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खिड़की से झाँक रहे तारे

1 अगस्त 2022

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खिड़की से झाँक रहे तारे!


जलता है कोई दीप नहीं,

कोई भी आज समीप नहीं,

लेटा हूँ कमरे के अंदर बिस्तर पर अपना मन मारे!

खिड़की से झाँक रहे तारे!


सुख का ताना, दुख का बाना,

सुधियों ने है बुनना ठाना,

लो, कफ़न ओढाता आता है कोई मेरे तन पर सारे!

खिड़की से झाँक रहे तारे!


अपने पर मैं ही रोता हूँ,

मैं अपनी चिता संजोता हूँ,

जल जाऊँगा अपने कर से रख अपने ऊपर अंगारे!

खिड़की से झाँक रहे तारे!

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रचनाएँ
एकांत-संगीत
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कविता में कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह संसार से मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता, क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। वह अपनी धुन में रहने वाला व्यक्ति है। कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह अपनी वाणी के जरिये अपना आक्रोश व्यक्त करता है। उसकी व्यथा शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है तो संसार उसे गाना मानता है। वह संसार को अपने गीतों, द्वंद्वों के माध्यम से प्रसन्न करने का प्रयास करता है। कवि सभी को सामंजस्य बनाए रखने के लिए कहता है।
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एकांत संगीत

1 अगस्त 2022
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तट पर है तरुवर एकाकी, नौका है, सागर में, अंतरिक्ष में खग एकाकी, तारा है, अंबर में, भू पर वन, वारिधि पर बेड़े, नभ में उडु खग मेला, नर नारी से भरे जगत में कवि का हृदय अकेला!

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अब मत मेरा निर्माण करो

1 अगस्त 2022
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अब मत मेरा निर्माण करो! तुमने न बना मुझको पाया, युग-युग बीते, मैं न घबराया; भूलो मेरी विह्वलता को, निज लज्जा का तो ध्यान करो! अब मत मेरा निर्माण करो! इस चक्की पर खाते चक्कर मेरा तन-मन-जीवन ज

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मेरे उर पर पत्थर धर दो

1 अगस्त 2022
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मेरे उर पर पत्थर धर दो! जीवन की नौका का प्रिय धन लुटा हुआ मणि-मुक्ता-कंचन तो न मिलेगा, किसी वस्तु से इन खाली जगहों को भर दो! मेरे उर पर पत्थर धर दो! मंद पवन के मंद झकोरे, लघु-लघु लहरों के हल

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मूल्य दे सुख के क्षणों का

1 अगस्त 2022
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मूल्य दे सुख के क्षणों का! एक पल स्वच्छंद होकर तू चला जल, थल, गगन पर, हाय! आवाहन वही था विश्व के चिर बंधनों का! मूल्य दे सुख के क्षणों का! पा निशा की स्वप्न छाया एक तूने गीत गाया, हाय! तूने र

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कोई गाता, मैं सो जाता

1 अगस्त 2022
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कोई गाता, मैं सो जाता! संसृति के विस्तृत सागर पर सपनों की नौका के अंदर सुख-दुख की लहरों पर उठ-गिर बहता जाता मैं सो जाता! कोई गाता मैं सो जाता! आँखों में भरकर प्यार अमर, आशीष हथेली में भरकर को

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मेरा तन भूखा, मन भूखा

1 अगस्त 2022
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मेरा तन भूखा, मन भूखा! इच्छा, सब सत्यों का दर्शन, सपने भी छोड़ गये लोचन! मेरे अपलक युग नयनों में मेरा चंचल यौवन भूखा! मेरा तन भूखा, मन भूखा! इच्छा, सब जग का आलिंगन, रूठा मुझसे जग का कण-कण!

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व्यर्थ गया क्या जीवन मेरा?

1 अगस्त 2022
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व्यर्थ गया क्या जीवन मेरा? प्यासी आँखें, भूखी बाँहें, अंग-अंग की अगणित चाहें; और काल के गाल समाता जाता है प्रति क्षण तन मेरा! व्यर्थ गया क्या जीवन मेरा? आशाओं का बाग लगा है, कलि-कुसुमों का भ

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खिड़की से झाँक रहे तारे

1 अगस्त 2022
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खिड़की से झाँक रहे तारे! जलता है कोई दीप नहीं, कोई भी आज समीप नहीं, लेटा हूँ कमरे के अंदर बिस्तर पर अपना मन मारे! खिड़की से झाँक रहे तारे! सुख का ताना, दुख का बाना, सुधियों ने है बुनना ठाना,

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खिड़की से झाँक रहे तारे

1 अगस्त 2022
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खिड़की से झाँक रहे तारे! जलता है कोई दीप नहीं, कोई भी आज समीप नहीं, लेटा हूँ कमरे के अंदर बिस्तर पर अपना मन मारे! खिड़की से झाँक रहे तारे! सुख का ताना, दुख का बाना, सुधियों ने है बुनना ठाना,

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नभ में दूर-दूर तारे भी

1 अगस्त 2022
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नभ में दूर-दूर तारे भी! देते साथ-साथ दिखलाई, विश्व समझता स्नेह-सगाई; एकाकी पन का अनुभव, पर, करते हैं ये बेचारे भी! नभ में दूर-दूर तारे भी उर-ज्वाला को ज्योति बनाते, निशि-पंथी को राह बताते,

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मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ?

1 अगस्त 2022
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मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ? जगती के सागर में गहरे जो उठ-गिरतीं अगणित लहरें, उनमें एक लहर लघु मैं भी, क्यों निज चंचलता दिखलाऊँ? मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ? जगती के तरुवर में प्रति पल जो लगते-गि

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छाया पास चली आती है

1 अगस्त 2022
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छाया पास चली आती है! जड़ बिस्तर पर पड़ा हुआ हूँ, तम-समाधि में गड़ा हुआ हूँ; तन चेतनता-हीन हुआ है, साँस महज चलती जाती है! छाया पास चली आती है! तन सफ़ेद है, पट सफ़ेद है, अंग-अंग में भरा भेद है

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मध्य निशा में पंछी बोला

1 अगस्त 2022
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मध्य निशा में पंछी बोला! ध्वनित धरातल और गगन है, राग नहीं है, यह क्रंदन है, टूटे प्यारी नींद किसी की, इसने कंठ करुण निज खोला! मध्य निशा में पंछी बोला! निश्चित गाने का अवसर है, सीमित रोने को

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