो सकता है एक-दो दिनों में वे ट्रेस हो जाएं।

-अच्छा।

-और मुझे तो लगता है कि इनके घर भी भूमिगत सुरंगों की सहायता से इंटरकनेक्टेड हैं। इसलिए एक घर ढूँढ़ो,पक्की सूचना के बाद, तो भी वहां नहीं मिलते।

-ओह, पर अपना ध्यान रखना।

-और शौर्य  कहाँ है?वह तो सो गया होगा।

-हां,आपको आज आना था और आपकी राह देखते-देखते वह सो ही गया।

   यह सुनकर विजय का गला रुंध गया और बेटे से बात न कर पाने की मजबूरी उसकी भरभराई आवाज से साफ-साफ प्रकट हो रही थी। थल सेना के कैप्टन विजय ने फोन रख दिया। दूसरे दिन सुबह टीवी पर ही न्यूज में दीप्ति को सूचना मिली कि सुरक्षाबलों के घेरे में आखिर वे तीनों आतंकवादी हाथ आए और बड़ी मशक्कत के बाद मुठभेड़ में उन्हें मार गिराया गया। सुरक्षा बल के किसी भी जवान को कोई क्षति नहीं पहुंची। दीप्ति ने राहत की सांस ली।



                     (9)

  कैप्टन विजय दो  दिनों बाद घर लौटे।उन्होंने अपने आने की सूचना पहले ही दे दी थी।आर्मी की गाड़ी क्वार्टर तक छोड़ने के लिए आई ।उन्हें देखते ही शौर्य लहक उठा ।दौड़कर  पिता के पास  पहुंचा। विजय ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और हवा में उछाल कर फिर लपक लिया। खुश होते हुए बच्चे ने कहा-

- पापा आप जल्दी क्यों नहीं लौटते? इतने दिन क्यों लगाते हो ?

- मेरे राजा बेटे, तुम तो जानते ही हो कि देश की हिफाजत के लिए हमें कई-कई दिन बॉर्डर पर रहना होता है। इधर अंदर के एरिया में भी  आतंकवादियों को पकड़ने के लिए जब अभियान चलता है, यही स्थिति बनती है।

- मैं सब जानता हूं पापा! आप बहादुर हो और मातृभूमि की रक्षा कर रहे हो  फिर भी, कम से कम एक फोन तो कर ही सकते हो ना।

विजय ने शौर्य सिंह को अपने कंधे पर बिठाते हुए कहा- बेटे हम लोगों के पर्सनल फोन तो पहले ही जमा हो जाते हैं ।अगर हम उन्हें ऑपरेशनल एरिया में ले जाएं तो शत्रुओं के द्वारा इंटरसेप्ट कर लिए जाने का डर है और फिर हमारी लोकेशन भी पता लग जाएगी।

-अब समझा पापा।

- बहुत अच्छे बेटा । परसों तुम्हारी मम्मी को पर्सनल नंबर से भी तब फोन कर पाया, जब अचानक किसी काम से मुझे  फील्ड से हटके  कुछ घंटे के लिए वापस कमांड आना पड़ा था  और अनायास ही मुझे कमांडर साहब ने फोन उपलब्ध करा दिया था।

पिता के गले में बाँहें डालते हुए  शौर्य सिंह ने कहा-

- बस बस पापा, अब मैं आपसे और डिटेल नहीं पूछूंगा,सब समझ गया।

शौर्य इस तरह की परिस्थितियों में बहुत दिनों के बाद अपने पापा को देखता था।सब कुछ जानने के बाद भी शिकायत करना न सिर्फ उसका हक था बल्कि यह उसकी बाल सुलभ इच्छाओं की अभिव्यक्ति भी होती थी। तभी दरवाजे पर खड़ी दीप्ति भी बाहर आ गई।तीनों हँसी खुशी के साथ बातें करते हुए अंदर लौटे।

    इस सीमाई कस्बे के बाहरी इलाके में आर्मी का एरिया है।यह इलाका कड़ी सुरक्षा वाला है। आर्मी का कमांड कार्यालय और रिहायशी इलाका एक साथ है।इस पूरे एरिया को ऊंची चहारदीवारी से कवर किया गया है। इसके भी ऊपर कंटीले तार हैं,वाचिंग टावर है।बाहर बड़े से गेट पर चौबीसों घंटे आर्मी के जवान लोडेड रायफलों के साथ पहरा देते हैं।मुख्य द्वार से लगभग 100 मीटर पहले ही सभी गाड़ियां रोक दी जाती हैं और सघन जांच के बाद ही मुख्य द्वार तक पहुंचती हैं। पिछले महीने पास के एक कस्बे में आतंकवादियों ने आर्मी की ही वर्दियां पहनकर घुसपैठ करने की कोशिश की थी और वे दोनों आतंकवादी गेट पर ही मारे गए थे। तब से आर्मी की सारी यूनिटें हाई अलर्ट पर हैं और यहां तक कि आर्मी के लोगों को भी कई तरह की सुरक्षा जांच के बाद ही  भीतर आने दिया जाता है।स्वयं सीओ साहब इसका पालन करते हैं। आर्मी एरिया अपने आप में एक छोटा शहर है,जहां आवश्यकता की वस्तुओं की दुकानों से लेकर अस्पताल, डाकघर,स्कूल और तमाम तरह की नागरिक सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं। बच्चों के खेलने के लिए मिनी स्टेडियम, जिम और सुबह की सैर के लिए बहुत बड़ा मैदान सभी यहां उपलब्ध है। सामान्य दिनों में विजय, सिक्का सिंह और दीप्ति तीनों सुबह की सैर पर निकलते हैं और पूरे आर्मी एरिया का एक चक्कर लगा लेते हैं। उसके बाद जिम में जाकर  कैप्टन विजय एक्सरसाइज करते हैं तो शौर्य सिंह और दीप्ति पास के पार्क में चले जाते हैं।यहां बच्चे और उनके माता-पिता अपने परिवार के साथ होते हैं। इस तरह एक अत्यंत खुशनुमा माहौल होता है।आर्मी का अनुशासन भी कड़ा होता है।लोगो में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी होती है।आर्मी एरिया के अनूठे वातावरण में ही देशभक्ति, त्याग और उच्च आदर्शों की बातें कण-कण में बिखरी होती हैं।

   स्वास्थ्य ठीक ना होने से दीप्ति घर पर है।विजय और शौर्य आज सुबह की सैर पर निकले हैं। शौर्य सिंह बड़ी उत्सुकता के साथ अपने पापा को स्कूल की बातें बता रहा है और विजय बड़े मनोयोग से उसे सुन रहे हैं।बात आर्मी,बॉर्डर,शत्रुओं और सेना पर
भी होती है। शौर्य सिंह पिता से पूछता है-

-पापा आप सबसे अधिक किससे प्यार करते हैं?

- तुमसे और किससे?

- और मम्मी से?

- हां पर तुम्हारे बाद ही।

- और हमारे भारत देश से?

- सबसे ज्यादा, सबसे बढ़कर।

- क्या मुझसे और अपने परिवार के प्यार से भी बढ़कर पापा?

-हाँ शौर्य,वतन पहले। उसके बाद ही और कुछ।

- वाह ! आप कितने अच्छे हो पापा।मैंने भी स्कूल में पढ़ा है कि मातृभूमि सबसे बढ़कर होती है।
बातों का सिलसिला चल रहा है और पिता पुत्र के कदम भी धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं ।शौर्य सिंह पिता से अनेक बातें पूछता है और अनायास ही उसके जीवन की भावी दिशा और लक्ष्य तय होने लगते हैं।

           (10)

शौर्य सिंह है तो बॉर्डर में लेकिन कई साल पहले की आर्मी एरिया की यह सब बातें उसके दिमाग में जैसे आज भी ताजा हैं……...  पास में हल्की आहट होने से शौर्य सिंह की तंद्रा टूटती है। तत्काल उसका एक हाथ राइफल में जाता है और वह दबे पांव आहट की दिशा में आगे बढ़ता है।पास पहुंचकर उसे संतोष होता है कि खतरे वाली कोई बात नहीं है।वहां एक हिरण था । शौर्य सिंह के वहाँ पहुंचने के साथ ही वह कुलांचे भरता हुआ अदृश्य हो गया। आसपास के इलाके का एक और चक्कर लगाकर शौर्य सिंह फिर एक ऊंचाई वाली जगह पर बैठ गया।अपनी दृष्टि उसने उस नाले पर बराबर बनाए रखी है। शाम होने में अभी वक्त है फिर भी घने पेड़ों के कारण सूर्य की रोशनी छन छन कर ही नीचे आती है।दूर उसे अपनी कल्पना में एक धब्बा दिखाई दिया और वह धब्बे एक से दो हो गए और फिर वही बरसों पुराना दृश्य जिसमें शौर्य सिंह और उसके पिता विजय आर्मी एरिया में सुबह चहलकदमी कर रहे हैं।

शौर्य सिंह पिता से बराबर प्रश्न पूछ रहा है:-

  -पापा, आप तो लड़ाई के मैदान में जाते हैं।वहाँ फायरिंग होती है। गोली लगती है और सैनिक घायल होता है। और पापा जब किसी की मौत होती है तो मरने वाले को बहुत कष्ट होता होगा ना?

  -हाँ बेटे,लेकिन बहादुर जवान इसकी परवाह नहीं करते।

- मैं जानता हूं पापा लेकिन उनके मरने के बाद उनके परिवार का क्या होता है? उसकी देखभाल कौन करता है?

अपनी आंखों में आ रहे आंसू को बमुश्किल रोकते हुए विजय ने कहा:-

- बेटा उनकी देखभाल देश करता है।सेना करती है और देश की जनता करती है और फिर मातृभूमि के लिए शहीद होने का सौभाग्य बहुत कम लोगों को मिलता है।

-आप ठीक कह रहे हैं पापा।

- और सोचो बेटा अगर सैनिक मरने से डरने लगे तो वह क्या बंदूक उठाएगा? और शत्रुओं पर क्या फायरिंग करेगा?वह ऐन मौके पर मौत के डर से भाग खड़ा होगा तो सेना में उसके आने का मतलब ही क्या?

-मैं समझ गया पापा। देश की रक्षा के लिए अगर सैनिक अपने प्राणों को दे दे तो भी कम है और देश सबसे ऊपर है, अपने परिवार से भी।
शौर्य सिंह के विचार सुनकर विजय को भी गर्व की अनुभूति हुई।बेटे की पीठ ठोंकते हुए उन्होंने शाबाशी दी।

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अब विजय और शौर्य सिंह आर्मी एरिया का लगभग एक चक्कर पूरा लगा चुके थे…….. लेकिन यह क्या?आखिरी छोर पर बने छोटे से सूखे नाले के पास उन्होंने कुछ हलचल देखी। पानी निकासी की सूखी नाली के पास एक व्यक्ति झुका हुआ था और हाथों को सहारा देकर एक दूसरे व्यक्ति को  खींचकर भीतर लाने की कोशिश कर रहा था। अंदर आ चुके व्यक्ति की पीठ पर गन देखते ही कैप्टन विजय समझ गए कि वे आतंकवादी हैं और इस अप्रत्याशित जगह से अंदर घुसने का प्रयास कर रहे हैं। तुरंत उनका माथा ठनका। शौर्य सिंह की ओर अपना फोन उछालते हुए और नाले की ओर भागते हुए उन्होंने उससे कहा-

  -वापस भागो और दौड़ते हुए तुरंत कमांड ऑफिस को फोन करो कि आतंकवादी इस एरिया में घुसने की कोशिश कर रहे हैं ।वहां का नंबर डायल किए गए नंबरों की लिस्ट में सबसे ऊपर ही है। मैंने सुबह ही वहां बात की थी।

शौर्य सिंह हतप्रभ था लेकिन उसने साहस का परिचय दिया।उसने भागते हुए एक बार मुड़कर पिता की ओर देखा और  फोन पर कमांड ऑफिस डायल करने लगा।

  इधर विजय ने सोचा न जाने आतंकी कितनी संख्या में हों। अगर ये अंदर घुस गए तो इस आर्मी एरिया में बड़ी तबाही मचा सकते हैं।उस व्यक्ति का ध्यान अपने साथी को सहारा देकर भीतर लाने पर था ।आव देखा न ताव ,पास पहुंचकर विजय ने ललकार कर उस पर छलांग लगा दी और उसे अपने काबू में कर लिया। गर्दन पर अपने मजबूत प्रहार से ही निहत्थे विजय ने उस आतंकवादी को वहीं ढेर कर दिया।इससे पहले कि विजय आतंकवादी की पीठ से राइफल निकाल पाता, तेजी से सरककर बाहर निकल चुके आतंकी ने विजय पर ओपन फायर कर दिया। गोलियां सीने पर लगीं और मातृभूमि की रक्षा के लिए कैप्टन विजय वहीं शहीद हो गए। तेजी से दौड़ते बालक शौर्य सिंह ने कमांड ऑफिस फोन कर दिया और पलक झपकते ही पहले से हाई अलर्ट पर चल रहे सेना के जवान मिनटों में उस एरिया में पहुंचे। सभी आतंकवादी बमुश्किल अभी नाले से होकर अंदर आ पाए थे।वे अभी तक खुले में थे और भागकर कहीं छिपने की कोशिश कर रहे थे। सेना के जवानों ने तीन से चार मिनटों में चारों आतंकवादियों को मार डाला। मरने से पहले विजय एक को पहले ही ठिकाने लगा चुके थे।सभी आतंकवादी मौत के घाट उतार दिए गए थे।

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कैप्टन विजय की शहादत के बाद जैसे दीप्ति और शौर्य सिंह की दुनिया ही बदल जाने वाली थी। यह दोनों के जीवन पर एक बड़ा आघात था।विजय के पार्थिव शरीर को देखकर दीप्ति गश खाकर गिर पड़ी थी और घंटों बेसुध रही। रो-रो कर उसका बुरा हाल था।यह भी विधि की एक विडंबना थी कि सात साल के छोटे से बालक ने अपनी रोती हुई मां को ढाढ़स बँधाने की कोशिश की। पिता शायद इस छोटी सी उम्र में ही उसे सेना और उसके सैनिकों के दायित्व के बारे में बहुत सी बातें सिखा गए थे। पिता की शहादत ने उसके भीतर देशभक्ति के जज्बे को और मजबूत कर दिया था। पिता के बलिदान वाले दिन स्वयं उसने भी आतंकवादियों को आमने-सामने देखा था,इसलिए उसके अंदर देश के दुश्मनों को नेस्तनाबूद करने को लेकर एक ज्वालामुखी बनने लगा था। पिता के रक्तरंजित शरीर को देखकर वह आपे से बाहर हो गया था। लेकिन पिता के उच्च आदर्शों वाली बातों का स्मरण कर उसने अपने आप को संयत किया। वह शायद इन दो घंटों में ही उम्र से कहीं अधिक बड़ा हो गया था ।

      घटनास्थल से भागते-भागते फोन करने के बाद शौर्य सिंह सीधे घर में ही आकर रुका था । लगभग आधे घंटे बाद जब उसने मुठभेड़ स्थल से वापस आकर सेना की गाड़ियों के काफिले की कुछ गाड़ियों को अपने घर रुकते देखा था, तभी वह समझ गया था कि पिता के साथ अनहोनी घट चुकी है।थोड़ी देर में अपनी गाड़ी से सीओ साहब भी घर आ पहुंचे थे। दीप्ति उन्हें देखकर और इस हुजूम को देखकर हतप्रभ रह गई थी।उसे भी सारा माजरा समझते देर न लगी थी।यह भी विधि की एक विडंबना थी कि आतंकवादियों के मांद में घुसकर शेर की तरह उन पर प्रहार करने वाले विजय आज अपने ही घर में फिर शेर की तरह लड़ने के बाद शहीद हो गए।आर्मी अस्पताल से जब तमाम औपचारिकताओं के बाद दोपहर शहीद कैप्टन विजय के शव को घर लाया गया तो पूरा माहौल गमगीन था।आर्मी एरिया में हरेक के चेहरे पर आंसू थे।

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आतंकवादियों के हमले की संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए स्वयं रक्षा मंत्री ने दो दिनों के बाद थल सेनाध्यक्ष के साथ घटनास्थल का दौरा किया और बाद में दीप्ति तथा शौर्य सिंह की उनसे भेंट कराई गई। शोकाकुल परिवार को उन्होंने सांत्वना दी और सरकार की ओर से अपनी संवेदना प्रकट की।शहीद के परिजन होने के नाते उन्हें पर्याप्त सम्मान मिला। मीडिया में  कैप्टन विजय को नेशनल हीरो की तरह सम्मान मिला, जिन्होंने अपनी जान देकर आर्मी की एक बहुत बड़ी यूनिट को बचा लिया था।

   दीप्ति को सेना एवं सरकार की तरफ से जो सहायता संभव हो सकती थी, दी गई लेकिन कुछ महीने बाद दीप्ति, शौर्य सिंह को लेकर अपने गांव लौट गई।दीप्ति को आर्मी का यह जीवन वैसे भी रास न आता था और अब वह अपने बच्चे को इस जीवन से सदा के लिए दूर रखना चाहती थी। सेना की ओर से दीप्ति को नौकरी का भी प्रस्ताव दिया गया लेकिन दीप्ति ने इसे विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिया था। यादें बड़ी अनमोल होती हैं ,लेकिन कभी-कभी परिस्थितियों के कारण कुछ मोहक यादें भी त्रासद बन जाती हैं।मनुष्य इनसे चाहे भी तो पीछा नहीं छुड़ा सकता है। दीप्ति के लिए तो विजय ही सब कुछ थे।आर्मी एरिया में रहने से वह बार-बार विजय और उनके आर्मी वाले दिनों की स्मृतियों में खो जाती थी। वह इन सब को एक सिरे से भूलना चाहती थी। दूसरी ओर शौर्य सिंह के मन में कैरियर के रूप में सेना को चुनने की इच्छा और भी बलवती हो उठी थी। लेकिन उसे अभी तो मां के साथ गांव जाना था और पहले अपनी पढ़ाई पूरी करनी थी।

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  गांव में आने के बाद दीप्ति ने अपने पुरखों की परंपरागत थोड़ी सी बची खेती और  बाग पर ध्यान दिया। उनका गांव पहाड़ों की तलहटी में है, जहां आसपास प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है। गांव के दो ओर बड़े पहाड़ हैं,एक तरफ छोटी झील तो एक तरफ भूरे पत्थरों की एक छोटी पहाड़ी है।बड़े पहाड़ों में घने वन हैं।वहीं छोटी पहाड़ी में बड़े पेड़ तो नहीं हैं, लेकिन घास खूब लगी रहती है। पहाड़ों के बीच की समतल जगह पर गांव आबाद है । लोगों के पास थोड़ी खेती-बाड़ी और फलों के बाग भी हैं। दिसंबर महीने में कड़ाके की ठंड शुरू होने से पहले ही पहाड़ी गांव वाले अपने खेत व बागों का सारा काम निबटा लेते हैं।पास में एक झील भी है जहां बत्तखों के झुंड तैरते हुए दिखाई देते हैं।झील में मछलियाँ भी पकड़ी जाती हैं। अपने लिए उपयोग की मछलियाँ रखकर गांववाले इसे पास के नगर में बेच आते हैं।गांव में जिनके पास केवल बगीचे हैं,वे सेब व मौसमी फूलों के पौधों के साथ अखरोट के पौधे भी लगाते हैं।इससे उनकी आमदनी भी हो जाती है।

          गांव के आसपास का नजारा है भी सुंदर।यह पहाड़ी राज्य यूं ही धरती का जन्नत नहीं कहलाता।जब चिनार के बड़े पेड़ों से हवा टकराती है तो इससे होने वाली सरसराहट की मधुर ध्वनि से मानो पूरी घाटी गुंजित हो उठती है। जब यहां हल्की बारिश होती है तो दिन के थोड़े उजाले में भी ऐसा लगता है, मानो चांदी की बूँदें धरती पर बरस रही हैं। आसपास बहते झरने, पहाड़ों पर बिखरा प्रकृति का सौंदर्य और रात में मंत्रमुग्ध कर देने वाले वातावरण में  आकाश के टिमटिमाते तारे और चांद एक स्वर्गीय आभा की सृष्टि करते थे। सिक्का सिंह के बाल मन ने बहुत जल्दी ही प्रकृति के इस नैसर्गिक सौंदर्य के साथ खुद को एकाकार कर लिया।

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       दीप्ति ने शौर्य को गांव के ही स्कूल में दाखिला करा दिया और वह खुद भी घर के छोटे से बाग और इसके साथ लगे खेत में व्यस्त हो गई।गांव में आसानी से मजदूर भी मिल जाते थे। शहीद विजय के परिवार का सदस्य होने के कारण दीप्ति और शौर्य सिंह का गांव में अत्यधिक सम्मान था। गांव के लोगों ने शहीद विजय की एक मूर्ति भी स्थापित कर दी थी।शौर्य सिंह पढ़ाई लिखाई में तेज था और देखते ही देखते उसने अच्छे नंबरों से इंटर की परीक्षा पास कर ली। दीप्ति उसे पढ़ने के लिए बड़े शहर में नहीं भेजना चाहती थी।

वह चाहती थी कि उनके पास जीवन यापन के लिए पर्याप्त साधन हैं,इसलिए शौर्य गांव में ही रहे। उसे डर था कि बड़े शहर में पढ़ाई करने पर सिक्का अपने कैरियर को ऊंचाई तो दे देगा लेकिन उसका वैयक्तिक सुख चैन छिन जाएगा।एक आशंका यह भी थी कि कहीं वह अपने पिता के रास्ते पर न चल पड़े।बड़े शहरों में आजकल समूह में हिंसक घटनाएँ भी होने लगी थीं।ऐसे में किसी अनहोनी से उसकी मांग के साथ-साथ अब कोख के भी सूनी हो जाने की आशंका है। यही सोचकर वह शौर्य सिंह को अपने से कभी दूर नहीं करती थी।दीप्ति ने कॉलेज की पढ़ाई के लिए पास के एक छोटे से शहर में शौर्य का दाखिला करा दिया।                    (16)

    समय बड़ी तेजी से गुजरता है और मानो पंख लगाकर उड़ता है।शौर्य सिंह भी देखते ही देखते कॉलेज के अंतिम वर्ष में आ गया। उसकी और शांभवी की दोस्ती बढ़ती ही गई।दोनों में एक विशेष तरह की साझेदारी बन गई थी। इधर दीप्ति घर के कामों में पूरी तरह रम गई थी।उसका अधिकांश समय घरेलू कामों और बाग की देखभाल के साथ-साथ समाज सेवा के कार्य में व्यतीत होने लगा था। गांव में कोई विपत्ति आने पर वह सबसे पहले मदद के लिए खड़ी हो जाती थी।विजय के जाने के बाद उसने शौर्य सिंह को कभी पिता की अनुपस्थिति का अहसास नहीं होने दिया।उसने शौर्य सिंह के पालन पोषण में कोई कसर नहीं रख छोड़ी थी।

पिता के चले जाने के बाद भी शौर्य सिंह ने पिता के आदर्शों को अपने हृदय में संजोए रखा था और अभी भी मन के किसी कोने में सेना में जाने की उसकी इच्छा बलवती थी। एक बार मां से उसने इस बारे में बात करने की कोशिश भी की,लेकिन माँ ने उसे बुरी तरह झिड़क दिया था।यही कारण है कि शौर्य सिंह अब मां के सामने सेना में शामिल होने का जिक्र नहीं करता है। लेकिन हां अपने को शारीरिक रूप से सक्षम बनाने के नाम पर उसने मां से कसरत करने की अनुमति ले ली है। मां ने घर में जिम आदि की स्थापना का पहले तो विरोध ही किया था।उसे लगता कि इन सब पर ध्यान देने से उसका झुकाव फिर से सेना की ओर होने लगेगा और किसी दिन एक झटके में वह सेना में शामिल होने के लिए घर से निकल पड़ेगा।

      शौर्य सिंह कसरती बदन बनाने के अपने शौक को पूरा करने के लिए सुबह उठकर सूर्योदय के पूर्व ही लंबी दौड़ लगाता था। दौड़ शुरू करने के बाद वह तीन चार गाँवों की सरहद को छूकर लगभग एक से डेढ़ घंटे में गांव लौट आता है।  कभी-कभी उसके साथ वर्जिश करने के लिए विपिन भी आ जाता था ।विपिन और शौर्य एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं। विपिन पास के ही गांव में रहता है। दोनों की मुलाकात अक्सर दौड़ लगाते हुए सुबह हो जाया करती है।शौर्य सिंह भी कभी-कभी उसके गांव चला जाता था।

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           राज्य में हालात तेजी से बदले हैं। अलग-अलग धर्मों के लोग यहां हजारों वर्षों से मिलजुल कर रहा करते हैं, लेकिन पिछली सदी के अंत के अस्सी-नब्बे के दशक से स्थितियां तेजी से बदली हैं। कुछ लोगों के हिंसक हमलों ,हत्या, आगजनी और लूटपाट के दौर के बाद बड़ी संख्या में लोग मुख्य घाटी छोड़कर चले गए और अभी भी लोगों का पारस्परिक सौहार्द्र तो कम नहीं हुआ है। इस क्षेत्र से अपना सब कुछ छोड़कर दर-दर भटकने वाले लोग अब बाहर विस्थापित जीवन जीने को मजबूर हैं।यह राज्य सदियों से शैव संस्कृति का गढ़ रहा है और सूफियानापन यहां के जनजीवन में है। कुछ अराजक और देशद्रोही लोग इसको बदल देना चाहते हैं।

    तीस साल पहले दीप्ति के पिता को भी सपरिवार रातों-रात घाटी छोड़नी पड़ी थी और लोगों के दिलों के इस अदृश्य विभाजन के दंश को दीप्ति ने खुद झेला है। दिल्ली के विस्थापित शिविर में रहने के दौरान उसके परिवार को जो तकलीफ झेलनी पड़ी, उसकी चर्चा वह कभी-कभी शौर्य से किया करती है। इस दौरान कत्लेआम और अनेक अप्रिय घटनाएं हुईं लेकिन दीप्ति इन सब की जानकारी शौर्य सिंह को नहीं देना चाहती थी।

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  विस्थापन शिविर में रहने के दौरान ही एक व्यापार के सिलसिले में दिल्ली आए हुए विजय के पिता ने जब अपने संबंधियों से भेंट की तो उन्हें अपने मित्र की लड़की दीप्ति पसंद आ गई। विजय और दीप्ति की चट मंगनी पट ब्याह के बाद वे लोग वापस अपने राज्य पहुंचे। यह इलाका अशांत क्षेत्र से अलग था इसलिए यहां पीड़ा का अहसास कम था। राज्य का आम अवाम अभी भी मिलजुल कर रहने में यकीन रखता है, लेकिन जब एक पूरा देश दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल देने और दहशतगर्दी को प्रोत्साहित करने में लगा हो, और जहां अपनी ही मातृभूमि के विरुद्ध कुछ लोगों का धार्मिक आह्वान पर द्रोह शामिल हो गया हो, तो वहां स्थिति को बिगड़ने में देर नहीं लगती। जनता करे भी तो क्या, कभी हथियारों के बल पर तो कभी धर्म का हवाला देकर उसे बरगलाया ही जाता है और उसकी जुबान बंद कर दी जाती है।शौर्य बड़ा हो गया है इसलिए राज्य के अमन-चैन की हवा और फिजाओं में घुलते जा रहे जहर से वह अपरिचित नहीं है।कॉलेज में भी उसने इस तरह की राजनीतिक चर्चा बहुत सुनी है। शायद यह विष अब गांव-गांव तक पहुंचने लगा है।सेना का पिट्ठू और मुखबिर बताकर लोगों को चुन-चुन कर गोली मार दी जाती है।

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फाइनल ईयर की परीक्षाएं अब लगभग बीस दिनों के बाद शुरू होने वाली थीं। कॉलेज में गंभीरता का वातावरण था।सत्रांत परीक्षा के प्रैक्टिकल हो रहे थे। प्रोजेक्ट फाइलें सबमिट की जा रही थीं। लाइब्रेरी में बैठे-बैठे शौर्य और शांभवी अपने अपने प्रोजेक्ट को अंतिम रूप दे रहे थे। कल वैलेंटाइन डे था।
शांभवी ने चुहल करते हुए शौर्य सिंह से कहा-"जोगी महाराज! कल वैलेंटाइन डे है। कल का क्या प्रोग्राम है?"

"क्या बात करती हो शांभवी? भला कल अलग से क्या प्रोग्राम होगा? और यह कौन सा खास दिन है हम लोगों के लिए।"शौर्य ने उत्तर दिया।

"ओहो,इतने इंटेलिजेंट हो और इतना भी नहीं जानते कि कल प्यार करने वालों के लिए बहुत खास दिन है।वे एक दूसरे को रोज़ देते हैं और प्रपोज भी करते हैं।" शांभवी ने समझाते हुए कहा।

"प्रेम तो हमारी संस्कृति में भी है शांभवी पर हम लोग वेलेंटाइन डे की तरह की फूहड़ता का प्रदर्शन कहां करते हैं?हमारे यहां तो प्रेम को बहुत पवित्र माना गया है।इसलिए तो राधा जी और कान्हा जी प्रेम के सबसे बड़े प्रतीक हैं और कभी भी उनके संबंधों को कलुषित नहीं माना जाता है।"

"हां बैरागी महाराज, आपको प्रेम से क्या लेना? कभी प्रेम किया भी है जो किसी से प्रेम के अहसास को समझोगे।"शांभवी ने कहा।

"हां किया है। मैंने भी प्रेम किया है शांभवी। एक लड़की है, जिसे मैं दिलो जान से चाहता हूं।
जिसके बिना मैं नहीं रह सकता और जिसका ख्याल आते ही मेरी हृदय वीणा के तार झंकृत हो उठते हैं। दिन हो या रात, मैं उसी के ख्यालों में डूबा रहता हूं।"

"ओ हो, तो क्या मैं उस भाग्यशाली का नाम जान सकती हूँ?"

"नहीं तुम्हें नहीं बताऊंगा।"

"क्या तुमने कभी अपने प्रेम का इजहार किया है?"

"नहीं किया है।डरता हूं कहीं वह ना कह देगी तो मेरा हृदय टूट जाएगा।अब पहल तो लड़कियों को ही करनी चाहिए ना।"

इस बात पर शांभवी नाराज हो गई और "तुम रहोगे निरे बुद्धु के बुद्धु"कहते हुए अपना बैग उठाकर लाइब्रेरी से बाहर निकलने लगी। शौर्य सिंह उसके पीछे भागने लगा।

"रुको शांभवी! मेरी बात तो सुनो।"शांभवी नहीं रुकी और तेजी से सीढ़ियों से नीचे उतर गई। रात उसके फोन पर शौर्य सिंह का संदेश आया -"सॉरी शांभवी।"

अगले दिन जब वे कॉलेज में मिले तो शांभवी मुंह फुलाए हुए थी। शौर्य ने तुरंत अपनी जेब में संभाल कर रखा हुआ गुलाब का सुर्ख़ फूल निकाला और उसके हाथ में देते हुए कहा- "हैप्पी वैलेंटाइन डे शांभवी!"

    
                (20)

शौर्य सिंह वैलेंटाइन डे पर अपने द्वारा गुलाब दिए जाने के बाद उत्तर की प्रतीक्षा करता रह गया लेकिन शांभवी ने बस इतना ही कहा- थैंक यू सेम टू यू।वैसे उन दोनों का प्रेम गहरा था और ऐसे आपसी समझ वाले प्रेम में किसी प्रश्न और उसके उत्तर की आवश्यकता नहीं होती है।यह ऐसा रिश्ता है जो बस बिना स्वार्थ के एक दूसरे का साथ चाहता है। एक दूसरे से प्रेरणा पाता है।एक दूसरे के लिए सब कुछ उत्सर्ग करने की भावना रखता है और हर क्षण एक दूसरे की खुशहाली, प्रगति और सुख शांति की कामना करता है। परीक्षाएं सर पर थीं,इसलिए दोनों उसमें व्यस्त हो गए। अब एक हफ्ते में परीक्षाओं के लिए प्रिपरेशन लीव भी होने वाली थी।आज फिर शांभवी और शौर्य सिंह लाइब्रेरी में बैठे हुए थे। अचानक एंप्लॉयमेंट न्यूज़ के पन्ने पलटते हुए शौर्य का ध्यान कंबाइंड डिफेंस सर्विस के एग्जाम की तरफ गया।

उसने शांभवी को जानकारी देते हुए कहा-

"देखो शांभवी, सेना में अधिकारी बनने का एक सुनहरा अवसर।"

शांभवी ने एम्प्लॉयमेंट न्यूज़ में कंबाइंड डिफेंस सर्विस के उस विज्ञापन की ओर देखते हुए कहा-

"अरे हां! जिन्हें देश की सेवा करने का जज़्बा है,वे अवश्य आवेदन कर सकते हैं ।"

शौर्य ने उसे बताया- "मैं आवेदन करना चाहता हूं शांभवी।मेरा एक सपना है। देश की रक्षा के लिए हथियार उठाने का और अपने देश की सरहद की हिफाजत करने का।"

  शांभवी के चेहरे पर थोड़ी उदासी के भाव आ गए क्योंकि वह अपने अव्यक्त प्रेम को अपने से दूर नहीं जाने देना चाहती थी और सेना में जाने का मतलब होता है- हमेशा जान अपनी हथेली पर रखना और जो घर में होते हैं, उनके लिए कभी लंबी तो कभी अंतहीन प्रतीक्षा।

   चेहरे पर उदासी के अपने भावों को छुपाते हुए शांभवी ने कहा-

  "यह तो अच्छी बात है शौर्य जी, अगर तुम ट्राई करो तो, लेकिन मुझे लगता है तुम एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में जाओगे तो अधिक सफल रहोगे।"

"अच्छा यह निष्कर्ष तुमने कैसे निकाल लिया?"

"अरे यार, क्या मैं तुमको जानती नहीं हूं,तुम कितने पढ़ाकू हो और पिछली बार के वार्षिकोत्सव में तुमने सारी व्यवस्थाओं को किस कुशलता से अंजाम दिया था।"

मुस्कुराते हुए शौर्य सिंह ने कहा-"तो क्या पढ़ाकू और इंटेलिजेंट लोग सेना में नहीं जा सकते शांभवी?"

"नहीं मैंने ऐसा कब कहा? जा सकते हैं भोले महाराज।"

"शांभवी, तुम तो समझ गई हो लेकिन मां समझे तब ना। वह सेना के नाम से ही बिचकती है और मुझे वह इसमें कभी एप्लाई नहीं करने देगी।"
शौर्य सिंह का हाथ अपने हाथ में लेते हुए शांभवी ने कहा-

  "वैसे मैं भी तुम्हारे सेना में जाने के पक्ष में नहीं हूं, लेकिन अगर तुम्हारी यही इच्छा है सिक्का तो मैं तुम्हें रोकूंगी नहीं ।मैं तुम्हारे हर निर्णय में तुम्हारे साथ हूँ।तुम्हें ढेरों शुभकामनाएं। मुझे खुशी है कि तुम वैयक्तिक संबंधों और रिश्ते नातों से ऊपर देश को मानते हो। मुझे तुम पर गर्व है।"

                  (21)
                  
शहीद विजय के जन्मदिन पर हर साल गांव में एक छोटा आयोजन होता है। गांव के लोग अपने बहादुर बेटे की मूर्ति के पास एकत्र होते हैं और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देते हैं।यह कार्यक्रम उनके बलिदान दिवस पर नहीं होता क्योंकि इस दिन लोगों की आंखें नम हो जाया करती हैं,इसलिए यह आयोजन उनके जन्मदिन पर होने लगा है।इस दिन गांव वाले उन्हें श्रद्धा के पुष्प अर्पित करते हैं और साथ में एक छोटा सा कार्यक्रम भी होता है, चाहे कविताओं का हो या डोगरी गीतों के गायन का हो। इस बार भी गांव के एकमात्र चौराहे पर स्थापित शहीद विजय की मूर्ति पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ।इसमें गांव के लोग थे और लोगों ने शहीद विजय के देश के प्रति योगदान पर प्रकाश डालना शुरू किया।इसी बीच कुछ हथियारबंद लोग समारोह में पहुंच गए। यह घटना अप्रत्याशित थी।

   इनका नेतृत्व पास के गांव का जावेद कर रहा था। उसने खुलेआम चुनौती देते हुए कहा -
"ऐ, तुम सब ये नाटक बंद करो। इंडियन आर्मी यहां कितना जुल्म ढाती है और उसके बंदे के नाम पर प्रोग्राम कर रहे हो।"

गांव के बुजुर्ग हामिद गुल ने उसे रोकते हुए कहा-

"अच्छा? आर्मी तो लोगों की रक्षा का काम करती है।जब क्रॉस बॉर्डर फायरिंग होती है तो उसका मुंह तोड़ जवाब देती है। यहां बाढ़ और संकट में घिरे हुए लोगों के लिए रेस्क्यू चलाती है और तुम आर्मी को अपना दुश्मन कहते हो।"

"वाह चचा, अब तुम भी इनका पक्ष लेने लगे। क्या तुम नहीं जानते कि हम आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं और हम इसे हासिल करके रहेंगे।"जावेद ने कहा।

"इसमें पक्ष लेने वाली कौन सी बात है? अपने देश की बातें बोलना बुरा कैसे हुआ और तुम किसके इशारे पर यह सब बोल रहे हो? उस दुश्मन मुल्क के ना, जिसने हमारे इस जन्नत को जहन्नुम बना दिया है और रात दिन खून खराबे के कारण लोगों की जान सांसत में है।"

हामिद चचा ने मुंह तोड़ जवाब दिया।

   जब जावेद के साथ आए करीम ने आत्म निर्णय और जनमत संग्रह की बातें की तो शौर्य सिंह आप से बाहर हो गया और कहने लगा-

"किस जनमत संग्रह की बात करते हो? विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद यहां अनेक चुनाव हुए हैं और लोगों के बड़ी संख्या में इसमें शामिल होने के बाद और क्या संशय रह जाता है?और जनमत संग्रह का अवास्तविक,अस्वीकार्य और काल्पनिक प्रश्न उठाने से पहले वह दहशतगर्द मुल्क हमारे हिस्से की जमीन खाली तो कर दे और उस इलाके से पीछे तो हट जाए।"

बहस तीव्र होने लगी।इस बीच जावेद ने रायफल का मुंह शौर्य सिंह की ओर तान दिया। उसके तर्क परास्त होने लगे थे और ऐसे में बंदूक की भाषा के अलावा उनके पास कुछ बचता ही क्या? शौर्य ने फुर्ती के साथ उसकी राइफल छीन ली और उसे चेतावनी देते हुए कहने लगा-

"जावेद, इसी मिट्टी में पैदा हुए हो।हम सब यहीं आस-पास के गांव के हैं। सदियों से एक साथ मिलजुल कर रहते आए हैं।यह क्या,तुम्हारी आंखों पर पट्टी बंधी है कि किसी के बहकावे में आकर अपनी मातृभूमि से द्रोह की बात सोचने लगे?"

इस जवाबी हमले से जावेद कुछ देर के लिए हक्का-बक्का रह गया।शौर्य सिंह ने उसकी राइफल वापस उसे दे दी। एकत्रित सब लोग उन युवकों की भर्त्सना करने लगे और 'हथियार छोड़ो'' "वापस जाओ" के नारे लगाने लगे।अपनी इस पराजय से बौखलाए जावेद ने जाते-जाते धमकी दे डाली कि दो दिनों के अंदर इस आर्मी वाले की मूर्ति को गांव से हटाओ, नहीं तो हम लोग इसे तोड़ देंगे।
                 
                       (22)
                  
दीप्ति ने अनमने ढंग से ही सही लेकिन शौर्य सिंह की तीव्र इच्छा जानकर उसे आर्मी की इस बड़ी परीक्षा में एप्लाई करने की अनुमति दे दी।आर्मी की प्रतिष्ठित परीक्षा पास करने के बाद शौर्य सिंह और विपिन दोनों को इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून में कड़ी ट्रेनिंग के बाद लेफ्टिनेंट के रूप में तैनाती एक ही रेजिमेंट में एक साथ मिली।यह देश के सबसे पुराने रेजिमेंटों में से एक थी।दोनों की महाविद्यालयी शिक्षा बस अभी पूरी हुई ही थी कि दोनों ने एक बड़ी जिम्मेदारी उठा ली थी।उनकी रेजीमेंट नियंत्रण रेखा के इस पार के एक संवेदनशील इलाके में तैनात थी। इस सेक्टर में आए दिन शत्रु राष्ट्र की ओर से गोलाबारी होती रहती थी। एक बार गोलाबारी शुरू होने के बाद सीमावर्ती गाँवों को पूरी तरह खाली करा लिया जाता था और सैनिकों को छोटे-छोटे तोपों और मोर्टारों से जवाब देना होता था। जब गोलाबारी बढ़ जाती थी तो बड़ी तोपों का भी इस्तेमाल किया जाता था।

सैनिकों को गश्त लगाते हुए नियंत्रण रेखा के एकदम नजदीक के दुर्गम इलाकों में भी जाना होता था, क्योंकि वास्तविक रूप से घुसपैठ का डर इन्हीं इलाकों से था। यहां घने जंगल थे, कहीं पर दलदली इलाका था और सेना की भारी गाड़ियों से भी यहां तक पहुंचना मुश्किल था, इसलिए लंबी दूरी तक पैदल ही गश्त करनी होती थी। सैनिकों की एक टुकड़ी जब सुनिश्चित प्वाइंटों पर पहुंचती थी तो वहां बड़े पत्थरों और आवश्यकता होने पर लकड़ी के टुकड़ों आदि को इकट्ठा कर छोटे-छोटे अस्थाई बंकरों और दीवारों का निर्माण कर लिया जाता था। जब यह टुकड़ी रिलीव होती और दूसरा दल पहुंचता तो वह इन बंकरों में और पत्थर जोड़कर उन्हें थोड़ा और मजबूत करने की कोशिश किया करता।इससे सैनिकों को ड्यूटी करने में सुविधा होती थी।सामान्यतः एक टुकड़ी को दो से तीन दिनों तक मुख्य कैंप से दूर घने जंगल में ही रात बितानी होती थी।

                      (23)

शौर्य सिंह की यादों का सिलसिला चल रहा है।
कुछ ही देर में शौर्य, शांभवी की यादों में खो गया। जब अंतिम रूप से उसे सेना में ज्वाइन करने के लिए केवल 24 घंटे की मोहलत दे गई थी। उसने एक के बाद एक फोन कर मां को और शांभवी दोनों को इस बात की सूचना दे दी थी। उसके घर पहुंचते-पहुंचते शांभवी भी शौर्य सिंह के घर पहुंच चुकी थी। दीप्ति उस समय किसी काम से पास के कस्बे में गई थी।शौर्य सिंह और शांभवी घर में अकेले थे। दोनों बहुत देर तक निःशब्द रहे।फिर शांभवी ने ही बात शुरू की।

" तो तुम चले ही जाओगे?"

"हां शांभवी, आर्मी जॉइन करने के लिए बहुत कम समय दिया गया है।"

" फील्ड में जाकर मुझे भूल तो नहीं जाओगे?"

" नहीं बिल्कुल नहीं, ऐसा तुमने कैसे समझा?"

" प्रायः ऐसा हो जाता है।"

" तो शायद तुम इस बात से डर रही हो कि आर्मी वालों की जान हथेली पर होती है।"

" बिल्कुल नहीं शौर्य जी!मैं जानती हूं कि आर्मी की नौकरी में अपने खतरे हैं लेकिन यह जानते हुए भी कि तुम सेना में जा रहे हो, मैंने तुम्हें ही अपना सब कुछ माना है।और मेरे घर के लोग भी तो मेरे इस निर्णय में  साथ हैं मेरे। मेरे पिता कर्नल राजवीर स्वयं आर्मी पृष्ठभूमि से हैं ,इसलिए वे आर्मी वालों को बहुत पसंद करते हैं और तुम जा भी रहे हो तो देश के लिए जा रहे हो।अपना ख़याल रखना" यह कहते हुए शांभवी की आंखें गर्व से चमक उठीं।

" सच कह रही हो शांभवी। तुम्हारे और मेरे इस निर्णय से हम दोनों के भाग्य भी एक साथ जुड़ गए हैं। अब मैं अकेला नहीं हूं और सदैव तुम्हारी शुभकामनाएं और तुम्हारा प्रेम मेरे साथ है ,इसलिए कभी मेरा बाल भी बांका नहीं हो सकता है।"

यह कहते हुए शौर्य सिंह ने शांभवी के हाथों को अपने हाथ में ले लिया।दोनों बहुत देर तक मौन बैठे रहे और मौन भाषा में ही आपस में संभाषण करने लगे। शायद प्रेम की भाषा मूक होती है, बिना ध्वनि के होती है।कल सुबह शौर्य सिंह को सेना की यूनिट में ज्वाइनिंग देने निकल जाना था। वे तब तक यूं ही बैठे रहे जब तक दीप्ति के घर में आने और उसके आवाज देने से दोनों की तंद्रा टूट ना गई।माता ने भी पुत्र प्रेम पर देश प्रेम को वरीयता दे दी थी ।
  

                      (24)

शौर्य सिंह मेहनती थे।जॉइनिंग के दो साल के भीतर वे लेफ्टिनेंट से कैप्टन बने और अगले 2 साल पूरा होते ही मेजर। अभी शौर्य सिंह जिन-जिन जगहों पर नियुक्त थे, वे लड़ाई वाली जगह तो थे लेकिन नियंत्रण रेखा के पॉइंट नहीं थे।संवेदनशील जगह तो नियंत्रण रेखा ही हुआ करती है, जहां उसे, न जाने क्या सोचकर तैनाती नहीं दी गई थी। उसने दो एक बार कमांडिंग अफसर से भी कहा। आज फिर उनसे निवेदन किया-

-सर मैं  एलओसी पर जाना चाहता हूं।

- क्यों ?एलओसी ही क्यों?

- मैं उस स्थान पर जाना चाहता हूं सर, जहां शत्रुओं से सीधे मुठभेड़ हो।

-ओके शौर्य सिंह!
                  (25)

                    ......... मेजर शौर्य सिंह का जिगरी दोस्त मेजर विपिन भी इसी टुकड़ी में शामिल है। केवल 8 सदस्यों की छोटी टुकड़ी में ही दो मेजर और एक कैप्टन, क्योंकि इन सब ने कमांडो ट्रेनिंग भी ली हुई है और यह सरहद का विशेष निगरानी कार्य है ....यह कार्य है भी इतना महत्वपूर्ण जिसके लिए इन अधिकारियों की सेवा ली जा रही थी। यह इलाका उन सीमावर्ती क्षेत्रों में से एक है,जहां वायरलेस सेट भी ठीक ढंग से काम नहीं करता है। जहां स्थाई चौकी का निर्माण संभव नहीं है। पिछले महीने सैनिकों की वायरलेस की आपसी बातचीत को आतंकियों द्वारा इंटरसेप्ट कर लिया गया था।इस डर से अब सेटेलाइट फोन से ही काम चलाना पड़ता है ।शायद बिगड़े मौसम और दोपहर को ही हुई हल्की बारिश के बाद या फिर किसी तकनीकी त्रुटि के चलते सेटेलाइट फोन से इस बार भी संचार में दिक्कत हो रही थी।

   शौर्य सिंह अभी भी अपने परिवार की फोटो को निहार रहा है।यह फोटो परिवार ने वैष्णो देवी की तीर्थ यात्रा के समय कटरा में खिंचाई थी ,जहां श्रद्धालुओं के द्वारा भजन कीर्तन किया जा रहा था। इस फोटो में चार साल का शौर्य है और वह अपने माता-पिता के बीच सुरक्षित और निश्चिंतता के भाव के साथ खड़ा है,लेकिन उसने देश की रक्षा के लिए 27 वर्ष की छोटी आयु में ही चौबीसों घंटे सीमा पर मुस्तैद रहने का बीड़ा उठाया हुआ है। शौर्य सिंह यह कार्य दिल से करता है। पिछले हफ्ते दीप्ति से उसकी टेलीफोन पर बात हुई है और दीप्ति बार-बार उसे अपना ध्यान रखने को कहती है।

                दो महीने पहले ही उसकी शांभवी से सगाई हुई है। उसके हाथों में शांभवी की पहनाई गई अंगूठी है, जिसे बार-बार छूकर वह हर पल शांभवी के अस्तित्व का अहसास किया करता है।शांभवी के माता-पिता को शौर्य सिंह से विवाह करने के उसके फैसले पर गर्व हुआ था।वे शांभवी की तारीफ भी करते थे कि तुमने एक सैनिक का वरण किया है और इससे बढ़कर गर्व की बात हमारे लिए कुछ नहीं हो सकती है।

     दोनों की शादी चार महीने बाद नये साल में होगी, लेकिन शौर्य सिंह को अभी से यह महसूस होता है कि सगाई होते ही शांभवी के साथ उसका जन्म जन्मांतर का नाता जुड़ गया है। माता पिता के साथ वाली फोटो के ठीक नीचे दबा कर रखी गई शांभवी की फोटो को शौर्य सिंह ऊपर निकाल कर रखता है और निहारने लगता है।पिछली छुट्टियों के दौरान ही यह तय हो गया था शौर्य सिंह को ड्यूटी ज्वाइन करते ही बॉर्डर के ऑपरेशनल एरिया में जाना पड़ेगा।शांभवी से आखिरी मुलाकात के समय शौर्य सिंह ने उसे बंद लिफाफे में एक पत्र दिया था और कहा था कि जब मैं बॉर्डर से लौट आऊं तभी उसे खोल कर देखना, उससे पहले नहीं। इस सरप्राइज को शांभवी ने भी जतन कर रखा हुआ है।जी भर कर फोटो को निहारने के बाद शौर्य ने पर्स को अपनी जेब में रखा और गन सीधी करने के बाद दूरबीन लेकर खड़ा हो गया।

                   (26)

"ओह!ये क्या हो रहा है?"वह बुदबुदाया।

   दूरबीन पर बहुत दूर, उसे काले धब्बे दिखाई पड़े।ये धब्बे आगे बढ़ रहे थे ।वह समझ गया।ये सशस्त्र घुसपैठिये हैं।वे सरहद पार करने की फिराक में हैं। उसका माथा ठनका। इस बार वे इस जर्जर पुल का उपयोग कर घुसेंगे।उसने दूरबीन हटाई ।अनुमान लगाया, वे कम से कम डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर होंगे। शौर्य सिंह ने धैर्य के साथ काम लिया। सबसे पहले उसने सेटेलाइट फोन को हाथ में लिया लेकिन आज यह काम ही नहीं कर रहा है। अपने साथियों को ढूंढने के लिए वह अगर वापस चला गया तो 10 से 15 मिनट में ये घुसपैठिये यहाँ तक पहुंच जाएंगे और पुल पार कर लेंगे।वह यह जगह छोड़ भी नहीं सकता था ।निकटतम चौकी करीब तीन किलोमीटर दूर है। वहां तक अगर वह दौड़ लगाए तो भी उसे पहुंचने में ही काफी समय लग जाएगा और पुल पार करने के बाद घुसपैठिये कहां जाएंगे और  उनके इरादे क्या हैं,इसे समझ पाना अभी मुश्किल था।सिक्का सिंह के पास राइफल थी ।गोलियां थीं और कुछ विस्फोटक भी थे।

     उसने आसपास देखा ।एक जगह अपेक्षाकृत सबसे ऊंची थी और वहां एक पेड़ की आड़ ली जा सकती थी। वह अपना बैग लेकर वहीं चला गया।थोड़ी देर में उसने पोजीशन ले ली। उसकी राइफल का मुंह पुल की ओर था। वह दूरबीन से बराबर उनकी पोजीशन देख भी रहा था। वे संख्या में 25 के आसपास थे। उसने थोड़ा और ध्यान से देखा। इस जत्थे के पीछे 20 से 25 और लोग लगभग आधा किलोमीटर के फासले पर इनके पीछे भी थे। शत्रु थे लगभग 50 और वह खुद अकेला था।

                    (27)

  पुल के पास पहुंचने पर इनके ऊपर दूर से ओपन फायर करना मूर्खता थी।पुल पर विस्फोटक बांधकर दूर से विस्फ़ोट कराना भी संभव नहीं था। उसके पास टाइमर नहीं था और टाइमर होने पर भी आतंकी ठीक कब पुल के पास पहुंचेंगे, इसका अंदाजा लगाना कठिन था। शौर्य सिंह सोच में पड़ गया। एक काम हो सकता है-अगर किसी तरह वह इस पुल को ही उड़ा दे तो इसे पार करने के लिए आ रहे गैंग को कम से आधे घंटे के लिए रोका जा सकता है। नाले का पानी अत्यंत गहरा था। हां मंजे हुए तैराकों के लिए इसे पार करना मुश्किल भी नहीं था। पुल पर दूर से विस्फोटक फेंकने के भी अपने खतरे थे, क्योंकि दूरी से निशाना चूकने का डर था।संध्या काल की क्षीण हो चुकी रोशनी, अब धीरे-धीरे रात की कालिमा में बदलने लगी थी। चिनार के पेड़ निस्तब्ध थे।हवा ठिठक गई थी और पंछियों की आवाजें भी खामोश थीं।

   मेजर शौर्य ने एक बार पर्स से निकालकर फोटो में अपने माता-पिता को छूकर उनके स्पर्श का अहसास किया।अंगूठी को छूकर उसने शांभवी को अपने में अनुभव किया।अब अगले ही पल वह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पाकर छोटे जंग की तैयारी करने लगा। उसने दौड़ लगाई और छिपते-छिपते पुल के ठीक इस सिरे तक पहुंच गया। बैग से निकाल कर उसने विस्फोटक अपने शरीर से बांधा। पुल के आसपास अंधेरा पसरा था।वह लकड़ी के पुल पर लटककर नीचे झूलने लगा और हाथ से ही एक-एक इंच आगे बढ़ने लगा। घुसपैठियों की आवाजें भी अब पास आने लगीं।पुल के अत्यंत जर्जर होने के बारे में उसका अनुमान गलत निकला। यह पुल उतना कमजोर नहीं था और अगर लोग इसे एक बार में पार करना चाहें तो एक साथ 15 से 20 लोगों का भार यह उठा सकता है। उसे इस बात पर आश्चर्य भी  हो रहा था कि घुसपैठ के इस बड़े संभावित साधन इस पुल को नष्ट करने की तरफ हमारी सेना में से किसी का ध्यान अब तक क्यों नहीं गया।

  शौर्य सिंह धीरे-धीरे पुल से लटककर रेंग सा रहा था।वर्षों पहले का वही दृश्य फिर उसकी आंखों में घूमने लगा।..........पापा, आप तो लड़ाई के मैदान में जाते हैं।वहाँ.............. सैनिक घायल होता है। और पापा जब किसी की मौत होती है तो मरने वाले को बहुत कष्ट होता होगा ना?...... उनके मरने के बाद उनके परिवार का क्या होता है? उसकी देखभाल कौन करता है?......
गहरे शाम के धुंधलके में  शौर्य सिंह के कानों में अपने पिता की आवाज गूंजने लगी.......बेटा उनकी देखभाल देश करता है।सेना करती है और देश की जनता करती है और फिर मातृभूमि के लिए शहीद होने का सौभाग्य बहुत कम लोगों को मिलता है।....... दृश्य बदलता है......माँ दीप्ति नौजवान शौर्य से बार-बार कह रही है..... नहीं बेटा मैं तुम्हें सेना में नहीं जाने दूंगी। तुम्हारे पिता की तरह मैं तुम्हें नहीं खोना चाहती हूं...... अब स्याह हो चुके शाम के अंधेरे में शांभवी की छवि उभरती है......... शौर्य सिंह शांभवी से कह रहा है.......
तो शायद तुम इस बात से डर रही हो कि आर्मी वालों की जान हथेली पर होती है..... शांभवी बड़े अर्थपूर्ण भाव से शौर्य की आंखों में आंखें जमाए हुए ढाढ़स भरे स्वर में कहती है........... यह जानते हुए  भी कि तुम सेना में जा रहे हो, मैंने तुम्हें ही अपना सब कुछ माना है। और .......... और तुम जा भी रहे हो तो देश के लिए ही.......अपना ख़याल रखना............. माता-पिता और शांभवी के ये वाक्य उसके कानों में अब गड्डमगड्ड होने लगे थे।सांझ ने अब रात की चादर ओढ़ ली है।शौर्य सिंह अब पुल के मध्यभाग के निकट ही पहुंच चुका था और पास आ रहे घुसपैठियों की हलचल भी तेज होने लगी थी।

                   अब कुछ ही मिनटों में शौर्य सिंह सरकते हुए पुल के ठीक नीचे, बीचों-बीच पहुंच चुका था। लटके रहने में भी खतरा था इसलिए वह अपने एक हाथ से सहारा देकर और धीरे-धीरे दोनों पैरों को ऊपर कर पुल की निचली सतह से चिपक गया।इससे पुल पर तेजी से आते लोगों को नीचे उसके होने का अहसास नहीं होगा।कुछ ही मिनटों में लोग सरहद के उस पार से पुल के ऊपर चढ़ने लगे।उनके पैरों की आवाजें हथौड़ों की तरह उसके कानों को भेद रही थीं। शौर्य सिंह पूरी तरह से संयत था। उसकी हथेली से उंगलियों का थोड़ा हिस्सा पुल के ऊपर भी पहुंच गया था।उंगलियां लकड़ी की तख्तियां को पकड़े हुए थी। एक दो जूते उसकी उंगलियों को भी कुचलने लगे थे। वह दर्द से बिलबिला उठा लेकिन मुंह से उसने उफ की भी आवाज नहीं निकाली।

    जब उसे लगा कि अधिकतम लोग पुल पर हैं तो किसी तरह उसने अपने एक हाथ को पुल से मुक्त किया और फिर अपने शरीर से बंधे उस विस्फोटक को उड़ा दिया।जोर का धमाका हुआ ।अधिकांश घुसपैठिए उसी पुल के साथ भरभरा कर पानी में गिर पड़े ।शौर्य सिंह भी पानी में गिर पड़ा।मेजर शौर्य सिंह देश की रक्षा करते हुए विस्फोट में शहीद हो चुका था। उसकी दैवीय आत्मा आसमान में ऊपर उठने लगी।ऊंचाई से उसने उस पुल पर लगी आग को देखा। घुसपैठिए झुलस रहे थे ।कुछ पानी में पड़े थे तो कुछ जमीन पर छिटके थे। लगभग 500 मीटर दूर पीछे वाली घुसपैठियों की टुकड़ी में इस विस्फोट से बदहवासी पैदा हो गई। चिल्लाते हुए वे पुल की ओर भागे। उधर पास वाली अग्रिम चौकी में भारतीय सैनिकों और शौर्य सिंह के साथ गश्त पर निकले उसके साथियों को विस्फोट की आवाज सुनाई दी। एक साथ अनेक जवान अपने-अपने हथियार और गोला-बारूद लेकर जंगल में आवाज की दिशा में दौड़ पड़े..........शौर्य सिंह की पवित्र आत्मा आकाश में ऊपर, ........और ऊपर उठने लगी,उस निश्छल आत्मा को संतोष था....... देश की माटी का कर्ज चुकाने का............   
   
           (28)

     लगभग तीस से पैंतीस आतंकवादी ,शौर्य सिंह द्वारा किए गए विस्फोट से मारे जा चुके थे।कुछ वापस भाग खड़े हुए।पांच या छह आतंकी तैर कर किसी तरह भारतीय सीमा के अंदर घुसे भी तो वहां पहुंच चुके सेना के जवानों ने उन्हें आसानी से ढेर कर दिया।शौर्य सिंह के झुलसे शरीर की पहचान उसकी जेब में रखे पर्स से मिली फोटो से हुई,जिसमें उसके माता-पिता; दीप्ति और शहीद विजय भी थे।वहां पहुँच चुके मेजर विपिन ने शौर्य सिंह की अंगुली में शांभवी की पहनाई सगाई की अंगूठी को भी पहचान लिया था।

इस समाचार के मिलने के बाद से दीप्ति के आँसू नहीं थम रहे थे।वहीं शांभवी का घर संसार बसने से पहले ही उजड़ गया और वह सुहागन बनने के पूर्व ही वैधव्य जीवन जीने की तैयारी करने लगी।तभी उसे कुछ ध्यान आया और उसने शौर्य सिंह का दिया हुआ मुहरबंद लिफाफा खोला और पत्र निकाल कर पढ़ा। पत्र पढ़ते-पढ़ते शांभवी रोने लगी और कई बार भावुक हो गई।
शौर्य ने पत्र की आखिरी पंक्तियों में लिखा था:-

"मेरी शांभवी,
      ………...अगर मैं कभी युद्ध के मोर्चे से वापस ना लौटूँ तो अनंत काल तक मेरी राह न देखना, अगर तुमने अंतरात्मा से मुझसे प्रेम किया है,तो मेरी याद में कुंवारी ही न रह जाना, शादी अवश्य कर लेना। तुम हमेशा सिविल सर्विस में चयनित होना चाहती थीं ना?इसके लिए अवश्य प्रयास करना शांभवी…….और नहीं तो केवल मेरी खातिर.... वहीं अगर मैं सही सलामत लौटूँ और हमारी शादी हो जाती है,तो भी इस पत्र को हमेशा संभाल कर रखना..... जीवन के उस पार से तुम्हारे लिए मेरा संदेश समझकर......फिर उसके बाद कोई घटना घटती है तो भी तुम दूसरी शादी अवश्य कर लेना...... क्योंकि जीवन हमेशा चलते रहने और आगे बढ़ने का ही दूसरा नाम है ........प्लीज़.....मेरी खातिर।.....क्योंकि एक बार सेना में शामिल हो जाने के बाद हम लोगों का स्थायी प्रेम,मातृभूमि के लिए हर क्षण प्राणों के उत्सर्ग हेतु तैयार रहने की उस सर्वोच्च भावना से हो जाता है, इसलिए शायद मैं जीवन भर तुम्हारा साथ ना दे पाऊं।.......हमेशा अपना ध्यान रखना।  
            तुम्हारा..........
                   सौ टके का खरा सिक्का
                        शौर्य"

                      (समाप्त)

       डॉ.योगेंद्र कुमार पांडेय

                     (कॉपीराइट रचना)

(यह एक काल्पनिक कहानी है किसी व्यक्ति,समुदाय,घटना,संस्था,स्थान,नीति,रीति आदि से समानता संयोग मात्र है।) जय हिंद🙏🇮🇳


(
Papiya

Papiya

बहुत ही अच्छी कहानी 👍🏼👍🏼

6 फरवरी 2022

sangita kulkarni

sangita kulkarni

Nice story.

20 जनवरी 2022

deena

deena

देश प्रेम पर आधारित सशक्त रचना। बहुत बढ़िया लेखन।

25 दिसम्बर 2021

Dr. Yogendra Kumar Pandey

Dr. Yogendra Kumar Pandey

25 दिसम्बर 2021

समीक्षा व उत्साह बढ़ाने के लिए बहुत-बहुत आभार आपका🙏

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रचनाएँ
कसक:लघु उपन्यास(एकमात्र संपूर्ण भाग)
5.0
भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के अमृत महोत्सव वर्ष में देश की सरहदों पर रक्षा के कार्य में स्वयं को समर्पित कर देने वाले भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस, शौर्य और बलिदान को समर्पित रचना।

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