देहरादून: उत्तराखंड की सरकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों के संचालन में कई गंभीर गड़बड़ियां पकड़ी हैं। गैरसैंण सत्र के सदन पटल पर रखी गई रिपोर्ट हुआ खुलासा। सरकारी सेवाओं में किस तरह से मनमानी की गई जिसके चलते सरकार के राजस्व में करोड़ो रुपये की हानि हुई। सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना अपना आकर्षण खो चुकी है, जिसके कारण 22 फ़ीसदी दाख़िलों में कमी आ गई। कैग ने छात्रों को परोसे जाने वाले मिड डे मील की गुणवत्ता में कई खामियां पकड़ी हैं। भोजन में बच्चों को जरूरी पोषक तत्व उपलब्ध नहीं कराए जाने पर भी सवाल उठाए गए हैं।
मिड-डे मील नहीं गड़बड़ी योजना
उत्तराखंड के सरकारी और अशासकीय प्राथमिक विद्यालयों में मिड डे मील योजना में भी घपला सामने आया। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक रसोई गैस संयोजन न होने के बावजूद कई स्कूलों के लिए लाखों रुपये जारी कर दिए गए। दून, ऊधमसिंह नगर और अल्मोड़ा के 16 स्कूलों में चावल के 50 किलो के बोरों का वजन कराया गया तो उसमें पांच से दस किलो चावल कम मिले। भोजन के साथ ही गरीबों के बच्चों का स्वास्थ्य जांच नहीं की गई। मिड डे मील योजना में कई तरह की गड़बड़ी सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक स्कूलों में भोजनालय सह भंडारण के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से समय पर धनराशि जारी करने के बावजूद अधिकतर भोजनालय समय पर बनकर तैयार ही नहीं हैं। 2010-15 के बीच केंद्र ने भोजनालय सह भंडार के निर्माण के लिए 143.60 करोड़ और रसोई गैस उपकरणों के क्रय के लिए 8.06 करोड़ की सहायता दी। इसमें राज्यांश को शामिल कर 10948 भोजनालय सह भंडार के निर्माण के लिए जिलों को 159.96 करोड़ जारी किए गए, पर जांच में पाया गया कि मात्र 9.40 फ़ीसदी भोजनालय ही समय से पूरे हो पाए। अल्मोड़ा के सात, दून-1 और टिहरी में 1, ऊधमसिंह नगर - 2 स्कूलों में खाना बनाने और खाद्यान्न के भंडारण के लिए क्लासरूम का प्रयोग किया जा रहा था। अल्मोड़ा के 20, दून के 25, टिहरी के आठ एवं ऊधमसिंह नगर के 30 स्कूलों में रसोई उपकरण अपर्याप्त थे। यहां बच्चों को भोजन के लिए घरों से थालियां लानी पड़ रही थीं। 2010-12 में राज्य सरकार की ओर से राज्यांश का 38.50 करोड़ जारी न करने से टीचरों को भोजन की व्यवस्था अपनी जेब से करनी पड़ी। रिपोर्ट के मुताबिक भोजन के साथ ही बच्चों की सेहत से भी खिलवाड़ हुआ।
CAG की रिपोर्ट के हिसाब हिसाब से कृषि विभाग की सुस्त कार्यप्रणाली के चलते राष्ट्रीय कृषि विकास योजना पर पलीता लग गया है। कृषि योजनाएं तैयार करने में 21 से 31 माह की देरी हुई। डीपीआर तैयार किए बिना ही 56 प्रोजेक्टों का अनुमोदन ले लिया गया। करोड़ों रुपये की छह परियोजनाओं के लिये अनुमोदन तक नहीं लिया गया। नागरिक उड्डयन विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान लगाया है। रिपोर्ट बताती है कि सरकारों ने हेलीकॉप्टर खरीद, हेलीपैडों और हवाईपट्टियों निर्माण एवं सुधार के नाम पर करोड़ों रुपये फूंक डाले। प्राइवेट कंपनियों के प्रति सरकारें बेहद उदार रहीं और उनसे लैंडिंग, पार्किंग एवं हैंगर का शुल्क तक नहीं वसूला गया। कैग ने लोक निर्माण विभाग, पावर कारपोरेशन और सिडकुल की दोषपूर्ण कार्यप्रणाली को रिपोर्ट में उजागर किया है। जांच में जांच में पकड़ा की किस तरह से भूखंडों के आवंटन में सिडकुल की नाकामी से करोड़ों रुपये का चूना लग गया। हेलीकॉप्टर सेवाओं के नाम पर प्रदेश में बड़े खेल का खुलासा हुआ है। हेलीकॉप्टर खरीद, हवाई पट्टी विस्तार और हेलीपैडों के निर्माण राज्य सरकार ने करोड़ों रुपये हवा में उड़ा दिए हैं। प्राइवेट कंपनियों पर सरकारें इस कदर मेहरबान रहीं कि उनसे हेलीपैडों और हवाई पट्टियों पर पार्किंग एवं हैंगर का निर्धारित शुल्क तक नहीं वसूला गया। नियम-कायदों को ताक पर रखकर मनमाने तरीके से करोड़ों रुपये के कलपुर्जे एवं औजार खरीदे गए। उत्तराखंड नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण के इन कारनामों को भारत के नियंत्रक महा लेख ापरीक्षक (कैग) ने बेपर्दा किया है।
ताक़ पर नियम, हवाओं में नेता
CAG की रिपोर्ट के अनुसार, हवाई यात्रा ओं के लिए नियम-कायदों को ताक पर रखा गया। वर्ष 2011 के दौरान तत्कालीन सरकार ने डबल इंजन हेलीकॉप्टर को मरम्मत के नाम पर हटा दिया गया। बदले में 1.05 लाख रुपये प्रति घंटा की दर से डबल इंजन का हेलीकॉप्टर किराये पर लिया। लेकिन, एक महीने में बिना किसी कारण इसकी सेवाएं बंद कर दी गईं। शासनादेश के विपरीत 1.25 लाख रुपये से 1.45 लाख रुपये प्रति घंटा की किराया दर से चार अलग-अलग कंपनियों के हेलीकॉप्टर ले लिए गए। इस करार के लिए उच्च स्तर से अनुमोदन प्राप्त करने तक की जहमत तक नहीं उठाई गई। कैग ने प्राधिकरण की इस कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए। नए लिए गए हेलीकॉप्टरों को राजकीय पायलट उड़ाने में सक्षम नहीं थे। इस निर्णय से सरकार को 10.45 लाख रुपये का नुकसान हुआ। हेलीकॉप्टर एवं वायुयान के कलपुर्जों एवं औज़ार खरीदने के नाम पर भी नियम-कायदों को ताक पर रख दिया गया। उत्तराखंड अधिप्राप्ति नियमावली 2008 के अनुसार 1 लाख से 15 लाख की खरीद के लिए टेंडर प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए थी। लेकिन इस नियम की सीधे तौर पर अवहेलना हुई। ये पूरा खेल 2011 से 2015 तक चला। कैग ने अपने आंकलन पाया कि 1.68 करोड़ रुपये की ये खरीद प्रतिस्पर्धात्मक दरों पर होती तो सरकार के लाखों रुपये बच सकत थे। वहीं प्राधिकरण ने 2006-07 से 2012-13 के दौरान रायनगर-बेरीनाग, गोथी-धारचूला, पीपलकोटी, डिखैत-पौडी, कोटि कॉलोनी टिहरी और नैनीताल में 6 हेलीपैड बनाने के लिए 5.60 करोड़ रुपये अवमुक्त किए। ये राशि संस्थाओं के खाते में भी चली गई। लेकिन, करोड़ों की ये राशि दो से नौ साल तक इसलिए बेकार पड़ी रही क्योंकि हेलीपैडों के निर्माण के लिए भूमि ही नहीं थी। 50 करोड़ रुपये स्वीकृत करने के बावजूद सरकार ने नया हेलीकॉप्टर नहीं खरीदा। कैग रिपोर्ट में कई ऐसे तथ्य सामने आए जिसमें देखा जा सकता है कि किस तरह से सरकारें नियमों को ताक पर रख कर काम कर रहीं है। मार्च 2013 में नए हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए 40 करोड़ स्वीकृत किए गए, लेकिन खरीद प्रक्रिया आरंभ ही नहीं हुई। मार्च 2015 में यह राशि सरेंडर कर दी गई। इतना ही नहीं अक्तूबर 2014 व मार्च 2015 में नए हेलीकॉप्टर खरीद के लिए 50 करोड़ रुपये स्वीकृत कर दिए गए। यह राशि भी तब से डंप पड़ी है। कैग ने प्राधिकरण के तर्क को भी ख़ारिज कर दिया कि शासन ने ख़रीद्दारी की अनुमति नहीं दी।
इंडिया संवाद ने जब संबंधित मिनिस्ट्री में बात करने की कोशिश की तो कहा गया कि मंत्री जी और नेता जी व्यस्त हैं। बहरहाल मौजूदा कांग्रेस हो या पूववर्ती बीजेपी दाग़ तो हर किसी के दामन पर हैं। महानियंत्रक लेखा यानि CAG ने लोक निर्माण विभाग, कृषि, शिक्षा समेत अन्य विभागों की कार्यशैली पर आपत्ति जाहिर की है जिसके चलते न सिर्फ़ वित्तीय अनियमितताएं बल्कि कईं दूसरे कारणों के चलते विभिन्न योजनाओं की धनराशि वापस करने का ज़िक्र है. चुनाव बेहद नज़दीक़ है ऐसे में बड़ा दिलचस्प होगा यह देखना में गैरसैंण में पेश हुई कैग रिपोर्ट पर सियासत क्या रंग दिखाएंगी.