भाग 2
जैसे ही केतकी की सेविका दिव्या उसे उठाती है तो वह क्रोधित हो उसे देखती है और कहती है ,*" ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा जो असमय तुम मुझे अर्ध निंद्रा से उठाने की धृष्टता कर रही हो ,*"!!!
दिव्य कहती हूं ,*" क्षमा प्राथी हूं देवी पर सूचना हो कुछ ऐसी है की में स्वयं को रोक नहीं पाई , *"!!
केतकी उसे क्रोध भरी नजरो से देखते हुए कहती है ,*" ऐसा कौनसा अनर्थ हो गया ,जो तुम मेरा दिशा निर्देश ही भूल गई,*"!!!
दिव्या कहती है ,*" देवी अनर्थ नही समझिए प्रलय आ गया , गंधर्व देवक और अप्सरा पुष्पा को देवाधिदेव महादेव ने जन्म जन्मांतर तक दोनो को पति पत्नी के रूप में रहने का वरदान दे दिया , *"!!!
यह सुनते ही केतकी ने एक जोरदार थप्पड़ दिव्या को मारती है और चीखते हुए कहती है ,*" दुष्ट अर्ध रात्रि में यह अशुभ वार्ता सुनने के लिए उठाया , ,*"!!
वह गुस्से से उठती है ,उसे लगने लगा की जैसे सच में भूचाल आ गया , उसे अपना जीवन मिथ्या लगने लगा , दिव्या थप्पड़ खाने के पश्चात हतप्रभ सा गाल पर हाथ रखे केतकी को देख रही थी ,कुछ ही क्षणों में न जाने कितने मनोभाव उसके मुख पर आए और चले गए ,ऐसा लगने लगा जैसे उसका मुख मालिन हो गया , वह क्रोध में चहल कदमी करने लगी और फिर दिव्या को पकड़ कर चीखते हुए कहती है ,*" नही ! ये नही हो सकता ,? देवक मेरा है ,और मैं उसे पाए बिना नही रह सकती , में उसे इतने सहजता से पुष्पा का कैसे होते देख सकती हूं , और वैसे भी यहां के सेवक गण किसी एक का होकर नही रह सकते हैं ,*"!!!
दिव्या कहती है ,*" किन्तु ! अब हो भी क्या सकता है देवी , भगवान शिव का दिया हुआ वरदान तो मिथ्या नही हो सकता है ,*"!!!
केतकी टहलती हुई कहती है,*" में भी जानती हूं की महादेव का दिया वरदान मिथ्या नही हो सकता है ,पर मैं अपना वो अपमान कैसे भूलूं ,जो देवक ने मेरा प्रणय निवेदन ठुकरा कर किया था , आज भी उस घड़ी को जब स्मरण करती हूं तो मेरे मन में भूचाल सा उठ जाता है , उस शरद पूर्णिमा की रात में भाव विभोर हुई देवक से मिलन की आशा लिए मैं उपवन में गई जहां वह पुष्पा की प्रतीक्षा कर रहा था , मेरे मन में उसके पुष्प के प्रति व्याकुलता देख ईर्ष्या होने लगी ,!!!!
( पुराने परिदृश्य में जाते है )
एक सुंदर सी पुष्प वाटिका में देवक अपनी प्रिए पुष्पा की प्रतीक्षा कर रहा था , देवक को पुष्प वाटिका के फूल भी आकर्षित नही कर पा रहे थे ,रात रानी की सुगंध ने पूरे वातावरण को सुगंधित कर रखा था , जुगनू सितारों की तरह फूलों पर चमकते हुए घूम रहे थे , ,!!!
केतकी देवक को इस प्रकार बैचेन देख उस से उपहास करने का मन बना लेती है ,और वह पुष्पा के चाल में चलते हुए घूंघट से अपना मुखड़ा ढके हुए ,पायलो की झंकार करती हुई धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ती है ,!!!
दूर से उसे पुष्पा समझ बेचैन देवक इस से कह उठता है *" अहो प्रिए कितनी प्रतीक्षा करवाओगी ,कब से तुम्हारी राह तक रहा हूं , *"!!!
कहते है ना प्रेम में सभी अंधे हो जाते हैं तो देवक भी इस समय प्रेमाग्नि में पुष्पा से मिलन को व्याकुल था ,!!!!!
केतकी देवक से थोड़ी दूर ही रुक जाती हैं ,"!!!
देवक उसे रुका देख कहता है ,*" रुक क्यों गई प्रिए , मेरी बाहों में आ जाओ देखो ये कब से तुम्हारे आलिंगन को आतुर हो रहे हैं ,!!!!
केतकी उसकी बाहों में आती है तो उसके स्पर्श से देवक चौक उठता है वह चिहुंक कर पीछे हटता है ,!!!
वह हड़बड़ा कर पूछता है ,*" तुम कौन हो ,तुम मेरी पुष्प नही हो सकती ,*"!!?
केतकी कहती है ,*" हां ! मैं पुष्पा नही हूं पर मैं तुम्हारे प्रेम की प्यासी ,तुम्हे पाने की चीर अभिलाषी ,अप्सराओं में श्रेष्ठ देवी सची की प्रधान प्रचारिका केतकी हूं प्रिए,*"!!
वह अपने मुखड़े से चुनरी हटाती है ,!!!!
देवक उसे देख चौकता है और कहता है ,*" केतकी तुम ,*"!??
केतकी कहती है ,*" हां मैं ,!!! आज इस शरद पूर्णिमा की इस दूध नहाई चांदनी रात में तुम्हारे पास प्रणय निवेदन लेकर आई हूं , प्रिय देवक मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार कर मुझे कृतकृत्य करो ,*"!!!
देवक कहता है ,*" यह संभव नहीं है देवी केतकी , मैं ने पहले ही महाराज इंद्र की परिचारिका पुष्पा का प्रणय निवेदन स्वीकार कर लिया है , *"!!
केतकी कहती हैं ,*" देवी पुष्पा तो अभी देवेंद्र की याचिका में लगी है ,उन्हे आने में विलम्ब होगा ,तब तक तो मेरी अभिलाषा पूर्ण कर दो ,*"!!
देवक चीख कर कहता है ,*" तुम इस समय अपने आपे में नही हो जाओ जाकर विश्राम करो ,*"!!!
केतकी कहती हैं *" विश्राम ही तो नही कर पा रही हूं,जब भी पलके झपकती हैं तो निद्रा के स्थान पर तुम्हारी छवि दिखलाई पड़ने लगती है , और मैं पूर्ण रात्रि तुम्हें पाने के लिए तड़पती रहती हूं , मेरा स्वप्न में भी केवल तुम ही दिखाई देते हो , मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार कर देवलोक के नियमानुसार गर्व का अनुभव करो , तुम मेरा सहचर स्वीकार करो गंधर्व श्रेष्ठ ,*"!!!
देवक हाथ जोड़कर कहता है ,*" में क्षमा प्रार्थना कर रहा हूं देवी मुझे तुम्हारा प्रणय निवेदन स्वीकार करने में कोई आपत्ती नही है किंतु आज नही ,*"!!!
उसी समय पुष्पा वहां आती है ,उसे देख केतकी एकदम से जल भुन जाती है , !!!
वह केतकी को प्रणाम कर कहती है ,*" मेरा प्रणाम स्वीकार करो देवी केतकी तुम यहां इस समय क्या कर रही हो , *"!!
केतकी क्रोधित होकर कहती है ,*" इतनी अनजान न बनो पुष्पा और तुम दोनो जो खेल खेल रहे हो में सभी के सामने उजागर कर दूंगी , *"!!!
पुष्पा कहती हैं ,*" देवी केतकी अभी तो मैने देवक से प्रणय निवेदन कर लिया था और उसे इन्होंने स्वीकार कर लिया था और रही बात उजागर करने की तो अभी तक हमने कोई ऐसा कृत्य नही किया है जिस से हमे कोई भी दंडित कर सके हम जो भी कर रहे है देवलोक के नियमानुसार ही कर रहे है ,अभी के लिए क्षमा प्राथी हूं ,हमे विलंब हो रहा है ,चलो प्रिए ,*"!!!
देवक उसे देखते हुए जाता है , केतकी आंखे क्रोध से लाल हो जाती है ,!!!
वह क्रोध वश बोलती है ,*" यह तुमने अच्छा नही किया देवक ,मेरे प्रेम का अंदर इस तुच्छ पुष्पा के लिए किया , मैं अपने अपमान का ऐसा बदला लूंगी जिसे तुम दोनो सदियों तक नही भूल पाओगे ,*"!!
वह क्रोध में अदृश्य होती है ,!!!
क्रमशः